सालिम अली की नजरों के विषय में लेखक का क्या मानना है? - saalim alee kee najaron ke vishay mein lekhak ka kya maanana hai?

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 साँवले सपनों की याद Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 साँवले सपनों की याद

JAC Class 9 Hindi साँवले सपनों की याद Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
किस घटना ने सालिम अली के जीवन की दिशा को बदल दिया और उन्हें पक्षी प्रेमी बना दिया ?
उत्तर :
बचपन में सालिम अली एयरगन से खेला करते थे। एक दिन उनकी एयरगन से निकली गोली से एक नीले कंठवाली गौरैया घायल होकर गिर पड़ी। इस घायल गौरैया की दयनीय दशा देखकर सालिम अली को बहुत दुख हुआ। उन्होंने एयरगन न चलाने का फ़ैसला किया और पक्षियों की सेवा करने का निश्चय किया। इस प्रकार एक घायल गौरैया ने उनके जीवन की दिशा को बदल दिया और वे पक्षी प्रेमी बन गए।

प्रश्न 2.
सालिम अली ने पूर्व प्रधानमंत्री के सामने पर्यावरण से संबंधित किन संभावित खतरों का चित्र खींचा होगा कि जिससे उनकी आँखें नम हो गई थीं ?
उत्तर :
सालिम अली ने पूर्व प्रधानमंत्री को बताया होगा कि यदि हम ‘साइलेंट वैली’ को रेगिस्तानी हवा के झोंकों से नहीं बचाएँगे तो यहाँ का समस्त पर्यावरण दूषित हो जाएगा। पेड़-पौधे सूख जाएँगे। वर्षा नहीं होगी। हरियाली नष्ट हो जाएगी। पक्षियों का चहचहाना सुनाई नहीं देगा। पक्षी किसी दूसरे स्थान पर चले जाएँगे। पशुओं की भी हानि होगी। इस प्रकार से यह सुंदर वैली उजाड़ हो जाएगी। यह सुनकर प्रधानमंत्री की आँखें नम हो गई होंगी।

सालिम अली की नजरों के विषय में लेखक का क्या मानना है? - saalim alee kee najaron ke vishay mein lekhak ka kya maanana hai?

प्रश्न 3.
लॉरेंस की पत्नी फ्रीडा ने ऐसा क्यों कहा होगा कि ‘मेरी छत पर बैठनेवाली गौरैया लॉरेंस के बारे में ढेर सारी बातें जानती है??
उत्तर :
लॉरेंस की पत्नी फ्रीडा ने ऐसा इसलिए कहा होगा क्योंकि लॉरेंस को प्रकृति से गहरा लगाव था। वे एक अच्छे ‘बर्ड वाचर’ थे। वे पक्षियों के कलरव से प्रेरणा प्राप्त कर कविताएँ लिखते थे। उनकी प्रकृति संबंधी कविताएँ विशेष प्रसिद्ध हैं। वे अपनी छत पर बैठी हुई गौरैया को अकसर देखा करते थे। इसी कारण उनकी पत्नी ने यह कहा कि मेरी छत पर बैठी गौरैया लॉरेंस के बारे में अधिक बता सकती है।

प्रश्न 4.
आशय स्पष्ट कीजिए –
(क) वो लॉरेंस की तरह नैसर्गिक जिंदगी का प्रतिरूप बन गए थे।
उत्तर :
लेखक को लगता है कि जिस प्रकार सुप्रसिद्ध उपन्यासकार एवं कवि डी० एच० लॉरेंस प्रकृति से गहरा लगाव रखते थे और मानते थे कि ‘मानव जाति एक उखड़े हुए महान वृक्ष की भाँति है, जिसकी जड़ें हवा में फैली हुई हैं।’ इसलिए ‘हमारा प्रकृति की ओर लौटना ज़रूरी है।’ उसी प्रकार सालिम अली भी प्रकृति से बहुत लगाव रखते थे। वे प्रकृति की दुनिया में अथाह सागर बनकर उभरे थे। इसलिए वे प्राकृतिक जीवन के प्रतिनिधि बन गए थे।

(ख) कोई अपने जिस्म की हरारत और दिल की धड़कन देकर भी उसे लौटाना चाहे तो वह पक्षी अपने सपनों के गीत दोबारा कैसे गा सकेगा ?
उत्तर :
लेखक का कथन है कि जब किसी की मृत्यु हो जाती है तो उस मरे हुए व्यक्ति को यदि कोई अन्य व्यक्ति अपने शरीर की गरमी और अपने दिल की धड़कनें देकर जीवित करना चाहे तो यह संभव नहीं है। कोई भी व्यक्ति अपनी साँसें देकर किसी मरे हुए व्यक्ति को जीवित नहीं कर सकता। जो पक्षी मर जाता है उसे फिर से जीवित नहीं किया जा सकता। वह फिर से अपना कलरव नहीं कर सकता।

(ग) सालिम अली प्रकृति की दुनिया में एक टापू बनने की बजाए अथाह सागर बनकर उभरे थे।
उत्तर :
लेखक का मानना है कि सालिम अली को प्रकृति से बहुत प्रेम था। उन्होंने प्रकृति का बहुत सूक्ष्मता से निरीक्षण किया था। वे दूरबीन से प्रकृति के प्रत्येक हृदय का आनंद लेते थे। एकांत के क्षणों में भी वे प्रकृति को अपनी दूरबीन रहित आँखों से निहारते रहते थे। इसी प्रकृति – प्रेम ने उन्हें पक्षियों का प्रेमी भी बना दिया था। जैसे सागर बहुत गहरा होता है उसी प्रकार सालिम अली का प्रकृति – प्रेम भी बहुत गहरा था।

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प्रश्न 5.
इस पाठ के आधार पर लेखक की भाषा-शैली की चार विशेषताएँ बताइए।
उत्तर :
(क) सरल भाषा – इस पाठ में लेखक ने बोलचाल की सरल भाषा का प्रयोग किया है, जैसे – ‘आज सालिम अली नहीं हैं। चौधरी साहब भी नहीं हैं। कौन बचा हैं जो अब सोंधी माटी पर उगी फसलों के बीच एक नए भारत की नींव रखने का संकल्प लेगा।’

(ख) शब्द प्रयोग – इस पाठ में लेखक ने तत्सम तद्भव, देशज तथा विदेशी शब्दों का खुलकर प्रयोग किया है। जैसे- अग्रसर, अंतहीन, पलायन, नैसर्गिक, परिंदे, हुजूम, वादी, सफ़र, एहसास, तलाश, साइलेंट वैली, आबशारों आदि। इन शब्दों के द्वारा लेखक ने दृश्यों के शब्द – चित्र भी उपस्थित कर दिए हैं जैसे “सुनहरे परिंदों के खूबसूरत पंखों पर सवार साँवले सपनों का एक हुजूम मौत की खामोश वादी की तरफ अग्रसर है।’

(ग) काव्यात्मकता – इस पाठ में लेखक की भाषा-शैली काव्यात्मक भी हो गई है, जैसे- ‘एहसास की ऐसी ही एक ऊबड़-
खाबड़ जमीन पर जनमे मिथक का नाम है, सालिम अली’।

(घ) रोचकता – इस पाठ में लेखक की भाषा-शैली अत्यंत रोचक है। वृंदावन में श्रीकृष्ण की लीलाओं का प्रसंग भाषा-शैली की रोचकता का सुंदर उदाहरण है, जैसे- ‘पता नहीं इतिहास में कब कृष्ण ने वृंदावन में रासलीला रची थी और शोख गोपियों को अपनी शरारतों का निशाना बनाया था। कब माखन भरे भाँड़े फोड़े थे।’
इस प्रकार इस पाठ में लेखक की भाषा-शैली सहज, चित्रात्मक तथा रोचक है।

प्रश्न 6.
इस पाठ में लेखक सालिम अली के व्यक्तित्व का जो चित्र खींचा है उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
इस पाठ में लेखक ने सालिम अली को एक सुप्रसिद्ध पक्षी वैज्ञानिक तथा समर्पित ‘बर्ड वाचर’ के रूप में प्रस्तुत किया है। बचपन में उनकी एयरगन से एक गौरैया घायल हो गई थी, जिसका दर्द देखकर उनके मन में पक्षी – प्रेम उत्पन्न हो गया था। उसके बाद वे जीवनभर दूरबीन लेकर विभिन्न प्रजातियों के पक्षियों की खोज करते रहे और ‘एक गौरैया का गिरना’ शीर्षक पुस्तक में पक्षियों से संबंधित अपने अनुभवों को लिखा।

वे प्रकृति – प्रेमी भी थे। उन्हें प्रकृति का सूक्ष्म निरीक्षण करने में अपार आनंद आता था। उन्हें पर्यावरण को सुरक्षित रखने की बहुत चिंता रहती थी। इसलिए उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को केरल की ‘साइलेंट वैली’ को रेगिस्तानी हवा से बचाने का अनुरोध किया था। वे निरंतर लंबी-लंबी यात्राएँ करके पक्षियों पर खोज करते थे। उनकी आँखों पर सदा दूरबीन चढ़ी रहती थी जिसे उनकी मृत्यु के बाद ही उतारा गया था। उनकी मृत्यु कैंसर से हुई थी।

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प्रश्न 7.
‘साँवले सपनों की याद’ शीर्षक की सार्थकता पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
‘साँवले सपनों की याद’ पाठ में लेखक ने सुप्रसिद्ध पक्षी वैज्ञानिक सालिम अली की मृत्यु पर अपने विचार व्यक्त किए हैं। लेखक को लगता है कि सालिम अली की यायावरी से परिचित लोग अभी भी यही सोच रहे हैं कि वे आज भी पक्षियों के सुराग में निकले हैं और अभी गले में दूरबीन लटकाए अपने खोजपूर्ण नतीजों के साथ लौट आएँगे। लेखक की आँखें भी नम हैं और वह सोचता है ‘सालिम अली, तुम लौटोगे ना।’

लेखक का यह स्वप्न तब भंग हो जाता है जब वह देखता है कि सालिम अली उस हुजूम में सबसे आगे हैं जो मौत की खामोशवादी की ओर अग्रसर हो रहा है जहाँ जाकर वह प्रकृति में विलीन हो जाएगा। सालिम अली को ले जाने वाले अपने जिस्म की हरारत और दिल की धड़कन देकर भी उसे लौटा नहीं सकते। अब तो बस उसकी यादें ही शेष हैं। इस प्रकार इस पाठ का शीर्षक ‘साँवले सपनों की याद’ सार्थक है।

रचना और अभिव्यक्ति – 

प्रश्न 8.
प्रस्तुत पाठ सालिम अली की पर्यावरण के प्रति चिंता को भी व्यक्त करता है। पर्यावरण को बचाने के लिए आप कैसे योगदान दे सकते हैं ?
उत्तर :
पर्यावरण को बचाने के लिए हमें अधिक-से-अधिक पेड़ लगाने चाहिए और उनकी रक्षा करनी चाहिए। अपनी गली-मोहल्ले को साफ़-सुथरा रखना चाहिए। कूड़ा एक स्थान पर जमा करना चाहिए। प्लास्टिक की थैलियों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। तालाबों, झीलों तथा नदियों में गंदगी नहीं डालनी चाहिए। पेट्रोलियम पदार्थों को कम प्रयोग में लाना चाहिए। वातावरण को शुद्ध बनाकर रखना चाहिए।

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पाठेतर सक्रियता –

अपने घर या विद्यालय के नज़दीक आपको अकसर किसी पक्षी को देखने का मौका मिलता होगा। उस पक्षी का नाम, भोजन, खोने का तरीका, रहने की जगह और अन्य पक्षियों से संबंध आदि के आधार पर एक चित्रात्मक विवरण तैयार करें।
आपकी और आपके सहपाठियों की मातृभाषा में पक्षियों से संबंधित बहुत से लोकगीत होंगे। उन भाषाओं के लोकगीतों का एक संकलन तैयार करें। आपकी मदद के लिए एक लोकगीत दिया जा रहा है –

अरे अरे श्यामा चिरइया झरोखवै मति बोलहु।
मोरी चिरई ! अरी मोरी चिरई ! सिरकी भितर बनिजरवा।
जगाई लइ आवउ, मनाइ लइ आवड ॥1॥
कवने बरन उनकी सिरकी कवने रँग बरदी।
बहिनी ! कवने बरन बनिजरवा जगाइ लै आई मनाइ लै आई ॥2॥
जरद बरन उनकी सिरकी उजले रंग बरदी।
सँवर बरन बनिजरवा जगाइ लै आवउ मनाइ लै आवउ ॥3॥

विभिन्न भाषाओं में प्राप्त पक्षियों से संबंधित लोकगीतों का चयन करके एक संगीतात्मक प्रस्तुति दें।
टी०वी० के विभिन्न चैनलों जैसे- एनिमल किंगडम, डिस्कवरी चैनल, एनिमल प्लेनेट आदि पर दिखाए जानेवाले कार्यक्रमों को देखकर किसी एक कार्यक्रम के बारे में अपनी प्रतिक्रिया लिखित रूप में व्यक्त करें।
एन०सी०ई० आर०टी० का श्रव्य कार्यक्रम सुनें – डॉ० सालिम अली
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

यह भी जानें –

प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी सालिम अली का जन्म 12 नवंबर, सन् 1896 में हुआ और मृत्यु 20 जून, सन् 1987 में उन्होंने फॉल ऑफ़ ए स्पैरो नाम से अपनी आत्मकथा लिखी है जिसमें पक्षियों से संबंधित रोमांचक किस्से हैं। एक गौरैया का गिरना शीर्षक से इसका हिंदी अनुवाद नेशनल बुक ट्रस्ट ने प्रकाशित किया है।
डी० एच० लॉरेंस (1885-1930) 20वीं सदी के अंग्रेज़ी के प्रसिद्ध उपन्यासकार। उन्होंने कविताएँ भी लिखी हैं, विशेषकर प्रकृति संबंधी कविताएँ उल्लेखनीय हैं। प्रकृति से डी०एच० लॉरेंस का गहरा लगाव था और सघन संबंध भी। वे मानते थे कि मानव जाति एक उखड़े हुए महान वृक्ष की भाँति है, जिसकी जड़ें हवा में फैली हुई हैं। वे यह भी मानते थे कि हमारा प्रकृति की ओर लौटना जरूरी है।

JAC Class 9 Hindi साँवले सपनों की याद Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
लेखक ने सालिम अली की अंतिम यात्रा का वर्णन कैसे किया है ?
उत्तर :
सालिम अली की अंतिम यात्रा के समय लोगों की एक बहुत बड़ी भीड़ वहाँ एकत्र हो गई थी। इस भीड़ में सबसे आगे सालिम अली का जनाज़ा चल रहा था। सब लोग चुपचाप उनके पीछे-पीछे मौत की वादी की ओर अग्रसर हो रहे थे। सालिम अली इस संसार के भीड़-भाड़ एवं तनाव से युक्त वातावरण से आज़ाद हो गए थे। वे उस वन – पक्षी की तरह प्रकृति में विलीन हो रहे थे जो अपने जीवन का अंतिम गीत गाकर मौत की गोद में चला गया हो। अब कोई उन्हें अपने जिस्म की गरमी तथा दिल की धड़कन देकर भी लौटा नहीं सकता था।

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प्रश्न 2.
वृंदावन की आज की दशा का वर्णन कीजिए।
उत्तर
आज भी वृंदावन जाएँ तो यमुना नदी का साँवला पानी श्रीकृष्ण की वृंदावन में की गई अनेक लीलाओं की याद करा देता है। सूर्य निकलने से पहले ही वृंदावन की गलियों से लोग निकलकर यमुना की ओर जाते हैं तो लगता है कि श्रीकृष्ण कहीं से निकलकर बाँसुरी बजाने लगेंगे और सब उस बंसी की तान पर मस्त होकर जहाँ के वहाँ रह जाएँगे। आज भी वृंदावन का वातावरण श्रीकृष्ण की बाँसुरी के जादू से भरा हुआ है।

प्रश्न 3.
सालिम अली ने वर्षों पहले क्या कहा था ?
उत्तर :
वर्षों पहले सामिल अली ने कहा था कि आदमी को पक्षी को आदमी की नज़र की अपेक्षा पक्षियों की नज़र से देखना चाहिए इससे आदमी को पक्षियों के विषय में जानने में मदद मिलेगी। ऐसे ही आदमी प्रकृति को भी अपनी नज़र से देखता है इसलिए उसे जगलों, पहाड़ों, झरनों और आबशारों की असली सुंदरता का पता नहीं है। इन सबको जानने के लिए स्वयं को उसकी तरह अनुभव करना पड़ता है तब हमें पक्षियों और प्रकृति से अनोखा संगीत सुनाने को मिल सकता है।

प्रश्न 4.
‘बर्ड वाचर’ से क्या अभिप्राय है ? इस पाठ में लेखक ने किसे बर्ड वाचर कहा है ?
उत्तर :
‘बर्ड वाचर’ से अभिप्राय उस व्यक्ति से है जिसे पक्षियों से प्रेम होता है। वह पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों और गतिविधियों का सूक्ष्मता से अध्ययन करता है तथा उनके संबंध में विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराता है। वह पक्षियों की रक्षा के लिए ठोस कदम उठाने के लिए तैयार रहता है। इस पाठ में लेखक ने ‘बर्ड वाचर’ सालिम अली को कहा है। सालिम अली ने अपनी सारी उम्र पक्षियों की तलाश और हिफ़ाज़त के लिए समर्पित कर दी थी।

प्रश्न 5.
सालिम अली के लिए प्रकृति कैसी थी ?
उत्तर :
सालिम अली अपनी दृष्टि से प्रकृति के जादू को बाँध लेते थे। उनके लिए प्रकृति में चारों ओर एक हँसती-खेलती रहस्यभरी दुनिया फैली हुई थी। सालिम अली उन लोगों में से थे जो प्रकृति के प्रभाव में आने के बजाए प्रकृति को अपने प्रभाव में लाने को कायल होते थे। प्रकृति की दुनिया उन्होंने अपने लिए बड़ी मेहनत से बनाई थी।

सालिम अली की नजरों के विषय में लेखक का क्या मानना है? - saalim alee kee najaron ke vishay mein lekhak ka kya maanana hai?

प्रश्न 6.
‘सालिम अली ने स्वयं को प्रकृति के लिए अर्पित कर दिया था।’ इसमें उनका साथ किसने दिया ?
उत्तर :
सालिम अली का संपूर्ण जीवन प्रकृति के नए-नए दृश्यों की खोज और पक्षियों की खोज में बीता है। उन्होंने अपने आस-पास प्रकृति की दुनिया बड़ी मेहनत से बनाई थी। इस दुनिया को बनाने में उनकी जीवन-साथी तहमीना ने बहुत सहायता की थी। तहमीना स्कूल के दिनों में उनकी सहपाठी रही थीं।

प्रश्न 7.
लॉरेंस कौन था ? उनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी से लोगों ने क्या कहा ?
उत्तर :
लॉरेंस बीसवीं सदी के अंग्रेज़ी के उपन्यासकार थे। उन्होंने प्रकृति-प्रेम से संबंधित कविताएँ लिखी हैं। उनका प्रकृति से गहरा लगाव और सघन संबंध था। वे मानते थे कि मानव जाति एक उखड़े हुए महान वृक्ष की तरह है, जिसकी जड़ें हवा में फैली हुई हैं। वह यह मानते थे कि मनुष्य का प्रकृति की ओर लौटना जरूरी है। लॉरेंस की मृत्यु के बाद लोगों ने उनकी पत्नी फ्रीडा से कहा कि वे लॉरेंस के विषय में कुछ लिखें। परंतु फ्रीडा ने यह कहकर इनकार कर दिया कि उसके लिए लॉरेंस पर लिखना कठिन है। उनके बारे में कुछ पता करना है तो छत पर बैठी गौरैया से पूछ लें अर्थात जो उनकी कविता के प्रेरणा स्रोत हैं आप लोगों को उनसे बात करनी चाहिए।

प्रश्न 8.
प्रकृति की दुनिया में सालिम का क्या स्थान था ? अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर :
सालिम अली के लिए प्रकृति की दुनिया ही उनका जीवन थी। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन प्रकृति और उसमें रहनेवाले पक्षियों की नई-नई खोजों को समर्पित कर दिया। वे हिमालय या लद्दाख की बरफीली जमीनों पर जीनेवाले पक्षियों के अस्तित्व की चिंता करते थे। वे प्रकृति के ज्ञान का अथाह सागर थे। उन्होंने प्रकृति का गहन अध्ययन किया था। उन्होंने प्रकृति का सूक्ष्मता से अध्ययन किया था। क्षण प्रतिक्षण प्रकृति के होनेवाले विनाश को लेकर भी चिंतित थे। वे लोगों को जागरूक करना चाहते थे। उन्हें प्रकृति का प्रतिपल परिवर्तित रूप प्रभावित करता था।

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प्रश्न 9.
सालिम अली को जाननेवालों का उनके संबंध में क्या विचार था ?
उत्तर :
सालिम अली को निकट से जाननेवाले लोगों का मानना है कि वे कहीं नहीं गए। अभी उनकी मृत्यु नहीं हुई है। वे अपने प्रिय पक्षियों की खोज और हिफ़ाज़त के लिए कहीं गए हुए हैं। उनके साथ उनकी दूरबीन है। जो उन्हें पक्षियों की नित नई गतिविधियों से परिचित कराएगी। वे कुछ दिनों में वापिस लौट आएँगे और सबको अपनी यात्रा के अनुभव और खोजों के परिणाम को बताएँगे।

प्रश्न 10.
‘साँवले सपनों की याद’ किस प्रकार की विधा है ? लेखक ने इस पाठ में क्या कहा है?
उत्तर :
‘साँवले सपनों की याद’ जाबिर हुसैन द्वारा रचित एक संस्मरण है। उनका यह संस्मरण प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी सालिम अली के जीवन से संबंधित है। इस संस्मरण में लेखक ने सालिम अली के जीवन को एक किताब की भाँति खोलकर रख दिया उन्होंने सालिम अली की मृत्यु से उत्पन्न अपनी भावनाओं को इस संस्मरण में प्रकट किया है।

प्रश्न 11.
सालिम अली ने केरल की साइलेंट वैली को बचाने के लिए क्या किया ?
उत्तर :
सालिम अली ने अपने अथाह परिश्रमों से केरल की साइलेंट वैली को बचाने का दृढ़ निश्चय किया। उन्होंने वैली को रेगिस्तानी हवा के दुष्प्रभाव से बचाने के लिए उस समय के तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह से अनुरोध किया था। उन्होंने प्रधानमंत्री को बताया और समझाया कि किस प्रकार प्रकृति विनाश के गर्त में डूबने जा रही है।

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प्रश्न 12.
जाबिर हुसैन की भाषा-शैली का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर :
जाबिर हुसैन की भाषा-शैली सरल, सहज तथा भावानुकूल है। इनकी भाषा जनसाधारण के निकट थी। इन्होंने अपने लेखों में उर्दू के शब्दों का बहुत प्रयोग किया है। छोटे-छोटे वाक्य तथा उनमें छिपे गंभीर भाव इनकी सफलता का आधार हैं। इनकी शैली में चित्रात्मकता देखी जा सकती है। प्रकृति का वर्णन करने में इनका कवि हृदय मुखरित हो पड़ता है।

महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

सुनहरे परिंदों के खूबसूरत पंखों पर सवार साँवले सपनों का एक हुजूम मौत की खामोश वादी की तरफ़ अग्रसर है। कोई रोक-टोक सके, कहाँ संभव है। इस हुजूम में आगे-आगे चल रहे हैं, सालिम अली। अपने कंधों पर, सैलानियों की तरह अपने अंतहीन सफ़र का बोझ उठाए। लेकिन यह सफ़र पिछले तमाम सफ़रों से भिन्न है। भीड़-भाड़ की जिंदगी और तनाव के माहौल से सालिम अली का यह आखिरी पलायन है। अब तो वे उस वन- पक्षी की तरह प्रकृति में विलीन हो रहे हैं जो जिंदगी का आखिरी गीत गाने के बाद मौत की गोद में जा बसा हो।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) सालिम अली कौन से हुजूम में किसकी तरह चल रहे हैं ?
(ख) सालिम अली का अंतिम सफर कैसा था ?
(ग) साँवले सपनों का हुजूम किसकी वादी की ओर बढ़ रहा था ?
(घ) इन पंक्तियों में लेखक ने किसका वर्णन किया है ?
उत्तर :
(क) सालिम अली सुनहरे परिंदों के खूबसूरत पंखों पर सवार साँवले सपनों के हुजूम में सैलानियों की तरह चल रहे हैं। यह सफ़र उनके सभी सफ़रों से भिन्न है।
(ख) सालिम अली भीड़-भाड़ की जिंदगी तथा तनाव भरे वातावरण से मुक्त हो रहे थे। वे वन के उस पक्षी की तरह विलीन हो रहे थे जो जिंदगी का आखिरी गीत गाने के बाद मौत की गोद में सो गया हो।
(ग) साँवले सपनों का हुजूम मौत की खामोश वादी की ओर बढ़ रहा है।
(घ) इन पंक्तियों में लेखक ने सालिम अली के अंतिम सफ़र (मृत्यु) के विषय में अपनी भावनाएँ व्यक्त की हैं।

सालिम अली की नजरों के विषय में लेखक का क्या मानना है? - saalim alee kee najaron ke vishay mein lekhak ka kya maanana hai?

2. पता नहीं यह सब कब हुआ था। लेकिन कोई आज भी वृंदावन जाए तो नदी का साँवला पानी उसे पूरे घटना क्रम की याद दिला देगा। हर सुबह सूरज निकलने से पहले, जब पतली गलियों से उत्साह भरी भीड़ नदी की ओर बढ़ती है, तो लगता है जैसे उस भीड़ को चीरकर अचानक कोई सामने आएगा और बंसी की आवाज़ पर सब किसी के कदम थम जाएँगे। हर शाम सूरज ढलने से पहले, जब वाटिका का माली सैलानियों को हिदायत देगा तो लगता है जैसे बस कुछ ही क्षणों में वो कहीं से आ टपकेगा और संगीत का जादू वाटिका के भरे-पूरे माहौल पर छा जाएगा।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) वृंदावन जाने पर नदी का साँवला पानी किस घटनाक्रम की याद करा देगा ?
(ख) लेखक ने वृंदावन की वाटिका का वर्णन किस प्रकार किया है ?
(ग) ‘नदी का साँवला पानी’ पाठ में लेखक किस नदी की बात कर रहे है ?
(घ) ‘भीड़ को चीरकर सामने आएगा’ में लेखक किसके आने की प्रतीक्षा में हैं ?
उत्तर :
(क) वृंदावन जाने पर नदी का साँवला पानी श्रीकृष्ण की नदी किनारे की गई लीलाओं की याद करा देगा।
(ख) लेखक के अनुसार वृंदावन में वाटिका का वातावरण आज भी श्रीकृष्ण की बाँसुरी की जादुई धुन से भरा है। प्रतिदिन संध्या समय जब वाटिका का माली सैलानियों को हिदायत देता है, तो लगता है जैसे कुछ ही पलों में वह कहीं से आएगा और बाँसुरी की जादुई धुन पूरी वाटिका में छा जाएगी।
(ग) इस पाठ में लेखक यमुना नदी के विषय में कह रहे हैं।
(घ) ‘भीड़ को चीरकर सामने आएगा’ इन पंक्ति में लेखक श्रीकृष्ण के आने की प्रतीक्षा में हैं।

3. उन जैसा ‘बर्ड वाचर’ शायद ही कोई हुआ हो। लेकिन एकांत क्षणों में सालिम अली बिना दूरबीन भी देखे गए हैं। दूर क्षितिज तक फैली जमीन और झुके आसमान को छूनेवाली उनकी नज़ारों में कुछ-कुछ वैसा ही जादू था, जो प्रकृति को अपने घेरे में बाँध लेता है। सालिम अली उन लोगों में थे जो प्रकृति के प्रभाव में आने की बजाय प्रकृति को अपने प्रभाव में लाने के कायल होते हैं। उनके लिए प्रकृति में हर तरफ़ एक हँसती-खेलती रहस्यभरी दुनिया पसरी थी। यह दुनिया उन्होंने बड़ी मेहनत से अपने लिए गढ़ी थी।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) ‘बर्ड वाचर’ कौन है ? उन्हें यह नाम क्यों दिया गया ?
(ख) सालिम अली की नज़रों में कैसा जादू था ?
(ग) सालिम अली के लिए प्रकृति कैसी थी ?
(घ) सालिम अली बिना दूरबीन कब होते थे ?
उत्तर :
(क) सालिम अली को ‘बर्ड वाचर’ की संज्ञा दी जाती है। यह नाम उन्हें इसलिए दिया गया क्योंकि उन्हें पक्षियों से बहुत प्रेम था। उन्होंने पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों और गतिविधियों का सूक्ष्मता से अध्ययन किया तथा उनके बारे में जानकारी उपलब्ध करवाई।
(ख) सालिम अली की नज़रों में कुछ-कुछ वैसा ही जादू था जो प्रकृति को अपने वश में कर लेते हैं। वे प्रकृति के प्रभाव में आने की बजाय प्रकृति को अपने प्रभाव में लाने के कायल होते हैं।
(ग)
सालिम अली के लिए प्रकृति हँसती-खेलती रहस्यभरी दुनिया थी, जिसे उन्होंने स्वयं अपने परिश्रम से गढ़ा था।
(घ) सालिम अली एकांत के क्षणों में बिना दूरबीन होते थे।

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4. जटिल प्राणियों के लिए सालिम अली हमेशा एक पहेली ही बने रहेंगे। बचपन के दिनों में, उनकी एयरगन से घायल होकर गिरने वाली, नीले कंठ की वह गौरैया सारी जिंदगी उन्हें खोज के नए-नए रास्तों की तरफ़ ले जाती रही। जिंदगी की ऊँचाइयों में उनका विश्वास एक क्षण के लिए भी डिगा नहीं। वो लॉरेंस की तरह, नैसर्गिक जिंदगी का प्रतिरूप बन गए थे।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) सालिम अली किनके लिए और क्यों पहेली बनी रहे ?
(ख) सालिम अली को किस घटना ने नई नई खोजों के लिए प्रेरणा दी ?
(ग) लॉरेंस कौन था ?
(घ) सालिम अली जीवनभर क्या करते रहे ?
(ङ) ‘डिगा देना’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
(क) सालिम अली जटिल प्राणियों के लिए एक पहेली बन गए थे क्योंकि वे अत्यंत सीधे-साधे व्यक्ति होते हुए भी उनके लिए महान थे।
(ख) सालिम अली ने बचपन में अपनी एयरगन से नीले कंठवाली एक गौरैया को घायल कर दिया था। इस घटना से उनके मन में पक्षियों के प्रति प्रेमभाव उमड़ पड़ा और वे नए-नए पक्षियों की खोज में लग गए।
(ग) लॉरेंस बीसवीं सदी के प्रसिद्ध उपन्यासकार थे। उन्होंने प्रकृति – प्रेम से संबंधित कविताएँ लिखी हैं। उनका प्रकृति से गहरा लगाव था।
वे मानते थे कि मानव जाति एक उखड़े हुए महान वृक्ष के समान है, जिसकी जड़ें हवा में फैली हुई हैं।
(घ) सालिम अली जीवनभर पक्षियों के जीवन से संबंधित नई-नई खोजें करते रहे।
(ङ) ‘डिगा देना’ से तात्पर्य है- अपने लक्ष्य और सिद्धांतों से दूर हो जाना।

सालिम अली की नजरों के विषय में लेखक का क्या मानना है? - saalim alee kee najaron ke vishay mein lekhak ka kya maanana hai?

5. सालिम अली प्रकृति की दुनिया में एक टापू बनने की बजाय अथाह सागर बनकर उभरे थे। जो लोग उनके भ्रमणशील स्वभाव और उनकी यायावरी से परिचित हैं, उन्हें महसूस होता है कि वे आज भी पक्षियों के सुराग में ही निकले हैं, और बस अभी गले में लंबी दूरबीन लटकाए अपने खोजपूर्ण नतीजों के साथ लौट आएँगे।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
(क) सालिम अली का प्रकृति की दुनिया में क्या स्थान था ?
(ख) सालिम अली के स्वभाव की क्या विशेषता थी ?
(ग) सालिम अली के परिचितों का सालिम अली के संबंध में क्या विचार हैं ?
(घ) सालिम अली पक्षियों की खोज कैसे करते थे ?
(ङ) ‘टापू बनने’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
(क) सालिम अली का प्रकृति की दुनिया में महत्त्वपूर्ण स्थान था। वे एक अथाह सागर के समान थे। उन्होंने प्रकृति का बहुत ही गंभीरता के साथ अध्ययन किया था। वे प्रकृति का सूक्ष्मता से निरीक्षण करते थे। प्रकृति का प्रतिपल परिवर्तित रूप उन्हें प्रभावित करता था।
(ख) सालिम अली भ्रमणशील स्वभाव के व्यक्ति थे। वे निरंतर घूमते रहते थे। वे एक स्थान पर टिक कर नहीं बैठते थे। वे घूम-घूम कर पक्षियों के संबंध में खोज करते थे।
(ग) सालिम अली के संबंध में उनके परिचितों का यह विचार है कि उनकी अभी मृत्यु नहीं हुई है। वे आज भी पक्षियों की खोज में कहीं गए हैं और थोड़ी देर में अपने गले में लंबी दूरबीन लटकाए हुए लौट आएँगे और अपनी खोज के परिणामों को बताएँगे।
(घ) सालिम अली पक्षियों की खोज करने के लिए विभिन्न स्थानों पर भ्रमण करते थे। वे अपनी आँखों पर दूरबीन लगाकर आकाश में पक्षियों को तलाश करते रहते थे। जब उन्हें कोई नई प्रजाति का पक्षी मिल जाता था तो उससे संबंधित विवरण तैयार कर लेते थे। इस प्रकार वे पक्षियों की खोज में लगे रहते थे।
(ङ) ‘टापू बनने’ से तात्पर्य है – एक सीमित क्षेत्र में स्वयं को समेटकर जीवन-यापन करना।

साँवले सपनों की याद Summary in Hindi

लेखक – परिचय :

जीवन – जाबिर हुसैन का जन्म बिहार के नालंदा जिले के नौनहीं राजगीर में सन् 1945 ई० को हुआ था। इन्हें अध्ययन में विशेष रुचि थी। अंग्रेज़ी भाषा एवं साहित्य में उपाधियाँ प्राप्त करने के पश्चात इन्होंने अंग्रेज़ी भाषा एवं साहित्य के प्राध्यापक के रूप में कार्य किया था। इन्होंने राजनीति के क्षेत्र में सक्रिय रूप से कार्य किया है। ये सन् 1977 में बिहार के मुँगेर विधानसभा क्षेत्र से सदस्य चुने गए। इन्हें बिहार के मंत्रिमंडल में मंत्री बनाया गया था। सन 1995 ई० में इन्हें बिहार विधान परिषद का सभापति बनाया गया। राजनीति के साथ-साथ इन्हें लेखन में भी रुचि थी। इन्हें हिंदी, अंग्रेज़ी तथा उर्दू भाषाओं पर समान अधिकार है।

रचनाएँ – इन्होंने अपनी रचनाओं में आम आदमी के संघर्षरत जीवन को अभिव्यक्ति प्रदान की है। इनकी मुख्य रचनाएँ हैं – एक नदी रेतभरी, जो आगे हैं, अतीत का चेहरा, लोगां, डोला बीबी का मज़ार।

भाषा-शैली – जाबिर हुसैन की भाषा-शैली अत्यंत सहज तथा रोचक है। प्रस्तुत पाठ ‘साँवले सपनों की याद’ डायरी शैली में रचित संस्मरण है, जिसमें लेखक ने प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी सालिम अली की मृत्यु से उत्पन्न अपनी संवेदना को व्यक्त किया है। लेखक ने अपनी भाषा में उर्दू के प्रचलित शब्दों का बहुत उपयोग किया है। जैसे – परिंदे, हुजूम, वादी, सफ़र, माहौल, एहसास, शोख, मेहनत, महसूस। कहीं-कहीं तत्सम शब्दों का प्रयोग भी मिलता है; जैसे- अग्रसर, संभव, अंतहीन, विलीन, वाटिका, क्षितिज, प्रतिरूप।

लेखक ने ऊबड़-खाबड़, भांडे, सोता आदि देशज शब्दों का भी सहज रूप में प्रयोग किया है। इनकी भाषा शैली कहीं-कहीं काव्यात्मक भी हो जाती है जैसे- ‘अब तो वो उस वन पक्षी की तरह प्रकृति में विलीन हो रहे हैं, जो ज़िंदगी का आखिरी गीत गाने के बाद मौत की गोद में जा बसा हो।’ इनकी शैली में चित्रात्मकता के भी दर्शन होते हैं वे शब्दों के माध्यम से वातावरण को सजीव कर देते हैं जैसे – ‘पता नहीं, इतिहास में कब कृष्ण ने वृंदावन में रासलीला रची थी और शोख गोपियों को अपनी शरारतों का निशाना बनाया था। कब माखन भरे भांडे फोड़े थे और दूध – छाछ से अपने मुँह भरे थे। कब वाटिका में, छोटे-छोटे किंतु घने पेड़ों की छाँह में विश्राम किया था।’ इस प्रकार कह सकते हैं कि लेखक की भाषा-शैली, अत्यंत रोचक, सरल, सहज तथा प्रभावशाली है।

सालिम अली की नजरों के विषय में लेखक का क्या मानना है? - saalim alee kee najaron ke vishay mein lekhak ka kya maanana hai?

पाठ का सार :

जाबिर हुसैन द्वारा रचित पाठ ‘साँवले सपनों की याद’ प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी सालिम अली से संबंधित संस्मरण है। इसमें लेखक ने सालिम अली की मृत्यु से उत्पन्न अपनी भावनाओं को व्यक्त किया है। सालिम अली अपने अंतिम सफ़र पर जा रहे हैं। वे उस वन – पक्षी के समान प्रकृति में विलीन होने जा रहे हैं, जो अपने जीवन का अंतिम गीत गाकर सदा के लिए खामोश हो गया हो। जैसे मौत की गोद में गए हुए पक्षी को कोई अपना जीवन देकर भी नहीं जीवित कर सकता वैसे ही अब सालिम अली को भी जीवित नहीं किया जा सकता। सालिम अली पक्षियों की मधुर आवाज सुनकर झूम उठता था।

लेखक कहता है कि न मालूम कब कृष्ण ने वृंदावन में रासलीला रची थी, गोपियों को अपनी शरारतों से तंग किया था, माखन – भरे भाँड़े फोड़े थे, दूध- छाछ पिया था, कुंजों में विश्राम किया था और अपनी बंसी की तान से वृंदावन को संगीतमय कर दिया था। आज भी वृंदावन कृष्ण की बाँसुरी का जादू छाया हुआ है। लेखक सालिम अली के संबंध में बताता है कि वह कमज़ोर कायावाला व्यक्ति अब सौ वर्ष में का होने ही वाला था कि कैंसर की बीमारी से चल बसा। वे जीवन के अंतिम क्षणों तक पक्षियों की खोज और सेवा में लगे रहे। उन जैसा ‘बर्ड वायर’ शायद ही कोई अन्य हो। वे सदा प्रकृति को हँसती-खेलती रहस्यभरी दुनिया के समान अपने आस-पास देखते थे। उनके इस कार्य में उनकी जीवन-साथी तहमीना भी उनके साथ थी।

सालिम अली ने केरल की साइलेंट वैली को रेगिस्तानी हवा के दुष्प्रभाव से बचाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह से अनुरोध किया था। आज सालिम अली और चौधरी चरण सिंह दोनों ही नहीं हैं। लेखक को चिंता है कि अब पर्यावरण के संभावित खतरों से हिमालय और लद्दाख की बरफ़ीली जमीनों पर जीनेवाले पक्षियों की रक्षा कौन करेगा ? सालिम अली ने ‘फ़ॉल आत्मकथा लिखी थी।

डी० एच० लॉरेंस की मृत्यु के बाद जब कुछ लोगों ने उसकी पत्नी फ्रीडा लॉरेंस से अपने पति के बारे में कुछ लिखने ४ माफ अ स्पैरो’ नाम से अपनी का अनुरोध किया तो उसने उत्तर दिया था कि छत पर बैठनेवाली गौरैया उसके पति के बारे में उससे अधिक जानती है। बचपन में सालिम अली ने अपनी एयरगन से एक गौरैया को घायल कर दिया था। उसी ने उन्हें आजीवन पक्षियों का सेवक बना दिया। वे उन्हें ही खोजते रहे। लंबी दूरबीन लटकाए जगह-जगह घूमते हुए वे पक्षियों की तलाश करते रहे। अपने खोजपूर्ण नतीजे अपनी रचनाओं के द्वारा देते रहे। लेखक की आँखें उनके जाने पर भीग गई हैं।

सलीम अली की नजरों के विषय में लेखक का क्या मानना है?

उत्तर:- लेखक कहना चाहता है की सलीम अली की मृत्यु के बाद वैसा प्रकृति-प्रेमी और कोई नहीं हो सकता। सलीम अली रूपी पक्षी मौत की गोद में सो चुका है।

सालिम अली की दृष्टि में पक्षी एवं प्रकृति को आदमी की नजर से देखना है उसकी भूल क्यों है?

Solution. सालिम अली की दृष्टि में मनुष्य यह भूल करते हैं कि लोग पक्षियों जंगलों-पहाड़ों, झरने-आवशारों आदि को आदमी की निगाह से देखते हैं। उन्होंने इसे भूल इसलिए कहा क्योंकि मनुष्य पक्षियों, नदी-झरनों आदि को इस दृष्टि से देखता है कि इससे उसका कितना स्वार्थ पूरा हो सकता है।

सालिम अली कौन थे पाठ के लेखक के आधार पर उनके व्यक्तित्व का वर्णन कीजिए?

सालिम अली दुबली-पतली काया वाले व्यक्ति थे, जिनकी आयु लगभग एक सौ वर्ष होने को थी। पक्षियों की खोज में की गई लंबी-लंबी यात्राओं की थकान से उनका शरीर कमजोर हो गया था। वे अपनी आँखों पर प्रायः दूरबीन चढ़ाए रखते थे। पक्षियों की खोज के लिए वे दूर-दूर तक तथा दुर्गम स्थानों की यात्राएँ करते थे

सालिम अली के लिए प्रकृति क्या है?

उत्तरः सालिम अली प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी थे। वे भ्रमणशील स्वभाव के 'बर्ड वाचर' थे। वे सदा प्रकृति की हँसती-खेलती रहस्यमयी दुनिया के समान अपने आस-पास देखते थे। उन्होंने केरल की साइलेंट वैली को रेगिस्तानी हवा के झोंकों के दुष्प्रभाव से बचाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री चैधरी चरण सिंह से अनुरोध किया था।