शनि आठवें भाव में हो तो क्या होता है? - shani aathaven bhaav mein ho to kya hota hai?

समाज में शनि ग्रह को लेकर नकारात्मक धारणा बनी हुई है। लोग इसके नाम से भयभीत होने लगते हैं। परंतु वास्तव में ऐसा नहीं है। ज्योतिष में शनि ग्रह को भले एक क्रूर ग्रह माना जाता है परंतु यह पीड़ित होने पर ही जातकों को नकारात्मक फल देता है। यदि किसी व्यक्ति का शनि उच्च हो तो वह उसे रंक से राज बना सकता है। शनि तीनों लोकों का न्यायाधीश है। अतः यह व्यक्तियों को उनके कर्म के आधार पर फल प्रदान करता है। शनि पुष्य, अनुराधा और उत्तराभाद्रपद नक्षत्र का स्वामी होता है।

ज्योतिष के अनुसार शनि ग्रह का मनुष्य जीवन पर प्रभाव

शारीरिक रूप रेखा - ज्योतिष में शनि ग्रह को लेकर ऐसा कहा जाता है कि जिस व्यक्ति की जन्म कुंडली में शनि ग्रह लग्न भाव में होता है तो सामान्यतः अनुकूल नहीं माना जाता है। लग्न भाव में शनि जातक को आलसी, सुस्त और हीन मानसिकता का बनाता है। इसके कारण व्यक्ति का शरीर व बाल खुश्क होते हैं। शरीर का वर्ण काला होता है। हालाँकि व्यक्ति गुणवान होता है। शनि के प्रभाव से व्यक्ति एकान्त में रहना पसंद करेगा।

बली शनि - ज्योतिष में शनि ग्रह बली हो तो व्यक्ति को इसके सकारात्मक फल प्राप्त होते हैं। जैसा कि हम जानते हैं कि तुला राशि में शनि उच्च का होता है। यहाँ शनि के उच्च होने से मतलब उसके बलवान होने से है। इस दौरान यह जातकों को कर्मठ, कर्मशील और न्यायप्रिय बनाता है। इसके प्रभाव से व्यक्ति को कार्यक्षेत्र में सफलता प्रदान मिलती है। यह व्यक्ति को धैर्यवान बनाता है और जीवन में स्थिरता बनाए रखता है। इसके प्रभाव से व्यक्ति की उम्र में वृद्धि होती है।

पीड़ित शनि - वहीं पीड़ित शनि व्यक्ति के जीवन में कई प्रकार की परेशानियों को पैदा करता है। यदि शनि मंगल ग्रह से पीड़ित हो तो यह जातकों के लिए दुर्घटना और कारावास जैसी परिस्थितियों का योग बनाता है। इस दौरान जातकों को शनि के अशुभ प्रभाव से बचने के लिए शनि के उपाय करना चाहिए।

रोग - ज्योतिष में शनि ग्रह को कैंसर, पैरालाइसिस, जुक़ाम, अस्थमा, चर्म रोग, फ्रैक्चर आदि बीमारियों का जिम्मेदार माना जात है।

कार्यक्षेत्र - ऑटो मोबाईल बिजनेस, धातु से संबंधित व्यापार, इंजीनियरिंग, अधिक परिश्रम करने वाले कार्य आदि कार्यक्षेत्रों को ज्योतिष में शनि ग्रह के द्वारा दर्शाया गया है।

उत्पाद - मशीन, चमड़ा, लकड़ी, आलू, काली दाल, सरसों का तेल, काली वस्तुएँ, लोहा, कैमिकल प्रॉडक्ट्स, ज्वलनशील पदार्थ, कोयला, प्राचीन वस्तुएँ आदि का संबंध ज्योतिष में शनि ग्रह से है।

स्थान - फैक्टी, कोयला की खान, पहाड़, जंगल, गुफाएँ, खण्डहर, चर्च, मंदिर, कुंआ, मलिन बस्ती और मलिन जगह का संबंध शनि ग्रह से है।

जानवर तथा पशु-पक्षी - ज्योतिष में शनि ग्रह बिल्ली, गधा, खरगोश, भेड़िया, भालू, मगरमच्छ, साँप, विषैले जीव, भैंस, ऊँट जैसे जानवरों का प्रतिनिधित्व करता है। यह समुद्री मछली, चमगादड़ और उल्लू जैसे पक्षियों का भी प्रतिनिधित्व करता है।

जड़ी - धतूरे की जड़ का संबंध शनि ग्रह से है।

रत्न - नीलम रत्न शनि ग्रह की शांति के लिए धारण किया जाता है।

रुद्राक्ष - सात मुखी रुद्राक्ष शनि ग्रह के लिए धारण किया जाता है।

यंत्र - शनि यंत्र।

मंत्र -

शनि का वैदिक मंत्र
ॐ शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।
शं योरभि स्त्रवन्तु न:।।

शनि का तांत्रिक मंत्र
ॐ शं शनैश्चराय नमः।।

शनि का बीज मंत्र
ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।।

धार्मिक दृष्टि से शनि ग्रह का महत्व

हिन्दू धर्म में शनि ग्रह शनि देव के रूप में पूजा जाता है। पौराणिक शास्त्रों में शनि को सूर्य देव का पुत्र माना गया है। शास्त्रों में ऐसा वर्णन आता है कि सूर्य ने श्याम वर्ण के कारण शनि को अपना पुत्र मानने से इंकार कर दिया था। तभी से शनि सूर्य से शत्रु का भाव रखते हैं। हाथी, घोड़ा, मोर, हिरण, गधा, कुत्ता, भैंसा, गिद्ध और काैआ शनि की सवारी हैं। शनि इस पृथ्वी में सामंजस्य को बनाए रखता है और जो व्यक्ति के बुरे कर्म करता है वह उसको दण्डित करता है। हिन्दू धर्म में शनिवार के दिन लोग शनि देव की आराधना में व्रत धारण करते हैं तथा उन्हें सरसों का तेल अर्पित करते हैं।

खगोलीय दृष्टि से शनि ग्रह का महत्व

खगोल विज्ञान के अनुसार शनि एक ऐसा ग्रह है जिसके चारो ओर वलय (छल्ला) हैं। यह सूर्य से छठा तथा सौरमंडल में बृहस्पति के बाद दूसरा सबसे बड़ा ग्रह है। यह पीले रंग का ग्रह। शनि के वायुमंडल में लगभग 96 प्रतिशत हाइड्रोजन और 3 प्रतिशत हीलियम गैस है। खगोल शास्त्र के अनुसार शनि ग्रह के छल्ले पर सैकड़ों प्राकृतिक उपग्रह स्थित हैं। हालाँकि आधिकारिक रूप से इसके 53 उपग्रह हैं।

शनि यदि है आठवें भाव में तो रखें ये 5 सावधानियां, करें ये 6 कार्य और जानिए भविष्य

शनि आठवें भाव में हो तो क्या होता है? - shani aathaven bhaav mein ho to kya hota hai?

मकर और कुंभ का स्वामी शनि तुला में उच्च, मेष में नीच का होता है। लाल किताब में आठवें भाव में शनि बली और ग्यारहवां भाव पक्का घर है। सूर्य, चंद्र और मंगल की राशियों में शनि बुरा फल देता है। लेकिन यहां आठवें घर में होने या मंदा होने पर क्या सावधानी रखें जानिए।
 

 

कैसा होगा जातक : यह घर शनि का मुख्यालय माना जाता है, लेकिन यदि बुध, राहु और केतु जातक की कुंडली में नीच के हैं तो शनि बुरा परिणाम देगा। जातक दीर्घायु होगा लेकिन उसके पिता की उम्र कम हो सकती है और जातक के भाई एक-एक करके शत्रु होंगे।
 

 

5 सावधानियां :

1. जुआ, सट्टा, शराब, वैश्या से संपर्क और ब्याज आदि न करें।

2. मकान बनाने से पहले किसी लाल किताब के विशेषज्ञ को कुंडली दिखाएं।

3. भाई एवं बहनों से झगड़ा ना करें।

4. झूठ बोलना और झूठी गवाही देना वर्जित है।

5. घमंड को छोड़कर विनम्रता का पालन करें।
 

 

क्या करें : 

1. नित्य प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करें और उन्हीं की भक्ति करें।

2. किसी पत्थर या लकड़ी के आसन पर बैठ कर ही स्नान करें।

3. नहाते समय पानी में दूध डाकर ही नहाएं।  

4. पांच शनिवार को छाया दान करें।

5. अपने साथ चांदी का एक चौकोर टुकड़ा रखें।

6. चांदी का एक आयताकार टुकड़ा जमीन में गाड़ दें।

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आठवें भाव में शनि हो तो क्या होता है?

शनि यदि अष्टम भाव में स्थित हो तो उसकी दृष्टियां दशम, द्वितीय तथा पंचम भावों पर रहती हैं. इस कारण जातक के व्यवसाय और उसके कार्य क्षेत्र, धन, शिक्षा, संतान तथा मृत्यु आदि पर शनि का प्रभाव रहता है. इस स्थान पर शनि अन्य ग्रहों की युति, दृष्टि के अनुसार शुभ-अशुभ फल देता है.

कुंडली में 8 घर किसका होता है?

जन्मपत्रिका में अष्टम भाव को मृत्यु का भाव कहा जाता है। मृत्यु का भाव होने के साथ ही यह भाव गूढ़ विद्या तथा अकस्मात धन प्राप्ति का भाव भी कहलाता है।

आठवें भाव का स्वामी कौन होता है?

बृहस्पति यहां पंचम और अष्टम भाव का स्वामी है. पंचम भाव में बृहस्पति के होने से रावण किसी पूर्व जन्म के कारण पैदा होता है. जबकि कुंडली के अष्टम भाव में गुरु की उपस्थिति इंसान को गुप्त विद्याओं का मालिक बनाती है. कुंडली के इसी भाव में सूर्य और गुरु के साथ शुक्र भी है.

शनि किस भाव में क्या फल देता है?

शनि को राशि चक्र पूरा करने ( सभी बारह भावों में ) में तीस साल लगते है और ज्योतिष के ग्रन्थों के अनुसार शनि केवल तृतीय , षष्ठ व एकादश भाव में ही शुभ फल देता है यानि तीस साल में व्यक्ति को केवल साढ़े सात साल ही शनि शुभ फल देता है | इसका तात्पर्य है की बाकी के 22.5 साल में शनि अशुभ फल ही देता है।