समाजशास्त्र एक विज्ञान है कि नहीं अथवा समाजशास्त्र की प्रकृति क्या है? यह ऐसे यक्ष प्रश्न है। जो हर किसी समाजवेता के मन में अक्सर आ जाते हैं। Show
समाजशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है, और सामाजिक विज्ञान के संदर्भ में भी विद्वानों में एकराय नहीं है कि सामाजिक विज्ञान की प्रकृति कैसी होगी ? कुछ विद्वानों का तर्क है कि समाजशास्त्र एक विज्ञान है। क्योंकि इसके द्वारा सार्वभौमिक नियमों एवं सिद्धांतों का प्रतिपादन किया जा सकता है। जबकि दूसरी ओर समाजशास्त्र की वैज्ञानिकता को लेकर अधिकांश स्माजवेत्ता संशकित भी है। समाजशास्त्र एक दृश्टिकोणइसी संदर्भ में टी.बी.बोटोमोर ने भी लिखा है कि “सामाजिक विज्ञान, विज्ञान नहीं है, इस सम्बन्ध में यह तर्क दिया जा सकता है कि समाजशास्त्र के द्वारा प्राकृतिक नियमों से आच्छादित कोई चीज पैदा नहीं किया जा सकता है।” यह भी सच है कि कुछ विद्वानों के द्वारा जो समाजशास्त्र को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से नहीं देखते हैं जो यह नहीं समझ पाते है कि सामाजिक घटनाओं से सम्बन्धित सिद्धांतों और नियमों के प्रतिपादन में समाजशास्त्र की कितनी अहम भूमिका हो सकती है ! वह अक्सर समाजशास्त्र की वैज्ञानिक प्रगति पर सवालिया निशान खड़ा करते रहते हैं। क्योंकि इस प्रकार के समर्थक विज्ञान की वास्तविकता को नहीं समझ पाते हैं। हालांकि ऐसे समाजवेत्ताओं व बुद्धिजीवियों की भी कमी नहीं है। जो समाजशास्त्र की भूमिका से भलीभांति परिचित भी हैं,और इसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण प्रदान करने के लिए तर्कों के माध्यम से अपनी बात को सही भी ठहराते हैं। विज्ञान का अर्थसमाजशास्त्र की प्रकृति क्या है? क्यों विद्वानों में समाजशास्त्र की प्रकृति को लेकर मतभेद हैं? यह सब जानने के लिए जरूरी है कि सबसे पहले विज्ञान की वास्तविकता को समझ लिया जाए। सामान्यतया अधिकांश विद्वान विज्ञान को एक अद्वितीय अध्ययन सामग्री समझ बैठते हैं। और यह भी तर्क दिया जाता है कि भौतिक शास्त्र और रसायन शास्त्र जैसे प्राकृतिक विज्ञान को विज्ञान इस आधार पर माना जाता है कि इन विज्ञानों के द्वारा रसायनों एवं भौतिक व प्राकृतिक पदार्थों का गहनता से अध्ययन किया जाता हैं। कुछ इससे भी आगे निकल कर टेक्नोलॉजी और इंजीनियरिंग को भी एक विज्ञान ही समझ बैठे हैं। जबकि यह यथार्थ रूप से सत्य प्रतीत नहीं होता है। यह एक प्रकार की भ्रांतियां ही होती है। विज्ञानका क्या हैऔर इस प्रकार की उपर्युक्त भ्रांतियां सार्वभौमिक रूप से मिथ्य होती है। यदि देखा जाए तो विज्ञान शब्द का अर्थ एक विशेष प्रकार की पद्धति से होता है ना की किसी विषय की अध्ययन सामग्री या साहित्य से, इस संदर्भ में यह कहा जा सकता है कि कोई भी साहित्य ज्ञान सामग्री, वेज्ञानिक हो सकती है। विज्ञानका वास्तविक अर्थयदि किसी अध्ययन सामग्री को वैज्ञानिक पद्धतियों के माध्यम से तैयार किया गया हो। इस सम्बन्ध में कार्ल पीयरसन ने खूब लिखा है कि सभी विज्ञानों की पारस्परिक एकता उसके द्वारा अपनाई गई वैज्ञानिक पद्धति से है। उसके अध्ययन से संबंधित साहित्य से नहीं। इसी प्रकार लुंडवर्ग महोदय ने भी विज्ञान को बहुत ही स्पष्ट शब्दों में लिखा है कि “क्षेत्र विशेष के लिए विज्ञान का अर्थ यह हो सकता है कि संबंधित क्षेत्र का अध्ययन कुछ निर्धारित नियमों व सिद्धांतों के अनुरूप अथवा वैज्ञानिक पद्धति के अनुरूप किया गया हो” विज्ञान की वास्तविकताइस प्रकार से कहा जा सकता है कि 1 कोई भी ज्ञान या साहित्य जो क्रमबद्ध हो। 2 जिसे किसी वैज्ञानिक पद्धति के माध्यम से प्राप्त किया गया हो। 3 ऐसा ज्ञान व साहित्य निश्चित ही विज्ञान होगा। जहां तक की वैज्ञानिक पद्धति की बात है तो श्रीमान लुण्डवर्ग महोदया ने कहा है कि वैज्ञानिक पद्धति को व्यवस्थित, निरीक्षण,एवम वर्गीकरण और विश्लेषण है। विज्ञानिक पद्धति की प्रमुख विशेषता है।
विज्ञान की प्रमुख विशेषता1 विज्ञानिक पद्धतियों का प्रयोग 2 निरीक्षण द्वारा तथ्यों का संग्रहण 3 तथ्यों का विश्लेषण 4 क्या है का वर्णन 5 कार्यकाल संबंधों की स्थापना एवं उनकी व्याख्या 6 सिद्धांतों की पुनर परीक्षा 7 भविष्यवाणी करना समाजशास्त्र क्या एक विज्ञान है।समाजशास्त्र के विज्ञान होने के समर्थन में निम्न रूप से तथ्यों का उल्लेख किया जा सकता है। वैज्ञानिक पद्धतियों का उपयोग में लाया जाता है।समाजशास्त्र को विज्ञान मानने वाले विद्वानों का प्रथम तर्क है कि, समाजशास्त्र में सामाजिक घटनाओं के अध्ययन में विभिन्न वैज्ञानिक पद्धतियों को उपयोग में लाया जाता रहा है। प्राकृतिक विज्ञानों (रसायन भौतिक) की तरह ही समाजशास्त्र ने भी अपनी अध्ययन सामग्री हेतु विभिन्न वैज्ञानिक पद्धतियों का प्रतिपादन किया है। जिनमें से कुछ इस तरह से है। तुलनात्मक पद्धति,सामाजिक निरीक्षण पद्धति, समाजमिति, आगमन और निगमन पद्धति,व्यक्तिगत जीवन अध्ययन पद्धति, सामाजिक सर्वेक्षण पद्धति इत्यादि चूंकि सामाजिक घटनाओं या सम्बंधित अध्ययन सामग्री को जुटाने में वैज्ञानिक पद्धतियों का सदुपयोग किया जाता है।अतः समाजशास्त्र अपने आप में एक विज्ञान है। समाजशास्त्र में निरीक्षण द्वारा तथ्यों का संकलन किया जाता है।यह सच है कि समाजशास्त्र एक नवीन विषय है। फिर भी समाजशास्त्र के द्वारा ऐसी पद्धतियों को विकसित किया गया है। जिससे काल्पनिक एवं दार्शनिक विचारों को अधिक तवज्जो नहीं मिल पा रही है। इसका मुख्य कारण यह भी है कि तथ्यों का संकलन निरीक्षण के द्वारा किया जाता है। इसे एक उदाहरण के द्वारा भी समझा जा सकता है, माना कि किसी समाजशास्त्री के द्वारा बाल अपराध की समस्या का अध्ययन करना है। तो समाजशास्त्री बाल अपराधी के तथ्यों को निरीक्षण के माध्यम से ही संकलित करने का प्रयत्न करेगा। नकी अटकल पच्छू विचारों के द्वारा प्राप्त करेगा। सामाजिक शास्त्र में संकलित सूचनाओं का विश्लेषण एवं वर्गीकरण किया जाता है।एक नवीन विषय होने के नाते समाजशास्त्र में न केवल सूचनाओं का वैज्ञानिक पद्धति के द्वारा निरीक्षण वह संकलित किया जाता है। संकलित सूचनाओं से निष्पक्ष निष्कर्ष तक भी पहुंचा जाता है। वरन संकलित सूचनाओं को विश्लेषक आवश्यकतानुसार वर्गीकृत किया जाता है। और समाजशास्त्र की यही विशेषता उसे विज्ञान की श्रेणी में लाकर खड़ा कर देती है। कार्य कारण सम्बन्धों की व्याख्या करता है।समाजशास्त्र में यद्यपि निरीक्षण, विवेचना एवं वर्गीकरण किया जाता है। परंतु यह नाकाफी नहीं है। इसलिए समाजशास्त्र में कार्य कारण सम्बन्धों की स्थापना भी की जाती है। क्योंकि घटनाएं अपने आप घटित नहीं होती, बल्कि हर घटित घटनाओं के पीछे एक उसका कारण भी अवश्य होता है। और यही वह कारण है जिसे समाजशास्त्र खोजने का प्रयास करता है। यदि भारत वर्ष में जनसंख्या अधिक है, तो उसके पीछे भी कोई न कोई एक कारण अवश्य ही होगा। अतः सामाजिक घटनाओं का या समस्याओं के मध्य छिपे कारणों को खोज निकाला समाजशास्त्र का प्रमुख कार्य होता है। क्या है का वर्णन।समाजशास्त्र में क्या अच्छा है, और क्या बुरा है तथा क्या होना चाहिए। आदि सवालों का जिक्र नहीं किया जाता है। वह क्या है, का अध्ययन किया जाता है। अथवा समाजशास्त्र एक ऐसा विषय है, जिसमें जैसा है वैसा ही प्रस्तुत किया जाता है। उसमें किसी भी प्रकार की भ्रांत सूचना या गलत डेटा का उपयोग नहीं किया जाता है। इसीलिए यह समाजशास्त्र की प्रकृति की एक अन्यनय विशेषता है।इसे एक उदाहरण के द्वारा भी समझा जा सकता है। यदि भारत में जाति प्रथा के ऊपर अनुसन्धान करना है। तो जिस रूप में अनुसन्धान किया जाना है।उसे उसी रूप में अध्ययन किया जाएगा, ना की जाति प्रथा कैसी है,अच्छी है,या बुरी है। प्रतिपादित नियमों की पुनर परीक्षा भी सम्भव है।यह वैज्ञानिक पद्धतियों की महत्वपूर्ण विशेषता होती है। क्योंकि वैज्ञानिक पद्धति के द्वारा प्रतिपादित नियमों व सिद्धांतों की पूर्व परीक्षा करना संभव है। आधुनिक युग में जिसे तार्किक युग के नाम से भी जाना जाता है। अर्थात तर्क के आधार पर नियमों व सिद्धांतों का प्रतिपादन किया जाता है। उसी पर विश्वास भी किया जाता है। इसीलिए समाजशास्त्र के तहत पूर्व में स्थापित नियमों व सिद्धांतों पर आंख बंद कर विश्वास नहीं किया जाता है। बल्कि उन स्थापित नियमों व सिद्धांतों को पुनः परीक्षा की कसौटी पर खरा उतरना पड़ता है,अन्यथा मैं उनको स्वीकार नहीं किया जाता है। भविष्यवाणी करना भी संभव है।समाजशास्त्र चूंकि एक विज्ञान है। अतः इसके द्वारा किसी भी सामाजिक घटना की भविष्यवाणी कि जा सकती है। अथवा किसी भी सामाजिक घटना का वर्तमान के संदर्भ में परीक्षण कर समाजशास्त्री अनेक प्रकार की भविष्यवाणी करने में सक्षम हो सकता है। जैसे कीस परस्थितियों में व्यक्तिगत विघठन संभव हो सकता है। किन दशाओं में जाति प्रथा को कमजोर किया जा सकता है इत्यादि। वास्तव में पूर्व से निर्धारित विज्ञान भविष्य की दृष्टि से विज्ञान की कसौटी है। समाजशास्त्र भी इस तरह की कसौटी में हमेशा की तरह खरा उतरता आया है। उपर्युक्त विवेचना से प्रतीत होता है कि समाजशास्त्र एक ऐसा विज्ञान है,जिसमें वैज्ञानिकता की वे सारी विशेषताएं किसी न किसी रूप में विद्यमान है। पुनःसच है कि वैज्ञानिक पद्धति यही सामाजिक अध्ययन का आधार स्तंभ है। और इन्हीं तथ्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि, समाजशास्त्र निश्चित रूप से एक विज्ञान है। आपको यह भी पढ़ना चाहिए
समाजशास्त्र विज्ञान क्यों नहीं हैसोशियोलॉजी के विज्ञानिक प्रकृति के विरुद्ध आपत्तियों के सन्दर्भ में मै पहले बता चुका हूं कि, समाजशास्त्री समाजशास्त्र को विज्ञान मानने और ना मानने में दो विचारधारा रखते हैं। पहली यह है कि समाजशास्त्र एक विज्ञान है। जबकि दूसरी विचारधारा के विद्वानों का मानना है कि, समाजशास्त्र एक विज्ञान नहीं हो सकता है। दोनों तरह के समर्थकों ने अपने अपने पक्ष में तर्क भी दिए हैं। आइए देखते हैं कि समाजशास्त्र विज्ञान क्यों नहीं हो सकती है 1 सामाजिक घटनाओं की जटिलता। 2 वस्तुनिष्ठता का अभाव पाया जाता है। 3 सामाजिक घटनाओं में सार्वभौमिक गुणों का अभाव पाया जाता है। 4 समाजशास्त्र में सामाजिक घटनाओं को नाप नहीं सकते। 5 सोशियोलॉजी में प्रयोगशाला का अभाव होता है। 6 भविष्यवाणी करने में सक्षम नहीं है। सामाजिक घटनाओं की जटिलतायह सच है कि सामाजिक घटनाएं जटिलता से परिपूर्ण होती है। कोई भी मानवीय सम्बन्ध या व्यवहार विभिन्न सामाजिक, आर्थिक एवं मनोवैज्ञानिक और भौतिक जैसे कारकों से प्रभावित हो सकते हैं। परंतु यह कहना भी उतना ही जटिल है कि, उपर्युक्त कारणों से किस कारण के द्वारा मानवीय व्यवहार अधिक प्रभावित हुआ हैं। इसकी वजह यह भी हो सकती है कि, यह कारक गतिशील होते हैं। जबकि दूसरी तरफ प्राकृतिक विज्ञानों के साथ इस प्रकार की समस्या नहीं होती है। परिणाम स्वरुप यह एक सबसे बड़ा कारण है कि कुछ समाजशास्त्री या विद्वान साथियों के द्वारा समाजशास्त्र को विज्ञान नहीं माना जाता है। परंतु यह भी सच है समाजशास्त्र अभी विकास की प्रथम सोपान में खड़ा है। जैसे-जैसे समाजशास्त्र में इससे सम्बंधित अध्ययन पद्धतियों का एवं यंत्रों का विकास होता रहेगा,तो सामाजिक घटनाओं की जटिलता भी कम होती चली जाएगी। अतः सामाजिक जटिलताओं को समाजशास्त्र के वैज्ञानिक प्रगति में बाधा नहीं वरन एक अवसर मानना चाहिए। समाजशास्त्र में वस्तुनिष्ठता की कमीअनेक विद्वानों का यह मानना है कि, समाजशास्त्र में वस्तुनिष्ठता नहीं पाई जाती है। इसमें से प्रमुख तर्क जो रखा जाता है। वह है कि अनुसंधानकर्ता स्वयं एक मनुष्य है। और एक मनुष्य होने के नाते वह जिस मनुष्य या समाज को अपना अध्ययन का विषय बनाता है। वह खुद भी इन सब का एक भाग होता है।अन्य लोगों की तरह उसके भी कुछ भावनाएं, पक्षपात पूर्ण विचार, राग द्वेष होते हैं। जबकि प्राकृतिक विज्ञान के साथ संभवत ऐसा कम होता है। क्योंकि एक समाजशास्त्री किसी समाज की संस्थाओं यथा धर्म, परंपराएं, मूल्यों,परिवार इत्यादि का अध्ययन करता है। और खुद इन सब संस्थाओं में प्रतिभाग कर चुका होता है। इसलिए समाजशास्त्र के अन्दर वस्तुनिष्ठता का आना थोड़ा मुश्किल हो सकता है। सामाजिक घटनाओं में सार्वभौमिक गुणों का अभावसोसियल घटनाओं की प्रकृति गतिशील रहती है। यह जरूरी नहीं है कि, दो समान घटनाएं समान कारणों से ही हो। परंतु प्राकृतिक विज्ञान में सार्वभौमिकता का गुण विद्यमान होता है। जैसे आग में घी डालेंगे तो वह जल उठेगा।वहीं सामाजिक घटनाओं में यदि किसी एक व्यक्ति को थप्पड़ मारते हैं। तो सामने वाले का क्या प्रतिक्रिया होगी यह हमें नहीं मालूम होता है। ऐसे बहुत सारे उदाहरण है जिन से यह साबित किया जा सकता है कि समाजशास्त्र में सामाजिक घटनाओं में सार्वभौमिकता का अभाव पाया जाता है। अतः समाज शास्त्र को विज्ञान कहा जाना थोड़ा मुश्किल प्रतीत होता है। घटनाओं का परिमाप नहीं किया जा सकता है।हालांकि सामाजिक घटनाएं अपने आप में अमूर्त होती है। इसीलिए सामाजिक घटनाओं की परिमाप नहीं किया जा सकता है। यही एक कारण है कि समाजशास्त्र में वास्तविकता नहीं आ पाती है। जैसे माता-पिता और बच्चों के सम्बन्ध को या संघर्ष को आत्मसात या सहयोग इत्यादि के बारे में बातचीत ही की जा सकती है। परंतु पैमानों में या अंको में उनको प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है। यही वह गुण है जो समाजशास्त्र को विज्ञान ना होने के पक्ष में जाती है। समाजशास्त्र में प्रयोगशाला नहीं होती है।सोशियोलॉजी विज्ञान नहीं है।यह बात और भी अधिक बलवती हो जाती है। जब बात प्रयोगशाला की होती है और यह सच भी है कि, समाजशास्त्र में प्राकृतिक विज्ञान की तरह कोई प्रयोगशाला नहीं होती है। यदि हमें सास बहू के रिश्तो को अध्ययन करना होगा तो उसे हम किसी प्रयोगशाला का उपयोग कर संभवत नहीं कर सकते हैं। वहीं यदि किसी पक्षी पर यह अध्ययन करना हो कि उसपर ठंड का क्या प्रभाव होगा तो इसे हम एक प्रयोगशाला के माध्यम से भी आसानी से अध्ययन किया जा सकता है। भविष्यवाणी नहीं की जा सकती हैप्राकृतिक विज्ञान की भांति समाजशास्त्र में भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है।क्योंकि सामाजिक घटनाओं के सम्बन्ध में व्यक्ति के अंतरंग या संवेदनाओं का पता लगा पाना संभव नहीं हो सकता है। दूसरा सामाजिक घटनाएं अलग-अलग स्थानों, समय एवं स्वरूपों में पाई जाती है। साथ ही सामाजिक घटनाएं पहली बार जिस स्वरुप में होती है,वही कुछ समय बाद भिन्न स्वरूप में प्रकट होने लगती है। जिसके कारण सामाजिक घटनाओं की भविष्यवाणी करना कठिन होता है। निष्कर्षउपर्युक्त विवेचना से स्पस्ट हो जाता है की, समाजशास्त्र एक विज्ञान नहीं है इस सम्बन्ध में जो आरोप लगाए गए है। उन में इतना दम नहीं की समाजशास्त्र को विज्ञान न माना जाये।ये आरोप लगाने वाले विद्वान वैज्ञानिक प्रकृति को समझ ही नहीं पाए। प्रसिद्ध विद्वान कार्ल पियर्सन ने कहा की कोई भी एक व्यक्ति जो किसी भी प्रकार सूचनाओं को पहले, वर्गीकरण करता है। सूचनाओं के पारस्परिक सम्बन्धों का निरिक्षण करता है। उनका विश्लेषण करता है। तो, वह वैज्ञानिक पद्धति का उपयोग कर रहा है। और वह व्यक्ति एक वैज्ञानिक है। इस प्रकार से आसानी से कहा जा सकता है की समाजशस्त्र एक वास्तविक विज्ञान है। समाजशास्त्र की प्रकृति क्या है? SOCIOLOGY के सामाजिक विज्ञान के संदर्भ में भी विद्वानों में एकराय नहीं है कि सामाजिक विज्ञान की प्रकृति कैसी होगी ? कुछ विद्वानों का तर्क है कि समाजशास्त्र एक विज्ञान है। समाजशास्त्र क्या एक विज्ञान है? निश्चित रूप से समाजशास्त्र एक विज्ञान है,क्यूंकि इसमें सामाजिक घटनाओं के अध्ययन में विभिन्न वैज्ञानिक पद्धतियों को उपयोग में लाया जाता,तथा निरीक्षण द्वारा तथ्यों का संकलन किया जाता है.साथ ही संकलित सूचनाओं का विश्लेषण एवं वर्गीकरण किया जाता है,क्या है का वर्णन क्या जाता है,और सामाजिक घटनाओ की भविष्यणवाणी की जा सकती है। समाजशास्त्र एक विज्ञान क्यों है समझाइए?. समाजशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है, प्राकृतिक विज्ञान नहीं - समाजशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है क्योंकि इसकी विषयवस्तु मौलिक रूप से सामाजिक है अर्थात् इनमें समाज, सामाजिक घटनाओं सामाजिक प्रक्रियाओं, सामाजिक संबंधों तथा अन्य सामाजिक पहलुओं एवं तथ्यों का अध्ययन किया जाता है।
समाजशास्त्र की परिभाषा दीजिए क्या समाजशास्त्र एक विज्ञान है?अन्य शब्दों में, समाजशास्त्र वह विज्ञान है जो समाज व्यवस्था से सम्बन्धित विभिन्न पक्षों का अध्ययन करता है। उपर्युक्त सभी परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि समाजशास्त्र सम्पूर्ण समाज का एक समग्र इकाई के रूप में अध्ययन करने वाला विज्ञान है। इसमें सामाजिक सम्बन्धों का व्यवस्थित अध्ययन किया जाता है।
विज्ञान क्या है क्या आप समाजशास्त्र को विज्ञान मानते हैं?सामाजिक घटनाओं का अध्ययन करने के कारण समाजशास्त्र एक निरपेक्ष विज्ञान है। समाजशास्त्र सामाजिक घटनाओं का अध्ययन, विश्लेषण एवं निरूपण करता है अत: समाजशास्त्र को एक विशुद्ध विज्ञान माना जा सकता है। वैज्ञानिक एवं तार्किक आधारों का अध्ययन करने के कारण समाजशास्त्र को वैज्ञानिक दृष्टिकोण का माना जाता है।
समाजशास्त्र समाज का एक विज्ञान है यह कथन किसका है?सामाजिक वैज्ञानिक पद्धतियों की सीमा का भी व्यापक रूप से विस्तार हुआ है। अर्थ में समाजशास्त्र वह विषय विज्ञान है जिसमें समाज का अध्ययन किया जाता है। इसलिए रॉबर्ट ने समाजशास्त्र को दो भाषाओं की दोगली संतान कहां है समाजशास्त्र को समाज और विज्ञान के अर्थ द्वारा समझा जा सकता है ।
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