पवन या वायु क्या होती है कारण बताइए? - pavan ya vaayu kya hotee hai kaaran bataie?

पवन किसे कहते हैं (pawan kise kahate hain) –

पृथ्वी के धरातल पर वायुदाब की भिन्नता के कारण गतिशील वायु को पवन (pawan) कहते हैं अर्थात पवन प्रकृति का वह प्रयत्न है, जिसके द्वारा वायुदाब की असमानता को दूर करने का प्रयास किया जाता है! पवने अधिक दाब से कम दाब की ओर प्रवाहित होती हैं और उनकी गति इन्हीं वायुदाबो के अंतर पर निर्भर करती है! वायुदाब में जितनी अधिक भिन्नता होगी, पवनों की गति उतनी ही तीव्र होगी! वायुदाब में पाए जाने वाला यह अंतर वायुदाब प्रवणता (Pressure Gradient) कहलाता है! 

पवन के प्रकार (pawan ke prakar) – 

पवनों के निम्नलिखित प्रकार होते हैं –
(1) प्रचलित पवनें (prachalit pawan )

(2) सामयिक पवने (samayik pawan ) 

(3) स्थानीय पवने (sthaniya pawan )

(1) प्रचलित पवनें किसे कहते हैं (prachalit pawan kise kahate hain) – 

प्रचलित या भूमंडलीय पवनें, वे पवनें होती हैं, जो प्रायः वर्षभर एक निश्चित दिशा में चलती हैं! ये पवनें स्थाई और निश्चित होती है! इन पवनों के प्रवाह के लिए गृह संबंधी पवनों का नियम लागू होता है! ग्लोब पर उच्च तथा निम्न वायुदाब पेटियों के मध्य ये पवनें स्थाई रूप से चलती है! व्यापारिक पवनें, पछुआ पवनें व ध्रुवीय पवनें इन्ही  पवनों के उदाहरण है!  

व्यापारिक पवने किसे कहते हैं (vyaparik pawan kise kahate hain) – 

उपोष्ण उच्च दाब कटिबंध से भूमध्य रेखीय निम्न दाब कटिबंध की ओर चलने वाली स्थाई पवनों को व्यापारिक पवनें कहा जाता है! ये 30° से भूमध्य रेखा और की ओर चलती है! इन्हें अंग्रेजी Trade Winds कहा जाता है!
जहां Trade शब्द अंग्रेजी का नहीं, अपितु जर्मन भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता निश्चित मार्ग! चूंकि व्यापारिक पवनें एक निश्चित मार्ग का अनुसरण करती है इसलिए इन्है (Trade Winds) कहा जाता है!    

पछुआ पवनें किसे कहते हैं (pachua pawan kise kahate hain) – 

उपोष्ण उच्च दाब कटिबंध से उप ध्रुवीय निम्न वायुदाब कटिबंध की ओर चलने वाली पवनों को पछुआ पवन कहा जाता है! उत्तरी एवं दक्षिणी गोलार्ध दोनों में यह पवनें 35° से 66° अक्षांश के मध्य चलती है! पृथ्वी के परिभ्रमण गति के कारण इनके प्रवाह की दिशा उत्तरी गोलार्ध में दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व तथा दक्षिणी गोलार्ध में उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व प्रवाहित होती हैं! 

उत्तरी गोलार्ध की अपेक्षा दक्षिणी गोलार्ध में इन पवनों का प्रवाह अधिक स्थाई तथा निश्चित होता है, क्योंकि दक्षिणी गोलार्द्ध में 40° से 65° अक्षांशों के मध्य स्थलखंड न होने के कारण मार्ग में रुकावट नहीं होती हैं! इसलिए उत्तरी गोलार्ध की अपेक्षा दक्षिणी गोलार्ध यह पवनें प्रचंड वेग से बहती है! 

इनके प्रखंड वेग के कारण ही यहां के अक्षांश को गरजता चालीसा, प्रचंड पचासा तथा चीखता साठा कहा जाता है! यह नाम नाविकों ने दिए हैं! पश्चिमी यूरोपीय तुल्य जलवायु के विकास के कारण यही पवनें हैं, जो वहां तापमान में वृद्धि एवं चक्रवाती वर्षा का महत्वपूर्ण कारक है! 

ध्रुवीय पवनें किसे कहते हैं (Polar winds in hindi) – 

ध्रुवीय उच्च वायुदाब की पेटियां से उपध्रुवीय निम्न वायुदाब की पेटियां की ओर प्रवाहित होने वाली पवनों को ध्रुवीय पवनों के नाम से जाना जाता है! तापमान कम होने से इनकी जलवाष्प धारण करने की क्षमता अत्यंत कम होती है! यह अत्यंत ठंडी एवं बर्फीली होती हैं! 

उपध्रुवीय निम्न वायुदाब कटिबंध में ध्रुवीय एवं पछुआ पवनों के टकराने से शीतोष्ण कटिबंध चक्रवातों का जन्म होता है, जो इन क्षेत्रों में व्यापक वृष्टि तथा परिवर्तनशील मौसम के लिए उत्तरदाई होते हैं! 

(2) सामयिक पवनें किसे कहते हैं (Seasonal Winds in hindi) –

जिन पवनों की दिशा मौसम व समय के अनुसार बदलती रहती है, उन पवनों को सामयिक पवनें कहते हैं! जैसे –  मानसून पवनें, समुद्र समीर एवं स्थल समीर आदि! 

मानसूनी पवने किसे कहते हैं (Monsoon winds in hindi) – 

धरातल कि वे सभी पवनें जिनके दिशा में मौसम के अनुसार पूर्ण परिवर्तन आ जाता है, वह मानसून पवनें से कहलाती हैं! ये पवनें में ग्रीष्म ऋतु में छह माह समुद्र से स्थल की ओर तथा शीत ऋतु में छह माह स्थल से समुद्र की ओर चलती है! ऐसा समुद्र व स्थल के तापमान एवं वायुदाब में होने वाले परिवर्तन के फलस्वरुप होता है! इनकी उत्पत्ति कर्क, मकर रेखा के मध्य व्यापारिक पवनों की पेटी में होती है! 

समुद्र समीर एवं स्थल समीर – 

समुद्र समीर तब प्रवाहित होती है, जब दिन के समय सूर्य गर्मी से स्थलीय भाग जलीय भाग की अपेक्षा अधिक गर्म हो जाता है और स्थलीय भाग पर तापमान बढ़ने से निम्न वायुदाब की स्थिति उत्पन्न हो जाती है! 

इसके फलस्वरूप समुद्र से पवनें स्थल भाग की ओर चलने लगती है इन पवनों से स्थल भाग का तापमान गिर जाता है और कभी कभी कुछ मात्रा में वर्षा भी होती है! क्योंकि यह पवने सागर से स्थल की ओर बहती है, इसलिए इन्हें समुद्र समीर कहा जाता है! 

स्थल समीर रात्रि के समय स्थल भाग के तापमान में कमी होने के कारण और समुद्र भाग में तापमान के अधिकता के कारण स्थलीय भाग में अधिक अपेक्षाकृत अधिक वायुदाब रहता है, जिसके कारण समुद्र तटों पर रात्रि के समय हवाएं स्थल से समुद्र की ओर चलती है! इन्है स्थलीय समीर कहा जाता है! यह हवाएं शुष्क होती है! 

पर्वतीय समीर एवं घाटी समीर – 

घाटी समीर, वे पवनें होती हैं जो दिन के समय अधिक तापमान के कारण घाटी से प्रभावित होती है! जब घाटी में तापमान बढ़ने के कारण पवन गर्म व हल्की हो जाती है तो पर्वतीय ढाल के सहारे ये पवन ऊपर की ओर चढ़ती है! यह पवन ऊपर जाकर ठंडी हो जाती है और कभी कभी दोपहर में वर्षा करवाती है! 

ये पवनें भी तापमान के दैनिक परिवर्तन के कारण उत्पन्न होती है! रात्रि के समय पर्वत शिखर की पवने तापमान घटने के कारण ठंडी एवं भारी हो जाती है तथा पर्वत शिखर से घाटी के तल की ओर प्रवाहित होने लगती है! ऐसी पवनों को पर्वतीय समीर कहा जाता है! ये पर्वत के ढाल के सारे नीचे उतरती है! 

(3) स्थानीय पवनें किसे कहते हैं (sthaniya pawan kise kahate hain)- 

किसी स्थान विशेष में प्रचलित हवाओं के विपरीत चलने वाली पवनों को स्थानीय पवने कहा जाता है! ये पवनें तापमान एवं वायु दाब के स्थानीय अंतर से चला करती हैं और बहुत छोटे क्षेत्र को प्रभावित करती है! प्रमुख स्थानीय पवने इस प्रकार है – शिनूक, फॉन, सिराको, बोरा, मिस्ट्रल आदि

प्रश्न :- लू किसे कहते हैं?

उत्तर :- उत्तर पश्चिम भारत के शुष्क भागों में ग्रीष्म ऋतु में चलने वाली गर्म एवं शुष्क हवाओं को लू (loo) कहा जाता है!

प्रश्न :- समुद्र समीर किसे कहते हैं

उत्तर :- स्थल समीर रात्रि के समय स्थल भाग के तापमान में कमी होने के कारण और समुद्र भाग में तापमान के अधिकता के कारण स्थलीय भाग में अधिक अपेक्षाकृत अधिक वायुदाब रहता है, जिसके कारण समुद्र तटों पर रात्रि के समय हवाएं स्थल से समुद्र की ओर चलती है! इन्है स्थलीय समीर कहा जाता है! यह हवाएं शुष्क होती है!

प्रश्न :- पछुआ पवन किसे कहते हैं

उत्तर :- उपोष्ण उच्च दाब कटिबंध से उप ध्रुवीय निम्न वायुदाब कटिबंध की ओर चलने वाली पवनों को पछुआ पवन कहा जाता है! उत्तरी एवं दक्षिणी गोलार्ध दोनों में यह पवनें 35° से 66° अक्षांश के मध्य चलती है! पृथ्वी के परिभ्रमण गति के कारण इनके प्रवाह की दिशा उत्तरी गोलार्ध में दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व तथा दक्षिणी गोलार्ध में उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व प्रवाहित होती हैं! 

प्रश्न :- पवन किसे कहते हैं

उत्तर :- पृथ्वी के धरातल पर वायुदाब की भिन्नता के कारण गतिशील वायु को पवन (Wind) कहते हैं अर्थात पवन प्रकृति का वह प्रयत्न है, जिसके द्वारा वायुदाब की असमानता को दूर करने का प्रयास किया जाता है! पवने अधिक दाब से कम दाब की ओर प्रवाहित होती हैं और उनकी गति इन्हीं वायुदाबो के अंतर पर निर्भर करती है!

पवन उत्पन्न होने का मुख्य कारण क्या है?

Solution : पृथ्वी के ऊपर की वायु सूर्य के विकिरणों से गर्म होकर हल्की हो जाती है और ऊपर उठ जाती है। इस प्रकार वायु का दाब कम हो जाता है। अत: समुद्र के ऊपर की वायु कम दाब वाले क्षेत्र की तरफ बहने लगती है। यह बहती हुई वायु पवन कहलाती है।

वायुदाब और पवन क्या है?

पवन (Wind): पृथ्वी के धरातल पर वायुदाब में क्षैतिज विषमताओं के कारण हवा उच्च वायुदाब क्षेत्र से निम्न वायुदाब क्षेत्र की ओर बहती है. क्षैतिज रूप से इस गतिशील हवा को पवन कहते हैं. ऊर्ध्वाधर दिशा में गतिशील हवा को वायुधारा ( Air current) कहते हैं.

पवन हवा और वायु में क्या अंतर है?

वायु का मतलब हवा होता है। पवन का मतलब “चलती हुई हवा”। अंग्रेजी में बोले तो वायु मतलब 'Air'। पवन मतलब 'Breeze'।

पवन किसे कहते हैं और यह कितने प्रकार के होते हैं?

गतिशील वायु को पवन (wind) कहते हैंयह गति पृथ्वी की सतह के लगभग समानांतर रहती है। पृथ्वी से कुछ मीटर ऊपर तक के पवन को सतही पवन और 200 मीटर या अधिक ऊँचाई के पवन को उपरितन पवन कहते हैं