के प्रश्न पत्र में 4 अंक का गद्यांश की व्याख्या करने के लिए एक प्रश्न होता है। अधिकांश बच्चे इस प्रश्न को छोड़ देते हैं या आधा - अधूरा हल करते हैं। यह प्रश्न कठिन होते हुए भी सरल है , बच्चों को यह पता नहीं होता कि गद्यांश किस पाठ से लिया गया है, इसके रचनाकार या लेखक कौन हैं इसलिए उनके लिए यह प्रश्न कठिन होता है । बच्चो की इस कठिनाई को ध्यान में रखते हुए इस भाग में गद्यांश की व्याख्या की तैयारी हम कैसे करें पर लेख प्रस्तुत किया जा रहा है - Show 1. सबसे पहले पाठ्य-पुस्तक के प्रारंभ में दी गई अनुक्रमाणिका को प्रतिदिन ध्यान से पढ़ें। इस खंड में पाठ का नाम , उसकी विधा और रचनाकार का नाम दिया रहता है। इस खंड से वस्तुनिष्ठ प्रश्न की तैयारी के साथ-साथ व्याख्या के लिए सन्दर्भ की तैयारी हो जाती है। 2. कुछ पाठ ऐसे हैं जिनसे विगत वर्षों में थोड़ी अंतर से लगातार व्याख्या से सम्बंधित प्रश्न पूछे जा रहे हैं. जैसे - मैं और मेरा देश (कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर'), महापुरुष श्रीकृष्ण (वासुदेव शरण अग्रवाल ), परम्परा बनाम आधुनिकता (हजारी प्रसाद द्विवेदी ), गेहूँ और गुलाब (रामवृक्ष बेनीपुरी) , सच्चा धर्म ( सेठ गोविन्द दास ) बैल की बिक्री (सियाराम शरण गुप्त ), मातृभूमि का मान (हरिकृष्ण प्रेमी ) , इन पाठों को एक बार ध्यान से अध्ययन करें। 3. इन पाठों में व्याख्या के लिए आवश्यक अंश है, उन्हें चिन्हांकित करें। उनके मूल भाव को समझें। व्याख्या लिखते समय ध्यान देनेवाली आवश्यक सामान्य बातें - 1. सबसे पहले सन्दर्भ लिखें। संदर्भ लिखना अत्यंत सरल है , इसके अंतर्गत पाठ का नाम (शीर्षक) और रचनाकार (लेखक) का नाम लिखते हैं। 2. प्रसंग लिखें। इसके अंतर्गत लेखक दिए गए गद्यांश में क्या कहना चाहता है, उसका उल्लेख किया जाता है। 3. व्याख्या - इसके अंतर्गत गद्यांश में कही गई मुख्य बातों को अपने शब्दों में विस्तार के साथ व्यक्त किया जाता है। गद्यांश के मूल भाव को स्पष्ट किया जाता है। गद्यांश में प्रयुक्त कठिन शब्दों का सरलार्थ भी किया जा सकता है। 4. विशेष - इसके अंतर्गत गद्यांश की विशेष बात का उल्लेख करते हैं। (i ) गद्यांश के मूल भाव को एक वाक्य में व्यक्त करना। (ii ) लेखक द्वारा प्रयुक्त भाषा की विशेषता व्यक्त की जाती है (गद्य में प्रयुक्त भाषा के अनुसार) यथा- भाषा सरल एवंम सुबोध है। भाषा तत्सम प्रधान साहित्यिक खड़ी बोली है। भाषा चुटीली और मुहावरेदार है। भाषा भाव की अनुगामिनी और अलंकृत है, आदि। (iii ) शैली के सम्बन्ध में विशेष लिखा जाता है । (गद्य में प्रयुक्त शैली को ध्यान में रखते हुए) यथा - 'परम्परा बनाम आधुनिकता' पाठ में शैली की विशेषता इस प्रकार लिखी जा सकती है - वर्णनात्मक एवं विवेचनात्मक शैली का सुंदर प्रयोग हुआ है। व्याख्या न भावार्थ है और न आशय। यह इन दोनों से भिन्न है। व्याख्या किसी भाव या विचार का विस्तार या विवेचन है। इसमें परीक्षार्थी को अपने अध्ययन, मनन और चिन्तन के प्रदर्शन की पूरी स्वतंत्रता रहती है। किसी भी व्याख्या का प्रसंग एक अनिवार्य अंग होता है। अतः प्रसंग को व्याख्या करने से पूर्व लिखना नितांत आवश्यक है। किन्तु यह स्मरण रहे कि प्रसंग संक्षेप में होना चाहिये। इसमें किसी भी अप्रासंगिक बात को स्थान नहीं मिलना चाहिये। परीक्षार्थी को यह सदैव याद रखना चाहिये कि इसमें अनावश्यक तत्वों का मिश्रण न हो जिससे यह निष्प्रभावी प्रतीत होने लगे। प्रसंग अपने मौलिक विषय पर आधारित होना चाहिये। व्याख्या में आधारभूत भावों और चिन्ता का पूर्णतः सन्तुलन होना चाहिये। वास्तव में व्याख्या किसी भी परीक्षार्थी के मौलिक विचारों का प्रतिबिम्ब होती है। इसमें गुण और दोष के आधार पर अपने विचार रखने चाहिये। यदि कोई अंश दोषपूर्ण हो तो इसे रेखांकित करना चाहिये। संदर्भ व्याख्या कैसे लिखा जाता है?डॉ. लोकेश चंद्र के मुताबिक अगर पद्य की व्याख्या करने से जुड़ा सवाल हो तो संदर्भ, प्रसंग, व्याख्या के बाद काव्यात्मक सौंदर्य जरूर लिखें। इसी तरह गद्य का मसला है तो साहित्यिक सौंदर्य लिखना जरूरी है। तभी परीक्षक प्रभावित होकर अंक देता है।
संदर्भ में क्या लिखा जाता है?अगर हम अपनी बात किसी को बता रहे हैं तो वह बात कब कहां कैसे और किस प्रसंग में कही गई है इसी को बताना संदर्भ देना कहते हैं इसे पढ़ने वाले पाठक के मन में वहां का एक आभासी चित्र तैयार हो जाता है और उसे सारी घटनाओं को समझने में आसानी होती है।
व्याख्या कैसे की जाती है?(1) व्याख्या में प्रसंग-निर्देश अत्यावश्यक है। (2) प्रसंग-निर्देश संक्षिप्त, आकर्षक और संगत होना चाहिए। (3) व्याख्या में मूल विचार या भाव का संतोषपूर्ण विस्तार हो। (4) अंत में शब्दार्थ लिखे जायँ।
प्रसंग में क्या लिखा जाता है?चर्चा के लिये जब किसी विषय वस्तु को तैयार किया जाता है, तो पहले उसकी सूक्ष्म व्याख्या की जाती है, इसी सूक्ष्म व्याख्या को प्रसंग कहा जाता है।
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