हमारे इतिहास में कोप भवन की परंपरा भी थी जिसका सबसे प्रसिद्ध उदाहरण रामायण के समय का हैं जब रानी कैकेयी राजा दशरथ से नाराज होकर कोप भवन (Kaikeyi kop bhawan) चली गयी थी। कोप का अर्थ (Kop meaning in Hindi) होता हैं क्रोध या दुःख में रोना, इसलिये इस महल का नाम कोप भवन रखा गया था। आखिर कोप भवन का क्या रहस्य था व यह क्यों बनाये जाते थे, आज हम इन्हीं कुछ प्रश्नों के उत्तर जानेंगे (Kop bhavan Ayodhya)। Show कोप भवन क्यों बनाया जाता था? (Kop bhawan kya hota hai)कोप भवन का निर्माण राज महलों के पास किया जाता था जहाँ चारो ओर केवल अँधेरा होता था व कोई विशिष्ट वस्तु नही रखी होती थी (Kop bhavan meaning in Hindi)। वहां किसी सिपाही को भी अंदर आने की अनुमति नही होती थी व ना ही कोई राजसी वस्तु इत्यादि यहाँ हुआ करती थी। जब कोई रानी या राजपरिवार का सदस्य राजा से नाराज़ होता था तो वह उस कोपभवन में चला जाता था। यह कोपभवन मुख्यतया राजा की रानियों के लिए होता था। चूँकि राजमहल में सभी सुख सुविधाओं की वस्तु उपलब्ध होती थी इसलिये रानियाँ कोप भवन जैसी वीरान स्थल पर जाकर राजा के प्रति अपना क्रोध प्रकट करती थी किंतु रानी को इसमें जाने की आवश्यकता क्यों पड़ती थी व इसका क्या प्रभाव होता था? आइये जानते हैं (Kop bhavan meaning in Hindi)। कोप भवन का प्रभाव (Kop bhavan Ramayan meaning)उस समय एक राजा की कई रानियाँ होती थी व राजा दशरथ की भी तीन-तीन रानियाँ थी। कुछ राजाओं की इससे भी अधिक रानियाँ हुआ करती थी। साथ ही राजा दिन भर अपने मंत्रियों, राज्य के लोगों व अन्य कामों में व्यस्त रहते थे जिस कारण उन्हें किसी-किसी रानी से मिलें तो कभी-कभी महीनों बीत जाया करते थे। ऐसे समय में जब कोई रानी राजा से किसी बात पर नाराज़ हो जाती थी तो वह अपना क्रोध दिखाने के लिए सब कुछ त्याग कर कोप भवन में चली जाती थी। कोप भवन में जाने से पहले रानी को अपने सभी राजसी वस्त्रों व आभूषणों का त्याग करना होता था। बिना कोई श्रृंगार के रानी को उस कोप भवन में जाना होता था। जब राजा को यह बात पता चलती थी तो उसे उस रात रानी के पास कोपभवन में जाना अनिवार्य हो जाता था अन्यथा रानी के द्वारा स्वयं के शरीर का त्याग भी किया जा सकता था। उपरोक्त कारणों से कोप महल का प्रभाव बहुत बढ़ जाता था। चूँकि रानी के इस महल में जाने की संभावना बहुत कम होती थी लेकिन जब भी कोई रानी कोप भवन में जाती थी तो स्वयं राजा की प्रतिष्ठा पर प्रश्न उठता था। इसी कारण राजा का कोप भवन में जाकर रानी को मनाना अत्यंत आवश्यक हो जाता था। यही कारण था कि रानी कैकेयी (Kaikeyi kop bhawan) के अयोध्या के कोप भवन में जाने के पश्चात राजा दशरथ सब कार्य छोड़कर वहां चले गए थे। संपूर्ण रामायण कथा अयोध्याकाण्ड: कैकेयी का कोपभवन में जाना, कैकेयी कोपभवन, कैकेयी क्रंदन, राजा दशरथ ने क्यों दिए कैकेयी को दो वरदान, कैकेयी द्वारा वरों की प्राप्ति, भरत को सिंहासन और प्रभु राम को वनवास, रामायण में मंथरा का रोल (Sampurna Ramayan Katha Ayodhya Kand- Kaikeyi in Kop Bhavan, Kekai Kop Bhavan in Ramayana, Kop Bhavan Meaning, Kop Bhawan Kya Hai, Raja Dashrath Ne Kekai Ko Kya Vardaan Diya, Kekai Ki Dasi Ka Kya Naam Tha, Kekai Ke Putra Ka Naam) कैकेयी का कोपभवन में जाना, राजा दशरथ ने क्यों दिए कैकेयी को दो वरदान किन्तु राम के राजतिलक का समाचार सुनकर एवं नगर की इस अद्भुत् श्रृंगार को देखकर रानी कैकेयी कि प्रिय दासी मंथरा के हृदय को असहनीय आघात लगा। वह सोचने लगी कि यदि कौशल्या का पुत्र राजा बन जायेगा तो कौशल्या को राजमाता का पद प्राप्त हो जायेगा और कौशल्या की स्थिति अन्य रानियों की स्थिति से श्रेष्ठ हो जायेगी। ऐसी स्थिति में उसकी दासियाँ भी स्वयं को मुझसे श्रेष्ठ समझने लगेंगीं। वर्तमान में कैकेयी राजा की सर्वाधिक प्रिय रानी है और इसी कारण से महारानी कैकेयी का ही राजमहल पर शासन चलता है। कैकेयी की दासी होने का श्रेय प्राप्त होने के कारण राजप्रसाद की अन्य दासियाँ मेरा सम्मान करती हैं। यदि कौशल्या राजमाता बन जायेगी तो मेरा यह स्थान मुझसे छिन जायेगा। मैं यह सब कुछ सहन नहीं कर सकती। अतः इस विषय में अवश्य ही मुझे कुछ करना चाहिये। मंथरा के मुख से राम के राजतिलक का समाचार सुनकर कैकेयी को अत्यंत प्रसन्नता हुई। समाचार सुनाने की खुशी में कैकेयी ने मंथरा को पुरस्कारस्वरूप एक बहुमूल्य आभूषण दिया और कहा, मंथरे! तू अत्यन्त प्रिय समाचार ले कर आई है। तू तो जानती ही है कि राम मुझे बहुत प्रिय है। इस समाचार को सुनाने के लिये तू यदि और भी जो कुछ माँगेगी तो मैं वह भी तुझे दूँगी। कैकेयी के वचनों को सुन कर मंथरा अत्यन्त क्रोधित हो गई। उसकाका तन-बदन जल-भुन गया। पुरस्कार में दिये गये आभूषण को फेंकते हुये वो बोली, महारानी आप बहुत नासमझ हैं। स्मरण रखिये कि सौत का बेटा शत्रु के जैसा होता है। राम का अभिषेक होने पर कौशल्या को राजमाता का पद मिल जायेगा और आपकी पदवी उसकी दासी के जैसी हो जायेगी। आपका पुत्र भरत भी राम का दास हो जायेगा। भरत के दास हो जाने पर पर आपकी बहू को भी एक दासी की ही पदवी मिलेगी। यह सुनकर कैकेयी ने कहा, मंथरा राम महाराज के ज्येष्ठ पुत्र हैं और प्रजा में अत्यन्त लोकप्रिय हैं। अपने सद्गुणों के कारण वे सभी भाइयों से श्रेष्ठ भी हैं। राम और भरत भी एक दूसरे को भिन्न नहीं मानते क्योंकि उनके बीच अत्यधिक प्रेम है। राम अपने सभी भाइयों को अपने ही समान समझते हैं इसलिये राम को राज्य मिलना भरत को राज्य मिलने के जैसा ही है। यह सब सुनकर मंथरा और भी दुःखी हो गई। वह बोली, किन्तु महारानी! आप यह नहीं समझ रही हैं कि राम के बाद राम के पुत्र को ही अयोध्या का राजसिंहासन प्राप्त होगा तथा भरत को राज परम्परा से अलग होना पड़ जायेगा। यह भी हो सकता है कि राज्य मिल जाने पर राम भरत को राज्य से निर्वासित कर दें या यमलोक ही भेज दें। अपने पुत्र के अनिष्ट की आशंका की बात सुनकर कैकेयी का हृदय विचलित हो उठा। उसने मंथरा से पूछा, ऐसी स्थिति में मुझे क्या करना चाहिये? मंथरा ने उत्तर दिया, आपको स्मरण होगा कि एक बार देवासुर संग्राम के समय महाराज दशरथ आपको साथ लेकर युद्ध में इन्द्र की सहायता करने के लिये गये थे। उस युद्ध में असुरों के अस्त्र-शस्त्रों से महाराज दशरथ का शरीर जर्जर हो गया था और वे मूर्छित हो गये थे। उस समय सारथी बन कर आपने उनकी रक्षा की थी। आपकी उस सेवा के बदले में उन्होंने आपको दो वरदान दो वरदान प्रदान किया था जिसे कि आपने आज तक नहीं माँगा है। अब आप एक वर से भरत का राज्याभिषेक और दूसरे वर से राम के लिये चौदह वर्ष तक का वनवास माँग कर अपना मनोरथ सिद्ध कर लीजिये। शीघ्रातिशीघ्र आप मलिन वस्त्र धारण कर कोपभवन में चले जाइये। महाराज आपको बहुत अधिक चाहते हैं इसलिए वे अवश्य ही आपको मनाने का प्रयत्न करेंगे और आपके द्वारा माँगने पर उन दोनों वरों को देने के लिये तैयार हो जायेंगे। किन्तु स्मरण रखें कि वर माँगने के पूर्व उनसे वचन अवश्य ले लें जिससे कि वे उन वरदानों को देने के लिये बाध्य हो जायें। मंथरा के कथन के अनुसार कैकेयी कोपभवन में जाकर लेट गई। क्या है कोप भवन, रामायण में माता कैकेयी शोक के लिए कोप भवन में ही क्यों गई ? इस भवन का नाम कोपभवन क्यों पड़ा इस सम्बन्ध में दो मत प्रकट किये जा सकते हैं। एक तो यह कि रानियों के रूठने और क्रोध व्यक्त करने के लिए यह भवन बनाया गया था। दूसरा मत यह हो सकता है कि कैकेयी के उस भवन में जाकर क्रोध करने की घटना के कारण इस भवन का यह नाम पड़ गया। यह भी हो सकता है कि पहले भी किसी रानी के इस प्रकार क्रोध करने की घटना हुई हो इस कारण कैकेयी से पहले ही इस भवन का नाम कोपभवन पड़ गया हो। अधिक तार्किक दूसरा मत ही प्रकट होता है। यह लगता है कि कैकेयी अपना क्रोध दिखाने के लिए अपना महल छोड़कर एक ऐसे महल में चली गयी थी जिसमें सामान्यतः राजपरिवार के लोग बहुत कम जाते थे। राजा समझ गये कि वह उनसे नाराज होकर गयी है और उन्होंने जाकर उसे मनाया। राम के वनवास और राजा दशरथ की मृत्यु का कारण होने से यह घटना इतनी प्रसिद्ध हुई कि यह भवन ही कोपभवन कहा जाने लगा। राजा दशरथ ने कैकेयी को दो वरदान दिए थे, कैकेयी द्वारा वरों की प्राप्ति महाराज के इस प्रकार मनुहार करने पर कैकेयी बोलीं, प्रणनाथ! मेरी एक अभिलाषा है। किन्तु यदि आप उसे पूरी करने की शपथपूर्वक प्रतिज्ञा करेंगे तभी मैं आपको अपनी अभिलाषा के विषय में बताउँगी। इस पर कैकेयी बोली, महाराज! पहले आप सौगन्ध लीजिये कि आप मेरी अभिलाषा अवश्य पूरी करेंगे। महाराज सौगन्ध लेने से आश्वस्त हो जाने पर कैकेयी बोली, आपको स्मरण होगा कि देवासुर संग्राम के समय आपके मूर्छित हो जाने पर मैंने आपकी रक्षा की थी और प्रसन्न होकर आपने मुझे दो वर देने की प्रतिज्ञा की थी। उन दोनों वरों को मैं आज माँगना चाहती हूँ। पहला वर तो मुझे यह दें कि आप राम के स्थान पर मेरे पुत्र भरत का राजतिलक करें और दूसरा वर मैं यह माँगती हूँ कि राम को चौदह वर्ष के लिये वन जाने की आज्ञा दें। मेरी इच्छा है कि आज ही राम वल्कल पहनकर वनवासियों की भाँति वन के लिये प्रस्थान करे। अब आप अपनी प्रतिज्ञा पूरी करें क्योंकि आप सूर्यवंशी हैं और सूर्यवंश में अपनी प्रतिज्ञा का पालन प्राणों की बलि देकर भी किया जाता है। कैकेयी के इन वचनों को सुनकर राजा दशरथ का हृदय चूर-चूर हो गया। उन्हे असह्य पीड़ा हुई और वे मूर्छित होकर गिर पड़े। कुछ काल बाद जब उनकी मूर्छा भंग हुई तो वे क्रोध और वेदना से काँपते हुये बोले, रे कुलघातिनी! न जाने मुझसे ऐसा कौन सा अपराध हुआ है जिसका तूने इतना भयंकर प्रतिशोध लिया है। पतिते! नीच! राम तो तुझ पर कौशल्या से भी अधिक श्रद्धा रखता है। फिर भी तू उसका जीवन नष्ट करने के लिये कटिबद्ध हो गई है। प्रजा को अत्यन्त प्रिय राम को बिना किसी अपराध के मैं भला कैसे निर्वासित कर सकता हूँ? तू अच्छी तरह से जानती है कि मैं अपने प्राण त्याग सकता हूँ किन्तु राम का वियोग नहीं सह सकता। मैं तुझसे विनती करता हूँ कि राम के वनवास की बात के बदले तू कुछ और माँग ले। मैं तुझे विश्वास दिलाता हूँ कि मैं तेरी माँग अवश्य पूरी करूँगा। महाराज दशरथ के इन दीन वचनों को सुनकर कैकेयी तनिक भी द्रवित नहीं हुई। वह बोली, राजन्! ऐसा कहकर आप अपने वचन से हट रहे हैं। यह आपको शोभा नहीं देता। आप सूर्यवंशी हैं, अपनी प्रतिज्ञा पूरी कीजिये। प्रतिज्ञा से हटकर स्वयं को और सूर्यवंश को कलंकित मत कीजिये। आपके द्वारा अपना वचन नहीं निभाये जाने पर मैं तत्काल आपके सम्मुख ही विष पीकर अपने प्राण त्याग दूँगी। यदि ऐसा हुआ तो आप प्रतिज्ञा भंग करने के साथ ही साथ स्त्री-हत्या के भी दोषी हो जायेंगे। अतः उचित यही है कि आप अपनी प्रतिज्ञा पूरी करें। राजा दशरथ बारम्बार मूर्छित होते रहे और मूर्छा समाप्त होने पर कातर भाव से कैकेयी को मनाने का प्रयत्न करते रहे। इस प्रकार पूरी रात बीत गई। अम्बर में उषा की लालिमा फैलने लगी जिसे देखकर कैकेयी ने उग्ररूप धारण कर लिया और कहा, राजन्! आप व्यर्थ ही समय व्यतीत कर रहे हैं। उचित यही है कि आप तत्काल राम को वन जाने की आज्ञा दीजिये और भरत के राजतिलक की घोषणा करवाइये। सूर्योदय हो जाने पर गुरु वशिष्ठ मन्त्रियों के साथ राजप्रासाद के द्वार पर पहुँचे और महामन्त्री सुमन्त को महाराज के पास जाकर अपने आगमन की सूचना देने के लिये कहा। कैकेयी एवं दशरथ के संवाद से अनजान सुमन्त ने महाराज के पास जाकर कहा, हे राजाधिराज! रात्रि का समापन हो गया है और गुरु वशिष्ठ का आगमन भी हो चुका है। अतएव आप शैया त्याग कर गुरु वशिष्ठ के पास चलिये। मूर्छित हो गये। उनके इस प्रकार मूर्छित होने पर कुटिल कैकेयी बोली, हे महामन्त्री! अपने प्रिय पुत्र के राज्याभिषेक के उल्लास के कारण महाराज रात भर सो नहीं सके हैं। उन्हें अभी-अभी ही तन्द्रा आई है। महाराज निद्रा से जागते ही राम को कुछ आवश्यक निर्देश देना चाहते हैं। तुम शीघ्र जाकर राम को यहीं बुला लाओ। कैकेयी के आदेशानुसार सुमन्त रामचन्द्र को उनके महल से बुला लाये। सभी रामायण कथा पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक्स पर क्लिक करें –
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