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कबीर दास के प्रसिद्ध दोहे (Kabir Das Ke Dohe in Hindi with Meaning): संत कबीर दास जी के दोहे समाज को एक नई दिशा देने का कार्य करते हैं। कबीर ने अपने दोहों के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराइयों पर प्रहार किया एवं समाज का मार्गदर्शन किया है। कबीर का प्रत्येक दोहा अपने अंदर अथाह अर्थ समाया हुआ है। उनके दोहे के एक-एक शब्द का वास्तविक, आध्यात्मिक एवं भावनात्मक अर्थ बहुत गहरा होता है। इस पोस्ट में आपको मिलेंगे संत कबीर दास के प्रसिद्ध दोहे (Kabir Das Ke Dohe, Kabir Dohe, Kabir Das Ji Ke Dohe, Kabir Ke Dohe in Hindi, Kabir Das Dohe, Kabir Doha, Kabir Dohe in Hindi, Sant Kabir ke Dohe, Kabir Dohe in Hindi, Kabir Das ke dohe with explanation in hindi)। जो आपको जिंदगी जीने का एक नया रास्ता दिखाते हैं। कबीर दास के प्रसिद्ध दोहे (Famous Dohe of Kabir Das)दोहा – 01साई इतना दीजिये, जामें कुटुंब समाय। अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि हे परमात्मा मुझे बस इतना दीजिये जिससे कि मेरे परिवार का भरण पोषण हो सके। जिससे मैं अपना भी पेट भर सकूं और मेरे द्वार पर आया हुआ कोई भी साधु-संत कभी भूखा न जाये। Kabir Ke Dohe with meaning in Hindi दोहा – 02गुरु गोविन्द
दोऊ खड़े, काके लागूं पायं। अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि मेरे सम्मुख गुरु और ईश्वर दोनों खड़े हैं और मैं इस दुविधा में हूँ की पहले किसके चरण स्पर्श करूँ। लेकिन इस स्थिति में पहले गुरु के चरण स्पर्श करना ही उचित है क्योंकि गुरु ने ही ईश्वर तक जाने का मार्ग बताया है। दोहा – 03यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान। अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि यह शरीर विष से भरा हुआ है और गुरु अमृत की खान है। यदि आपको अपना सर अर्पण करके भी सच्चा गुरु मिलता है, तो भी यह सौदा बहुत सस्ता है। दोहा – 04लम्बा मारग, दूरि घर, विकट पंथ बहु मार। अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि घर बहुत दूर है और वहां का रास्ता बहुत लम्बा तथा अत्यंत कठिन है जिसमे अनेक प्रकार के ठग हैं। हे संतों आप ही बताइये कि परमात्मा का दुर्लभ दर्शन कैसे प्राप्त हो सकता है। कबीर दास के प्रसिद्ध दोहे (Kabir Dohe) यह भी पढ़ें: आत्मविश्वास बढ़ाने के 10 महत्वपूर्ण तरीके दोहा – 05जब मैं था, तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नाहि। अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि जब तक मेरे अंदर “मैं” अर्थात अहंकार का भाव था तब तक परमात्मा मुझसे दूर थे, अब जब मेरे अंदर से “मैं” अर्थात अहंकार हो गया है तो परमात्मा मुझे मिल गए हैं। जब मैंने ज्ञान रूपी दीपक के उजाले में अपने अंदर देखा तो मेरे अंदर व्याप्त अहंकार रूपी अँधेरे का नाश हो गया। कहने का तात्पर्य यह है कि परमात्मा की प्राप्ति के लिए अहंकार का त्याग आवश्यक है। दोहा – 06मेरा मुझमे कुछ नहीं,
जो कुछ है सो तोर। अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि मुझमे मेरा कुछ भी नहीं है, जो कुछ है वो सब तेरा (परमात्मा का) है। यदि परमात्मा का परमात्मा को सौंप दिया जाये तो मेरा क्या है। भाव यह है कि मनुष्य अपने अहंकार में हमेशा मेरा-मेरा करता रहता है जबकि उसका कुछ भी नहीं हैं सब परमात्मा का है। दोहा – 07कबीर कूता राम का, मुतिया मेरा नाउं। अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि मैं तो राम का कुत्ता हूँ और मोती मेरा नाम है। मेरे गले में राम नाम की जंजीर है, जिधर वह ले जाता है मैं उधर ही चला जाता हूँ। कबीर के दोहे हिंदी अर्थ के साथ (Dohe of Kabir In Hindi) दोहा – 08कबीरा आप ठगाइये, और न ठगिये कोय। अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि आप यदि ठगे जाते हैं तो कोई बात नहीं। लेकिन आप किसी को ठगने का प्रयास मत कीजिये। यदि आप ठगे जाते हैं तो आपको सुख का अनुभव होता है क्योंकि आपने कोई अपराध नहीं किया है। लेकिन यदि आप किसी और को ठगते हैं तो आप अपराध करते हैं जिससे आपको दुःख ही होता है। दोहा – 09माटी कहे कुम्हार से, तू क्या
रोंदे मोहे। अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि मिट्टी कुम्हार से कहती है कि तुम मुझे क्या रौंदते हो, एक दिन ऐसा आएगा जब तुम भी इसी मिटटी में मिल जाओगे, तब मैं तुम्हे रौंदूंगी। भाव यह है कि समय हमेशा एक जैसा किसी का नहीं रहता है। किसी भी चीज का अभिमान नहीं करना चाहिए। दोहा – 10दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय। अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि सभी लोग दुःख में परमात्मा का स्मरण करते हैं, लेकिन जब सुख आता है तो कोई भी परमात्मा का स्मरण नहीं करता है। यदि सुख में परमात्मा का स्मरण किया जाये तो जीवन में दुःख ही क्यों होगा। दोहा – 11दुर्बल को न सताइये, जाकी मोटी हाय। अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि कभी भी किसी दुर्बल व्यक्ति को मत सताइये। क्योंकि दुर्बल की बददुआ में बहुत शक्ति होती है जो किसी को भी नष्ट करने की ताकत रखती है। ठीक उसी प्रकार जैसे निर्जीव खाल से लोहे को भी भस्म किया जा सकता है। Kabir Ke Dohe with Meaning In Hindi Language, Kabir Das Dohe In Hindi, Sant Kabir Dohe दोहा – 12ऐसी वाणी बोलिये मन का आपा खोय। अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि अपने मुख से ऐसी वाणी का इस्तेमाल कीजिये जो दूसरों को शीतलता का अहसास कराये और जिससे स्वयं को भी शीतलता का अनुभव हो। कबीर के प्रसिद्ध दोहे (Kabir Dohe with Hindi Meaning) दोहा – 13कबीरा खड़ा बाजार में, मांगे सबकी खैर। अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि हम इस संसार में सबका भला सोचें। किसी से यदि हमारी दोस्ती न हो तो किसी से दुश्मनी भी न हो। दोहा – 14नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाये। अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि कितना भी नहा धो लीजिये, यदि मन का मैल ही न धुले तो ऐसे नहाने धोने का क्या फायदा। जिस प्रकार मछली हमेशा पानी में ही रहती है लेकिन फिर भी उससे बदबू नहीं जाती। यह भी पढ़ें: सफलता के रहस्य दोहा – 15पाहन पूजें हरि मिलें, तो मैं पूजूँ पहार। अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि अगर पत्थर पूजने से परमात्मा की प्राप्ति होती तो मैं पहाड़ की पूजा करूँ। इससे अच्छी तो यह चक्की है जिसका पीसा हुआ आटा समस्त संसार खाता है। दोहा – 16प्रेम प्याला जो पिए, शीश दक्षिणा दे। अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि प्रेम का प्याला वही पी सकता है जो अपने सर का बलिदान करने के लिए तैयार हो। एक लालची इंसान चाहे कितना भी प्रेम-प्रेम जप ले वह कभी भी अपने सर का बलिदान नहीं दे सकता। Sant Kabir ke Dohe दोहा – 17ऊँचे कुल का जनमियाँ, करनी ऊंच न होय। अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि व्यक्ति का ऊँचे कुल में जन्म लेने का क्या लाभ जो उसके कर्म ही अच्छे न हों। यदि स्वर्ण कलश में मदिरा भरी हो तो भी सज्जन उसकी निंदा ही करते हैं। दोहा – 18माली आवत देख के, कलियान करी पुकार। अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि माली को आता देखकर, कलियाँ पुकारती हैं कि आज जो फूल बन गए थे उन्हें माली ने तोड़ लिया। अब कल हमारी बारी है क्योंकि कल हम भी फूल बन जायेंगे तब माली हमें भी तोड़ लेंगे। दोहा – 19साँच बराबर तप नहीं, झूट बराबर पाप। अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि इस संसार में सत्य के सामान कोई तपस्या नहीं है तथा झूट के सामान कोई पाप नहीं है। जिसके ह्रदय में सत्य होता है वहां साक्षात् परमात्मा का वास होता है। दोहा – 20बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिल्या कोय। अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि जब मैं इस संसार में बुराई ढूंढने निकला तो मुझे कोई बुरा नहीं मिला। जब मैंने अपने अंदर झांककर देखा तो पाया की मुझसे बुरा कोई नहीं है। Dohe of Kabir In Hindi दोहा – 21बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर। अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि ऐसे बड़े होने का भी क्या फायदा है जैसे खजूर का पेड़ होता है। जो यात्रियों को छाया भी नहीं देता और जिसके फल भी इतनी दूर लगते हैं जिनको कोई तोड़ भी नहीं सकता। दोहा – 22अंषड़ियाँ झाईं पड़ी, पंथ निहारी-निहारी। अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि परमात्मा से मिलन की राह देखते देखते अब आँखें थक गयी हैं। मुहं से परमात्मा का नाम लेते लेते अब जीभ में भी छाले पड़ गए हैं लेकिन अभी तक परमात्मा के दर्शन नहीं हुए हैं। दोहा – 23पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय। अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि पुस्तकों को पढ़ पढ़कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु को प्राप्त हो गए लेकिन कोई पूर्ण ज्ञानी नहीं बन पाया है। कबीरदास जी कहते हैं कि यदि कोई प्रेम के ढाई अक्षर पढ़ले अर्थात प्रेम को समझ जाये तो वही सच्चा पंडित या ज्ञानी कहलाने योग्य है। दोहा – 24कागा काको धन हरे, कोयल काको देय। अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि कौवा किसी का धन नहीं लेता है फिर भी कोई उसे पसंद नहीं करता है। कोयल किसी को धन नहीं देती फिर भी वह सबको प्रिय होती है। इसका कारण है कोयल अपनी मीठी वाणी से सबका मन मोह लेती है और समस्त संसार को अपना बना लेती है। जबकि कौवा अपनी कर्कश ध्वनि से किसी को पसंद नहीं आता। संत कबीर दास के प्रसिद्ध दोहे (Dohas of Kabir In Hindi) दोहा – 25काल करे सो आज कर, आज करे सो अब। अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि जो कार्य कल करना चाहते हो वह आज ही पूरा कर दो और जो आज करना चाहते हो उसे अभी पूरा कर दो। पल भर में जीवन समाप्त हो जायेगा फिर तुम अपने उस कार्य को कब कर पाओगे। दोहा – 26माला फेरत जग गया, गया न मन का फेर। अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि माला फेरते हुए कई युग बिता दिए लेकिन मन की अशांति नहीं मिट पायी। हाथों से माला को जपना छोड़कर मन से माला को जपो अर्थात मन से परमात्मा का स्मरण करो तभी मन की अशांति मिट सकती है। दोहा – 27जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान। अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि सज्जन व्यक्ति से कभी भी उसकी जाति नहीं पूछनी चाहिए। वरन उसे कितना ज्ञान है यह देखना चाहिए। ठीक उसी प्रकार जैसे मूल्य तलवार का होता है म्यान का नहीं। दोहा – 28जहाँ दया तहाँ धर्म है, जहाँ लोभ तहाँ पाप। अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि जहाँ दया होती है वहां धर्म होता है। जहाँ लालच और क्रोध होता है वहां पाप होता है। जहाँ क्षमा होती है वहां ईश्वर का वास होता है। Kabir Das Ji ke Dohe Hindi Me दोहा – 29कस्तूरी कुण्डल बसे, मृग ढूंढे बन माहिं। अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि मृग की अपनी ही नाभि में कस्तूरी रहती है लेकिन ज्ञान के अभाव के कारण मृग उसे सम्पूर्ण जंगल में ढूंढता रहता है। ठीक उसी प्रकार संसार के कण कण में परमात्मा का वास है लेकिन ज्ञान के अभाव के कारन संसार उन्हें नहीं देख पाता है। दोहा – 30करता
था सो क्यों किया, अब कर क्यों पछिताय। अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि जिन बुरे कार्यों को तू करता था वह तूने क्यों किये। अब करने के बाद पछताने से क्या लाभ होगा। यदि बबूल का पेड़ बोया है तो पेड़ पर बबूल के ही फल लगेंगे, उसमे आम के फल नहीं लग सकते। कबीर दास जी समझा रहे हैं कि इंसान जैसा कर्म करेगा, उसे वैसा ही फल मिलेगा। दोहा – 31चलती चक्की देख के दिया कबीरा रोय। अर्थ: चलती हुई चक्की (अनाज को पीसने वाले पत्थरों की दो गोलाकार आकृति) को देखकर कबीर रोने लगे। कबीर देखते हैं कि चक्की के इन दो भागों (दो पत्थरों) के बीच में आने वाला हर दाना कैसे बारीक पिस गया है और कोई भी दाना साबूत नहीं बचा है। यह भी पढ़ें: समय कैसे बचाएँ? Kabir Dohe Hindi, Dohe Kabir, दोहा – 32निंदक नियरे रखिये, आंगन कुटि छबाय। अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि निंदा करने वाले व्यक्ति को हमेशा अपने पास ही रखना चाहिए। ऐसा आदमी हमारी कमियों को बताकर हमारे स्वभाव को बिना साबुन और पानी के साफ़ कर देता है। Kabir Ji Ke Dohe दोहा – 33लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट। अर्थ: यह राम नाम की लूट है, जितना लूटना चाहो, लूट लो। क्योंकि जब यह शरीर छूट जायेगा तब बहुत पछताओगे। दोहा – 34पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात। अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि मनुष्य जीवन पानी के एक बुलबुले की भांति है। जैसे पानी का बुलबुला केवल थोड़ी देर के लिए ही बनता है और शीघ्र नष्ट हो जाता है। मनुष्य जीवन भी थोड़े समय में ठीक उसी प्रकार नष्ट हो जाता है जैसे सुबह होने पर आसमान में सभी तारे छिप जाते हैं। दोहा – 35आय हैं सो जायेंगे, राजा रंक फ़क़ीर। अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि जो इस संसार में आया है चाहे वह कोई अमीर हो या गरीब वह एक न एक दिन इस संसार से चला जाता है। अंत समय में सब एक ही जंजीर से बांधकर ले जाये जायेंगे। दोहा – 36यह तन काचा कुम्भ है, लिया फिरै था साथ। अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि यह शरीर एक कच्चे घड़े के समान है जिसको तुम इतने अभिमान के साथ लिए घुमते हो। यह एक धक्का लगने से ही फूट जाता है और हाथ कुछ नहीं आता है। Kabir Ke Dohe With Meaning दोहा – 37कुटिल वचन सबसे बुरा, जारि कर तन हार। अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि कड़वे वचन सबसे बुरे होते हैं जो हमारे शरीर में जलन पैदा करते हैं। जबकि मीठे वचन शीतल जल के समान होते हैं जिससे ऐसा लगता है जैसे अमृत की वर्षा हो रही हो। दोहा – 38राज पाट धन पायके, क्यों करता अभिमान। अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि राज पाठ धन सम्पदा पाकर तू इतना अभिमान क्यों करता है। जो दशा तेरे पडोसी की हुई है वही दशा तेरी भी होगी। कहने का भाव है की जो इस धन सम्पदा पर इतना गर्व करते थे वह भी मृत्यु से नहीं बच पाए फिर इस पर इतना गर्व क्यों करते हो। जिस प्रकार राज पाठ तथा अपार धन सम्पदा होने पर भी वह मृत्यु को प्राप्त हो गए। उसी प्रकार तेरा यह अभिमान भी एक दिन समाप्त हो जायेगा। दोहा – 39राम बुलावा भेजिया, दिया कबीरा रोय। अर्थ: जीवन के अंत समय आने पर जब परमात्मा ने बुलावा भेजा तो कबीर रो पड़े और सोचने लगे की जो सुख साधु संतों के सत्संग में है वह बैकुंठ में नहीं है। कबीर दास जी कहते हैं कि सज्जनों के सत्संग के सम्मुख वैकुण्ठ का सुख भी फीका है। Kabir Ke Dohe Hindi दोहा – 40ज्यों तिल माहि तेल है, ज्यों चकमक में आग। अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि जैसे तिल के अंदर ही तेल है और अग्नि के अंदर ही प्रकाश है। ठीक उसी प्रकार ईश्वर को भी इधर उधर ढूंढने की जरुरत नहीं है क्योंकि हमारा ईश्वर हमारे अंदर ही है, यदि हम ढूंढना चाहें तो उसे ढूंढ सकते हैं। दोस्तों, उम्मीद है आपको यह लेख ” Kabir Das Ke Dohe in Hindi with Meaningपसंद आया होगा। यदि आपको यह Kabir Ke Dohe अच्छे लगे हो तो इसे अन्य व्यक्तियों तक भी शेयर कीजिये। धन्यवाद यह भी पढ़ें: जिंदगी के प्रेरणादायक विचार Good Morning Hindi Message प्यार पर दिल को छू जाने वाले खूबसूरत विचार मातृ दिवस पर खूबसूरत पंक्तियाँ अच्छी आदतें जो आपकी जिंदगी बदल देंगी कबीर के दोहों को और क्या कहा जाता है?कबीर ने श्रोता (ईश्वर) को साक्षी मानकर अपने दोहों की रचना की इसलिए इनके दोहों को 'साखी' कहा जाता है। साखी का अर्थ है साक्षी अर्थात् गवाही। कबीर ने जो कुछ आँखों से देखा उसे अपने शब्दों में व्यक्त करके लोगों को समझाया।
कबीर के दोहों का अर्थ?भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि खजूर का पेड़ बेशक बहुत बड़ा होता है लेकिन ना तो वो किसी को छाया देता है और फल भी बहुत दूरऊँचाई पे लगता है। इसी तरह अगर आप किसी का भला नहीं कर पा रहे तो ऐसे बड़े होने से भी कोई फायदा नहीं है। निंदक नियेरे राखिये, आँगन कुटी छावायें । बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाए ।
कबीर के दोहों को किस नाम?कबीर के दोहों को साखी के नाम से जाना जाता है। साखी शब्द संस्कृत भाषा के साक्षी शब्द का ही अपभ्रंश रूप है। इसका अर्थ है प्रत्यक्ष देखने वाला यानी जो साक्षी हो। सभी ने जो भी दोहे रचे हैं, उन्हें कबीर की साखी के नाम से जाना जाता है।
कबीर के दोहों को क्या कहा जाता है * 2 points?कबीर के दोहों को साखी क्यों कहा जाता है? उत्तर:- कबीर के दोहों को साखी इसलिए कहा जाता है क्योंकि इनमें श्रोता को गवाह बनाकर साक्षात् ज्ञान दिया गया है।
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