छत्तीसगढ़ के प्रथम संत कवि कौन है? - chhatteesagadh ke pratham sant kavi kaun hai?

धर्मदास (या, धनी धर्मदास ; १४३३ - १५४३ अनुमानित) कबीर के परम शिष्य और उनके समकालीन सन्त एवं हिन्दी कवि थे। धनी धर्मदास को छत्तीसगढ़ी के आदि कवि का दर्जा प्राप्त है। कबीर के बाद धर्मदास कबीरपंथ के सबसे बड़े उन्नायक थे।

परिचय[संपादित करें]

भक्त धर्मदास जी का जन्म सन् 1405 (वि.सं. 1462) में मध्यप्रदेश के बांधवगढ़ नगर में हिन्दू धर्म तथा वैश्य कुल में हुआ था। वह कबीर जी के समकालीन थे। कलयुग में जब कबीर जी संवत् 1455 (सन् 1398) से संवत् 1575 (सन् 1518) तक लीला करने के लिए काशी में प्रकट हुए। भक्त धर्मदास जी बहुत बड़े साहुकार थे। धर्मदास जी के विषय में ऐसा कहा जाता है कि वह इतने धनी थे कि जब कभी बांधवगढ के नवाब पर प्राकृतिक आपदा (जैसे अकाल गिरना, बाढ़ आना) आती थी तो वे धर्मदास जी के पूर्वजों से वित्तिय सहायता प्राप्त करते थे। । धर्मदास जी का जन्म हिन्दू धर्म में होने के कारण वह लोक वेद के आधार से प्रचलित धार्मिक पूजांए अत्यंत श्रद्धा व निष्ठा से किया करता थे। उन्होंने श्री रूपदास जी वैष्णों सन्त से दिक्षा ले रखी थी। संत रूपदास जी ने धर्मदास जी को श्री राम व श्री कृष्ण नाम का जाप भगवान शंकर जी की भी पूजा ओम् नमोः शिवाय्, एकादशी का व्रत आदि आदि क्रियाए करने को कह रखा था। वह नित्य ही गीता जी का पाठ करते तथा श्री विष्णु जी को ईष्ट रूप में मानकर पूजा करते थे। श्री रूपदास जी ने धर्मदास जी को अड़सठ तीर्थों की यात्रा करना भी अत्यंत लाभप्रद बता रखा था। जिस कारण भक्त धर्मदास जी अपने पूज्य गुरुदेव संत रूपदास जी की आज्ञा लेकर अड़सठ तीर्थों के भ्रमण के लिए निकल पढे। भक्त धरमदास (धर्मदास) जी को कबीर के शिष्यों में सर्वप्रमुख माना जाता है। इनकी पत्नी का नाम अमीनी था और इनके नारायणदास एवं चूड़ामणि नामक दो पुत्र भी थे जिनमें से प्रथम कबीर साहेब जी के प्रति विरोधभाव रखता था।

धर्मदास और जिंदा महात्मा[संपादित करें]

भक्त धर्मदास जी ने जिन्दा संत के वेश में विराजमान परमेश्वर कबीर साहेब जी को एक मुसलमान श्रद्धालु जिज्ञासु जाना क्योंकि कबीर जी गीता जी के ज्ञान में अत्यधिक रुचि ले रहे थे। धर्मदास जी ने मन-मन में सोचा कि लगता है इस भक्त को गीता ज्ञान बहुत पसन्द आ रहा है क्यों नया इनको और भी गीता का ज्ञान ही सुनाया जाए, हो सकता है इस पुण्यात्मा को यह पवित्रा गीता ज्ञान समझ में आ और यह मेरे गुरुदेव रूपदास जी से नाम दीक्षा लेकर अपना कल्याण करवा ले। परमेश्वर कबीर जी गीता जी का ज्ञान सुनकर ऐसी मुद्रा में बैठे थे मानों अभी और ज्ञान सुनने की भूख शेष है। भक्त धर्मदास जी ने वैष्णव संत वाली वेशभूषा धारण कर रखी थी जिससे वह एक वैष्णव संत व भगत दिखाई दे रहे थे। परमात्मा ने अपने आपको छुपा कर एक भक्त की भूमिका करते हुए भक्त धर्मदास जी से प्रार्थना की है वैष्णव संत ! आपके द्वारा बताया ज्ञान मुझे बहुत अच्छा लगा। मैं एक जिज्ञासु हूं। परमेश्वर (अल्लाह) की खोज में भटक रहा हूँ। कृप्या मुझे परमात्मा प्राप्ति की विधि बताईए। जिस से मेरा भी कल्याण हो जाए और जन्म-मरण से सदा के लिए छुटकारा हो जाए। परमेश्वर कबीर जी बोले कि हे वैष्ण संत जी. मैं आपको गुरु धारण कर लूंगा, आप मेरे गुरुदेव और मैं आपका शिष्य बन जाऊंगा, मुझे मोक्ष चाहिए। भक्त धर्मदास जी ने उत्तर दिया कि हे भक्त जिन्दा जी मैं आपका गुरु नहीं बन सकता क्योंकि मुझे शिष्य बनाने का आदेश नहीं है। आप मेरे साथ मेरे गुरुदेव के पास चलो मैं आपको उनसे उपदेश दिला दूंगा। जिन्दा रूपी परमेश्वर ने कहा कि हे वैष्णव संत ! जब तक मेरी शंकाओं का समाधान नहीं होगा तब तक मैं आपके गुरुदेव का शिष्य नहीं बन पाऊंगा। भक्त धर्मदास जी ने कहा कि आपकी शंकाओं का समाधान मैं कर सकता हूँ। जिन्दा रूप धारी परमेश्वर ने प्रश्न किया:- आपने बताया कि श्री विष्णु जी तथा श्री शिवजी अजर-अमर अर्थात् अविनाशी हैं। इनका जन्म नहीं हुआ, ये स्वयंभू हैं। भक्त धर्मदास जी बीच में ही बोल उठे कि कहा - मैं क्या अकेला कहता हूं, सर्व हिन्दू समाज कहता है तथा गुरुदेव जी ने बताया है कि यह महिमा वेदों तथा पुराणों में भी लिखी है। तब जिन्दा वेशधारी परमेश्वर ने कहा कि हे वैष्णव संत धर्मदास जी ! कृप्या मुझे ऋषि दतात्रोय जी की उत्पत्ति तथा सती अनुसूईया जी की कथा सुनाइए। धर्मदास जी ने अति प्रसन्नता पूर्वक कहा कि आपको सती अनुसूईया जी की महिमा तथा दतात्रोय की उत्पत्ति की कथा सुनाता हूं।

सन्दर्भ ग्रन्थ[संपादित करें]

  • ब्रह्मलीन मुनि: 'सद्गुरु श्री कबीर चरितम्' (बड़ोदा, १९६० ई.)
  • डॉ॰ केदारनाथ द्विवेदी : कबीर और कबीर पंथ : एक तुलनात्मक अध्ययन

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • कबीरदास
  • कबीरपन्थ

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • धरमदास (कविताकोश)
  • धर्मदास (भारतखोज)

छत्तीसगढ़ विशेष -  लेखन व संकलन -एमन दास मानिकपुरी

छत्तीसगढ़ के प्रथम संत कवि कौन है? - chhatteesagadh ke pratham sant kavi kaun hai?

-छत्तीसगढ़ के लोकभाषा अऊ राजभाषा छत्तीसगढी़ के प्रथम कवि संत जुढ़ावन (धनी धर्मदास जी साहेब) हरे। जेखर प्रमाण इतिहास अउ  शोध म पता चलथे। प्रकाशमुनी नाम साहेब जी उही वंश के पन्द्रहवां वंश गुरू आय।  अविभाजित छत्तीसगढ़ वर्तमान मध्यप्रदेश के प्रसिद्ध बांधवगढ़ म जुढ़ावन जी ल स्वयं कबीर साहेब हा अटल 42 वंश के आशीर्वाद दिस अऊ प्रभावित होके धनी धर्मदास नाम से संबोधित करिन, कबीर साहेब के आशिर्वचन अनुसार छत्तीसगढ़ म ये परंपरा आज भी हे। जुड़ावन (धरमदास जी साहब) के धर्मपत्नी आमिन माता छत्तीसगढ़ी के प्रथम कवयित्री हरे,  उंखर रचना आज भी चौंका आरती अऊ लोक गीत पंथी में सुने ल मिलथे।

छत्तीसगढ़ के प्रथम संत कवि कौन है? - chhatteesagadh ke pratham sant kavi kaun hai?

-पं रविशंकर शुक्ल विद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष अऊ "संत धनी धरमदास कबीरपंथ के प्रवर्तक" नामक ग्रंथ के लेखिका जेन कबीरपंथ म पीएचडी करके छत्तीसगढ़ के मान बढ़ाने वाली 🌼डा. सत्यभामा आडिल के शोधप्रबंध ल पढ़ो।

छत्तीसगढ़ के प्रथम संत कवि कौन है? - chhatteesagadh ke pratham sant kavi kaun hai?

क्रांतिकारी अऊ संत में जादा फरक नै होय, एक प्रकार से देखे जाए त संत क्रांतिकारी ही होता जेन अपन विचार अऊ ग्यान से क्रांति लाने। सकल संसार में कबीर साहेब से बड़े कोई क्रांतिकारी पैदा नै होय हे। क्रांति कैसे लाय जाथे ऐला कबीर से सीखना चाही आज ऐसे कोई जाति धरम नै हे जेमा कबीरपंथी नै होही ।
सैकड़ों सदी से कबीर पंथ के छत्तीसगढ़ मा प्रभाव हे।।
इंहा के लोक संस्कृति म कबीर अऊ कबीर पंथ के विचारधारा रचे बसे हे।
छत्तीसगढ़ अंचल के नाचा गम्मत  सुवा ददरिया कर्मा रहस पंथी पंडवाणी सबो लोक धरोहर कबीरपंथी दोहा साखी शबद रमैनी से पटे पढ़े हे।
कबीरधाम जिला प्राचीन काल से रिहिस अंग्रेज मन ल कबीरधाम केहे बर नै आत रिहिस त कबीरधा काहय ऊही धीरे धीरे बिगड़ के कवरधा होगे रिहिस।  नवा राज बने के बाद जब जोगी जी सरकार मा आइस तब पुराना जमाना  के रिकार्ड के आधार मा देख के नाम ल सुधारके साहेब के आशिर्वाद ले कबीरधाम करिस।

छत्तीसगढ़ के प्रथम संत कवि कौन है? - chhatteesagadh ke pratham sant kavi kaun hai?

-कबीर पंथ ल जाने बीना छत्तीसगढ़ ल समझ पाना कठिन हे, सिधवा सधवा छत्तीसगढ़ ऐसने नै बने हे ऐमा कबीर साहेब  जैसे सतपुरुष के बताय  रद्दा मा रेंगने वाला मन के सोच शामिल हे कबीरपंथी खूमान साव, कबीरपंथी लक्षमन मस्तुरिया, कबीरपंथी अमर दास, कबीरपंथी न्यायिइक दास झुमुक दास मन  के लहू बोहाय हे ऐ धरती म।

छत्तीसगढ़ के प्रथम संत कवि कौन है? - chhatteesagadh ke pratham sant kavi kaun hai?

-कबीरपंथी विचारधारा हा छत्तीसगढ़ के रग रग मा रचे बसे एकर विरोध करने वाला छत्तीसगढ़ के रखवार नै हो सके।
कुछ मन झूठा छत्तीसगढ़िया विचारधारा के आढ़ म दारु मांस अऊ हिंसा के समर्थन करत हे।
हमर छत्तीसगढ़ महतारी दया मया पिरित के भुईंया हे। कबीरपंथी गीत इहां के लोक म समाय हे।
-हम तोरे संगवारी कबीरा हो
-अरे बीरना रे चोला तोर एक दिन होहेय बीरना
-दिन चारी मैहरवा में खेली लेतेव हो दिन
-हीरा गवां गयो कचरे में
-जाये के बेरा काम आही हो सुमरले सत्यनाम
ऐसन हमर पुरखा मन के कतको कबीरपंथी गीत छत्तीसगढ़ के आज धरोहर होगे हे।
कबीरपंथी समाज संसारिक साधन विहिन होकर भी खुश रहता है शांति और सहजता इनके सुलभ मानवीय गुणों में शुमार है,  ये एक ऐसा समाज है जो सदैव परहित की कामना करता हुआ दया भाव से सम्रीध् रहता है। जैविक समानता के भाव से ओतप्रोत कबीरपंथ ने सदैव एक पथ पर चलने की प्रेरणा दी है सत्य के पथ पर, साहेब के पथ पर। राजनीतिक चटूकारिता और स्वार्थ वश कोई राह भटक जाए तो भी उसकी सद्बुधी के लिए साहेब से प्रार्थना करते है-
 कबीर तेरी झोपड़ी, गल कटियन के पास।
 जो करेगा सो भरेगा तू क्यों होत उदास।।

धनी धर्मदास छत्तीसगढ़ के प्रथम संत कवि के रूप में जाने जाथे। धनी धर्मदास साहब के रचनात्मक प्रभाव सबले जादा इहें हे-

‘‘अरजी भंवर बीच नइया हो,
साहेब पार लगा दे।

तन के नहुलिया सुरती के बलिया,
खेवनहार मतवलिया हो।

हमर मन पार उतरगे,
हमू हवन संग के जवईया हो।

माता पिता सुत तिरिया बंधु,
कोई नईये संग के जवईया हो।

धरमदास के अरज गोसांई,
आवागमन के मिटईया हो।

साहेब पार लगा दे।।‘‘

🌺धनी धर्मदास के रचना म भाव प्रधानता स्वयं झलकथे,  इंखर रचना के प्राणतत्व हे सत्यता यथार्थ मने कल्पनाशीलता से परे आत्म अनुभव सत्य ल उढेले के सफल प्रयास करे हे, धरमदास जी साहेब के छत्तीसगढ़ी बहुत उच्चकोटी के हे -
@सुवा@
पिंजरा तेरा झीना,
पढ़ ले रे सतनाम सुवा।

तोर काहे के पिंजरा,
काहे के लगे हे किंवाड़ी रे सुवा।

तोर माटी के पिंजरा,
कपट के लगे हे किंवाड़ी रे सुवा।

पिंजरा में बिलाई,
कैसे के नींद तोहे आवै रे सुवा।

तोर सकल कमाई,
साधु के संगति पाई रे सुवा।

धरमदास गारी गावै,
संतन के मन भाई रे सुवा।।‘‘

॥झूमर॥
कते हे दूर गुरु फुलवाड़ी,
हे गमक आवै केवड़ा के॥टेक॥

पाँच सखी मिली गेलौं फुलवाड़ी,
हे गमक आवै केवड़ा के॥1॥

इके हे हाथ फूल अलगावै,
हे गमक आवै केवड़ा के॥2॥

फुलवा जे लोढ़ि-लोढ़ि भरलौं चंगेरिया,
हे गमक आवै केवड़ा के॥3॥

संगहू के सखी सब दूर निकललै,
हे गमक आवै केवड़ा के॥4॥

आजू के बटिया लागै छै वियान,
हे गमक आवै केवड़ा के॥5॥

घोड़वा चढ़ल आवै सतगुरु साहब,
हे गमक आवै केवड़ा के॥6॥

धर्मदास यह अलख झूमरा गावै,
हे गमक आवै केवड़ा के॥7॥

लियहो गुरु शरण लगाय,
हे गमक आवै केवड़ा के॥8॥

छत्तीसगढ़ के परिपेक्छ में कहूं तो इसका भविष्य राजनीतिक स्वार्थ की शूली पर चढ़कर बूना जा रहा है। वर्ग विसंगतियों की आढ़ में चुनावी वोट को भूनाने के लिए सांस्कृतिक चोट पहुंचाने का सिलसिला शुरु हो गया है।
छोटे छोटे अबोध बच्चों को सार्वजनिक मांसाहार परोसने की तैयारी इसका प्रासंगिक उदाहरण है,  ऐसे में कोई संत आगे नहीं आएगा तो कौन बचाएगा?

संत प्रकाशमुनी नाम साहेब के इस पावण कदम में भी कुछ अवसरवादी तत्वों ने असभ्य राजनीति शुरु करने की चेष्ट की।
इसीलिए सद्गुरू कबीर साहेब ने कहा है---

तेरा मेरा मनवा कैसे एक होई रे?

मैं कहता आंखन की देखी
तू कहता कागज की लेखी

मैं कहता सुलझावन हारो
तू राखे अरझाई रे
मैं कहता जागत रहियो
तू जाता है सोई रे

तेरा मेरा मनवा कैसे एक होई रे?

छत्तीसगढ़ के प्रथम संत कवि कौन है? - chhatteesagadh ke pratham sant kavi kaun hai?