कैबिनेट मिशन का गठन क्यों किया गया? - kaibinet mishan ka gathan kyon kiya gaya?

जब भारत की दोनों प्रमुख राजनीतिक शक्तियों के बीच कोई साझा विकल्प स्थापित नहीं हुआ तब, ब्रिटिश सरकार द्वारा भेजे गए कैबिनेट मिशन ने 16 मई 1946 को भारत की स्वतंत्रता और संविधान सभा के गठन से संबंधित अपनी एक योजना प्रस्तुत कर दी. इस योजना में भारत को राज्यों/रियासतों/प्रांतों के तीन मंडलों में विभाजित किया गया था.

वैसे तो कैबिनेट मिशन ने सांप्रदायिक आधार पर पाकिस्तान के निर्माण के विकल्प को अस्वीकार कर दिया था, लेकिन इसके एवज़ में भारत को तीन मंडलों में विभाजित करने, मंडलों को मज़बूत बनाने और केंद्र सरकार (संघ व्यवस्था) को कमज़ोर रखने के विकल्प योजना में रखे गए. के.एम. मुंशी, कैबिनेट मिशन की योजना से खुश नहीं थे.

उन्होंने लिखा था कि ‘‘यदि यह योजना लागू हुई तो भारत चार भागों में बंट जाएगा – एक हिन्दू, दो मुस्लिम और एक रियासतें”. लेकिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने कैबिनेट मिशन योजना पूरी तरह से लागू नहीं होने दी. यह उल्लेख करना बहुत जरूरी है कि कैबिनेट मिशन की योजना में से आगे चलकर दो बिंदुओं को ही कांग्रेस, अंतरिम सरकार और संविधान सभा ने अपनी नीतियों में शामिल किया.

ये दो बिंदु थे – देश के विभिन्न प्रांतों के प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करते हुए हर 10 लाख की जनसंख्या पर एक प्रतिनिधि को नामित करते हुए संविधान सभा का गठन करना और दूसरा संविधान सभा के संचालन, नागरिकों, अल्पसंख्यकों और उपेक्षित क्षेत्रों के अधिकारों के लिए संविधान सभा के भीतर परामर्श समिति का गठन करना.

इन दो बिंदुओं के अलावा कैबिनेट मिशन की योजना का कोई भी बिंदु लागू नहीं किया गया; जैसे भारत को प्रांतों के तीन समूहों/मंडल में विभाजित करना, प्रांतों को पूर्ण स्वायत्तता प्रदान करना, अलग-अलग मंडलों के लिए अलग-अलग संविधान बनाना, किसी भी सांप्रदायिक मसले को सुलझाने की व्यवस्था, कैबिनेट मिशन योजना के कुछ प्रावधानों को अस्वीकार किये जाने से यह स्पष्ट होता है कि भारत के तत्कालीन राजनीतिज्ञ संजीदगी से भारत की स्वतंत्रता को संभालने में सक्षम थे.

1. प्रांतीय विधानसभा, संविधान सभा के लिए सामान्य, मुस्लिम और सिख समुदाय को प्रतिनिधित्व देते हुए निर्धारित संख्या में अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करेगी.

2. इस आधार पर कैबिनेट मिशन ने भारत के प्रांतों को तीन मंडलों में बांटा –

– मंडल अः मद्रास, बाम्बे, संयुक्त प्रांत, बिहार, मध्यप्रांत, और उड़ीसा. इनके लिये 187 सदस्य संख्या (167 सामान्य और 20 मुस्लिम) तय की गई.

– मंडल ब: पंजाब, उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत और सिंध. इनके लिये 35 सदस्य संख्या (9 सामान्य, 22 मुस्लिम और 4 सिख) तय की गई.

– मंडल स: बंगाल और असम/ इनके लिये 70 सदस्य संख्या (34 सामान्य और 36 मुस्लिम) तय की गई.

इसमें अलावा दिल्ली, अजमेर मेवाड़, और कुर्ग, ब्रिटिश बलूचिस्तान प्रांत के मुख्य आयुक्त के प्रतिनिधित्व के रूप में 4 स्थान तय किये गए. इन सबको मिलाकर संविधान सभा में 296 स्थान भारत के प्रांतों से निर्धारित किए गए.

कैबिनेट मिशन ने रियासतों को भी विधाससभा में प्रतिनिधित्व देने का प्रस्ताव रखा. प्रस्ताव के अनुसार रियासतों की जनसंख्या के मान से 93 स्थान निर्धारित किये गए. इस तरह संविधान सभा के लिए कुल 389 स्थान तय किये गए.

3. जाति और समुदाय के विभाजन (दलित, मुस्लिम, सिख, आदिवासी और कठिन भौगोलिक क्षेत्र आदि) के कारण वास्तव में संविधान निर्माण बहुत ही कठिन काम था. इसे सहज बनाने के लिए कैबिनेट मिशन ने अपनी योजना में लिखा कि शुरूआती बैठक में संविधान सभा के संचालन की व्यवस्था बनाने और नागरिकों के अधिकार, अल्पसंख्यकों, आदिवासियों और उपेक्षित क्षेत्रों के अधिकारों के लिये परामर्श समिति गठित कर ली जाएगी.

4. संविधान सभा का वर्गीकरण तीन खंडों में होना था और हर खंड को अपने मंडल के लिए संविधान का निर्माण करना था. इसके साथ ही उन विषयों का निर्धारण भी करना था, जो संघ के संविधान में शामिल किये जाने थे.

5. सभी प्रांतीय समूह और सदस्य मिलकर संघ के संविधान के निर्माण के लिए इकठ्ठा होंगे.

कैबिनेट मिशन को भी समझ में आ रहा था कि पाकिस्तान के निर्माण से सांप्रदायिकता के प्रश्न का समाधान नहीं होगा. इसके साथ ही प्रशासनिक, आर्थिक और सैन्य व्यवस्था संबंधी चुनौतियां भी खड़ी हो जायेंगी. ब्रिटिश सरकार ने या फिर इससे पहले से ही भारत की यातायात और डाक व्यवस्था अखण्ड भारत के स्वरूप को ध्यान में रखकर विकसित की गई थी.

भारत विभाजन से यातायात व्यवस्था पर चोट पहुंचेगी. इसी तरह भारतीय सेना का स्वरूप थी इसी तरह से गठित किया गया था कि इसमें सभी प्रांतों का प्रतिनिधित्व हो और अखण्ड भारत की रक्षा उनका ध्येय हो. विभाजन से जलसेना और वायुसेना कमजोर पड़ जाएगी. इसके बाद भौगोलिक संकट था क्योंकि पाकिस्तान के दो भाग होने थे और दोनों के बीच 700 मील की दूरी थी यानि युद्ध और शांति दोनों ही अवस्थाओं में पाकिस्तान भारत पर निर्भर रहने वाला देश होगा.

आल इंडिया मुस्लिम लीग के इसी सोच को ध्यान में रखते हुये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने स्वतंत्र भारत के लिये एक ऐसी व्यवस्था बनाने का प्रस्ताव पेश किया, जिसमें भारतीय संघ के भीतर प्रांतों को पूर्ण स्वायत्तता प्रदान की जाएगी. भारतीय संघ (केन्द्र सरकार) के पास केवल विदेश मामले, सुरक्षा और संचार के मुख्य विषय होंगे. हालांकि कैबिनेट मिशन इस प्रस्ताव को संवैधानिक व्यवस्था और प्रबंध के नजरिये से विसंगतिपूर्ण मान रहा था.

अपने 16 मई 1946 के वक्तव्य में उसने लिखा कि ऐसी संघीय व्यवस्था का प्रबंधन बहुत कठिन होगा जिसमें कुछ मंत्री ऐसे विषयों पर काम करेंगे, जिन पर संघ की निर्णायक भूमिका है और कुछ मंत्री ऐसे विषयों पर काम करेंगे, जिनका पूरा नियंत्रण प्रांतों के हाथ में होगा. जब भूमिकाओं का इस तरह से विभाजन होगा तो ऐसे में कार्यपालिका और न्यायपालिका कैसे काम करेगी? लेकिन फिर भी कैबिनेट मिशन की योजना में इसी व्यवस्था का विकल्प दिया गया.

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस चाहती थी कि भारत अविभाजित रहे और ब्रिटिश सरकार किसी भी तरह भारत से चली जाए. मुस्लिम लीग ने 6 जून 1946 को और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 25 जून 1946 को कैबिनेट मिशन योजना को स्वीकार कर लिया. इसके बाद जुलाई 1946 में भारत के विभिन्न प्रांतों में संविधान सभा के गठन के लिए हुए चुनावों में कांग्रेस को 292 में से 201 और मुस्लिम लीग को 7३ स्थान मिले.

कांग्रेस को 9 सामान्य स्थानों पर जीत नहीं मिली जबकि मुस्लिम लीग को मुस्लिम बहुल स्थानों में से केवल 5 पर जीत नहीं मिली. इस जीत के बाद कांग्रेस ने कैबिनेट मिशन के उस प्रस्ताव को खारिज कर दिया, जिसमें देश को तीन मंडलों में विभाजित करने की बात कही गई थी. अगर कांग्रेस उस प्रस्ताव को खारिज नहीं करती तो भारत के कई छोटे-छोटे टुकड़े होने की आशंका थी. कैबिनेट मिशन के अन्य बिंदु कांग्रेस ने स्वीकार कर लिए.

कांग्रेस के इस रुख को देखकर मुस्लिम लीग ने 29 जुलाई 1946 को कैबिनेट मिशन के पूरे प्रस्ताव को ही खारिज कर दिया. जब मुस्लिम लीग ने कैबिनेट मिशन के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया तो वायसराय लार्ड वावेल ने 12 अगस्त 1946 को 14 सदस्यों के मंत्रिमंडल वाली अंतरिम सरकार के गठन के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के जवाहरलाल नेहरु को आमंत्रित किया, इनमें से 5 मुस्लिम सदस्य रखे जाने थे.

24 अगस्त 1946 को अंतरिम सरकार के 12 सदस्यों की घोषणा कर दी गई, जिसे जवाहरलाल नेहरु, वल्लभ भाई पटेल, डा. राजेंद्र प्रसाद, आसफ अली, सी.राजगोपालाचारी, शरत चन्द्र बोस, जान मथाई, बलदेव सिंह, शफात अहमद खान, जगजीवन राम, अली जहीर और सी. एच. भाभा शामिल थे. इसमें 2 और मुस्लिम सदस्यों को शामिल किया जाना शेष था.

मुस्लिम लीग अंतरिम सरकार में शामिल नहीं हुई. जवाहर लाल नेहरु ने मोहम्मद अली जिन्ना से सरकार में शामिल होने का आग्रह किया और इसके लिए 15 अगस्त 1946 को बम्बई में उनके साथ बैठक भी की; लेकिन मुस्लिम लीग ने इसे स्वीकार नहीं किया 16 अगस्त 1946 को मुस्लिम लीग ने इन राजनीतिक घटनाक्रमों के विरोध में मुसलामानों से “सीधी कार्यवाही” के लिए आगे आने आने और बलिदान देने का आह्वान कर दिया. इससे देश में सांप्रदायिक टकराव शुरू हो गया.

इसके बाद भी मुस्लिम लीग को सरकार में शामिल किये जाने के प्रयास जारी रहे. अंततः 13 अक्टूबर 1946 को मुस्लिम लीग ने 5 सदस्य नामित करने की सहमति दे दी; मोहम्मद अली जिन्ना ने इसी दिन वायसराय लार्ड वावेल को पत्र लिखकर कहा की “प्रशासन की बागडोर पूरी तरह से कांग्रेस के हाथों सौंप देना घातक होगा और ऐसे मुसलमान सरकार में शामिल हो सकते हैं, जो भारतीय मुसलामानों की दृष्टि में सम्मान और विश्वास के पात्र नहीं हैं और ऐसे लोगों के मंत्री बनने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं”. अंतरिम सरकार में वित्त विभाग जैसा महत्वपूर्ण विभाग मुस्लिम लीग को दिया गया; लेकिन मुस्लिम लीग उस संवेदनशील वक्त में सरकार के संचालन को चलाने में सहयोग नहीं कर रही थी.

कांग्रेस अपनी तरफ से ऐसी कोई कार्यवाही नहीं करना चाहती थी, जिससे भारत की स्वतंत्रता में और विलम्ब होता. जुलाई 1946 में ही संविधान के स्वरुप को निर्धारित करने के लिए कांग्रेस ने अपनी तरफ से विशेषज्ञ समिति गठित कर ली और इस समिति ने संविधान का स्वरुप गढ़ना शुरू कर दिया. इस समिति के लिए संविधान के लक्ष्यों और उद्देश्यों के प्रस्ताव का प्रारूप जवाहरलाल नेहरु ने तैयार किया.

इसी विशेषज्ञ समिति के सदस्य के. एम. मुंशी ने लिखा है कि कुछ वाजिब कारणों से इस प्रारूप में “लोकतांत्रिक” शब्द नहीं रखा गया था क्योंकि मुस्लिम लीग के संविधान सभा में शामिल होने की संभावना थी और यह शब्द उन्हें अप्रिय लग सकता था. इसी कारण से प्रांतों को ज्यादा अधिकार देने और पूर्ण स्वायत्तता की नीति को इस प्रारूप में शामिल किया गया था.

इन्हीं घटनाक्रमों के बीच यह तय किया गया कि 9 दिसंबर 1946 को संविधान सभा की पहली बैठक होगी. संविधान सभा ने 9 दिसंबर 1946 से अपनी कार्यवाही शुरू की, लेकिन मुस्लिम लीग उसमें शामिल नहीं हुई. इतना ही नहीं मुस्लिम लीग को अपना निर्णय लेने और सभा में सहभागिता के लिए प्रेरित करने के लिए संविधान सभा में लगभग एक महीने तक कोई महत्वपूर्ण काम नहीं किया गया ताकि मुस्लिम लीग को यह कहने का मौका न मिले कि कांग्रेस या संविधान सभा मुस्लिम लीग की उपेक्षा करना चाहते हैं और उनकी मंशा लीग को प्रक्रिया में शामिल करने की है ही नहीं!


(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)

कैबिनेट मिशन भारत क्यों आया था?

ब्रिटिश सरकार से भारतीय नेतृत्व को शक्तियों के हस्तांतरण पर चर्चा करने के उद्देश्य से कैबिनेट मिशन भारत आया था। इसका उद्देश्य भारत की एकता की रक्षा करना और उसकी स्वतंत्रता प्रदान करना है।

कैबिनेट मिशन से क्या समझते हैं?

कैबिनेट मिशन भारत में संविधान निर्माण करने के तरीके पर विचार विमर्श करने के लिए आया था। यह ब्रिटिश भारत के निर्वाचित प्रतिनिधियों और देशी रियासतों के साथ वार्तालाप करके एक ऐसी आम सहमति बनाना चाहता था, जिससे एक निर्विवाद संविधान सभा का गठन किया जा सके।

कैबिनेट मिशन का क्या महत्व था?

इस मिशन को विशिष्ट अधिकार दिये गये थे तथा इसका कार्य भारत को शांतिपूर्ण सत्ता हस्तांतरण के लिये, उपायों एवं संभावनाओं को तलाशना थामिशन ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के प्रतिनिधियों के बातचीत की। मिशन ने सांप्रदायिक दंगों को रोकने के लिए हिंदु-मुस्लिम के बीच सत्ता साझेदारी की योजना बनाई।

कैबिनेट मिशन के सदस्य कौन कौन थे?

कैबिनेट मिशन फरवरी 1946 में एटली सरकार द्वारा भारत में भेजा गया एक उच्च शक्ति वाला मिशन था जो ब्रिटिश प्रधानमंत्री था। मिशन में तीन ब्रिटिश कैबिनेट सदस्य थे - पेथिक लॉरेंस, स्टैफ़ोर्ड क्रिप्स, और एवी अलेक्जेंडर।