मूल मराठी कविता- हेरंब कुलकर्णी हिंदी अनुवाद- विजय प्रभाकर नगरकर कॉमन मैन तुम ने वोट पर ठप्पा लगाया और ‘संसद’ का जन्म हुआ तुम ने उनको राज... Show कॉमन मैन 1-वध से पहले
मरे बाप-दादों की लिखी उस वसीयत की- होना हलकान,हार जाना हर मोर्चे पर बड़बोले बेर-बबूलों पर जा हिलगी है वध से पहले मनो हम हैं बलि-पशु कोई ~~~~|~~~~|~~~~~|~~~~~~|~~~~~
लफ्फाजी तलवारें बेमतलब भांज नहीं, बिफर रही बाज़ारू सदी-नदी मछुआरे रोटी,छत-छप्पर की अंतहीन यात्रायें साँप जो संपेरे थे छोड़ गये अब वह ही ~~~~|~~~~|~~~~~|~~~~|~~~~~~ पांच नई कविताएँ : रिश्तों के जाल जब भी - देवेंन्द्रसोनी , इटारसी। 2 विकार 3 रंग जीवनमें हम देवेंन्द्र सोनी ,इटारसी। 4 अक्सर ही हम रोना रोते रहते हैं अपनी फूटी किस्मतका 5 चुप अच्छा ही होता है - देवेंन्द्रसोनी , इटारसी विशेष - इन सभी कविताओं का गुजराती भाषा में अनुवाद भी हुआ है।
१) ग़ज़ल, इश्क़ में फिर छला गई आँखें दूरियां इश्क़ से बनाई पर क्यों लगीं ही नहीं ख़बर मुझको ज़हर जब से मिला जुदाई का थक गई थी मैं जब से रो रो कर जब चली सामने हवा ठंडी मौत नजदीक जब कँवल आईं ये हार लगें क्यों है ख़ुराफ़ात किसी की मौसम का तकाज़ा है तभी झूम के आया आएं है मजा दिल में नहीं दर्द है होता तकरार ने लूटा है कि इकरार ने लूटा क्या हाथ अलादीन चिराग लग गया है चल लूट लें पल मौज़ के खुशियों को चुरा ले की मौत गले डाल तेरे साथ ही जाऊं नाम - श्रीमती बबिता अग्रवाल 'कँवल' प्रदेश अध्यक्ष(पश्चिम बंगाल)-- प्रकाशित पुस्तक लोकार्पण इलाहाबाद में----(बूंद बूंद सैलाब) मंच सांझा--- सांझा ग़ज़ल संग्रह पत्रिका -- गॉंव -----------------///------------------ गॉंव की पगडंडियों पर नहर के किनारे अब प्रेम भावना से भरे अन्नदाता जैसे प्राकृतिक आपदाओं के क़हर से जैसे कहीं गुम हो गये है , ख़ुद में खो गये हैं खेत के किनारे बनी छोटी सी झोपड़ी ताज़े धनिया, पोदीना की लुभाती गंध अब कहीं से भी कूयें से पौर मे दूधिया जल की धार बैलों की घंटियों की मधुर -लहरी चंचल कल-कल के साथ अब मन को नहीं लुभाती है अब अकाल, बंजर ज़मीन,सूखे तालाब भूखे बच्चे . कृशकाय जानवर, मज़दूर किसान , गॉंव से जाते परिवार पलायन करते किसान गॉंव गॉंव में
शहरों मे बनी कोठियों में आराम फ़रमाते हैं अब भी समय है अपना फ़र्ज़ निभाए जाओ मानव के पापों का प्रायश्चित करने को अब परिवार के प्रत्येक सदस्य पेड़ लगाओ पेड़ लगाओ, मानवता बचाओ ,प्रकृति को - हरा -भरा करने मातृशक्ति सामने आओ -------------------//----------//-------- निहाल चन्द्र शिवहरे , झॉंसी
374,नानक गंज , सीपरी बाज़ार , झॉंसी -284003 [email protected] जिन्दगी अपना क्या पराया क्या , जीते हैं जिसे अपना कह कह कर, ज़ीया जाए तो कैसे इस दुनिया में , टूटी हुई उम्मीदों को वो और बिखरा देता है हाथ बढ़ा हो जिसकी तरफ , सांसें जब थम जाती है, -ममता छिब्बर "Bakshi M"
ममता छिब्बर नानक दुखिया सब संसार इस दुनिया मेँ सभी दुखी हैं —- कर्म करो कर्म किये जा प्रेम से , चिन्ता में क्यो रोय । सबका आदर मान कर , गीता का है ज्ञान । झूठ कपट को त्याग कर , सब पर कर उपकार । धन दौलत के फेर में , मत पड़ तू इंसान । कंचन काया जानकर , करो जतन तुम लाख । तुलसी घर अँगना अउ चउक मा , तुलसी पेड़ लगाव । -- --- महेन्द्र देवांगन माटी (शिक्षक) [email protected] यह अनमोल खजाना है, जिसका कोई दाम नहीं, बड़े लाड़ प्यार से पाला था जिसको, बचपन से उसकी हर एक जिद को पूरा किया, रक्खा था अभी तक उसको अच्छे से सहेज, चंद पैसों के खातिर जला देते है बेटी के अरमान, अब दहेज प्रथा हटाकर,दहेज मुक्त समाज बनाना हैं, -शिवांकित तिवारी "शिवा" 0000000000000 दूर उस पार 1. 2. 3. 4. 5.जो दिखी वो तो अपने रास्ते बदल डाले थे, 6.सरहद पर तैनात हर सैनिक का बन्दन करता हूँ शीश झुकाकर, 7. 8. ना दिखाया करो ये 'कैंडल मार्च'
बहुत दिनों बाद दिखी थी उस दिन, 11.ये हवायें सिर्फ तेरे खुले बालों को ही नहीं उलझाती है बल्कि कई लड़को की जिन्दगी को भी उलझा देती हैं।
00000000000000 बृजेन्द्र श्रीवास्तव "उत्कर्ष"नया सबेरा चिडियों के कलरव गान के संग, शबनम की सतरंगी बूँदें, भवदीय, बृजेन्द्र श्रीवास्तव "उत्कर्ष" सैनिकों आगे बढ़ो समझौते की बात न करना गौतम - गाँधी शान हमारी हम शेर हैं, करते शेरों से काम हे वीर ! सैनिकों आगे बढ़ो मुकेश कुमार ऋषि वर्मा 0000000000000 अनिल कुमार देहरीबेटियां
अंधेरी रात में चांद हैं हमारे देश की बेटियां जो बेटे करते है कर सकती हैं हमारी बेटियां बेटियों को जन्म दो कोख में न मारो सुनलो दहेज न दो बेटि के साथ यह है बहुत ही खराब बेटियों को आजादी दो बेटे के ही समान बेटियां न करना कभी भी गलत काम कोई भी मेरे साथियो बेटियों को कमतर न समझना बेटि दिखती कैसी है यह तुम मत देखना बेटों को ज्यादा महत्व न दो घर में तुम आज से पाल नहीं सकते तो किसी को गोद दे देना मित्रों तुम से है प्रार्थना इतना तो अवश्य करना बेटियां भी कर रही हैं परिवार का नाम रोशन बेटियों को अब पराया धन न समझना कहीं भी कोई बेटि परेशान हो तो देना सहारा दहेज के लिए दुल्हन को जलाकर न मारो दुल्हन ही सबसे बड़ा धन है,अब मानना होगा दहेज प्रथा को हर हाल में खत्म करना होगा बेटियों को सक्षम बनाएं पति पर आश्रित न रहें कहीं कोई बेटी परेशान हालत हो मदत करो बेटियां भी पढ़ लिखकर बन सकती हैं गुणवान अब बेटियों से भी करो समानता का व्यवहार अनिल कुमार देहरी 000000000000000 डॉ0 नरेश कुमार ''सागर''ऐसी कविता मैं लिख जाउं 000000000000 अविनाश तिवारी अविहाहाकार हाहाकार मची चहुँ ओर पसरा सन्नाटा है, भाषा की अभिव्यक्ति मिली, बहुत मांग चुके आज़ादी छुपकर ये घात लगाते, ये उन्मादी और फसादी जो आंख उठा भारत पर माँ मेरी दुर्गा अम्बे लक्ष्मी सरस्वती है, त्याग दधीचि का हमने गाया तेरे आदर्शो पे चलकर जीवन तेरी सूरत ममता सी मूरत श्रद्धांजलि(दंतेवाड़ा में शहीद रुद्र प्रताप सिंह को) कह गए थे आने को तुम हमारा कर्त्तव्य तरु की सुनो करुण चीत्कार , रावण एक्सप्रेस # स्तब्धित हूँ विचलित भी काल की क्रूर लीला से, ॐ शांति शांति शांति
avinashtiwari: पिता के लिए जिसने न कभी विश्राम किया स्वेद बहाकर हमें पहचान दिया संस्कारों को आपके avinashtiwari: हमारा कर्त्तव्य तरु की सुनो करुण चीत्कार , लालसा कुछ कहि कुछ अनकही बात संपूरित होते सपने अधूरे छूँ लूं अपरिमित गगन और मुठ्ठी भर आकाश, दीप बन हरने चली तमस वट वृक्ष सा परिवार घुटती सांसे उजड़ता कानन घटता पानी उछलती हयाएँ सपनों के पूरे होने की है अधूरी लालसा @अवि हमारा लोकतंत्र कौन जीतेगा बिकते वोट आशा अनन्त जन की सेवा लोक का हित ©अवि गांव की ओर हम फिर से आएंगे चौपाल के लगते ठहाकों में बागों में देवालय में सांझा चूल्हा फिर से जलेगा
मैं गरीब की रोजी रोटी मैं जन हूँ जनता के खातिर ऐसे जनतंत्र को दाग लगाने कहना दिल्ली सिंहासन से @अवि इन्जार रास्ते भी बंद हैं और बंदिशें हजार है। वक्त सिमटता रेत सा उजड़ा सा बाजार है। कल भी आज भी इंतजार है इंतजार है इंतजार है। राजनीति निज हितों का साध्य अग्नि परीक्षा सीता की और कितनी बार हो। प्रेम अगन
कर श्रृंगार कोयल कूके
प्रेम अगन सिंहनाद जब मांग रहा रण तो रणभेरी अब बजने दो।
मैने समता सम्प्रुभता से टूटे मेरे सपने स्वराज के संसद के गलियारों में मैने भाषण की आज़ादी दी संसद की भाषा भी देखी धर्म निरपेक्ष राष्ट्र बनाया बाबा गांधी के सपनो को @अवि
उनींदे सपनों पर किसी ने दस्तक दी है। धुंधली सी यादों की महक सी दी खोजता हूँ दर बदर अपनों की महफ़िल में कल तक थे जो यारे जिगर यादें उन्ही की अब रहबदर बदलें हैं @अवि अवि के दोहे घड़ी प्रेम प्रेम न सौदा मानिये, दान देवन तो करतार है, व्यवहार कटुता कभू न राखिये, avinashtiwari: अवि के दोहे मां पिता पिता हृदय सागर बसे, पुत्र वही जो मान रखे, भरत लखन सा भाई हो, बहन प्रेम की दीया बहना
प्रेम पाश बन जाये तो, @अवि हाहाकार मची चहुँ ओर पसरा सन्नाटा है, भाषा की अभिव्यक्ति मिली, बहुत मांग चुके आज़ादी छुपकर ये घात लगाते, ये उन्मादी और फसादी जो आंख उठा भारत पर उड़ान
--------- उलझन
क्यों विकलित सा सिमटा बैठा ये भटकन उलझन है तेरी बन्धन सारे तोड़ दो, जब हार मिले कहीं तू खोल विजय का द्वार असफलता से सीख लो सफलता की राह को होगी तेरी जयश्री सदा इरादे को मजबूत करो @अवि मेरी छुटकी
कल तक कहती चॉकलेट लाना पुस्तक के पन्ने पलट के कहती छुटकी मेरी बड़ी होने लगी है। कभी कहती पापा कुछ ले के आना कभी मुझसे लड़ती कभी है झगड़ती संस्कारों से सजी मेरी बिट्टी याराना
ये लोकतंत्र है अमरबूटी जो राज करे जन के हृदय में छद्मवेश धर कोई भरम न दल दल के चक्कर में फंसकर लोकतंत्र की सफल बनायें आओ मिलकर साथ चलें
घट घट ईश्वर वास है, राधा नाची बंशी धुन, करनी आप सँवारिये, मां मां मंदिर की आरती,मस्जिद की अजान है। मां है मरियम मेरी जैसी, मां आंगन की तुलसी जैसी मां ही आदि शक्ति भवानी मां नदिया का निर्मल पानी मां ही मेरा धर्म है समझो जीवन सत्य
समय का घोड़ा अपने पथ में दौड़ा बचपन बीता जवानी आई बासन्ती ये चित बासन्ती है भेष गन्तव्य का प्रस्थान ये आवागमन
कुछ विदूषक ह्रदय तलों से दिल मे बस जाते हैं। घर घर मे आज विदूषक नाट्य रूप में मसखरे चुपके से कह जाते हैं। पर्दे के पीछे जाने कितने विदूषक बन घूम रहे । बहुरूपिया हम भी बने है
ममता
मै सोता तू जगती मै रोता तू रोती @अविनाश तिवारी सलाम मेरीकॉम
नारी की महिमा को नाम दे दिया
महिला शशक्ति की पहचान बन गयी, @अवि
हो जाओ तैयार साथियों देना तुम मतदान उसे बचपन खोया मेरा बचपन फिर @अवि 00000000000000000000 राजेश गोसाईंआना हर गली में हर पल हे नव वर्ष की नव बहारो नव वर्ष की नव आशाऐं 1.....नन्हे पाँव नन्हे नन्हे पांव से
*********** 2......नव किरण बेटी को पढ़ने दो जब दहेज की वेदी में रिश्वत का व्यापार न होगा जब हरा भरा वातावरण होगा जब खेतों में विकास की नव सूरज नव किरण की राजेश गोसाईं ************ 3......मंगल कामना
उज्जवल उच्च आशाओं को छूता सुखमय सुरमय हो अति क्षण तुम्हारा सुंदर सुगंधित अनुराग में बहता जगमग जगमग हो नवजीवन तुम्हारा अलौकिक हो हर पथ हर लक्ष्य प्यारा सफल सुफल हो सदा प्रति पग तुम्हारा सुख संपदा से हो आँचल भरा मंगल मंगल हो हर कल तुम्हारा प्रेम विश्वास की बहती हो धारा अमृतमय हो हर संबंध तुम्हारा उमंग तरंग से अंकुरित हो जग सारा महक महक हो गुलशन तुम्हारा
********** 4......ज्योति क्लश.....
भोर की लाली किसे पेश करूं...... ये स्वर्णिम धागों की पिरोई हुई रेशमी सुबह मैं किसे पेश करूं......
ऊषा के ललट पे शरमाई हुई नहाई हुई कलियों की लतायें सौंधी सी सुबह किसे पेश करूं.....
गुलाबी धूप में ये खिलती बहारें ये सिंदूरी फलक के सिंदूरी नजारे ये ज्योति क्लश मैं किसे पेश करुं......
मंगल घट छलक के आया उजाले ने दी सुख की छाया ये अमृत गागर मैं किसे पेश करूं.....
*********** 5.....नव अर्श पे कदम कदम बढ़ाये जा......2 ये ऋषि मुनियों का जहां रत्नों की खान है त्यौहार नव वर्ष का ये रौशन देश ये जहां रहे कदम कदम.....
अभिनन्दन है नव वर्ष तुम्हारा नव उमंगों से नव तरंगों से नव वर्ष की नव वेला में नव सूरज हो नव किरण हो
नव वर्ष की नव वेला में आओ मेहनत को अपना ईमान बनायें नव वर्ष आयेगा हर वर्ष आयेगा
छलकते हुये छलक गया राजेश गोसाईं
नया साल आ रहा है नव वर्ष की शुभ कामनाएं कुछ हम हंसे कुछ तुम हंसे राजेश गोसाईं
झिलमिल सितारे ले के उज्जवल भविष्य की यादों के रथ पे नव प्रीत - नव प्रात - रिमझिम के तराने ले के राजेश गोसाईं -- तेरे हाथ की लकीरों में कत्ल भी किया मुस्करा कर नशे में भी निशाना हो गया पर्दा हो गया बेपर्दा 2.....प्रीतम कभी सूरज सिन्दूरी हो जाये चाँद यूं ही हर रोज नजर आये भोर का सूरज फिर सिन्दूर सजाये प्यार से प्रीतम की बाहों में 3.... मदहोशी तेरी हर अदा पे मैने गीत लिखा मैने मीत लिखा नींद में अंगड़ाई मैने गीत लिखा मैने मीत लिखा सितारों की मांग मैने गीत लिखा मैने मीत लिखा नव यौवन श्रृंगार मैने गीत लिखा मैने मीत लिखा मृगनैनों का प्यार, रुत सावन की बहार देख ये अधर लाल गुलाबी गाल , काली घटा सम बाल कंचन काया चूडी छनन छन ये गजरे की खुशबु बेचैन मन तरसती निगाहें यूं तेरे ही मयखाने में
तू मेरे पास क्या बैठी आज अंग अंग अंगड़ाई लेता हुआ हम क्यों जायें मयखाने आज दीवारों का साथ छूटा साकी
मैं बन के गीत आऊंगा अंधियारी जिन्दगी है मेरी चिता पर लगेंगे
मैं टूट के ना बिखर जाऊं यादों का जखीरा बन गया तू आये ना आये, मिले ना मिले 7..* * उस दिन * * मोहब्बत की किताब का टुकड़ों में बंट गया अरमान यादों की हवाओं में चिंगारी बन उदास हूँ पन्नों के फट जाने से जमाना बीत गया देखे हुये उसे रूह में तू ही तू , बस जिन्दा ही हूँ 8...प्रेम पर्व शहर में बरसात है
आँखों की झील में कहीं इन आँखों की मस्ती में कहीं इन आँखों की चाहत में कहीं इन आँखों की रौशनी में कहीं इन आँखों की सीप में कहीं इन आँखों की गजल में कहीं
दोस्ती तुम्हारी की चाह है अब भी मैं गीत लिखुंगा तुम्हारा चाँद देख कर जब वैरी हुये थे हम दोनो तब भी याद है सब मुझे आज तक ईर्ष्या तुम्हारी पर आज मैं जानता हूँ तुम आओगी पर तुम आओगी जरूर आओगी
तुम्हारे चाँद का कोई अक्स तुम बहुत दूर हो मेरे से नीले अम्बर की चादर में भी काले बादलों की ओट मे भी
यादों की शाम में देखे यह रैना काली मिलन को प्यासा है मन शीतल पवन भी बनी अगन है 12... तुम्हारे प्यार में तुम्हारे प्यार के मन्दिर में जब से मिला है प्यार तुम्हारा आँखों ही आँखों में समन्दर पार खुशबु बन के गुलिस्तां में मेरे
प्यार का कोई दीप जल जाये सावन रिमझिम संग गुनगुनाये चाँद चौंधवी का मन भाये बिछुड़े हुये आज मिल जायें "राजेश - 'का कोई मीत बन जाये 14....चाँद यूं तांक झांक करता रहता है ये लुका छुपी खेल में रहता है मैंने चाँद को समझाया बहुत है पर्वत के पीछे जाने की आदत है धरती पे इसको लाना मुमकीन नहीं चाँदनी रात में प्रीतम की बाँहों को भोर होने पे भी ये जोश में रहता है यहाँ वहाँ सब जगह खेलता रहता है सितारे भी इससे नाराज रहते हैं इसे रात को रूठने की आदत है लुक छुप हर दिल में ये रहता है इसे सुहागन बनाने की आदत है
सच के बने सभी किरदार हैं जो, झूठ और फरेब पे सवार होकर चलते हैं, बवन्डर नफरतों का जेहन में बरकरार हैं जिनके, बातें वो सारी प्यार-मोहब्बत की करते हैं, किसी की कामयाबी की खुशी में,शरीक होने वाले लोग, उसकी कामयाबी के चर्चो से भी जलते हैं, दुआ करते हैं की सदा सलामत रहें तू, जिनके दिलों में हमारे लिये नफरतों के बीज पलते हैं, हर कदम पे साथ निभाने का वादा करते थे कभी जो, वक्त आने पर वो न घर से बाहर निकलते हैं, बहुत विश्वास था जिनपे कभी भी छलेगें ये, वही विश्वास तोड़ के हमें हर बार छलते हैं, अब न भरोसे का कोई इन्सान है साहब, भरोसा तोड़ यहाँ इंसा को इंसा ठगते हैं, सापों का जहर शामिल हैं यहाँ लोगों में, हर बार विष भरकर यहाँ इन्सान डसते है, बहुत चालाकियां सीख ली हमने भी यहाँ लोगों से, जहर में डूबे किरदारों के जाल में अब हम न फंसते हैं, शिवांकित तिवारी "शिवा" 00000000000000000 परिवारी सब खुश दिखें , वहि मेरी मुस्कान ।। पीड़ा नहि हावी करे , निज मन और ललाट । क्षमा बड़ों का धर्म है , क्षम्य करो हर बार । सब मिल प्रकृति सहेजिए , आंगन वृक्ष लगाए । मन न छोटा कीजिये , जब जब मुश्किल आय । प्रतिभा ना कुंठित करें , आगे सदा बढाए । जीवन एक संग्राम है , गर्व से लड़िए रोज । चरण उसी के चूमिये , जो इसका हकदार । सुख दुख में जो साथ हो , दृढ़ रखे विश्वास । धन्य वही पितु मात हैं , सरहद जिनके लाल । फल की चिंता वह करे , जिसके तुच्छ विचार । स्वाभिमान अभिमान है , भिन्न भिन्न दो रूप । -------------------- सदा सुरक्षित रहे हमारा सारा विश्व करे ऋषि-मुनियों की धरती भारत वर्ष आजादी का पर्व मनाता क्रांतिपथ के अमर सेनानी सदा सुरक्षित रहे हमारा - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा 0000000000000 सुशील शर्मादूर तुमसे हवाओं की गुजारिश है कि -- सुख !
पिता की दास्तां
पिता दौलत का भूखा होता है अफवाह फैलाने वालों पिता ऐसा जीव है जो खुद को तबाह कर देता है औलाद के स्वर्णिम भविष्य के लिये पिता भूखे पेट भी औलाद को निहार कर सकूं की सास भर लेता है फटेहाल पिता भी औलाद की खुशी के लिए कभी भी गरीब नहीं होता दर्द में भी औलाद की आहट से खुश हो लेता है हाय रे पिता का भाग्य वही औलाद पिता मर्यादा को खाक मे मिला देती है पिता के संघर्ष रूपी तपस्या का चीरहरण कर देती है औलादें त्याग को भूला देती हैं औलादें पिता के दर्द को अनदेखा कर अपयश का पहाड़ पिता की छाती पर पटक देती हैं औलादें औलाद के भविष्य मे खुद को स्वाहा किया पिता औलाद के सुखद जीवन का बुनता रहता है ताना बाना औलाद मढ़ती रहती है पिता के माथे दोष पर दोष सन्तोष का चोला ओढे पिता का हर सपना होता है औलाद के लिए हाय रे पिता तुमको सुख नहीं मिलता तुम दर्द मे जीते दर्द में मर जाते हो अब तो और बुरा हाल हो गया है जब से वाईफ लाईफ हुई है बेचारे मांता- पिता जैसे लावारिस हो गये है मांता पिता प्यार के भूखे होते हैं लोभी मत बनाओ अरे नवजवानों होश मे आओ मांता पिता जीवित भगवान हैं धरती के भगवान को न ठुकराओ.... निरीह जीव...मांतापिता । मांता पिता निरीह जीव हो जाते हैं युवा होते ही अपने बच्चों के सामने बेबस से लगने लगते हैं मांता पिता जो स्वयं के सपनों की आहुति देते देते जिन्दगी के बसन्त गंवा चुके होते हैं आस मे जीते हैं मांता पिता बच्चे ऊंची से ऊंची उडान भरे वे विहस पड़े कई मांता पिता का त्याग भी गुनाह के घेरे मे आ जाता है अमानुष मां बाप की विष कन्या के आते ही नेक निरीह मांता पिता कर दिये जाते हैं बेगाने धमकियां भी मिलने लगती हैं कुछ करवा देने की कत्ल तक करवा देने की दहेज के मामले मे बर्बाद कर देने की एक मांता पिता की उम्मीदे लूट ली जाती हैं,बेटा बना लिया जाता है गुलाम विषकन्या और उसके विषधर मां बाप के हाथों जिस बच्चे की ऊंची उड़ान के लिए माता पिता खुद को तिल तिल मारते रहे मर मर कर सीचते रहे सपना वही नासमझ हो जाता है अमानुष मां बाप और उनकी विष कन्या की साजिशो की गिरफ्त मे वह भी हो जाता है शामिल सुध्दि बुद्धि खोकर सास ससुर और कुलक्षणा के साथ मिलकर मांता पिता को देता है धकिया मांता पिता को बच्चों से क्या चाह होती है बस इतनी सी बच्चे ऊंची उडान भरे और माता पिता के दुनिया से विदा लेने पर दे दे कंधा इतनी सी ख्वाहिश भी लूटी जा रही हैं विषकन्या और उसके अमानुष मां बाप द्वारा बच्चे का मति भ्रम कर खडा किया जा रहा है बना कर विरोधी उगाये जा रहे हैं नये चूल्हे मांता पिता को ढकेला जा रहा है आश्रम के पथ पर, ये साजिशें भी नहीं समझ पा रही हैं बच्चे खडे हो जा रहे हैं अडियल बैल की खींचने लगे लगे हैं कंधे जनाज से युवाओं होश में आओ सास ससुर पत्नी को दो सम्मान मां बाप को कहा ऐतराज......? मां बाप के कत्ल का तो ना करो ऐलान.। विश्वास सपना तुम्हें जाति पर अपनी गुमान है 0000000000000 संजय कर्णवालजीवन की खोज में लग जाओ 2 जीवन के तो रंग हजार नेक काम करने वाले बचपन अपना प्यारा जग से।
1 जीवन की रेस में आकर्षण, रिश्ते हो 2
बिना मेहनत के , -----////----- अमित कुमार मल्ल का विवरण 1.नाम - अमित कुमार मल्ल 2 जन्म स्थान - देवरिया 3 शिक्षा - स्नातक (दर्शन शास्त्र , अंग्रेजी साहित्य , प्राचीन इतिहास व विधि ) 4 सम्प्रति - सेवारत 5 रचनात्मक उपलब्धियां- प्रथम काव्य संग्रह - लिखा नहीं एक शब्द , 2002 में प्रकाशित । 6, पुरस्कार / सम्मान -
महानता का अनिल जैन उपहार 000000000000 कवि आनंद जलालपुरीफैशन की ओर क्या पोशाक है खुला आकाश है वो चलेगा दे दो वही झकास है क्या पोशाक है मुस्काती ऐसे कामिनी जैसे दमके दामिनी जा रही बिंदास है क्या पोशाक है..मन ही मन लोग आहें भरें सीने पर सब बांहें धरें सबकी नियत साफ है क्या पोशाक है पीठ है नंगी केवल गंजी कपड़े की है इतनी तंगी यह आइटम कुछ खास है क्या पोशाक है झुकाये सर सत्कार करूँ कैसे इनका प्रतिकार करूँ आनंद मन उदास है क्या पोशाक है खुला आकाश है वो चलेगा दे दो वही झकास है क्या पोशाक है इश्क में तेरे अब मेरा क्या हाल हो गया, 0000000000 अविनाश ब्यौहारदोहे जीवन में हर वक्त हो, नभ छूने की चाह। प्रजातंत्र में चल रहा, इकलौता यह मंत्र। जब से थाना खुल गया, सक्रिय है अपराध। है स्वतंत्रता नाम की, सब है भ्रष्टाचार। शहर आधुनिक हो गये, बिछुड़ गये हैं गाँव। जीवन में भटकन मिली, मंजिल होती दूर। औरत पत्नी, बहन है, औरत है संयोग। शाखों पर मधुदूत की, है पंछी का शोर। कोयल कुहके बाग में, उड़े टेसुई रंग। दुर्बल क्षण आते रहे, हुआ नहीं आभास। कौवा बैठ कंगूरे, बोल रहा है काँव। आँखों की है झोपड़ी, बसा सलोना रूप। अच्छाई का पर्व है, पड़ा दशहरा नाम। कोठे में नेकी बिकी, है दलाल का काम। भ्रमित हो रहे हैं पथिक, भटकी हुई सबील। यौवन पुष्पित पल्लवित, जब जब बहे बहार। प्रजातंत्र में हो रहा, हत्या, बलवा, रेप। विजयादशमी पर्व पर, अच्छाई की जीत! मीटू मीटू कर रहे, लगा चरित्र में दाग! बदमाशों का शहर है, सपने रखो सँभाल। खुलती है आषाढ़ में, मेघों की दूकान। जेठ मास की दोपहर, जोह रही है बाट। भ्रमित हो रहे पथिक हैं, भटकी हुई सबील। पिता रहे वटवृक्ष से, माता छप्पर छाँव। जीवन में हर वक्त हो, नभ छूने की चाह। प्रजातंत्र में चल रहा, इकलौता यह मंत्र। जब से थाना खुल गया, सक्रिय है अपराध। है स्वतंत्रता नाम की, सब है भ्रष्टाचार। शाखों पर मधुदूत की, है पंछी का शोर। कोयल कुहके बाग में, उड़े टेसुई रंग। दुर्बल क्षण आते रहे, हुआ नहीं आभास। कौवा बैठ कंगूरे, बोल रहा है काँव। आँखों की है झोपड़ी, बसा सलोना रूप। अच्छाई का पर्व है, पड़ा दशहरा नाम। कोठे में नेकी बिकी, है दलाल का काम। भ्रमित हो रहे हैं पथिक, भटकी हुई सबील। यौवन पुष्पित पल्लवित, जब जब बहे बहार। प्रजातंत्र में हो रहा, हत्या, बलवा, रेप। विजयादशमी पर्व पर, अच्छाई की जीत! मीटू मीटू कर रहे, लगा चरित्र में दाग! बदमाशों का शहर है, सपने रखो सँभाल। खुलती है आषाढ़ में, मेघों की दूकान। जेठ मास की दोपहर, जोह रही है बाट। भ्रमित हो रहे पथिक हैं, भटकी हुई सबील। पिता रहे वटवृक्ष से, माता छप्पर छाँव। शाखों पर मधुदूत की, है पंछी का शोर। कोयल कुहके बाग में, उड़े टेसुई रंग। दुर्बल क्षण आते रहे, हुआ नहीं आभास।
1.नि:शब्द हूँ
3. रचनाकार:- 4. 1.लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल रचनाकार:- 2. अटल जी को समर्पित....
4. 5. --- कोरा कागज़
'दिवाली मनाते है' हम शिक्षक नित ही अज्ञानता का अंधकार मिटाते हैं,
00000000000 सोदान सिंहसुबह की किरण सा है वो चलो ले चले हम क़िस्म-ए-इंसान को चैत्यभूमि दिखाने। वो जो नावाक़िफ़ पूछते है कि है ख़ुदा चीज़ क्या। दरिया-ए-तौहीन को आतिश-ए-संबिधान से मिटाया। गुमराह हुजूम जो खो गए थे क़िस्म-ओ-जाती के मेलों में। बंजर थी कल तक पिछड़ों की जमीं-ए-जिंदगी। भिमराव के जन्म से हो गए सब काँटे गुल में तबदिल। इज्ज़त की जगह क़ाफ़िरों ने लिखी हयात में ज़िल्लत। जिंदगी-ए-दर्द-ओ-बेबसी को ऐश-ओ-इशरत से भर दिया। क़रीब-ए-सुरज जाकर वापिस लौट सका है कौन। तनहाई महसूस होती है अंबेडकर बगैर इंसानियत को। तनहाइयों में जीना सीख लिया। Written by- बिलगेसाहब(Madhukar bilge) 000000000000 शब्द की आईने में बस तेरी ही चेहरे दिखती है जब तेरी याद आती है हमें हर रोज सनम लिखते लिखते कलम की स्याही खत्म हो गयी तेरी दिल की धड़कन से पूछना कभी खाव्बो में राकेश कागज कम पड़ जायेगी मत लिख ग़ज़ल राकेश चतुर्वेदी "राही" दुकानें हाथ जोड़े कुछ अहसास कुछ कागज पता है मुझे अंकित विश्वकर्मा हवस का शिकारी सात्विक ह्रदय का इंसान , नाम-भरत कोराणा "स्वाभिमानी" एक पहाड़ के पास मनुष्य के पास ख़्वाहिश है मेरा संक्षिप्त परिचय -- नाम - तरसेम कौर शिक्षा - ग्रेजुएट , दिल्ली विश्वविद्यालय स्थान - नई दिल्ली लेखन - कविता , कहानी , लेख लेखन क्षेत्र में उपलब्धियां - कई प्रतिष्ठित काव्य संग्रहों में कवितायों का प्रकाशन । समय समय पर विभिन्न पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में कविताओं , कहानी एवम् लेख प्रकाशन । हँस लो दो क्षण खुशी मिली वरना जीवन भर क्या है?(क) जीवन में बहुत आपदाएँ हैं। अत: जब भी हँसी के क्षण मिल जाएँ तो उन क्षणों में हँस लेना चाहिए। कवि इसलिए कहता है जब अवसर मिले हँस लेना चाहिए।
जब सावन घन घिर जाते हैं तब कौन छिप जाता है?कितने रह-रह गिर जाते हैं, हँसता शशि भी छिप जाता है जब सावन घन घिर आते हैं। उगता-ढलता रहता सूरज जिसका साक्षी नील गगन है।
उगता ढलता रहता सूरज के माध्यम से कवि ने क्या कहना चाहा है?(ङ) 'उगता-ढलता रहता सूरज' के माध्यम से कवि ने कहना चाहा है कि जीवन में समय एक-सा नहीं रहता है। अच्छे-बुरे समय के साथ-साथ सुख-दुख आते-जाते रहते हैं।
पिंजड़े के बाहर का संसार निर्मम कैसे है?(क) पिंजड़े के बाहर का संसार हमेशा कमजोर को सताने की कोशिश में रहता है। यहाँ कमजोर को सदैव संघर्ष करना पड़ता है। इस कारण वह निर्मम है। (ख) पिंजड़े के भीतर चिड़िया को पानी, अनाज, आवास तथा सुरक्षा उपलब्ध है।
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