पितरों को जल कौन सी दिशा में देना चाहिए - pitaron ko jal kaun see disha mein dena chaahie

पितरों को जल चढ़ाने के लिए सोने का लोटा कांसे का लोटा या तांबे का लोटा इस्तेमाल किया जाता है। इसमें सबसे अच्छा तांबे का लोटा माना जाता है। मिट्टी के बर्तन या लोटा पितरों की पूजा में वर्जित होता है ।
  • सर्वप्रथम एक लोटे में जल भर लें थोड़ा सा गंगाजल उसमें डाल दें फिर उसमें काले तिल डालें चावल डालें जौ डालें व थोड़ी सी कुशा या दूर्वा डालें।
  • लोटे में थोड़े से सफेद पुष्प अवश्य डालें। अपनी अनामिका उंगली में कुशा से बनी हुई पवित्री धारण करें
  • फिर अपने घुटने के बल बैठ जाएं व अपने बाएं हाथ में लोटे को ले लें उसके बाद अपने दाएं हथेली में  लोटे के जल को गिराए। फिर अंगूठे के माध्यम से जल का तर्पण करें। व जल चढ़ाते वक्त अपनी पितरों का नाम लेते हुए इस मंत्र का जाप करें-तस्मै स्वाधायै नमः। (अंगूठे के माध्यम से दिए गए जल को ही पितृ तीर्थ कहते हैं)।
  • जल देते वक्त अपने पितरों के नाम का उच्चारण करें जाने अनजाने हुई गलतियों की उनसे क्षमा अवश्य मांगें।
  • पितरों को जल कौन सी दिशा में देना चाहिए - pitaron ko jal kaun see disha mein dena chaahie
  • ध्यान रहे दक्षिण दिशा की तरफ मुंह करके ही अपने पितरों को जल देना है। क्योंकि दक्षिण दिशा पितरों की दिशा मानी जाती है।
  • जल किसी साफ-सुथरे बर्तन में गिराए उसके बाद उस जल को तुलसी के पौधे में या मदार के पौधे में डाल दें।
  • नोट – नीचे दिए हुए यूट्यूब वीडियो के माध्यम से आप पितरों को जल देने के सही तरीके को पूरी तरह से समझ सकते हैं कि लोटे से अंगूठे के माध्यम से किस प्रकार से जल गिराया जाता है यूट्यूब वीडियो नीचे दिया हुआ है –

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    पितरों को पानी देने का मंत्र / पितरों को किस दिशा में जल देना चाहिए – पितरों को शांत करने के लिए तथा पितरों की तुप्ती के लिए पितृपक्ष में पितरों को पानी देने का नियम हैं. ऐसा माना जाता है की पितृपक्ष में पितरों को मंत्र सहित सही दिशा में पानी दिया जाए. तो उनकी आत्मा को शांति मिलती हैं. और पितृ हमारे पर प्रसन्न होते हैं. तथा उनके आशीर्वाद की प्राप्ति होती हैं.

    पितरों को जल कौन सी दिशा में देना चाहिए - pitaron ko jal kaun see disha mein dena chaahie

    कई बार पितृदोष लगने की वजह से भी हमारे परिवार की शांति भंग हो जाती हैं. ऐसे पितृदोष को दूर करने के लिए पितृपक्ष में पितरों को पानी देने का नियम हैं.

    दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से पितरों को पानी देने का मंत्र बताने वाले हैं. इसके अलावा यह भी बताने वाले है की पितरों को किस दिशा में जल देना चाहिए. तथा इस टॉपिक से जुडी अन्य और भी जानकारी प्रदान करने वाले हैं. तो यह सभी महत्वपूर्ण जानकारी पाने के लिए आज का हमारा यह आर्टिकल अंत तक जरुर पढ़े.

    तो आइये हम आपको इस बारे में संपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं.

    Table of Contents

    • पितरों को पानी देने का मंत्र
      • माता को पानी देने का मंत्र
      • पिता को पानी देने का मंत्र
      • दादा को पानी देने का मंत्र
      • दादी को पानी देने का मंत्र
      • पितृ गायत्री मंत्र
    • पितरों को किस दिशा में जल देना चाहिए
    • पितरों को जल देने का समय
    • पितरों को जल देने का तरीका
    • निष्कर्ष

    पितरों को पानी देने का मंत्र

    पितृ हमारे माता-पिता, दादा-दादी कोई भी हो सकता हैं. अगर आप पितृ को पानी दे रहे हैं. तो नीचे दिए गए मंत्रो का जाप करते हुए. पितरों को पानी दे. जिससे उनकी आत्मा को शांति मिलेगी. और आपको उनके शुभ आशीर्वाद की प्राप्ति होगी.

    माता को पानी देने का मंत्र

    अगर आप अपनी माता को पानी दे रहे हैं. तो इस मंत्र का जाप करे.

    गोत्रे अस्मन्माता (अपनी माता जी का नाम) देवी वसुरूपास्त् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जल वा तस्मै स्वधा नमः,तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः।

    पिता को पानी देने का मंत्र

    अगर आप अपने पिता को पानी दे रहे हैं. तो इस मंत्र का जाप करे.

    गोत्रे अस्मतपिता (अपने पिता जी का नाम) शर्मा वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः।

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    दादा को पानी देने का मंत्र

    अगर आप अपने दादा को पानी दे रहे हैं. तो इस मंत्र का जाप करे.

    गोत्रे अस्मत्पितामह (अपने दादा जी का नाम) शर्मा वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः।

    दादी को पानी देने का मंत्र

    अगर आप अपनी दादी को पानी दे रहे हैं. तो इस मंत्र का जाप करे.

    गोत्रे पितामां (अपनी दादी का नाम) देवी वसुरूपास्त् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जल वा तस्मै स्वधा नमः,तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः।

    इस प्रकार से आप अपने रिश्तेदार को पानी देने के लिए मंत्र जाप कर सकते हैं. लेकिन ज्योतिष के अनुसार अगर आप अलग-अलग मंत्र जाप करने में असमर्थ हैं. तो सिर्फ एक मंत्र का जाप करके ही पितरों को पानी दे सकते हैं. जिसे पितृ गायत्री मंत्र के नाम से जाना जाता हैं.

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    पितृ गायत्री मंत्र

    ॐ पितृगणाय विद्महे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पितृो प्रचोदयात्। ॐ देवताभ्य: पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च। नम: स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नम:। ॐ आद्य-भूताय विद्महे सर्व-सेव्याय धीमहि। शिव-शक्ति-स्वरूपेण पितृ-देव प्रचोदयात्।

    यह मंत्र जाप आप अपने किसी भी पितृ के लिए कर सकते हैं.

    पितरों को जल कौन सी दिशा में देना चाहिए - pitaron ko jal kaun see disha mein dena chaahie

    मनमुटाव दूर करने का उपाय / रिश्तों में मिठास लाने के उपाय

    पितरों को किस दिशा में जल देना चाहिए

    ज्योतिष शास्त्र के अनुसार दक्षिण दिशा को पितृ की दिशा माना जाता हैं. इसलिए आपको भी पितरों को दक्षिण दिशा में जल देना चाहिए.

    पितरों को जल देने का समय

    पितरों को जल देने का सही समय प्रात:काल 11:30 बजे से 12:30 के बीच का होता हैं.

    पितरों को जल देने का तरीका

    पितरों को जल देने के लिए तांबे के लौटे में जल लेकर दक्षिण दिशा की तरफ मुंह करके ऊपर दिए गए मंत्र जाप करते हुए पितरों को जल देना चाहिए.

    पितरों को जल कौन सी दिशा में देना चाहिए - pitaron ko jal kaun see disha mein dena chaahie

    पूजा सफल होने के संकेत क्या होते है

    निष्कर्ष

    दोस्तों आज हमने आपको इस आर्टिकल के माध्यम से पितरों को पानी देने का मंत्र बताया है. इसके अलावा यह भी बताया की पितरों को किस दिशा में जल देना चाहिए. तथा इस टॉपिक से जुडी अन्य और भी जानकारी प्रदान की हैं.

    हम उम्मीद करते है की आज का हमारा यह आर्टिकल आपके लिए उपयोगी साबित हुआ होगा. अगर उपयोगी साबित हुआ हैं. तो आगे जरुर शेयर करे. ताकि अन्य लोगो तक भी यह महत्वपूर्ण जानकारी पहुंच सके.

    दोस्तों हम आशा करते है की आपको हमारा यह पितरों को पानी देने का मंत्र / पितरों को किस दिशा में जल देना चाहिए आर्टिकल अच्छा लगा होगा. धन्यवाद

    पूर्वजों को पानी कैसे दिया जाता है?

    पितृ पक्ष में पितरों को पानी कैसे दें? श्राद्ध करते समय पितरों का तर्पण भी किया जाता है यानी पिंडों पर अंगूठे के माध्यम से जलांजलि दी जाती है. मान्यता है कि अंगूठे से पितरों को जल देने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार हथेली के जिस हिस्से पर अंगूठा होता है, वह हिस्सा पितृ तीर्थ कहलाता है.

    पितरों को जल देते समय क्या बोलना चाहिए?

    जल देते समय ध्यान करें कि वसु रूप में मेरे पिता जल ग्रहण करके तृप्त हों। इसके बाद पितामह को जल जल दें। अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें, गोत्रे अस्मत्पितामह (पितामह का नाम) शर्मा वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः। इस मंत्र से पितामह को भी 3 बार जल दें।

    पितरों को पानी कौन कौन दे सकता है?

    कौन कर सकता है पितरों का श्राद्ध या तर्पण हिंदू धर्म के अनुसार, घर के मुखिया या प्रथम पुरुष अपने पितरों का श्राद्ध कर सकता है। अगर मुखिया नहीं है, तो घर का कोई अन्य पुरुष अपने पितरों को जल चढ़ा सकता है। इसके अलावा पुत्र और नाती भी तर्पण कर सकता है। शास्त्रों के अनुसार, पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए।

    पितरों को तिलांजलि कैसे दी जाती है?

    कपालक्रिया व चिता की प्रदक्षिणा तथा तिनका तोड़ने के बाद आए हुए सभी लोग सरोवर व अन्य जल युक्त स्थान पर जाकर गो-गोबर से हाथ धोकर, वस्त्रों सहित स्नान करके, मृतक प्राणी का ध्यान करते हुए, तिलों के साथ जल-अंजली देने को तिलांजलि कहते हैं।