‘गुटनिरपेक्षता’ शब्द को सर्वप्रथम लिस्का द्वारा वैज्ञानिक अर्थ प्रदान किया गया, बाद में अन्य विद्वानों ने इसे अलग-अलग रूप में परिभाषित किया। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इसे पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा व्यवस्थित रूप दिया गया जिसको कर्नल नासिर तथा मार्शल टीटो ने भी स्वीकार कर लिया। Show
जवाहर लाल नेहरू ने गुटनिरपेक्षता को परिभाषित करते हुए कहा है - गुटनिरपेक्षता का अर्थ है अपने आप को सैनिक गुटों से दूर रखना तथा जहां तक सम्भव हो तथ्यों को सैनिक दृष्टि से न देखना। यदि ऐसी आवश्यकता पड़े तो स्वतन्त्र दृष्टिकोण रखना तथा दूसरे देशों से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बनाए रखना गुटनिरपेक्षता के लिए आवश्यक है।” इससे स्पष्ट होता है कि केवल आंख बंद करके विश्व घटनाक्रम को देखते रहना गुटनिरपेक्षता नहीं है। यह सही और गलत में अन्तर करते हुए सही का पक्ष लेने की भी नीति है। लेकिन गुटनिरपेक्ष देश वही हो सकता है जो गुटों से दूर रहकर ही अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाए। गुटनिरपेक्षता का सरल अर्थ है कि विभिन्न शक्ति गुटों से तटस्थ या दूर रहते हुए अपनी स्वतन्त्र निर्णय नीति और राष्ट्रीय हित के अनुसार सही या न्याय का साथ देना। आंख बंद करके गुटों से अलग रहना गुटनिरपेक्षता नहीं हो सकती। गुटनिरपेक्षता का अर्थ है - सही और गलत में अन्तर करके सदा सही नीति का समर्थन करना। जार्ज लिस्का ने इसका सही अर्थ स्पष्ट करते हुए कहा कि सबसे पहले यह बताना जरूरी है कि गुटनिरपेक्षता तटस्थता नहीं है। इसका अर्थ है - उचित और अनुचित का भेद जानकर उचित का साथ देना। गुटनिरपेक्षता का सही अर्थ स्पष्ट करने के लिए यह बताना जरूरी है कि गुटनिरपेक्षता क्या नहीं है? गुटनिरपेक्षता शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व की भावना को विकसित करने, अंतर्राष्ट्रीय संघर्षों का विरोध करने व उनके समाधान का प्रयास करके विश्व में स्थायी शान्ति की स्थापना के प्रयास की नीति है। गुटनिरपेक्षता किसी समस्या के प्रति आंख बंद करके बैठ जाने या अलग रहकर जीने की नीति नहीं है बल्कि अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं के प्रति जागरूक रहने की नीति है। यह एक गतिशील धारणा है जो भारतीय विदेश नीति व अन्य तृतीय विश्व के राष्ट्रों की स्वतन्त्र विदेशा नीति का आधार है। यह किसी राष्ट्र की सम्प्रभुता को सुदृढ़ करने की नीति है। गुटनिरपेक्ष देश कौन हैं?गुटनिरपेक्षता का सही अर्थ जानने के लिए गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के तीन कर्णधारों - पंडित जवाहर लाल नेहरू, नासिर व टीटो के विचारों को जानना आवश्यक है। इन तीनों नेताओं ने 1961 में गुटनिरपेक्षता को सही रूप में परिभाषित करने वाले 5 सिद्धान्त विश्व के सामने रखे:
गुटनिरपेक्षता की विशेषताएंगुटनिरपेक्षता का जन्म विशेष तौर पर द्वितीय विश्व युद्ध के बाद हुआ। भारत, मिस्र व युगोस्लाविया आदि देशों के सहयोग से इस अवधारणा का पूर्ण विकास हुआ। आज गुटनिरपेक्षता की अवधारणा एक पूर्णतया विकसित स्वयं विस्तृत रूप धारण कर चुकी है। गुटनिरपेक्षता की विशेषताएं (gutnirpekshta ki visheshtaen) हैं-
गुटनिरपेक्षता को प्रोत्साहन देने वाले तत्वद्वितीय विश्वयुद्ध के बाद गुटनिरपेक्षता की अवधारणा धीरे धीरे विकसित होने लगी और गुटनिरपेक्ष आंदोलन का भी तेजी से विकास होने लगा। 1961 में संस्थापक देशों सहित इसकी संख्या 25 थी, लेकिन आज यह संख्या 115 है। धीरे-धीरे गुटनिरपेक्ष आन्दोलन एक महत्वपूर्ण आंदोलन बन गया। विश्व में नवोदित स्वतन्त्र राष्ट्र एक एक करके इसकी सदस्यता प्राप्त करते गए। उन देशों द्वारा गुटनिरपेक्षता की नीति को अपनाने के पीछे कारण हैं :
साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद का भयद्वितीय विश्वयद्धु के बाद विश्व मे दो गुटो का नेतृत्व करने वाले देश अमेरिका और सोवियत संघ तथा उनके मित्र राष्ट्र साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद के प्रमुख प्रेणता रहे थे। तृतीय विश्व के देश साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद के कष्टों को अच्छी तरह भाग चुके थे। यदि उन्होंने इन गुटों की सदस्यता स्वीकार की हो तो उन्हें पता था कि वे फिर से साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद के नए रूप में जकड़ लिए जायेंगे। उन्हें शीत युद्ध में घसीटकर पुरानी प्रक्रिया का अंग बना लिया जाएगा। इससे उनकी स्वतन्त्रता खतरे में पड़ जाएगी। इसीलिए नवोदित स्वतन्त्र अफ्रीका व एशिया के देशों ने किसी भी गुट में शामिल न होने का निर्णय लिया और गुटनिरपेक्षता की नीति में ही अपना विश्वास व्यक्त करके विश्व शान्ति का आधार सुदृढ़ किया। इसी नीति के आधार पर उन्होंने अपनी स्वतन्त्रता को बचाकर आत्म रक्षा का उपकरण बना लिया। शीत युद्ध का वातावरणद्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अमेरिका और सोवियत संघ के बीच व्याप्त तनाव ने तृतीय विश्व के देशों ने विश्व शान्ति को बनाए रखने के लिए सोचने पर विवश कर दिया। शीत युद्ध की स्थिति में प्रत्येक महाशक्ति अपने को शक्तिशाली बनाने का प्रयास करने लगी। इस दौरान अमेरिका द्वारा परमाणु शक्ति हासिल कर लेने के बाद उसकी सर्वोच्चता स्थापित करने की भावना प्रबल हो गई। इससे सोवियत खेमे का चिंतित होना स्वाभाविक ही था। उसने साम्यवादी गुट को मजबूत बनाने के अथक प्रयास शुरू कर दिए। धीरे-धीरे दोनो महाशक्तियों में यह तनाव इतना अधिक बढ़ गया कि तृतीय विश्वयुद्ध का खतरा उत्पन्न हो गया। नवोदित स्वतन्त्र राष्ट्रों ने इस वातावरण को अपने लिए सबसे खतरनाक समझा। उन्होंने जागरूक राष्ट्रों के रूप में अपने उत्तरदायित्व को समझते हुए एक तीसरी शक्ति को मजबूत बनाने का विचार किए जो इस तनाव को कम कर सकें। इसलिए इन तृतीय विश्व के देशों ने पृथक रहकर विश्वशान्ति को बनाए रखने के लिए गुटनिरपेक्षता की नीति का ही विकास किया। अत: शीत युद्ध के वातावरण ने इस नीति के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। स्वतन्त्र विदेश नीति की इच्छास्वतन्त्र नवोदित राष्टा्रें के सामने अपने राष्टी्रय हितों को प्राप्त करने के लिए अतंरार्ष्टी्रय सम्बन्धों में स्वतन्त्र विदेश नीति की आवश्यकता महसूस हुई। उनका मानना था कि यदि वे किसी गुट में शामिल होंगे तो इससे उनकी स्वतन्त्रता सीमित हो जाएगी और वे अंतर्राष्ट्रीय मंच पर स्वतन्त्र निर्णय नहीं ले सकेंगे। गुटबन्दी को स्वीकार करने का अर्थ होगा - स्वतन्त्रता का त्याग। इसलिए नवोदित स्वतन्त्र राष्ट्रों ने गुटनिरपेक्षता की नीति को ही आधार बनाकर अपनी स्वतन्त्र विदेश नीति के संचालन की इच्छा को पूरा किया। गठबन्धन राजनीति का विरोधद्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व का पूंजीवादी और साम्यवादी दो गुटों में बंटवारा हो गया। दोनों गुट शीत युद्ध के वातावरण में अपनी अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए सैनिक गठबन्धनों का निर्माण करने लगे। इस प्रक्रिया में नाटो, सीटो तथा वार्सा पैक्ट (NATO, SEATO, WARSA PACT) आदि सैनिक संगठनों का जन्म हुआ। अमेरिका ने नाटों तथा सीटो तथा सोवियत संघ ने वार्सा पैक्ट की स्थापना करके विश्व में तनावपूर्ण वातावरण में और अधिक बढ़ोतरी कर दी। इससे नवोदित स्वतन्त्र राष्ट्र ज्यादा भयभीत हो गए। वे इनसे दूर रहना चाहते थे ताकि उनके राष्ट्रीय हितों को कोई नुकसान न पहुंचे। उन्होंने इन संधियों या गठबंधनों को अंतर्राष्ट्रीय शान्ति व राज्यों की स्वतन्त्रता के लिए भयंकर खतरा मानकर इनका विरोध किया। वे किसी गठबंधन में शामिल होकर विरोधी गुट से दुश्मनी मोल लेना नहीं चाहते थे। यदि वे गठबन्धन की राजनीति के चक्रव्यूह में फंस जाते तो उन्हें अपने राष्ट्रों की समस्याओं का समाधान करने के अवसर गंवाने पड़ते। इसलिए उन्होंने गठबन्धन राजनीति से दूर रहने का ही निर्णय किया। इससे गुटनिरपेक्षता का आधार मजबूत हुआ। राष्ट्रववाद पर आधारित राष्ट्रीय हित की भावनानवोदित स्वतन्त्र राष्ट्रों में राष्ट्रवादी भावना प्रबल होने लगी। उन देशों के मन में राष्ट्रीय हितों में वृद्धि करने का विचार भी पैदा होने लगा। इसके लिए वे देश स्वतन्त्र विदेश नीति की स्थापना के प्रयास करने लग गए। स्वतन्त्रता के बाद ये राष्ट्र अपना ध्यान अपने आर्थिक विकास की ओर केन्द्रित करने लगे। इसके लिए उन्हें नए साधनों की आवश्यकता थी। उन्हें भय था कि यदि वे किसी गुट में शामिल हुए तो इससे उनकी राष्ट्रवाद की भावना को आघात पहुंचेगा और वे अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में स्वतन्त्र भूमिका अदा नहीं कर पाएंगे। इसलिए अपनी सुरक्षा और आन्तरिक पुनर्निर्माण की समस्या का समाधान करने के लिए उन्होंने गुटनिरपेक्षता की नीति पर ही चलने का निर्णय लिया। अत: कहा जा सकता है कि राष्ट्रवाद पर आधारित राष्ट्रीय हितों की प्राप्ति के लिए नवोदित स्वतन्त्र राष्ट्रों ने गुटनिरपेक्षता की नीति को ही प्रोत्साहन दिया। आर्थिक विकास की आवश्यकतानवोदित स्वतन्त्र राष्टा्रें के सामने आर्थिक विकास की समस्या सबसे प्रमुख थी। यद्यपि उनके पास प्राकृतिक साधन तथा मानव शक्ति तो थी लेकिन उनको प्रयोग करने के लिए उचित तकनीकी ज्ञान का अभाव था। यदि वे किसी एक गुट में शामिल हो जाते तो इससे दूसरे देशों से आर्थिक सहायता का मार्ग रुक जाता। इसलिए उन्होंने तकनीकी कौशल प्राप्त करने के लिए गुटों से दूर रहने का ही निर्णय किया। दूसरी बात यह थी कि आर्थिक विकास शान्तिपूर्ण वातावरण में ही सम्भव हो सकता था। यदि वे शीत-युद्ध का अंग बन जाते तो उनको आर्थिक विकास का वातावरण नहीं मिल सकता था। इसलिए उन्होंने देश में शान्तिपूर्ण वातावरण व सुरक्षा के लिए गुट-राजनीति से दूर रहने का ही निर्णय किया। इससे गुटनिरपेक्षता का आधार सुदुढ़ हुआ। अंतर्रार्ष्ष्ट्रीय सम्बन्धों में सक्रिया भूमिका अदा करने की भावनासभी नवोदित स्वतन्त्र राष्ट्र चाहते थे कि बिना अपनी स्वतन्त्रता नष्ट किए और राष्ट्रीय हितों को नुकसान पहुंचाए बिना अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में भूमिका अदा की जाए। उन्हें यह पता था कि यदि वे किसी गुट में शामिल हुए तो उनकी भूमिका सीमित हो जाएगी। उन्हें गुट के नियमों के अनुसार ही नाचना होगा। अपने वैचारिक स्वरूप को मजबूती प्रदान करने के लिए गुटों से दूर रहना ही उन्हें अपने हित में समझा ताकि वे अंतर्राष्ट्रीय मंच पर विशेष भूमिका निभा सकें। उनकी इसी सोच ने गुटनिरपेक्षता को सुदृढ़ बनाया। सभी नवोदित स्वतन्त्र राष्ट्र एक-एक करके गुटनिरपेक्ष आन्दोलन में शामिल होते गए। युद्ध का भय और विश्व शान्ति का विचारशीत युद्ध के तनावों से भरे वातावरण ने तृतीय विश्व के देशों के मन में तीसरे विश्व युद्ध का भय पैदा कर दिया। बढ़ती सैनिक प्रतिस्पर्धा ने विश्व शान्ति को खतरा उत्पन्न कर दिया था। समस्त विश्व एक आतंक के संतुलन के वातावरण या सम्भावित मृत्यु के वातावरण में जी रहा था। नवोदित स्वतन्त्र राष्ट्रों को तृतीय विश्व युद्ध का आभास होने लगा तथा उन्होंने शीत युद्ध के तनावों को कम करके विश्व शान्ति के विचार को मजबूत बनाने के उद्देश्य से तीसरी शक्ति के रूप में गुटनिरपेक्षता को बढ़ावा देने का विचार किया। उनके प्रयासों के परिणामस्वरूप शीत युद्ध का तनाव कम हुआ और विश्व शान्ति को मजबूती मिली। इससे गुटनिरपेक्ष देशों की संख्या धीरे धीरे बढ़ने लगी। गुटनिरपेक्षता का ऐतिहासिक विकासआज विश्व के 115 देश जो विश्व का 2/3 हैं, गुटनिरपेक्ष आन्दोलन में बढ़-चढ़कर भाग ले रहे हैं। जब द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हुआ, उस समय से ही गुटनिरपेक्षता के प्रयास तेज होने लगे थे। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 10 वर्ष बाद 1956 में भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पंडित जवाहर लाल नेहरू, मिस्र के कर्नल नासिर तथा यूगोस्लाविया के मार्शल टीटो ने मिलकर ब्रियोनी में गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की नींच रख दी। जब इसका पहला औपचारिक सम्मेलन 1961 में बेलग्रेड में हुआ तो इसके सदस्य देशों की संख्या 25 थी जो आज विशाल स्तर पर पहुँच गई है। इसकी बढ़ती लोकप्रियता के कारण एशिया व अफ्रीका के सभी नवोदित स्वतन्त्र राष्ट्र इसके सदस्य बनते गए और गुटनिरपेक्षता एक विचार से एक विशाल आन्दोलन में तबदील हो गई।इसके ऐतिहासिक विकास क्रम पर नजर डाली जाए तो यह बात प्रमुख रूप से उभरकर आती है कि सर्वप्रथम भारत, वर्मा, इंडोनेशिया, मिस्र यूगोस्लाविया, घाना आदि देशों द्वारा इसे विदेश नीति के मूल सिद्धान्त के रूप में अपनाया गया। 1947 में नई दिल्ली में प्रथम एशियाई सम्मेलन में गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के लिए आवश्यक सामग्री उपलब्ध करा दी गई। आगे चलकर 1955 में एशियाई - अफ्रीकी सहयोग सम्मेलन (बाण्डुंग सम्मेलन) ने इसकी शुरूआत के लिए मजबूत आधार प्रदान किया। इस सम्मेलन में शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व व सहयोग की भावना ने गुटनिरपेक्षता का महत्व अनुभव करा दिया। 1956 में नेहरू, नासिर तथा टीटो ने गुटनिरपेक्षता को अंतर्राष्ट्रीय आधार प्रदान कर दिया। गुटनिरपेक्ष देशों ने संगठित होकर 1961 में बैलगे्रड में एक शिखर सम्मेलन का आयोजन किया जो सैद्धान्तिक रूप से गुटनिरपेक्षता का प्रथम व्यवस्थित अंतर्राष्ट्रीय प्रयास था। उस समय से अब तक इसके 12 सम्मेलन हो चुके हैं और 13वां जार्डन में प्रस्तावित है। गुट निरपेक्ष आंदोलन के शिखर सम्मेलनगुट निरपेक्ष आंदोलन के शिखर सम्मेलन इनका संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार से है-
2. गुट निरपेक्ष आंदोलन के दूसरा शिखर सम्मेलन- यह सम्मेलन 5 से 10 अक्तूबर 1964 तक मिस्र की राजधानी काहिरा में हुआ। इस सम्मेलन में 47 देशों ने हिस्सा लिया। इस सम्मेलन में “शान्ति तथा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का कार्यक्रम” नामक शीर्षक से घोषणा पत्र प्रकाशित हुआ। इस सम्मेलन में झगड़ों को शान्तिपूर्ण तरीके से निपटाने की नीति पर बल दिया गया। इसमें परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि के विस्तार पर भी व्यापक चर्चा हुई। इसमें राष्ट्रीय मुक्ति आन्दोलन का समर्थन किया गया। इस दौरान भारत के प्रधानमन्त्री नेहरू की मृत्यु हो चुकी थी इसलिए भारत का नेतृत्व लाल बहादुर शास्त्री ने किया। इस सम्मेलन में भारत की भूमिका ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं रही। 3. गुट निरपेक्ष आंदोलन के तीसरा शिखर सम्मेलन- यह सम्मेलन सितम्बर 1970 में लसुका (जाम्बिया) में हुआ। इसमें 60 देशों ने भाग लिया लेकिन गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की सदस्य संख्या केवल 54 थी। इस सम्मेलन के घोषणा पत्र का शीर्षक था -’ “गुटनिरपेक्षता तथा आर्थिक प्रगति।” इस सम्मेलन में भारत का नेतृत्व श्रीमति इंदिरा गांधी ने किया। इस सम्मेलन में विकासशील राष्ट्रों के आपसी सहयोग पर चर्चा हुई। इस सम्मेलन में दक्षिणी अफ्रीका तथा पुर्तगाल की उपनिवेशवाद विरोधी तथा नस्लवाद के प्रति असहयोग की भावना पर भी विचार किया गया। 4. गुट निरपेक्ष आंदोलन के चौथा शिखर सम्मेलन- यह सम्मेलन 5 सितम्बर से 9 सितम्बर, 1973 तक अल्जीयर्स (अल्जीरिया) में हुआ। इस समय गुटनिरपेक्ष आन्दोलन में 75 देश सदस्यता ग्रहण कर चुके थे। लेकिन इस सम्मेलन में केवल 47 सदस्यों ने ही भाग लिया। इस सम्मेलन में शीत युद्ध के तनाव में आई कमी पर विचार किया गया और झगड़ों को शान्ति प्रक्रिया द्वारा हल करने पर जोर दिया गया। इस सम्मेलन में इजराईल को सारे छीने गए अरब प्रदेश वापिस लौटाने को कहा गया। इस सम्मेलन में नई अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के बारे में भी व्यापक चर्चा की गई। 6. गुट निरपेक्ष आंदोलन के छठा शिखर सम्मेलन- यह शिखर सम्मेलन 3 से 9 सितम्बर, 1979 तक हवाला (लेटिन अमेरिका) में हुआ। इस दौरान गुटनिरपेक्ष देशों का आंकड़ा 94 पर पहुंच गया। इस सम्मेलन में गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के सामने अपने अस्तित्व का खतरा उत्पन्न हो गया। इस सम्मेलन में कुछ देशों ने अमेरिकी गुट से तथा कुछ ने सोवियत गुट से जुड़ने की बात कही ताकि अधिक आर्थिक सहायता प्राप्त की जा सके। लेकिन भारत ने स्पष्ट तौर पर कहा कि गुटनिरपेक्षता तीसरा गुट नहीं है। अरब देशों ने मिस्र को इजराइल के साथ कैम्प डेविड समझौता करने के कारण गुटनिरपेक्ष आन्दोलन से बाहर निकालने की धमकी दी लेकिन मिस्र की सदस्यता प्राप्त नहीं की गई। इस सम्मेलन में हिन्द महासागर को शान्ति क्षेत्र घोषित किया गया और नई अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की मांग को भी दोहराया गया। इसमें NAM को सुदृढ़ करने के लिए ठोस उपायों को अपनाने की बात भी की गई। 7. गुट निरपेक्ष आंदोलन के सातवां शिखर सम्मेलन- यह सम्मेलन 7 से 11 मइर्, 1983 तक भारत की राजधानी नई दिल्ली में हुआ। इस समय NAM की सदस्य संख्या 101 हो चुकी थी। इस सम्मेलन में NAM व भारत का नेतृव्य प्रधानमन्त्री इंदिरा गांधी ने किया। इसमें नई अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की मांग को फिर से दोहराया गया। इसमें विकसित देशों की आर्थिक नीतियों की जोरदार निन्दा की गई। इस सम्मेलन में नि:शस्त्रीकरण की आवश्यकता पर जोर दिया गया। इसमें हिन्द महासागर में सैनिक प्रतिस्पर्धा कम करने तथा डियागो गार्शिया मॉरिशीयस को वापिस करने पर बात हुई। इसमें ईराान और ईराक से युद्ध बन्द करने की प्रार्थना भी की गई। इस सम्मेलन में NAM के सदस्य देशों ने एकजुटता का परिचय देकर NAM की बढ़ती लोकप्रियता को दर्शाया। एशिया व अफ्रीकी देशों की परस्पर एकता में वृद्धि करने की दृष्टि से यह सबसे महत्वपूर्ण सम्मेलन सिद्ध हुआ। 8. गुट निरपेक्ष आंदोलन के आठवां शिखर सम्मेलन - यह सम्मेलन 1 से 6 सितम्बर, 1986 तक जिम्बाब्वे की राजधानी हरारे में हुआ। इस सम्मेलन में कोई नया देश सदस्य नहीं बनाया गया, इसलिए NAM की सदस्य संख्या 101 ही रही। इस सम्मेलन में जिम्बाब्वे के प्रधानमन्त्री राबर्ट मुंगावे को आगामी तीन वर्ष के लिए NAM का अध्यक्ष बनाया गया। इस सम्ममेलन में अफ्रीका के नस्लवादी शासन के अत्याचारों पर व्यापक ध्यान दिया गया। इस शासन के शिकार राष्ट्रों के आर्थिक विकास के लिए अफ्रीका कोष (Africa-Fund) की स्थापना का फैसला किया गया। इसमें नामीबिया की स्वतन्त्रता के बारे में भी चर्चा हुई। इस सम्मेलन में घोषणा की गई कि NAM (गुट निरपेक्ष आन्दोलन), साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद, नस्लवाद तथा नव उपनिवेशवाद के खिलाफ एक संघर्ष है। इस सम्मेलन में भारत का नेतृत्व प्रधानमन्त्री राजीव गांधी ने किया। 9. गुट निरपेक्ष आंदोलन के नौवां शिखर सम्मेलन- यह सम्मेलन सितम्बर, 1989 में यूगोस्लाविया की राजधानी बैलग्रे्रड में हुआ। इस समय NAM की सदस्य संख्या 102 तक पहुंच गई थी। इसमें केवल 98 सदस्य ही शामिल हुए। इस सम्मेलन में सारा ध्यान आर्थिक विषयों पर केन्द्रित किया गया। भारत का नेतृत्व इस सम्मेलन में प्रधानमन्त्री राजीव गांधी ने किया। इस सम्मेलन में पर्यावरण से संबंधित समस्याओं पर भी चर्चा हुई। इसमें अफ्रीका कोष को जारी रखने पर सहमति हुई। इससे नि:शस्त्रीकरण के उपायों तथा विश्व अर्थव्यवस्था को और अधिक व्यापक आधार प्रदान करने की बात भी कही गई ताकि (व्यापार एवं संरक्षण पर सामान्य समझौता) की समस्याओं का समाधान किया जा सके। इसमें अल्पविकसित देशों के ऋण माफ करने तथा गुटनिरपेक्ष तथा अन्य विकासशील देशों द्वारा ‘देनदार मंच’ (Deboss Forum) स्थापित करने की भी बात हुई।
12. गुट निरपेक्ष आंदोलन के बारहवां शिखर सम्मेलन- यह शिखर सम्मेलन सितम्बर, 1988 को दक्षिणी अफ्रीका के डरबन शहर में हुआ। इस समय NAM की सदस्य संख्या 114 हो चुकी थी। इस सम्मेलन में अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद को समाप्त करने तथा परमाणु शस्त्रों को 2000 तक पूर्ण रूप से समाप्त करने के बारे में एक अंतर्राष्ट्रीय बैठक बुलाने की मांग उठाई गई। इसमें संयुक्त राष्ट्र संघ के सिद्धान्तों में विश्वास व्यक्त किया गया। इसमें नई न्याययुक्त अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की स्थापना की बात कही गई ताकि गरीब देशों को भी विश्वीकरण की प्रक्रिया के लाभ प्राप्त हो सकें। इसमें IMF, WORLD BANK तथा WTO की भूमिकाओं की समीक्षा करने की आवश्यकता पर बल दिया गया। गुटनिरपेक्षता नीति के प्रमुख उद्देश्य क्या है?गुटनिरपेक्ष देशों के प्राथमिक उद्देश्य आत्मनिर्णय, राष्ट्रीय स्वतंत्रता तथा राज्यों की संप्रभुता एवं क्षेत्रीय अखंडता के समर्थन करने तथा बहुपक्षीय सैन्य समझौतों के गैर-अनुपालन पर केंद्रित थे।
गुटनिरपेक्ष आंदोलन की शुरुआत कब हुई इसके प्रमुख उद्देश्य क्या थे?यह आन्दोलन भारत के प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू, मिस्र के पूर्व राष्ट्रपति गमाल अब्दुल नासिर व युगोस्लाविया के राष्ट्रपति टीटो, इंडोनेशिया के राष्ट्रपति डाॅ सुक्रणों एवं घाना - क्वामें एन्क्रूमा का आरभ्भ किया हुआ है। इसकी स्थापना अप्रैल,1961में हुई थी। और 2012 तक इसमें 120 सदस्य हो चुके थे।
गुट निरपेक्ष नीति क्या है इसकी विशेषताएं?गुट निरपेक्षता नीति का विश्व के किसी भी गुट के साथ द्विपक्षीय संबधों के आधार पर सैनिक समझौते में भाग न लेना है। इस नीति का पालन करने वाले राष्ट्र जहां एक ओर गुटबाजी की विश्व राजनीति से विलग रहते है। वहां दुसरी ओर विश्व शांति और सुरक्षा में प्रगति हेतु संयुक्त राष्ट्र संघ और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को भरपूर मदद देते है।
भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति की मुख्य विशेषताएं क्या है?भारत की गुटनिरपेक्ष नीति के प्रमुख लक्ष्यः
समानता पर आधारित विश्व समुदाय की स्थापना तथा रंगभेद का विरोध। आण्विक निरस्त्रीकरण तथा नवीन आर्थिक व्यवस्था की स्थापना । अन्तर्राष्ट्रीय विवादों एवं संघर्षों के शांतिपूर्ण निपटारे का समर्थन। अफ्रीका व एशिया के देशों की स्वतंत्रता का समर्थन।
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