जाति व्यवस्था के लाभ और दोष - jaati vyavastha ke laabh aur dosh

जाति व्यवस्था के दोष क्या हैं?

जाति व्यवस्था के दोष 1. श्रम की गतिशीलता पर प्रतिबंध – चूंकि व्यक्ति को अपनी जातीय व्यवसाय को ही करना पड़ता है, जिसे वह अपनी इच्छा अथवा अनिच्छा के अनुसार बदल नहीं सकता, अतएव इसने श्रम की गतिशीलता को रोका है। इससे गतिहीनता उत्पन्न हुई है।

जाति व्यवस्था क्या है गुण और दोष?

हर जाति का एक निश्चित व्यवसाय है जो पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होता है। जाति व्यवस्था व्यक्ति को जीवन साथी का चयन करने में भी मदद प्रदान करती है। जाति सदस्यों पर वैवाहिक प्रतिबंध लगाती है एवं उनको इन नियमों के अंतर्गत ही विवाह करना होता है। अतः जीवनसाथी का चयन अपनी ही जाति से करना पड़ता है।

जाति प्रथा का प्रमुख दोष क्या है?

जाति प्रथा के दोष श्रम की गतिशीलता का गुण समाप्त कर देती है– Caste सिस्टम ने काम या रोजगार को स्थायी रूप दे दिया है। लोग काम को अपनी पसन्द से छोड़ या अपना नहीं सकता और उसे अपनी जाति के निश्चित रोजगार को ही करना पड़ता है। चाहे वह उसे पसन्द हो या ना हो। इससे समाज की गतिशीलता ही खत्म हो जाती है।

जाति प्रथा का सबसे बड़ा दोष क्या है?

इसका सबसे बङा दोष छुआछुत की भावना है। परन्तु शिक्षा के प्रसार से यह सामाजिक बुराई दूर होती जा रही है। जाति प्रथा की कुछ विशेषताएँ भी हैं। श्रम विभाजन पर आधारित होने के कारण इससे श्रमिक वर्ग अपने कार्य मे निपुण होता गया क्योकि श्रम विभाजन का यह कम पीढियो तक चलता रहा था।