ने शेखी बघारने वालों पर गहरा व्यग्य किया है। लाला झाऊलाल काशी के ठठेरी बाजार में रहने वाले एक संपन्न व्यक्ति थे। खाने-पीने और पहनने में वे कोई कमी नहीं करते थे। Show एक दिन उनकी पत्नी ने उनसे अचानक ढाई सौ रुपये माँग लिए। यह सुनकर लाला जी चौंक गए। पत्नी ने पति की दशा देखकर कहा कि यदि तुम्हें पैसे नहीं देने तो कोई बात नहीं, वह अपने भाई से मँगवा लेगी। अपनी प्रतिष्ठा को नीचे गिरते देख लाला जी ने आवेश में आकर एक सप्ताह के अंदर ढाई सौ रुपये देने का आश्वासन दे दिया। लाला जी ने रुपये देने के लिए तो कह दिया, लेकिन चार दिन बीत गए, रुपयों का कोई प्रबंध नहीं हो सका। लाला जी सोचने लगे कि पत्नी ने पहली बार कुछ माँगा है, यदि न दिया तो उनकी किरकिरी हो जाएगी। पाँचवें दिन वे घबराते हुए पंडित बिलवासी मिश्र के पास पहुँचे और अपनी सारी कहानी उन्हें सुनाई। पंडित जी ने कहा कि अभी उनके पास इतने रुपये नहीं हैं, लेकिन प्रबंध करके उनके घर देने आ जाएँगे। लाला जी यह सोच-सोचकर परेशान हो रहे थे कि रुपयों का प्रबंध न हुआ तो उनकी कितनी हँसी होगी। इसी उधेड़बुन में वे छत पर टहलने लगे। टहलते-टहलते उन्हें प्यास लग गई। उन्होंने पानी के लिए आवाज़ लगाई, तो नौकर के स्थान पर पत्नी एक पुराने बेढंगे लोटे में पानी लेकर आई। लाला जी को यह बेढंगा लोटा बिल्कुल पसंद नहीं था लेकिन वे अपनी पत्नी का सम्मान करते थे इसलिए उन्होंने लोटा लिया और मुँडेर के पास खड़े होकर पानी पीने लगे। अभी दो-चार घूँट ही पानी पिया था कि अचानक लोटा उनके हाथ से छूट गया और नीचे खड़े एक अंग्रेज के पैरों पर जा गिरा। लोटे का सारा पानी उसके शरीर पर गिर गया था। कुछ ही देर में हल्ला मच गया। देखते-ही-देखते लोगों की भीड़ लाला जी के घर के पास आ गई। सारी भीड़ का मुखिया एक अंग्रेज़ व्यक्ति था। वह पूरी तरह भीगा हुआ था और पैरों से लँगड़ा रहा था। अंग्रेज के हाथ में लोटे को देखकर लाला जी की दशा बिगड़ने लगी।
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