प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत Show प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोतों का वर्णन कीजिएकिसी विषय की सम्पूर्ण जानकारी को पाने के लिए कुछ आधारों का सहारा लेना पड़ता है, जिनके माध्यम से उसकी संपूर्ण जानकारी प्राप्त हो सके। प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोतों को दो भागों में बांटा जा सकता है।
1. प्राचीन भारतीय इतिहास के आंतरिक स्रोत1. हिंदुओं का धार्मिक स्रोत- हिंदुओं के धार्मिक स्रोतों में वेद, महाभारत, ग्रंथ, आरण्यक, रामायण, महाभारत, पुराण, आदि हिंदू धार्मिक साहित्य हैं जिनसे हमें भारतीय इतिहास जानने में सहायता मिलती है, वेदों की संख्या 4 है- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद– ऋग्वेद आर्यों का ही नहीं वरन विश्व का प्राचीनतम ग्रंथ है। इसमें 10 मंडल 1028 सूक्त हैं। इस ग्रंथ की सहायता से प्राचीन काल की सामाजिक, राजनीतिक तथा आर्थिक स्थिति के विषय में जान सकते हैं। इसके अलावा यजुर्वेद से प्राचीन भारतीय सामाजिक एवं धार्मिक के विषय में जान सकते हैं। सामवेद से हम भारत की गायन विद्या को जान सकते हैं। अथर्ववेद से वैदिक काल की पारिवारिक सामाजिक और राजनीतिक जीवन की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। ब्राह्मण ग्रंथ से भारत की सामाजिक, राजनीतिक व धार्मिक जीवन की सभी जानकारी प्राप्त होती है। हिंदू धार्मिक साहित्य में रामायण और महाभारत का महत्व बहुत अधिक है। इन ग्रंथों से प्राचीन हार की राजनीति सामाजिक धार्मिक व आर्थिक जीवन की जानकारी प्राप्त होती है। हिंदू धार्मिक साहित्य में पुराणों का अपना अलग ही महत्व है। पुराणों की संख्या 18 है, जिनमें ब्रह्मा, मत्स्य, विष्णु, भागवत, अग्नि, वायु, मारकंण्डेय, गरुड़ आदि ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। यह शिशुनाग, नंद, मौर्य, शुंग, कण्व, कुषाण, गुप्त आदि प्राचीन भारतीय राजवंशों पर प्रकाश डालते हैं। हिंदू साहित्य की तरह बौद्ध साहित्य में प्राचीन भारत के इतिहास को जानने में हमारी मदद करता है। बौद्ध साहित्य के तीन प्रमुख अंग हैं जातक पिटक निकाय। जातक कथाओं का ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत अधिक महत्व है। यह कथाएं महात्मा बुध के पूर्व भारत की सामाजिक स्थिति के संबंध में जानकारी देती है। त्रिपिटक को तीन भागों में बांटा गया है। 1. विनय पिटक, 2. सूत पिटक, 3. अभिधम्म पिटक। विनय पिटक में भी भिक्षुओं के आचरण संबंधी और शुद्ध पिटक में महात्मा बुद्ध के उपदेश और अभिधम्म पिटक में बौद्ध धर्म के दर्शन का वर्णन किया गया है। पिटकों को पाली भाषा में लिखा गया है। इन पिटकों से महात्मा बुध के समकालीन शासकों के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य प्राप्त होती है। 2. जैनियों का धार्मिक साहित्य- भारतीय इतिहास के विषय में बहुत से तथ्य जैन साहित्य में मिलता है। ब्राह्मण साहित्य एवं बौद्ध साहित्य में परिशिष्ट पर्व, भद्रबाहुचरित, त्रिलोक प्रजटित, कथाकोष, लोक विभाग, आराधना कोष, स्थविरावलि आदि सूत्र में भारतीय इतिहास की महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। 3. धर्मनिरपेक्ष साहित्य- धर्मनिरपेक्ष साहित्य के अंतर्गत पुस्तके हैं जिनको धर्मसूत्र तथा स्मृतियां कहते हैं। प्रमुख कृतियों की रचना कई सालों पहले की गई थी। इनमें विभिन्न वर्गों के लोगों राजाओं और उनके अधिकारियों के कर्तव्यों की चर्चा की गई है। इनमें चोरों, घतकों के लिए दंड की व्यवस्था का भी वर्णन किया गया है। इसके अंतर्गत निम्नलिखित साहित्य आते हैं।
4. पुरातत्व संबंधी स्रोत- साहित्य के अभाव में जब हम किसी काल के इतिहास को वैज्ञानिक तरीके से प्रस्तुत करने के लिए अनेक कठिनाइयों के घेरे में पाए जाते हैं तो अब पुरातत्व ही हमारी कठिनाइयों का समाधान करके इतिहास के क्रमबद्ध एवं वैज्ञानिक पद्धति से प्रस्तुतीकरण में हमारी सहायता करता है। पुरातत्व संबंधी स्रोतों का अध्ययन इस प्रकार से किया जा सकता है- 1. अभिलेख- भारतीय इतिहास को जानने के साधनों में अभिलेख बहुत अधिक महत्वपूर्ण साधन है। अभिलेखों की और प्रकाश डालते हुए इतिहासकारों में कहा है कि प्राचीन भारत के राजनीतिक इतिहास का ज्ञान हमें केवल अभिलेख के अध्ययन से ही मिल सकता है। लेकिन भारत के अन्य शाखाओं में भी हमें अंत में अभिलेखों का ही आश्रय लेना पड़ता है। इसके बिना कोई निश्चित तिथि तथा एकरूपता स्थापित नहीं की जा सकती है। यह प्रत्येक वस्तु में क्रम उत्पन्न करते हैं। अध्ययन की दृष्टि से अभिलेखों को दो भागों में बांटा गया है।
2. सिक्के- प्राचीन भारतीय इतिहास को जानने के लिए सिक्के अथवा मुद्राएं हमारे बहुत सहायता करते हैं। भारत के विभिन्न भागों से विभिन्न प्रकार की मुद्राएं तथा स्वर्ण मुद्राएं और ताम्रपत्र प्राप्त हुई है। सिक्कों अथवा मुद्राओं पर पड़ी तिथियों से यह जानने में सहायता प्राप्त होती है। मुद्रा से गुप्त काल तक के इतिहास का ज्ञान होता है। 3. स्मारक- यदि राजनीतिक दृष्टिकोण से स्मारकों का अधिक महत्व नहीं है किंतु धार्मिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से स्मारकों का अधिक महत्व है। स्मारकों के अंतर्गत सभी प्रकार के भवन मूर्तियां इमारते कलात्मक वस्तुएं मंदिर स्तूप आदि रखे जा सकते हैं। यह स्मारक भारत की धार्मिक आर्थिक तथा सांस्कृतिक स्थिति के संबंध में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं। इसे हम दो भागों में बांट सकते हैं-
2. प्राचीन भारतीय इतिहास के विदेशी स्रोतप्राचीन काल में समय-समय पर अनेक विदेशी लेख तथा यात्रियों में यूनानी, रोमन, चीनी व मुस्लिम को भारतीय संस्कृति ने प्रभावित किया उन्होंने भारत यात्रा की। संपूर्ण भारत का भ्रमण करने के बाद उन्होंने अपने अनुभव के आधार पर भारत के संबंध में लेखन कार्य किया। इन महान लेखकों के द्वारा लिखित भारतीय इतिहास के निर्माण में बहुत सहायता प्राप्त हुई। प्राचीन भारत के विदेशी स्रोतों का अध्ययन निम्नलिखित आधार पर किया जा सकता है। 1. यूनानीयों के लेख- यूनानी लेखकों के विवरण द्वारा भारतीय इतिहास के संबंध में अनेक महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है यूनानी लेखकों में हेरोडोट्स, क्टेसियस, मेगास्थनीज, डीमेक्स, एरियन, डाॅयनोसिस, प्लूटार्क, स्ट्रेबो, इन सभी यूनानी लेखों ने भारतीय इतिहास जानने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हेरोडोट्स द्वारा लिखित ‘हिस्टोरीका’ से भारत की उत्तर-पश्चिम जातियों तथा भारत और इरान के आपसी संबंधों की जानकारी प्राप्त हुई, क्टेसियस द्वारा संग्रहित की गई अनेक कहानियों से कई महत्वपूर्ण तथ्य पता चले हैं। मेगास्थनीज द्वारा लिखित ‘इंडिका’ भारत के भूगोल और कृषि क्षेत्र के विषय में कई सारी जानकारियां प्राप्त हुई है। ब्लूटूथ और स्ट्रा बो के द्वारा लिखित मौर्य कालीन भारतीय इतिहास और टॉलमी के द्वारा लिखित प्राचीन भारतीय इतिहास और थेरिप्लस ऑफ एरिथियन सी नामक ग्रंथ से भारतीय वाणिज्य बंदरगाह तथा तात्कालिक प्राकृतिक दशा की जानकारी प्राप्त हुई है। 2. चीनियों के वृतांत- प्राचीन भारतीय इतिहास जानने में चीन के यात्रियों के वृतांत अत्यधिक उपयोगी और सहायक सिद्ध हुए हैं। इतिहास के पिता के नाम से प्रख्यात चीन के इतिहासकार ‘सुमांशील’ किस ग्रंथ से भारत के संबंध में कई सूचनाएं प्राप्त होती है। चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के शासन काल में प्रथम चीनी यात्री फाह्यान भारत आया था। उसने यहां पर लगभग 15 वर्ष तक निवास किया और अपनी पुस्तक ‘भारत की दशा का विवरण’ लिखी जिसमें तात्कालिक समाज की दशा विस्तारपूर्वक जानने को मिला। चीनी यात्रियों के सम्राट के नाम से जाने जाने वाले व्हेनसांग ने सम्राट हर्षवर्धन के शासनकाल में भारत आया था। व्हेनसांग ने अपनी पुस्तक ‘पाश्चात्य संसार के लेख’ में हर्षवर्धन की सामाजिक और धार्मिक के बारे में इस पुस्तक में वर्णन किया। इस पुस्तक के ऐतिहासिक महत्व के विषय में डॉ. वी. ए. स्मिथ का कहना है कि “व्हेनसांग के ऐतिहासिक ग्रंथ में जिसका अध्ययन प्राचीन भारतीय इतिहास के प्रत्येक विद्यार्थी के लिए बहुत जरूरी है और इसने पुरातत्व संबंधी खोजों से बढ़कर खोए हुए भारतीय इतिहास के पुनर्निर्माण में सहायता दी है।” 3. तिब्बतियों के वृतांत- तिब्बत के लेखकों में लामा तारानाथ बहुत प्रसिद्ध हैं। इनके द्वारा लिखित ‘कंग्यर’ और तंगूर ग्रंथ में लिखित वृतांत प्राचीन भारतीय इतिहास के निर्माण में बहुत अधिक सहायक सिद्ध हुए हैं। तिब्बती लेखकों के विवरण से मौर्य काल के पश्चात प्राचीन भारतीय इतिहास के सिद्धांत में महत्वपूर्ण ऐतिहासिक जानकारीयां प्रदान होती है। 4. मुसलमान लेख- प्राचीन भारतीय इतिहास के प्रस्तुतीकरण में मुसलमान लेखक के विवरण से प्राचीन भारतीय इतिहास जानने में बहुत सहायता मिली है। प्रसिद्ध मुस्लिम इतिहासकार और लेखकों अबू रिहान, मोहम्मद बिन अलबरूनी जो कि एक महान गणितज्ञ एवं ज्योतिषी थे। यह लोग 11वीं शताब्दी में महमूद गजनवी के आक्रमण के समय भारत आए थे। उन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘तहकीक ए हिंद’ में तत्कालीन भारत की राजनीतिक सामाजिक और धार्मिक दिशा का पूरी तरह से वर्णन किया है। इन्हें भी पढ़ें:-
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