सरकारी आय व्यय की देखरेख करने वाले को क्या कहते हैं? - sarakaaree aay vyay kee dekharekh karane vaale ko kya kahate hain?

अपने कार्यों को पूरा करने के लिए सरकार जो धनराशि व्यय करती है, उसे सार्वजनिक व्यय कहते हैं। दूसरे शब्दों में सार्वजनिक व्यय से अभिप्राय उन सब खर्चो से है जिन्हें किसी देश की केन्द्रीय, राज्य तथा स्थानीय सरकारें अपने प्रशासन, सामाजिक कल्याण, आर्थिक विकास तथा अन्य देशों की सहायता के लिए करती है।

सार्वजनिक व्यय का अर्थ 

सार्वजनिक व्यय का अर्थ सरकार की देखभाल और सामाजिक कल्याण के कार्यों को संपन्न करने के लिए किया गया व्यय है। सार्वजनिक व्यय सार्वजनिक प्राधिकरणों अर्थात् केंन्द्र सरकार, राज्य सरकार तथा स्थानीय निकायों द्वारा किए जाने वाले उस व्यय से है जिन्हें वे लोगों की उन सामूहिक आवश्यकताओं की संतुष्टि हेतु करते हैं, जिन्हें लोग व्यक्तिगत रूप से संतुष्टि नहीं कर सकते। ये व्यय नागरिकों की सुरक्षा तथा उनके कल्याण को प्रोत्साहित करने के लिए होते हैं।


अन्य शब्दों में, सार्वजनिक व्यय से अभिप्राय उन सब खर्चो से है जिन्हें किसी देश की केन्द्रीय, राज्य तथा स्थानीय सरकारें अपने प्रशासन, सामाजिक कल्याण, आर्थिक विकास तथा अन्य देशों की सहायता के लिए करती है।

सार्वजनिक व्यय का वर्गीकरण

सार्वजनिक व्यय का वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया जा सकता है:

1- लाभ का आधार

लाभ के आधार पर कौन तथा प्लेहम ने इसे चार भागों में बांटा है:
  • सार्वजनिक व्यय जो कुछ लोगों को विशिष्ट लाभ देता है, जैसे समाज के कमजोर वर्गों को दिया गया पुलिस संरक्षण एवं न्याय।
  • सभी को लाभान्वित करने वाला सार्वजनिक व्यय जैसे- सुरक्षा, शिक्षा, चिकित्सा, यातायात, विधायिका इत्यादि पर होने वाला व्यय।
  • संपूर्ण समुदाय को लाभ देने वाला सार्वजनिक व्यय जैसे सामाजिक सुरक्षा, जन कल्याण, वृद्धावस्था पेंशन इत्यादि।
  • समाज के विषेश समुदाय को लाभान्वित करने वाला व्यय।

2- कार्यों के आधार पर वर्गीकरण

यह वर्गीकरण एडम स्मिथ द्वारा किया गया है इसके अंतर्गत-
  1. सुरक्षा व्यय - हथियार, सुरक्षा बारूद के क्रय, न्याय व जेल।
  2. व्यावसायिक व्यय: रेल, सड़क, राष्ट्रीय मार्ग
  3. विकास व्यय:- शिक्षा, स्वास्थ्य, मनोरंजन पर किया गया व्यय शामिल है।

3- मिल का वर्गीकरण

मिल ने सार्वजनिक व्यय को दो भागों में बांटा है: ऐच्छिक व आवश्यक। आवश्यक व्यय के अंतर्गत राज्य को सुरक्षा व अन्य संविदा भुगतानों पर व्यय करना होता है तथा ऐच्छिक के अंतर्गत उद्योग, कृशि, शिक्षा पर व्यय शामिल होता है।

4- महत्व के आधार पर वर्गीकरण

फिंडले षिराज ने इन्हें दो भागों में बांटा है:
  1. प्राथमिक व्यय में सुरक्षा, कानून एवं संपन्न ऋणों के भुगतान
  2. गौण व्यय के अंतर्गत ऐसे प्राथमिक व्यय जो एक स्तर प्राप्त करने पर गौण हो जाते हैं।

5- रोषर का वर्गीकरण

रोषर के वर्गीकरण के तीन भाग है:
  1. आवश्यक व्यय: ये ऐसे व्यय हैं, जिन्हें सरकार टाल नहीं सकती।
  2. उपयोगी व्यय: इन्हें सरकार कुछ समय के लिए स्थगित कर सकती है।
  3. अनावश्यक व्यय: इन्हें सरकार करें या ना करें।

6- पीगू का वर्गीकरण

इसके दो भाग है:
  1. अंतरणीय व्यय:- सरकारी ऋण के ब्याज के भुगतान, पेंषन, बीमारी पर किया गया व्यय इसके अंतर्गत आते हैं।
  2. गैर अंतरणीय व्यय: सिविल सेवाओं, षिक्षा सेवाओं, न्यायालय, डाकघरों पर किया जाने वाला व्यय गैर-अंतरणीय व्यय कहलाता है।

7- जे. के. मेहता का वर्गीकरण

मेहता ने सार्वजनिक व्यय को दो भागों में बांटा है:
  1. स्थिर व्यय: इसके अंतर्गत सरकार के व्यय करने के निर्णय को जनता प्रभावित नहीं करती अर्थात् ये व्यय प्रयोग में सीमा पर निर्भर नहीं करता।
  2. परिवर्तनशील व्यय: यह व्यय सार्वजनिक सेवाओं के प्रयोग में वृद्धि के साथ बढ़ जाता है।

 सार्वजनिक व्यय के सिद्धांत

1. सार्वजनिक व्यय का मितव्ययता का सिद्धांत: इसका अर्थ है फिजूलखर्ची तथा व्यर्थ के व्यय से बचना चाहिए। सार्वजनिक व्यय कुषल और उत्पादक होना चाहिए।


2. सार्वजनिक व्यय का आधिक्य का सिद्धांत: इसका अभिप्राय है कि सरकार को घाटे से बचना चाहिए और आधिक्य का बजट बनाना चाहिए।


3. सार्वजनिक व्यय का लोच का सिद्धांत: इसका अर्थ है कि सरकार की व्यय नीति में लोच होनी चाहिए अर्थात् देष की आवश्यकताओं के अनुसार सार्वजनिक व्यय के आकार और दिषा में परिवर्तन संभव हो।


4. सार्वजनिक व्यय का निश्चितता का सिद्धांत: सार्वजनिक व्यय जिन क्षेत्रों में तथा जिस भाग में किया जाना है वह निश्चित हो जाना चाहिए ताकि विकास के कामों को ठीक ढंग से चलाया जा सके।

सार्वजनिक व्यय का उद्देश्य

लोक कल्याणकारी राज्यों के विकास के साथ ही साथ सरकारी हस्तक्षेप से सार्वजनिक व्यय में वृद्धि होती चली जा रही है। प्रत्येक देश के नागरिक अपने देश की सरकार से ही अपेक्षा करते हें कि सरकार उनकी अधिकाधिक समस्याओं को हल करेगी।

प्राचीन अर्थशास्त्री सार्वजनिक व्यय को बुरा मानते थे, सम्भव हे ऐसे विचार उस समय की परिस्थितियों के अनुकूल हो। इसका कारण स्पष्ट है कि प्राचीन काल में सीमित आवश्यकताओं के चलते लोग स्वयं द्वारा ही अपनी आवश्यकताओं को पूरा करते थे। परन्तु आज उनका कोई महत्व नहीं है, वर्तमान समय की परिस्थितियों के अनुसार सार्वजनिक व्यय का स्वरूप बदल चुका है। आज कोई भी अथ्र्शास्त्री इस बात से सहमत नहीं हे कि सार्वजनिक व्यय अपव्ययपूण्र् ा होते हें ओर व्यक्तिगत व्यय मितव्ययता पूर्ण होते हैं। सरकार के द्वारा वर्तमान समय में शिक्षा, स्वास्थ्य, बेरोजगारी, वृद्धावस्था पेन्शन, सुरक्षा अर्थात सामाजिक कल्याण आदि में बड़े पैमाने पर व्यय किया जा रहा है जिससे कि सामाजिक कल्याण में वृद्धि हो सके।

वर्तमान समय में समाजवादी विचारधारा के प्रभाव से कल्याणकारी भावनाओं का विकास होने लगा हे इसलिए सरकार अपने हाथ में एक नहीं अनेक कार्यक्रमों को ले रही हे। इस प्रकार वर्तमान समय में सार्वजनिक व्यय का उद्देश्य सामाजिक एवं आर्थिक कल्याण में वृद्धि करना है जिससे अधिकतम सामाजिक लाभ प्राप्त हो सकें।

इस प्रकार सार्वजनिक व्यय न्यायोचित तभी होगा जब उससे अधिकतम सामाजिक लाभ प्राप्त हो सकें। इसी को डॉ0 डाल्टन ने अपने अधिकतम सामाजिक लाभ के सिद्धान्त का प्रतिपादन करके बताया उनके अनुसार ‘‘यह नियम राजस्व के मूल में विद्यमान रहता है तथा राजस्व की सर्वोत्तम प्रणाली वह है जिसमें राजकीय आय-व्यय सम्बन्धी कार्यों केुलस्वरूप अधिकतम लाभ होता है।’’

अधिकतम सामाजिक लाभ का सिद्धान्त का आधार सम सीमान्त उपयोगिता नियम तथा सम सीमान्त उत्पादनशीलता नियम है। जिस प्रकार एक व्यक्ति अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त करने के लिए अपनी आय को विभिन्न वस्तुओं पर व्यय करता है कि उसे प्रत्येक व्यय से लगभग समान सीमान्त उपयोगिता मिले, तथा वह उत्पत्ति के विभिन्न साधनों का उपयोग इस प्रकार करता हे कि उसे प्रत्येक साधन से अधिकतम उत्पत्ति मिले ताकि कुल उत्पत्ति अधिकतम हो सके। इसी प्रकार सामाजिक लाभ को अधिकतम करने के लिए राज्य को भी विभिन्न मदों पर इस प्रकार व्यय करना चाहिए कि प्रत्येक व्यय से समान सीमान्त उपयोगिता मिले। किसी देश का अधिकतम कल्याण तभी हो सकता हे जब सरकार उन मदों पर व्यय करे जिससे कि जनता के कल्याण में वृद्धि हो सके। 


सरकार जब शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा, रोजगार आदि पर व्यय करती है तो इससे सामाजिक कल्याण में वृद्धि होती हे। इस प्रकार अधिकतम सामाजिक लाभ के निम्न आधार होते हें जो इस प्रकार से हैं -

1. आर्थिक कल्याण में वृद्धि- अधिकतम सामाजिक कल्याण तभी हो सकता है जब देश के आर्थिक कल्याण में वृद्धि हो। आर्थिक कल्याण में वृद्धि तभी हो सकती हे जब देश की उत्पादन शक्ति में वृद्धि व उत्पादन में सुधार हो।

उत्पादन शक्ति में वृद्धि करने के लिए सरकार को आवश्यक वस्तुओं पर कम कर लगाने चाहिए ताकि लोगों को आसानी से सस्ती वस्तुएं उपलब्ध हो सके, ऐसी व्यवस्था अपनायी जानी चाहिए कि आयात होने वाली वस्तुओं के आयात पर रोक लग जाये और घरेलू उद्योग धन्धों को अनेक प्रकार का संरक्षण प्रदान कर रोजगार के स्तर को बढ़ाना चाहिए। इन उपायों से उत्पादन की शक्तियों का विकास होगा और सामाजिक कल्याण में वृद्धि होगी। इसके अलावा उत्पादन के स्वरूप व आकार में भी सुधार हो जिससे सबकी आवश्यकताएं आसानी से पूरी हो सकें।

2. सुरक्षा व शान्ति- जब तक देश में आन्तरिक व वाह ्य शान्ति स्थापित नहीं होती है तब तक किसी भी प्रकार का किया गया आर्थिक विकास देश के लिए लाभप्रद नहीं हो सकता हे, विदेशी आक्रमण से देश की सुरक्षा के लिए सेना व युद्ध सामर्गी पर किया जाने वाला व्यय देश के आर्थिक कल्याण में वृद्धि करेगा। इसी प्रकार आन्तरिक शान्ति व्यवस्था को बनाने के लिए पुलिस व प्रशासन व्यवस्था पर किया जाने वाला व्यय लाभप्रद होगा और इससे सामाजिक कल्याण में वृद्धि होगी।

3. आर्थिक जीवन में स्थायित्व- अधिकतम सामाजिक कल्याण तभी होगा जबकि सरकारी प्रयासों के द्वारा आर्थिक स्थायित्व प्राप्त किया जा सके। आर्थिक उच्चावचन के कारण मुद्राप्रसार, बेरोजगारी या अवसाद जैसी स्थिति उत्पन्न होती हे। इस सबसे उपभोक्ताओं ओर उत्पादकों में निराशा पैदा होती है और आर्थिक विकास में भी वृद्धि नहीं होती हे अत: सरकार के द्वारा आर्थिक स्थायित्व के लिये किया गया सार्वजनिक व्यय आर्थिक कल्याण को बढ़ायेगा।

इस प्रकार जहां तक सरकार के सार्वजनिक व्यय के उद्देश्यों का प्रश्न है तो वह सरकार के कर्तव्यों से है। इसलिए सरकार को इस प्रकार सार्वजनिक व्यय करना चाहिए जिससे देश के आर्थिक व सामाजिक कल्याण में वृद्धि हो ओर यह तभी सम्भव हे जब देश की शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा और रोजगार आदि में वृद्धि हो।

उपर्युक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि सार्वजनिक व्यय का एकमात्र उद्देश्य देश के नागरिकों की सामूहिक आवश्यकताओं की सन्तुष्टि करते हुए उनके आर्थिक एवं सामाजिक कल्याण में अधिकतम वृद्धि करना जिससे कि देश के नागरिकों का अधिकतम सामाजिक लाभ हो सके।

सार्वजनिक व्यय का महत्व

सार्वजनिक व्यय सार्वजनिक वित्त का महत्वपूर्ण भाग ही नहीं हैे अपितु आज यह सार्वजनिक वित्त का केन्र्द बिन्दु भी बन चुका है। अर्थशास्त्र में जो स्थान उपभोग का हे वही स्थान सार्वजनिक वित्त (राजस्व) में सार्वजनिक व्यय का हे। सार्वजनिक व्यय सार्वजनिक वित्त का अत्यन्त महत्वपूर्ण भाग है, सार्वजनिक वित्त की अन्य शाखाएं इसी के चारों ओर चक्कर लगाती हें। सार्वजनिक आय तथा सार्वजनिक ऋण इसीलिए जुटाए जाते हैं कि सरकार आवश्यक कार्यों में व्यय कर सके।

सार्वजनिक व्यय उन आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करने के लिए किया जाता है जिन्हें व्यक्ति अपने व्यक्तिगत रूप में सन्तुष्ट नहीं कर सकते हें। सार्वजनिक व्यय के द्वारा लोक कल्याणकारी कार्यों की पूर्ति की जाती है। लोक कल्याणकारी राज्य से देश के नागरिकों को यह अपेक्षा होती है कि सरकार उन मदों पर व्यय करें जिन पर वे स्वयं व्यय करने की सामर्थ्य नहीं रखते हैं। सामूहिक शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, सुरक्षा, आवास आदि पर कोई व्यक्ति स्वयं व्यय नहीं कर सकता, सरकार द्वारा ही जनता के लिए कुशलता, मितव्ययिता तथा शीघ्रता से यह सम्पन्न किया जा सकता हे। प्रत्येक व्यक्ति अपने बच्चों की शिक्षा के लिए स्वयं स्कूल नहीं खोल सकता है। ऐसी आवश्यकताओं की सामूहिक सन्तुष्टि सरकार के द्वारा सार्वजनिक व्यय के माध्यम से होती है। अत: सार्वजनिक व्यय का महत्व बढ़ गया है। सार्वजनिक व्यय द्वारा इन महत्वपूर्ण योजनाओं का सम्पादन किया जाता है जो व्यक्तिगत रूप से सन्तुष्टि नहीं की जा सकती हे।

19वीं शताब्दी तक सार्वजनिक व्यय को महत्व नहीं दिया गया। प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों ने इसकी उपेक्षा की। इसका कारण यह है कि ये अर्थशास्त्री अहस्तक्षेप की नीति (Laissez faire Ploicy) के समर्थक थे तथा सरकार की भूमिका को बहुत ही सीमित रूप में स्वीकार करते थे।

किन्तु बीसवीं शताब्दी में समाजवादी विचार धारा के प्रचार प्रसार के साथ ही सार्वजनिक व्यय का महत्व बढ़ गया। वर्तमान युग के राज्य प्राचीन युग के राज्यों की भाँति पुलिस राज्य न होकर, कल्याण कारी राज्य हैं। कल्याण कारी राज्यों को जनता का अधिक कल्याण करना पड़ता है, जिससे सरकार को सामाजिक कल्याण और आर्थिक विकास के लिए अनेक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए भारी मात्रा में सार्वजनिक व्यय करना पड़ता है। 


प्रो0 कीन्स ने 1936 में प्रकाशित अपनी पुस्तक "General Theory" में मन्दी तथा बेरोजगारी को दूर करने के लिए सार्वजनिक व्यय को अधिक महत्व दिया। वर्तमान समय में सार्वजनिक व्यय का महत्व बढ़ गया हे। सार्वजनिक व्यय के आकार से ज्ञात किया जाता हे कि राज्य का मानव के जीवन में क्या स्थान हे। राज्य प्राय: व्यय के उद्देश्यों को ध्यान में रखकर आय के र्सोतों की खोज करता है।

सरकारी आय व्यय की देखरेख करने वाला कौन होता है?

Detailed Solution. सही उत्तर वित्त मंत्रालय है। सरकारी व्यय का नियंत्रण प्राधिकरण वित्त मंत्रालय है।

आय व्यय का लेखा जोखा क्या कहलाता है?

Explanation: सरकार के आय-व्यय का लेखा-जोखा बजट कहलाता है।

आय और व्यय का मतलब क्या होता है?

[सं-पु.] - 1. आय-व्यय का विवरण 2. किसी सरकार, संस्था या परिवार की सालभर में या किसी निश्चित अवधि तक आय-व्यय के अनुमान से लगाया हुआ हिसाब या लेखा; अनुमान-पत्र; (बजट)।

क्यों आय और व्यय खाता तैयार किया जाता है?

Answer: आय तथा व्यय खाते का उद्देश्य एक व्यापारिक संस्थान के लिए लाभ व हानि खाते की तरह ही होता है। चालू अवधि से संबंधित सभी आयगत मदें (रक़म ) इस खाते में दर्शाई जाती हैं। सभी व्यय तथा हानियों को व्यय पक्ष में तथा सभी आय तथा लाभों को आय पक्ष में दर्शाया जाता है।