बिहार में पटना के निकट गर्त को क्या कहते हैं - bihaar mein patana ke nikat gart ko kya kahate hain

पटना : बिहार पेपर सरकाओ आयोग (BPSC), बिहार सेटिंग समटाइम आयोग (BSSC)। जरा ठहरिये। कर्मचारियों और अधिकारियों को बहाल करने वाली इन दोनों संस्थाओं का ये नाम हमने नहीं दिया है। ये नाम अभ्यर्थियों ने दिया है। जो वर्षों तक लालटेन की रोशनी में उम्मीदों का खून जलाकर बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) और बिहार कर्मचारी चयन आयोग (BSSC) की तैयारी करते हैं। बिहार सरकार के अंदर आने वाली इन दोनों संस्थाओं की विश्वसनीयता इन दिनों खतरे में है। खतरे में है दोनों आयोगों की आबरू। सवाल उठ रहे हैं आयोग की कार्यशैली पर। अभ्यर्थियों का गुस्सा चरम पर है। आंदोलन, धरना-प्रदर्शन और विरोध का सिलसिला जारी है। सोशल मीडिया से लेकर सड़क तक अभ्यर्थी आंदोलन करते हैं। पेपर लीक जैसी घटना पर खुद के बाल नोचते हैं। बिहार सरकार से कार्रवाई की उम्मीद करते हैं। फिर, इस आस में शांत हो जाते हैं कि अगली बार की परीक्षा में पेपर लीक नहीं होगा। वे अधिकारी बनकर बिहार सरकार की सेवा करेंगे। हालांकि, ऐसा हो नहीं पाता। पेपर लीक का कलंक इन अभ्यर्थियों के भविष्य पर ग्रहण लगा जाता है। लाखों अभ्यर्थी एक बार फिर निराशा की गर्त में चले जाते हैं। सिस्टम दोबारा पहले वाली पटरी पर आ जाता है। सरकारी फाइलों में कार्रवाई 'क' से आगे नहीं बढ़ती। एक बार फिर छात्र तैयारी में जुट जाते हैं। कुछ दिनों बाद सोशल मीडिया पर आयोग की ओर से ली जा रही किसी और परीक्षा का पेपर तैरने लगता है।

बिहार पेपर सरकाओ आयोग

उपरोक्त बातें नियती है। ये सच्चाई है। बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) और बिहार कर्मचारी चयन आयोग (BSSC) की। पेपर लीक होने के बाद हाय-तौबा मच जाती है। गिरफ्तारियों की बाढ़ सी आ जाती है। सरकार दोषियों को पकड़ने, सजा देने के साथ फिर से पेपर लीक नहीं होने देने का दावा किया जाता है। सिस्टम अपने पुराने ढर्रे पर चलने लगता है। उसके बाद सिस्टम मानों संदेश देने लगता है। हमारी फाइलों में तुम्हारी समस्या का हल हो रहा है। मगर ये संदेश झूठे होते हैं, दावा हवा में किया जाता है। इन सबके बीच सपने पर कुठाराघात होने की वजह से जो कोपभवन में चले जाते हैं, वे बिहार के लाखों अभ्यर्थी होते हैं। जिनकी उम्मीदें और सपनों की उड़ान अपनी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी पर टीकी होती है। अभ्यर्थियों के पिता की फटी धोती याद आने लगती है। मां का मजबूर चेहरा सामने आता है। गांव की गिरवी रखी जमीन गम में डूबो देती है। छोटे भाई-बहन का चेहरा चैन से जीने नहीं देता है। अभ्यर्थी मुश्किलों में अपने घर से दूर राजधानी पटना और बिहार के कई शहरों में अकेले रहकर परीक्षाओं की तैयारी करते हैं। जब पूरी तैयारी के साथ सेंटर पर पहुंचते हैं, पता चलता है उनके सपनों से भरी बाल्टी में किसी ने छेद कर दिया है। पेपर लीक की इस कलंक कथा के शिकार मात्र अभ्यर्थी नहीं होते। उनका पूरा परिवार होता है। एक बार फिर पूरे परिवार को सालों और महीनों तक इंतजार की गर्त में जाना पड़ता है।

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दूसरे ग्रह से नहीं आते हैं आरोपी !

पेपर लीक का ये खेल किसी दूसरे ग्रह में नहीं होता? इसके गुनहगार किसी गांव में नहीं पाये जाते? आरोपी आसमान से नहीं टपकते? साजिश करने वाले समंदर पार से नहीं आते? पेपर लीक की प्लानिंग और प्लॉटिंग करने वाले प्लूटो ग्रह के निवासी नहीं हैं? पेपर लीक का पाप बिहार की राजधानी पटना की धरती से किया जाता है। लाखों अभ्यर्थियों के भविष्य को पलीता चंद लोग लगाते हैं। विश्वस्त सूत्रों की मानें, तो पेपर लीक वाले कलंक कथा की शुरुआत दोनों आयोगों के कार्यालय से होती है। परीक्षा से पहले माफिया की ओर ऑफर आता है। फिर शुरू हो जाती है, पेपर लीक करने की वो अंतहीन साजिश, जिसके दायरे में लाखों छात्रों का भविष्य आ जाता है। सूत्रों के मुताबिक आयोग के कर्मचारियों से संपर्क करने वाले बड़े दलाल और सेटर होते हैं। वहां परीक्षा केंद्र मैनेज करने से लेकर अभ्यर्थी की संख्या के आधार पर बातचीत की जाती है। ये डील करोड़ों रुपये में होती है। उसके बाद इसमें मिलीभगत करने वाले कर्मचारियों का हिस्सा निर्धारित होता है। सूत्रों ने बताया कि गड़बड़ उस वक्त होती है, जब निर्धारित राशि नहीं मिलती। राशि के वितरण में घालमेल हो जाता है। उसके बाद आयोग और सेटर की बीच मुख्य भूमिका निभाने वाला पेपर को वायरल कर देता है ताकि पूरा खेल ही बिगड़ जाए।

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निजी कॉलेज सेटर बनते हैं !

सूत्रों की मानें, तो इसमें विभिन्न जिलों में स्थित परीक्षा केंद्रों की भी हिस्सेदारी होती है। जैसे बीपीएससी की 67वीं पीटी की परीक्षा का पेपर गया सेंटर से लीक हुआ था। इस मामले में आर्थिक अपराध इकाई ने गया के डेल्हा रामशरण सिंह इवनिंग कॉलेज के प्राचार्य सह केंद्राधीक्षक शक्ति कुमार को गिरफ्तार किया। ईओयू के मुताबिक शक्ति कुमार ने ही पेपर के सेट सी को स्कैन कर व्हाट्सएप पर वायरल कर दिया था। ईओयू ने गिरफ्तारी के बाद जानकारी साझा करते हुए बताया था कि 37 वर्षीय शक्ति कुमार गया के डेल्हा के न्यू कॉलोनी का रहने वाला है। उसने किराये के मकान में रामशरण सिंह इवनिंग कॉलेज खोला था। इस कॉलेज में वो खुद मुख्तार था और प्रिंसिपल के पद पर बैठा हुआ था। उसने सेटिंग से 2011 में कॉलेज का निबंधन करा लिया था। शक्ति कुमार ने आर्थिक अपराध टीम को ये बताया था कि 2018 में उसके कॉलेज के निबंधन को खत्म कर दिया गया था। इसके बाद भी वो बीपीएससी कार्यालय के अधिकारियों से सेटिंग कर प्रतियोगी परीक्षाओं का सेंटर अपने कॉलेज में लेता था। इस सेटिंग में कई लोग शामिल होते थे, जिसमें करोड़ों का वारा-न्यारा किया जाता था। बीपीएससी और बीएसएससी पेपर लीक होने से नाराज छात्र नेता दिलीप कहते हैं कि इसमें पूरा सिस्टम शामिल हैं। दिलीप कहते हैं कि अन्य राज्यों के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी, बिहार के आईएएस अधिकारी और बीपीएससी के वरिष्ठ अधिकारियों के अलावा इस कांड में राज्य के राजनेता भी शामिल हैं। दिलीप ने कहा कि उन्हें जांच टीम पर भरोसा है, लेकिन राज्य सरकार पर नहीं। राज्य सरकार बीच में ही जांच रोकने का काम कर रही है।

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ऐसे होता है पेपर लीक !
सूत्रों की मानें, तो पेपर लीक होने का कारण सिर्फ पैसा होता है। पैसे के लेन-देने में हुई गड़बड़ी के बाद एक गुट पूरी परीक्षा को रद्द कराने पर अमादा हो जाता है। जानकारी के मुताबिक होता ये है कि सेटर की ओर से अभ्यर्थियों से पहले मन माफिक पैसे की वसूली कर ली जाती है। उसके बाद सौदेबाजी बीपीएससी के अंदर होती है। सौदेबाजी तय होने के बाद परीक्षा से एक दिन पहले अभ्यर्थियों तक प्रश्न पत्र पहुंच जाते हैं। कभी-कभार ये परीक्षा से एक या दो घंटे पहले पहुंचते हैं। उस वक्त तक पैसे वाले अभ्यर्थी फिफ्टी परसेंट रकम सेटर को दे चुके होते हैं। ये पैसा कई निजी कॉलेजों में बने केंद्र और उसके मुखिया के अलावा बीपीएससी के अधिकारियों और कर्मचारियों की जेब में पहुंच जाते हैं। सूत्र बताते हैं कि गड़बड़ी दूसरे किस्त के बाद शुरू होती है। दूसरी किस्त का भुगतान पेपर मिलते ही करना होता है। जानकारी के मुताबिक इस किस्त की रकम के बंटवारे के दौरान सेटर कई बार गड़बड़ कर देते हैं। पेपर को सेटर के मोबाइल नंबर तक भेजने वाले कर्मचारी को बीपीएससी से जुड़े माफिया का संदेश मिलता है। उसके बाद वो पेपर वायरल कर देता है। इसके अलावा ये भी जानकारी मिली कि अभ्यर्थियों में से कई छात्र पेपर मिलने के बाद किसी और से सौदेबाजी कर देते हैं। सामने वाला सबकुछ क्लियर होने के बाद पैसे देने की बात करता है। जानकारी के मुताबिक इसी तरह से ये चेन इतनी लंबी हो जाती है कि कोई न कोई अभ्यर्थी भी पेपर वायरल कर देता है। जिसके बाद सरकार को अंततः परीक्षा को रद्द करना पड़ता है।

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लालच निगल रही जिंदगी
दिलीप ने कहा कि उन्हें जान का खतरा भी है। उन्होंने शिक्षा माफिया के साथ बहुत बड़े सेटरों के गिरोह से पंगा लिया है। उनके साथ कुछ भी हो सकता है। दिलीप ने स्वीकार किया कि यदि वो पैसे के लालची होते, तो अब तक कई लोगों की नौकरी लगा चुके होते। छात्र नेता ने बताया कि बिहार के लाखों छात्रों के भविष्य को बर्बाद किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि उनकी मांग है कि पूरे मामले की जांच सीबीआई से कराई जाए, वरना वे लोग बड़ा आंदोलन करने को मजबूर हो जाएंगे। दिलीप ने एनबीटी ऑनलाइन से बातचीत करने के दौरान खुलासा करते हुए कहा कि बीपीएससी के बड़े अधिकारी छात्रों से नहीं मिलते। राज्य सरकार बदनाम लोगों कई आयोगों का अध्यक्ष बना देती है। उसके बाद आयोग का पूरा तंत्र इस खेल में शामिल हो जाता है। दिलीप ने कहा कि डीएसपी रंजीत ने अपने कई रिश्तेदारों को बिहार सरकार में ऑफिसर की नौकरी लगाई। ये जांच में स्पष्ट होने के बाद भी कार्रवाई सुस्त चल रही है। दिलीप के साथ अन्य छात्रों ने भी मांग की और कहा कि इस मामले की सीबीआई जांच की जाए, वरना वे लोग सड़कों पर दोबारा उतरेंगे।

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चरणबद्ध आंदोलन की चेतावनी
दिलीप के अलावा अपनी गायकी से सिस्टम पर प्रहार कर रहीं बीपीएससी की अभ्यर्थी सुषमा पांडेय ने कहा कि काफी परेशानी में रहते हुए वे लोग परीक्षा की तैयारी करते हैं। पेपर लीक होने के बाद कई दिनों तक खाना तक नहीं खा पाते। सेंटर पर जाने में परेशानी का सामना करना पड़ता है। उनकी वजह से उनके माता-पिता परेशान होते हैं। पेपर लीक हो जाने के बाद सिर्फ अभ्यर्थी का नहीं पूरे परिवार का सपना टूट जाता है। सुषमा ने कई भोजपुरी गाने गाकर बिहार सरकार पर प्रहार करते हुए कहा कि सरकार को इस पूरे मामले की जांच सीबीआई को दे देनी चाहिए। उधर, दिलीप ने पुलिस पर आरोप लगाते हुए कहा कि उन्हें बेवजह गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया जाता है। दिलीप ने कहा कि पुलिस की कार्रवाई से वे लोग डरने वाले नहीं हैं। आने वाले दिनों में यदि पेपर लीक वाली प्रक्रिया पर पूरी तरह लगाम नहीं लगाई गई, तो वे बिहार सरकार के खिलाफ चरणबद्ध तरीके से आंदोलन करेंगे। दिलीप ने बिहार के सभी छात्रों और अभ्यर्थियों से आंदोलन में शामिल होने और साथ देने की अपील की।

पाटलिपुत्र का पुराना नाम क्या है?

यह ऐतिहासिक नगर कई नाम पा चुका है- पाटलिग्राम, पाटलिपुत्र, पुष्पपुर, कुसुमपुर, अजीमाबाद और पटना. माना जाता है कि इसका मौजूदा नाम शेरशाह सूरी के समय से प्रचलित हुआ. शेरशाह सूरी ने इस नगर को पुनर्जीवित करने की कोशिश की. उसने गंगा के किनारे एक किला बनाया.

पाटलिपुत्र का आधुनिक नाम क्या है?

2500 साल पहले मगध के विशाल साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र थी. बाद में पाटलिपुत्र का ही नाम बदलकर पटना रखा गया.

पटना की सबसे फेमस चीज क्या है?

पर्यटक स्थल.
अगमकुआँ : अशोक कालीन भग्नावषेश का हिस्सा रहा इस कुआँ का पानी कभी ख़तम नहीं हुआ |.
तख़्त हरमंदिर साहिब : सिखों के दसवें गुरु श्री गोविन्द सिंह जी का जन्म स्थल है | 1666 ई. ... .
पटना अजायबघर : ... .
पत्थर की मस्जिद : ... .
पादरी की हवेली : ... .
तारा मंडल : ... .
श्री कृष्ण विज्ञान केंद्र : ... .
संजय गाँधी जैविक उद्यान:.

बिहार का सबसे बड़ा शहर कौन सा है?

राज्य की ताजा औपबंधिक जनगणना रिपोर्ट 2011- पेपर टू के अनुसार राजधानी पटना राज्य का सबसे बड़ा शहर है और यहां राज्य में सबसे अधिक शहरी आबादी बसती है। राजधानी पटना की आबादी आबादी 25,10,093 लाख हो गई है और शिवहर सबसे कम शहरी आबादी वाला जिला है। राज्य के समस्तीपुर जिले में सबसे बड़ी ग्रामीण आबादी निवास करती है।