तारीख तवारिख से आप क्या समझते? - taareekh tavaarikh se aap kya samajhate?

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तवारिख तथा तवारीख या अरबी शब्दाचा अर्थ इतिहास आहे. यात कालक्रमानुसार घटनांची जंत्री व वर्णने लिहिली जातात.

इस्लामपूर्व-काळातील अरबी जमातींचा लिखित व अलिखित इतिहास दंतकथांनी भरलेला असे. हदीस म्हणजे इस्लामी स्मृतीशास्त्रांच्या नियमांनुसार इतिहासलेखनात ‘इस्नाद’ म्हणजे अनेक पुरावे दिले जात. तवारिखा या लेखनप्रकाराने ऐतिहासिक काळातील घडामोडीना महत्त्व आले आणि अरबी लेखनात अधिक विश्वासार्हता आली. अनेक बखरी या तवारिखांवर आधारित असल्याचे आढळते. तवारिख हा लेखनप्रकार फार्सी भाषेतही आढळून येतो.

संदर्भ आणि नोंदी[संपादन]

  • मराठी विश्वकोश

                
                                                                                 
                            

साहित्य की 'सरस्वती' के इतिहास में 20 अगस्त का अपना अलग ही महत्व है। साहित्य की इस 'सरस्वती' का उद्गम 20 अगस्त 1899 को ही हुआ था। वैसे, उद्गम का अर्थ स्थान से जोड़ा जाता है लेकिन साहित्य की 'सरस्वती' के उद्गम का अर्थ यहां तारीख से है। यह वही तारीख है जो आधुनिक हिंदी साहित्य की तवारीख बन गई। इसी दिन इंडियन प्रेस (प्रयागराज) के संस्थापक-स्वामी बाबू चिंतामणि घोष ने काशी नागरी प्रचारिणी सभा को सचित्र मासिक पत्रिका के प्रकाशन संबंधी पत्र भेजकर संपादन का भार संभालने का प्रस्ताव दिया था। इस पत्र में पत्रिका के शीर्षक का कोई उल्लेख नहीं था। मासिक पत्रिका का नाम 'सरस्वती' कैसे पड़ा? यह अब तक रहस्य ही है।

1893 में स्थापित नागरी प्रचारिणी सभा हिंदी के प्रचार- प्रसार में सक्रिय में सक्रिय थी। 7 वर्षों में वह हिंदी को स्थापित करने में कई सफलताएं  भी अर्जित कर चुकी थी। दस्तावेज देखने से पता चलता है कि इंडियन प्रेस के सचित्र मासिक पत्रिका के प्रकाशन संबंधी प्रस्ताव को नागरी प्रचारिणी सभा ने पहले- पहल बहुत गंभीरता से नहीं लिया। गोविंददास जी के सभापतित्व में 21 अगस्त 1899 को संपन्न हुए सभा के साधारण अधिवेशन के कुल 25 विचारणीय विषयों में इंडियन प्रेस के सचित्र मासिक पत्रिका के प्रकाशन का विषय 23वें नंबर पर था। 24वें नंबर पर चार पुस्तकों के प्रकाशन संबंधी सूचना और अंतिम विषय के रूप में सभापति का धन्यवाद प्रस्ताव। इसी से स्पष्ट है कि मासिक पत्रिका के प्रकाशन का प्रकरण सभा के लिए कितना महत्वपूर्ण था। नागरी प्रचारिणी सभा के साधारण अधिवेशन में इंडियन प्रेस का यह पत्र विचारार्थ प्रस्तुत तो किया गया लेकिन कार्य अधिक होने के कारण उस दिन उस पत्र पर कोई विचार नहीं किया जा सका। सभा की कार्यवाही में लिखा गया-"(23) इंडियन प्रेस का 20 अगस्त का सचित्र मासिक पत्र संबंधी पत्र सभा में उपस्थित किया गया। आज्ञा हुई कि आगामी अधिवेशन में विचारार्थ उपस्थित किया जाए।"

11 सितंबर 1899 को गोविंददास जी की ही अध्यक्षता में ही संपन्न हुए अधिवेशन में इंडियन प्रेस के पत्रिका प्रकाशन संबंधी प्रस्ताव पर निर्णय लिया गया- 'इंडियन प्रेस के 20 अगस्त के मासिक सचित्र पत्र संबंधी पत्र पर निश्चय हुआ कि सभा उस पत्र के संपादन करने का वा उसके संबंध में और किसी कार्य का भार अपने ऊपर नहीं ले सकती है परंतु इंडियन प्रेस को सम्मति देती है कि वह उस पत्र को अवश्य निकालें क्योंकि उससे भाषा के उपकार की संभावना है और यदि इंडियन प्रेस के स्वामी चाहे तो सभा उन्हें ऐसे कुछ लोगों के नाम बता सकती है जो संपादक का कार्य करने के उपयुक्त हों। वे उनसे सब बातें स्वयं निश्चय कर लें'। सभा ने मासिक पत्र के प्रकाशन पर अपनी सम्मति तो दी लेकिन संपादन संबंधी कार्यभार स्वीकार नहीं किया लेकिन इंडियन प्रेस के संस्थापक बाबू चिंतामणि घोष ने हार नहीं मानी। वह जानते थे कि प्रस्तावित पत्रिका की सफलता के लिए सभा का सहयोग नितांत आवश्यक है। उन्होंने अपना प्रयत्न जारी रखा और  14 अक्टूबर को पुनः एक मासिक पत्र प्रकाशन संबंधी प्रस्ताव नागरी प्रचारिणी सभा के समक्ष प्रस्तुत किया।

इस नए प्रस्ताव पर 13 नवंबर 1899 को पंडित सुदर्शनदास जी के सभापतित्व में संपन्न हुए नागरी प्रचारिणी सभा के साधारण अधिवेशन में प्रस्तावित मासिक पत्र के लिए संपादक समिति बनाने पर निर्णय लिया गया। सभा की साधारण सभा ने क्रमशः बाबू श्यामसुंदर दास, बाबू राधा कृष्ण दास, बाबू जगन्नाथ दास, बाबू कार्तिक प्रसाद खत्री और पंडित किशोरी लाल गोस्वामी के नाम संपादक समिति के लिए प्रस्तावित किए। अपने प्रयासों की शुरुआती सफलता से उत्साहित बाबू चिंतामणि घोष ने डेढ़ माह में ही सचित्र मासिक पत्रिका के प्रकाशन की व्यवस्था सुनिश्चित की। इस तरह 1 जनवरी 1900 को सरस्वती का जन्म हुआ। उद्गम के साथ ही 'सरस्वती' के मुख्य पृष्ठ पर संपादक समिति के सदस्यों के नाम इस क्रम से प्रकाशित किए गए-
बाबू कार्तिक प्रसाद खत्री
पंडित किशोरी लाल गोस्वामी
बाबू जगन्नाथदास बीए
बाबू राधा कृष्ण दास
बाबू श्यामसुंदर दास बीए

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4 months ago

तारीख तवारिख से आप क्या समझते हैं?

तारीख और तवारीख इतिहास संबंधी घटनाएं हैं, जो दिल्ली सल्तनत के समय फारसी भाषा में सुल्तानों के बारे में लिखे जाते थे। तवारीख के लेखक सचिव, प्रशासक, कवि और दरबारियों जैसे गणमान्य व्यक्ति होते थे, जो इन घटनाओं का वर्णन करते थे और शासकों को प्रशासन संबंधी सलाह भी देते थे।

तवारीख से आप क्या समझते हैं?

तवारीख संज्ञा स्त्री॰ [अ॰ तवारीख] इतिहास । विशेष— यह 'तारीख' शब्द का बहुवचन है ।

क्या आपकी समझ में तवारीख के लेखक आम जनता के जीवन के बारे मे कोई जानकारी देते है?

Answer: आम ... तवारीख के लेखक, आम जनता के जीवन के बारे में कोई जानकारी नहीं देते हैं‌ क्योंकि उन्होंने सुल्तान द्वारा पुरस्कार की उम्मीद में लिखा था। तवारीख के लेखक मुख्य रूप से शहर के लोग थे जो राजा के लिए काम करते थे और कभी गाँवों में नहीं रहते थे।

तवारीख का अध्ययन हमारे लिए कैसे उपयोगी हो सकता है?

Expert-Verified Answer पूर्व-इस्लामिक अरब जनजातियों का दर्ज और अलिखित इतिहास किंवदंतियों से भरा है। इस्लामी संस्मरणों , हदीसों के नियमों के अनुसार , "इस्नाद" का अर्थ इतिहास की किताबों में बहुत सारी गवाही है। क्रॉनिकल की लेखन शैली ऐतिहासिक घटनाओं को अर्थ देती है और अरबी लिपि में विश्वसनीयता जोड़ती है।