लाइफस्टाइल डेस्क. किडनी का प्रमुख काम शरीर में रक्त को फिल्टर करना तो होता ही है, लेकिन यह कई तरह के उपयोगी हार्मोंस भी रिलीज करती हैं। किडनी पानी और सोडियम, पौटेशियम व फॉस्फोरस जैसे जरूरी मिनरल्स का रक्त में संतुलन बनाने का काम भी करती हैं। किडनी से जुड़ी बीमारियों के लक्षण अक्सर लोग शुरुआती चरण में पहचान नहीं पाते और वक्त के साथ बीमारी गंभीर होती चली जाती है। इसे क्रोनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) कहा जाता है। वर्ल्ड किडनी डे के मौके पर मेदांता- द मेडिसिटी नेफ्रोलोजी डिपार्टमेंट के डायरेक्टर डॉ. श्याम बिहारी बंसल से जानें इस बीमारी के कारण और बचाव के तरीके। Show
किडनी की समस्याएं आज कल बहुत आम हो चुके हैं।जीवन को सुख से यापन करने के लिए हमारे शरीर और उसके अंग हमारी बहुत मदद करते हैं। इन अंगो में दिल, फेफड़े, लीवर, दिमाग और मुख्य रूप से किडनी काम करती है। किडनी हमारे शरीर में खराब पदार्थों को अलग करके उन्हें मूत्र के माध्यम से शरीर के बाहर निकाल देती है, इसलिए किडनी को ठीक रखने के लिए हमें किडनी की बीमारियां: लक्षण, कारण, जाँच और इलाज को जानने की जरूरीत होती है। अगर यही महत्वपूर्ण अंग यानि हमारी किडनी किसी कारण से क्षतिग्रस्त हो जाती हैं या उनकी कार्यक्षमता कम हो जाती है, तो इसका कारण कोई बीमारी या संक्रमण हो सकता है। किडनी की बीमारियों से आज के समय में लाखों लोग ग्रसित हैं और डायलिसिस जैसे प्रक्रियाओं के सहारे जीवन यापन कर रहे हैं। क्या किडनी में होने वाली वे सभी किडनी की समस्याएं/ बीमारियाँ जानिए विस्तार से-हमारी किडनी शरीर में सबसे मजबूत अंग के रूप में कार्य करती है यह इसलिए कहा जाता है क्योंकि जब तक किडनियाँ 70-80 प्रतिशत खराब न हो तब तक आपको पता नहीं चलने देती। लेकिन जब किडनी खराब होने लगती हैं तो आपको कुछ संकेत देती हैं ये संकेत उन्हीं रोगों से संबंधित होते हैं जिनसे वह जूझना शुरु कर चुकी हों। 1. अल्पकालीन किडनी विफलता (एक्यूट किडनी इंज्यूरी, AKI)इस बीमारी को “acute renal failure” भी कहा जाता है। ये ऐसे रोग होते हैं जिनकी वजह से किडनी की कार्यक्षमता में अचानक कमी या नुकसान हो जाता है। ये रोग किसी इंफेक्शन, बैक्टीरिया आदि या फिर किसी सर्जरी के बाद उत्पन्न हो जाते हैं। इन रोगों को सामान्य इलाज से ठीक किया जा सकता है, लेकिन समय पर सही इलाज न करना भी इसमें गंभीर स्थिति को जन्म दे सकता है। किडनी में AKI जैसा रोग होने से पहले अगर मरीज पूरी तरह स्वस्थ था, तो AKI के इलाज केबाद मरीज की किडनी स्वस्थ हो जाती हैं। क्या होते हैं AKI के कारण
क्या होते हैं AKI के लक्षण
2. दीर्घकालीन किडनी विफलता (क्रोनिक किडनी डिजीज, CKD)क्रोनिक किडनी डिसीज (chronic kidney disease “CKD”) उन रोगों को कहा जाता है जोमहीनों या सालों से किडनी की कार्यक्षमता में धीरे-धीरे बदलाव या नुकसान करते आए हों। इसमें किडनी की काम करने की क्षमता धीरे- धीरे लगातार कम होती जाती है। लंबे समय के बाद, किडनी लगभग पूरी तरह से काम करना बंद कर देती हैं जिसे किडनी फेल होना या किडनी फेल्यर कहा जाता है। बीमारी का यह चरण जीवन के लिए खतरनाक हो जाता है इस कारण इसे एण्ड स्टेज किडनी डिजीज या ई.एस.के.डी. भी कहा जाता है। इस रोग को eGFR नामक परीक्षण से हल्के, मध्यम या गंभीर रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। CKD के पाँच चरण होते हैं, इसका पाँचवां चरण जीवन के लिए खतरनाक है क्योंकि इसमें आकर मरीज को डायलिसिस या किडनी प्रत्यारोपण की जरूरत पड़ती है। अगर डायलिसिस या प्रत्यारोपण न हो तो एक समय ऐसा आता है जब मरीज की दोनों किडनी सिकुड़कर एकदम छोटी हो जाती है और काम करना बंद कर देती है।जिसे किसी भी दवा, ऑपरेशन से भी ठीक नहीं किया जा सकता है। क्या होते हैं CKD के कारण
क्या होते हैं CKD के लक्षण
3. पेशाब का संक्रमण (UTI)UTI यानि यूरिनरी ट्रैक्ट इंफैक्शन जो आंत से आने वाले, ई-कोली नामक बैक्टीरिया के कारण होता है। यह संक्रमण अधिकतर महिलाओं में देखने को मिलता है और पुरुषों में इससे संक्रमित होने की दर सामान्यत: कम ही रहती है। इसका कारण है महिलाओं और पुरुषों के मूत्रमार्गों में भिन्नता। यह सामान्य तौर पर मूत्रमार्ग से मूत्राशय में प्रवेश कर जाता हैं। इसके अलावा इससे स्थिति उस समय गंभीर हो जाती है जब या मूत्रवाहिनियों से होकर किडनी में प्रवेश कर जाता है। क्या होते हैं UTI के कारण
क्या होते हैंUTI के लक्षण
4. नेफ्रोटिक सिन्ड्रोमनेफ्रोटिक सिंड्रोम किडनी का वह आमरोग है जिसमें मरीज का प्रोटीन अधिक मात्रा में मूत्र की राह बाहर निकलने लगता है। हमारी किडनी में जो खून को साफ करने और ज्यादा पानी का संतुलन बनाने वाली रक्त वाहिकाएँ होती हैं उनमें क्षति हो जाने के कारण नेफ्रोटिक सिंड्रोम होता है। किडनी में होने वाला यह रोग अन्य उम्र के लोगों की तुलना में बच्चों में अधिक देखने को मिलता है। यह रोग दवाओं और इलाज से ठीक होने के बाद भी बार-बार मरीज के शरीर में लौटकर आ सकता है। हालांकि पेशाब में प्रोटीन का रिसाव मुख्य समस्या है। इससेकिडनी की कार्यक्षमता भी प्रभावित हो सकती है।वर्षों या दशकों में यह किडनी की विफलता (kidney failure)का कारण भी बन सकता है। क्या होते हैं नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम के कारण
क्या होते हैं नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम के लक्षण
5. पोलिसिस्टिक किडनी डिजीज (PKD)पोलिसिस्टिक किडनी डिजीज (polycystic kidney disease, “PKD”) वंशानुगत किडनी रोग होता है। इस रोग में मुख्य असर किडनी पर होता है। रोगी की दोनों किडनियों में बड़ी मात्रा में सिस्ट (पानी से भरे बुलबुले) जैसी रचना बन जाती हैं।ये सिस्ट किडनी के आकार को बढ़ा देते हैं और किडनी के उन ऊतकों (tissue) को क्षतिग्रस्त कर देते हैं जिनसे किडनी बनी हुई है। पोलिसिस्टिक किडनी डिजीज को क्रोनिक किडनी फेल्यर का मुख्य कारण है। किडनी के अलावा कई मरीजों में ऐसी सिस्ट लीवर, तिल्ली, ऑतों और दिमाग की नली में भी दिखाई देती हैं। क्या होते हैं PKD के कारण
क्या होते हैं PKD के लक्षण
6. ग्लोमेरूलोनेफ्राटिस (glomerulonephritis “GN”)इस रोग में किडनी के ग्लोमेरूली में सूजन (Inflammation of glomeruli) आ जाती है, ग्लोमेरूली किडनी की बेहद जरूरी इकाई होती है जो सूक्ष्म रक्त वाहिकाओं का एक गुच्छा होती है। ये रक्त को साफ करने में और बेकार पदार्थों को पेशाब के मध्यम से बाहर निकालने का काम करती हैं। ग्लोमेरूलोनेफ्राटिस रोग में ग्लोमेरूली क्षतिग्रस्त हो जाती हैं और काम करना बंद कर देती हैं। जिसकी वजह से किडनी फेल्यर का खतरा बढ़ जाता है। क्या होते हैं ग्लोमेरूलोनेफ्राटिस (GN) के कारण
क्या होते हैं ग्लोमेरूलोनेफ्राटिस (GN) के लक्षणग्लोमेरूलोनेफ्राटिस के लक्षण
7. किडनी में पथरीकिडनी मूत्र बनाने के लिए रक्त से बेकार और तरल पदार्थ निकालती हैं। ज्यादातर किडनी में कैल्शियम के जमाव के कारण पथरी बन जाती हैं। पथरी एक महत्वपूर्ण किडनी रोग है। सामान्यतः पथरी किडनी, मूत्रवाहिनी और मूत्राशय में कहीं भी हो सकती है। पुरुषों में महिलाओं के मुकाबले किडनी की पथरी की समस्या अधिक देखने को मिलती है। किडनी में पथरी होने के कारण
किडनी में पथरी होने के लक्षण
इसके आलावा पथरी के जिन मरीजों को इस तरह के लक्षण नहीं दिखाई देते तोउसे “साइलेन्ट स्टोन” (Silent stone) कहते हैं। इस तरह किडनी की पथरी बिना किसी लक्षण के सालों रह सकती है। 8. प्रोस्टेट की बीमारी – बी. पी. एचप्रोस्टेट की बीमारी भी किडनी से ही संबंधित होती है, प्रोस्टेट ग्रंथी केवल पुरूषों में होती है। यह मूत्राशय के नीचे स्थित होती है। पुरुषों की 50 साल की उम्र के बाद प्रोस्टेट ग्रंथी का आकर बढ़ने लगता है इसी कारण मूत्रनलिका पर दबाव आता है। इसे बी. पी. एच. (बिनाइन प्रोस्टेटिक हाइपरट्रोफी) कहते है। प्रोस्टेट की बीमारी –(B. P. H)के कारणB. P. H (प्रोस्टेट) बीमारी होने का एक मात्र कारण उम्र का बढ़ना होता है। यह मुख्य तौर पर 50 साल से ज्यादा के पुरुषों में अधिक होती है। प्रोस्टेट की बीमारी – (B. P. H)के लक्षण
किडनी के रोगों को पहचानने के लिए कराए जाने वाले परीक्षणयूरिनलिसिस (urinalysis)-इस परीक्षण के माध्यम से मरीज के पेशाब में प्रोटीन है या नहीं इस बात का पता लगाया जाता है। पेशाब में प्रोटीन का आना किडनी की कई बीमारियों और संक्रमणों का कारण होता है। सीरम क्रिएटिनिन टेस्ट (Serum creatinine test)-यह परीक्षण यह बताता है कि रक्त में क्रिएटिनिन की मात्रा कितनी है। किडनी आमतौर पर रक्त से क्रिएटिनिन को पूरी तरह से छान लेती हैं। जब किडनी की कार्यक्षमता में कमी ने से इसकी मात्रा रक्त में बढ़ जाती है जो किडनी स संबंधित कई रोगों का कारण होती है। रक्त यूरिया नाइट्रोजन (BUN)-रक्त यूरिया नाइट्रोजन (BUN) परीक्षण रक्त में बेकार उत्पादों और उनकी मात्रा की जाँच करता है। BUN परीक्षण रक्त में नाइट्रोजन की मात्रा को मापते हैं। यूरिया नाइट्रोजन प्रोटीन का ही एक भाग होता है। eGFR परीक्षण-इस परीक्षण के माध्यम से पता लगाया जाता है कि किडनी के बेकार पदार्थों को छानने की गति क्या है। यह परीक्षण मरीज के वजन, लंबाई, लिंग, रंग, और उम्र जैसे कारकों के आधार पर किया जाता है। यह परीक्षण CKD के मरीजों में इस बीमारी के चरण को पहचानने के लिए किया जाता है। युरिन कल्चर परीक्षण-यह परीक्षण आम तौर पर मूत्रप्रणाली के संक्रमण के कारक यानि बैक्टीरिया को पचानने के लिए किया जाता है। इस जाँच की रिपोर्ट 48 घंटों में आती हैं। कैसे होता है सभी रोगों का इलाजसभी किडनी की बीमारियाँ भिन्न-भिन्न होती हैं ऐसे में जाहिर है कि प्रत्येक मरीज भी भिन्न होगा। मरीज की भिन्नता उसकी उम्र, लिंग, लंबाई, वजन और प्रतिरक्षा प्रणाली जैसे अनेक करकों पर निर्भर करते हैं। ऐसे में किसी भी अन्य मरीज (जिसे आप जैसी बीमारी हो) से सलाह न लें और न ही उसके इलाज को अपनाएँ। अपनी बीमारी और किडनी की सभी समस्याओं के उचित निदान के लिए किडनी विशेषज्ञ (Nephrologist) से मिलें और उसी परामर्श से अपने लिए बने उचित इलाज का ही पालन करें। किसी नीम हकीम से सलाह लेने से बचें। क्रोनिक किडनी रोग को कैसे रोकें?क्रोनिक किडनी डिजीज का उपचार-
1 - संतुलित आहार का सेवन करने से क्रोनिक किडनी डिजीज की समस्या को बढ़ने से रोका जा सकता है। व्यक्ति को समस्या के दौरान कम नमक वाले आहार का सेवन करना चाहिए। 2 - यदि किसी व्यक्ति को क्रोनिक किडनी डिजीज है तो वह अल्कोहल या स्मोकिंग करने से बचे वरना इसके कारण समस्या और बढ़ सकती है।
कॉर्टिकल किडनी रोग क्या है?क्रॉनिक किडनी डिजीज वह स्थिति है जब व्यक्ति की दोनों किडनियां धीरे-धीरे काम करना बंद कर देती हैं। इस बीमारी का सबसे खतरनाक पक्ष यह है कि इससे पीड़ित व्यक्ति को तब तक इसके लक्षणों का एहसास तब होता है जब किडनी की कार्यक्षमता 25 प्रतिशत तक गिर चुकी होती है।
किडनी खराब होने का मुख्य कारण क्या है?किडनी फेल होने के कारण- किडनी फेल होने के पीछे कई कारण हैं जैसे कि किसी बीमारी की वजह से यूरिन का कम हो जाना, हार्ट अटैक, दिल की बीमारी, लिवर का फेल हो जाना, प्रदूषण, कुछ दवाएं, क्रोनिक डिजीज, डिहाइड्रेशन, किडनी ट्रॉमा, एलर्जी रिएक्शन, गंभीर इंफेक्शन और हाई ब्लड प्रेशर.
किडनी खराब होने का शुरुआती लक्षण क्या है?kidney ख़राब होने के लक्षण (kidani fail hone ke lakshan) –. रात के समय पेशाब ज्यादा होना, urine output में बदलाव।. पेशाब का रंग बदल जाना।. Foamy या bubbly पेशाब आना।. Hemoglobin कम हो जाना जिससे आपके ankle, legs में swelling दिखना।. वजन बढ़ना, Skin rashes.. |