Dr.N.K.Nayak Show दूध ,दुग्ध उत्पाद .मूल्य संवर्धन (value addition) एवं दुग्ध प्रसंस्करण का महत्व दुग्ध सेवन के फायदे और नुकसान दूध को एक आदर्श भोजन माना गया है। इसका उच्च पोषण मान है और यह शरीर के निर्माण के लिए आवश्यक प्रोटीन, हड्डियों को मजबूत बनाने वाले खनिज और स्वास्थ्य देने वाले विटामिन, लैक्टोज और उच्च श्रेणी की वसा और ऊर्जा प्रदान करता है। आवश्यक फैटी एसिड की आपूर्ति के अलावा इसमें आसानी से पचने और आत्मसात हो जाने योग्य पोषक तत्व होते हैं। ये सभी गुण गर्भवती माताओं, बढ़ते बच्चों, किशोरों, वयस्कों, और मरीजों के लिए दूध को एक महत्वपूर्ण भोजन बनाते हैं। बच्चों को दूध का सेवन करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए क्योंकि यह हड्डियों के निर्माण के लिए आवश्यक है। प्रति मनुष्य प्रति दिन दूध की आवश्यकता –
तथ्य-
दूध और दूध उत्पादों के पोषक मान (प्रति ….. ग्राम )
दूध पीने के फायदे-
दूध पीने के नुकसान-
स्किम दूध का सेवन अत्यधिक फायदेमंद है। मोटापा और वजन बढ़ने से रोकने के लिए पूर्ण वसा वाले दूध के ऊपर अब लोग स्किम मिल्क को प्राथमिकता देने लगे हैं। लोग अपनी आवश्यकताओं के आधार पर दूध का सेवन अनुशंसित आधार पर नहीं करते हैं जिससे यह मोटापे का कारण बन सकता है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं वैसे ही डेयरी उत्पाद के साथ भी है I इसलिए निर्धारित सीमा के भीतर डेयरी उत्पाद का सेवन करना और इसके अत्यधिक सेवन से बचना स्वास्थ्य के लिए उत्तम होगा। दूध में उपस्थित पोषक तत्व एवं उनका महत्व दूध में शरीर की वृद्धि एवं विकास के लिए सभी आवश्यक पोषक तत्त्व पाये जाते हैं यह नवजातों का एक मात्र भोजन है अतः दूध एक लगभग पूर्ण भोजन है जिसमें सभी पोषक तत्व जैसे वसा, कार्बोहाईइड्रेट, प्रोटीन, एन्जाईम, खनिज तत्व तथा विटामिन आदि उपस्थित होते हैं । मानव शिशु के लिए अपनी माँ का दूध सवोंत्तम एवं आदर्श भोजन है । परन्तु आवश्यकता होने पर उसे गाय बकरी या भैंस का दूध भी दिया जा सकता है । दूध में उपस्थित पोषक तत्व निम्नुसार है ।
दूध के फायदे : दूध स्वास्थ्य को अनेक लाभ दे सकता है। क्या हैं दूध के लाभ इन्हें विस्तार से हम नीचे बता रहे हैं। बस ध्यान दें कि दूध के गुण बीमारी को ठीक करने में नहीं, बल्कि स्वस्थ रहने और बीमारियों से बचाव में मदद कर सकते हैं। चलिए, जानते हैं कि दूध पीने से क्या फायदा होता है।
दूध पीने के फायदे में हड्डी और मजपेशियों को मजबूती देना शामिल है। दूध और अन्य डेयरी उत्पाद कैल्शियम व मैग्नीशियम के महत्वपूर्ण स्रोत होते हैं। यह दोनों पोषक तत्व हड्डियों के विकास के लिए जरूरी माने गए हैं। बच्चों व युवाओं के साथ ही व्यस्कों के हड्डी स्वास्थ्य के लिए भी दूध अच्छा विकल्प है। दूध हड्डियों को मजबूत बनाकर बढ़ती उम्र में ऑस्टियोपोरोसिस (हड्डी का एक प्रकार रोग) और फ्रैक्चर से बचाव में मदद कर सकता है। इसके अलावा, दूध में प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट भी काफी मात्रा में होता है, जिसे मांसपेशिओं के अच्छा माना जाता है। एनसीबीआई (नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन) की वेबसाइट पर मौजूद एक शोध में जिक्र है कि दूध थाई मसल्स को मजबूत करने में मदद कर सकता है । एक अन्य अध्ययन में कहा गया है कि दूध प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम और अन्य पोषक तत्वों का एक स्रोत है, जिस वजह से यह सीरम अमीनो एसिड कनसन्ट्रेशन में वृद्धि करता है। इससे मांसपेशियां को हुई क्षति की मरम्मत यानी रिपयेर प्रक्रिया में मदद मिलती है। दूध के सेवन के सकारात्मक प्रभाव मांसपेशियों के फंक्शन को बेहतर करने और रिपयेर करने में भी पाए गए हैं । साथ ही दूध में कैसिइन (casein) और वे प्रोटीन (whey protein) दोनों ही हाई क्वालिटी प्रोटीन होते हैं। ये मांसपेशियों के निर्माण करने में मदद करने के साथ-साथ मांसपेशियों के नुकसान से भी बचाव कर सकता है।
दूध बढ़ते वजन को कम करने में मददगार साबित हो सकता है। एक रिसर्च के मुताबिक, डेयरी का सेवन करने वाले 38% बच्चों का वजन इसका सेवन कम करने वालों के मुकाबले नियंत्रित था। दरअसल, दूध और डेयरी उत्पाद प्रोटीन के अच्छे स्रोत हैं और प्रोटीन वजन घटाने व नियंत्रण करने में सहायक होता है। इसकी मदद से भोजन के बाद भी बार-बार होने वाली खाने की इच्छा को कम करके एनर्जी की खपत को रोकता है, जिससे शरीर में फेट कम हो सकता है । इसके अलावा दूध व डेयरी प्रोडक्ट में कॉन्जुगेटेड लिनोलेइक एसिड (सीएलए) होता है, जिसमें वजन व चर्बी कम करने वाला एंटी-ओबेसिटी गुण होता है । लेकिन, इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि दूध प्रोटीन के साथ-साथ वसा का भी अच्छा स्रोत है। ऐसे में दूध के सेवन के साथ-साथ नियमित तौर पर व्यायाम करना भी आवश्यक है।
रोजाना दूध पीने के फायदे में हृदय स्वास्थ्य भी शामिल है। इसके नियमित सेवन से ह्रदय संबंधित बिमारियों से बचाव में मदद मिल सकती है । एक स्टडी के मुताबिक, रोजाना 200 ml दूध पीने वाले लोगोंं में स्ट्रोक का 7 प्रतिशत जोखिम कम होता है । एनसीबीआई की वेबसाइट पर मौजूद एक रिसर्च की मानें, तो दूध पीने से इस्केमिक हृदय रोग और इस्केमिक स्ट्रोक (ब्लड क्लोट होने की वजह से आने वाला स्ट्रोक) के जोखिम को कम किया जा सकता है । हालांकि, ध्यान रहे कि ह्रदय रोग के मरीज के लिए लो फैट मिल्क या टोंड मिल्क का सेवन फायदेमंद हो सकता है।
दूध के लाभ में रात को अच्छी नींद को बढ़ावा देना भी शामिल है। कई अध्ययनों में यह बात साबित हुई है कि रात को सोने से पहले दूध पीने से नींद अच्छी आती है। दूध में एमिनो एसिड ट्राइटोफन और मेलाटोनिन होता है, जो नींद लाने में मदद कर सकता है। रात में नींद न आने, बेचैनी या नींद बीच में टूट जाने की समस्या है, तो रोजाना रात को सोने से पहले नॉर्मल या गर्म दूध का सेवन किया जा सकता है
मिल्क के फायदे में स्ट्रेस व डिप्रेशन से बचाव भी शामिल है। रिसर्च में भी यह बात सामने आई है कि न्यूट्रिशन की कमी की वजह से होने वाली दिमाग संबंधी परेशानी में दूध मददगार साबित हो सकता है। दरअसल, दूध में उच्च गुणवत्ता वाला प्रोटीन (अमीनो एसिड) होता है। मस्तिष्क में कई न्यूरोट्रांसमीटर अमीनो एसिड से ही बने होते हैं, जो मस्तिष्क के कामकाज और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। इसकी कमी होने पर गुस्सा आना, मूड खराब होना, स्ट्रेस व डिप्रेशन हो सकता है। इसी वजह से दूध में मौजूद प्रोटीन को स्ट्रेस व डिप्रेशन से राहत पाने के लिए अच्छा माना जाता है । एक अन्य शोध में भी कहा गया है कि रात को दूध पीने से चिंता संबंधी विकारों को कम किया जा सकता है । दूध का संगठन एवं उसको प्रभावित करने वाले कारक दूध एक रहस्यमयी पदार्थ है । जिस प्रकार ईश्वर के नाम को तो सब जानते है परन्तु उनके गुणों एवं शक्तियों को कम ही व्यक्ति पहचानते है, ठीक उसी प्रकार दूध के गुणों एवं महत्व की जानकारी सभी को नहीं है जबकि इसका नाम सभी जानते हैं । भोजन के रूप में प्रयोग होने वाले पदार्थों में यह सम्पूर्ण भोजन का निकटतम रूप है । दुग्ध की परिभाषा : दूध की परिभाषा के सम्बन्ध में दुग्ध विशेषज्ञों में मतान्तर है ।
दूध का संगठन : जैविक आधार पर मादा के प्रसव उपरान्त के स्राव को दूध में सम्मिलित किया गया है । इसमें नवजात शिशु की आवश्कतानुसार प्राकृतिक रूप से संगठनात्मक परिवर्तन होते रहते है । प्रसव के तुरन्त बाद निकलने वाला स्राव खीस कहलाता है । यह 4-5 दिन बाद के स्राव से गाढा होता है । प्रसव से 4-5 दिन बाद तक के दूध में से एक तेज गन्ध, स्वाद में तीखापन तथा रग में पीलापन होता है । इस स्राव में इम्मुनोग्ल्बुलिंस की मात्रा अधिक पायी जाती है जो बच्चे में रोग रोधी क्षमता उत्पन्न करने के लिए आवश्यक है । विश्व के सभी देशों में प्राचीन काल से भी दूध के संगठन को जानने का प्रयास विद्वानों द्वारा किया जाता रहा है । सभी स्तनधारियों के दूध के अव्यव तथा गुण समान नहीं पाये जाते हैं । यद्यपि सभी अव्यव गुणात्मक रूप से समान है तो भी दूध में उनकी मात्रात्मक भिन्नता प्रभावी है । इस विभिन्नता को प्रभावित करने वाले असंख्य कारक है । एक पशु के एक समय के दुहान के दूध के विभिन्न भागों में पाये जाने वाले अव्यवों की मात्रा में भी भिन्नता पायी जाती है । दूध में पाये जाने वाले प्रमुख अव्ययों की औसत मात्रा निम्नवत् पायी जाती है:
दूध के संगठन को प्रभावित करने वाले कारक दूध के विभिन्न नमूनों का संगठन सर्वदा समान नहीं पाया जाता है । भले ही वे नमूने एक ही पशु के दूध के क्यों न हों । दूध के अवयवों में सबसे अधिक भिन्नता दर्शाने वाला संघटक वसा है । शेष संघटकों में क्रमानुसार भिन्नता प्रोटीन, लैक्टोज तथा खनिज पदार्थ दर्शाते हैं । इन संघटकों को मात्रात्मक या गुणात्मक रूप से प्रभावित करने वाले कारक निम्नुसार हैं:
सभी स्तनधारियों के दूध के संगठन में भिन्नता पायी जाती है । डेरी पशुओं (गाय, भैस, भेड़ तथा बकरी) के दूध में मुख्य भिन्नता वसा संघटक में पायी जाती है । भैस व भेंड के दूध में वसा की मात्रा गाय व बकरी के दूध से अधिक होती है । iii. पशु का स्वभाव: एक ही पशु के दूध में भी, विभिन्न नमूनों में संघटकों की मात्रा में भिन्नता पायी जाती है । यह भिन्नता व्यक्तिगत पशु के स्वभाव तथा उसके भौतिक व दैहिक वातावरण से प्रभावित होती है । कुछ पशुओं में उनके स्थान परिवर्तन से उनका दुग्ध उत्पादन तथा दूध का संगठन भी प्रभावित हो जाता है ।
vii. पशु का आहार : सन्तुलित आहार उत्पादकता में वृद्धि करता है । उघहार के अव्यवों में परिवर्तन से दूध में मात्रात्मक तथा गुणात्मक परिवर्तन होते है आहार में हरा चार, तथा काबोंहाईड्रेट की मात्रा में वृद्धि होने पर उत्पादन तथा दूध में कैरोटीन व राइबोफ्लेविन की मात्रा बढती है । पशु को बिनौले या नारियल की खल खिलाने पर दुग्ध वसा में सन्तृप्त वसीय अम्ल बढ़ने से वसा कणों का आकार बढता है । पशु को अल्सी की खली खिलाने से असन्तुप्त वसीय अम्लों की मात्रा वसा में बढती है । अतः घी, तेलीय बनता है । हरे चारे की मात्रा बढाने पर दूध में कैल्शियम तथा फास्फोरस की मात्रा में वृद्धि होती है । viii. पशु का स्वास्थ : सामान्यतया बीमारी की अवस्था में उत्पादन घटता है । थनैला बीमारी में दूध का उत्पादन तथा संगठन दोनों प्रभावित होते है । इसमें वसा, प्रोटीन तथा लैक्टोज कम होते है जबकि क्लोराईड की मात्रा बढ़ जाती है । कुछ दवाओं के उपयोग से पाचकता प्रभावित होने के कारण उत्पादन घट जाता है ।
xii. पशु का आकार : सामान्य अवस्थाओं में बड़े आकार के पशु का उत्पादन छोटे आकार के पशु के उत्पादन से अधिक होता है । xiii. पशु द्वारा जल ग्रहण : शुष्क काल में एक भाग शुष्क पदार्थ पर 36 भाग जल तथा दुग्ध काल में शुष्क पदार्थ का 5.3 गुणा जल पशु को पीना चाहिए । पशु द्वारा पी जाने वाली जल की मात्रा घटने पर उसका दुग्ध उत्पादन भी घट जाता है । प्रयोगों द्वारा सिद्ध हुआ है कि यदि जल ग्रहण 20% बढ़ा दिया जाये तो उत्पादन 3.5% तथा उनमें वसा प्रतिशत 10.7% तक बढ़ जाती है । xiv. दोहन में विलम्ब का प्रभाव :पशु मेलों में व्यापारी पशु को विक्रय हेतु लाने से पूर्व उसका दूध निकालना बन्द करके उसके अयन के बढे आकार को दर्शा कर क्रेता की धोखा देते है । अयन में दूध रुक ने पर उसमें तीव्र संगठनात्मक परिवर्तन होते हैं । अधिक विलम्ब होने पर अयन में दूध का संगठन रक्त के समान हो जाता है । इस दूध में लैक्टोज, केसीन तथा वसा की मात्रा धट जाती है जबकि क्लोराईडस व ग्लोब्यूलिन की मात्रा बढ जाती है ।
xvi. गर्भकाल का प्रभाव : पशु में गर्भकाल उसके उत्पादन को प्रभावित करता है । गर्भकाल की अन्तिम अवस्था में दूध के संगठन में तीव्र परिवर्तन होते है । गर्भ के 4 माह की अवस्था से दूध में ठोस तत्वों की मात्रा में वृद्धि होती है । जो क्रमशः बढती रहती है । xvii. हार्मोन का प्रभाव: पशु में दुग्ध काल (Lactation), पशु की पिट्यूटरी ग्रन्थि से स्रावित प्रोलेक्टिन हार्मोन से नियन्त्रित रहता है । यदि पशु को यह हार्मोन दिया जाये तो उसका दूध उत्पादन तथा दूध में वसा प्रतिशत बढ़ते है । थायराईड ग्रन्थि से स्रावित थाईरोक्सिन हार्मोन शरीर में उपापचय दर बढाता है जिससे दूध में वसा प्रतिशत बढती है । हार्मोन का अधिक बाह्य उपयोग उत्पादन को घटाता है । अण्डाशय से स्रावित एस्ट्रोजेन हार्मोन दूध में कुल ठोस बढाता है परन्तु उत्पादन कम करता है । इससे दूध में कुल प्रोटीन की मात्रा में वृद्धि होती है परन्तु केसीन की मात्रा स्थिर रहती है । xviii. दोहक की आदतें : दूध की उत्पादन मात्रा एवं उसका संगठन ग्वाले की आदतों से भी प्रभावित होता है । ग्वाले द्वारा अपूर्ण दोहन से दूध में गुणात्मक तथा मात्रात्मक परिवर्तन होता है । यदि अंतिम दूध छोड़ दिया जाये तो उत्पादित दूध में औसत वसा प्रतिशत में कमी आती है । ग्वाले के बार-बार बदलने से दूध की उपज घटती है । xix. दोहन विधि एवं कुशलता : दूध दोहन की पूर्ण हस्त विधि (First Method) पशु के लिए आरामदायक है अतः उत्पादन में वृद्धि होती है । दोहन में नियमितता रखने से भी उत्पादन बढ़ता है । अतः प्रतिदिन निश्चित समय पर ही दूध निकले । दूध 5 से 7 मिनट में निकाल ले अन्यथा ऑक्सीटोसिन का प्रभाव कम होकर उत्पादन कम करेगा । दोहन में पूर्णता एवं नियमितता होनी चाहिए । दोहन समान गति से किया जाये तथा थनों को गीला नहीं करना चाहिए । इन बातों का ध्यान रखने से उत्पादन में वृद्धि होती है ।
दुग्ध उत्पाद एवं मूल्य संवर्धन (value addition) दूध की तुलना में दुग्ध के उत्पाद की संग्रह आयु (shelf life ) अपेक्षाकृत अधिक होती है साथ ही दुग्ध के
उपरोक्त पदार्थों का उत्पादन घरों में भी किया जा सकता है । इनमें से कुछ की उत्पादन विधि का मानकीकरण हो चुका है जिनका व्यवसायिक स्तर पर संगठित क्षेत्र के दुग्ध संयन्त्रों द्वारा किया जा रहा है । वैसे उपरोक्त सभी पदार्थ असंगठित क्षेत्र के व्यापारियों द्वारा व्यवसायिक स्तर पर दुकानों में तैयार किये जा रहे हैं । जैसा की हम जानते है कि दूध को बिना ठण्डा किये मात्र कुछ घंटों तक ही रखा जा सकता है जबकि छैना को तीन दिन, पनीर को 3 दिन, खोआ को चार दिन, खुरचन व रबड़ी को 3-3 दिन तथा घी को 10-12 माह तक संग्रह किया जा सकता है । आजकल प्रशीतन क्रिया का विकास होने पर प्रशीतित दशा में इन पदार्थों को घरों में ओर अधिक समय तक बिना खराब हुए संग्रह किया जा सकता है । देशी पदार्थों की गुणवत्ता तथा संग्रह आयु के सुधार के लिए नई तकनीकी का प्रयोग भी आज होने लगा है । परम्परागत दुग्ध पदार्थ निर्माण विधि का संक्षिप्त प्रवाही आरेख मक्खन की उत्पादन विधि (Production Method): मक्खन, वैदिक काल का बहुत महत्वपूर्ण पदार्थ रहा है । यह पूरे देश में बनाया जाता है । परम्परागत रूप में मक्खन का उपयोग घी बनाने में उपयोग किया जाता है । इस प्रकार घी उत्पादन का यह एक माध्यमिक पदार्थ है । इसको बनाने के लिए दही में ठण्डा पानी मिलाकर उसे मिट्टी के बर्तन में लकड़ी की मथानी से हाथ द्वारा मथा जाता है । मक्खन के दाने मक्खनियाँ दूध की सतह पर एकत्र हो जाते हैं जिन्हें हाथ द्वारा एकत्र कर लिया जाता है । इन एकत्रित कणों को इकट्ठा करके मुलायम सघन पदार्थ (Smooth Compact Mass) के रूप में निकाल लिया जाता है । भैंस के दूध से सफेद मक्खन बनता है जबकि गाय के दूध से निर्मित मक्खन रंग में पीलापन लिए होता है । यह रंग दूध में उपस्थित कैरोटीन के कारण होता है । मक्खन में सुहावनी व सघन डाईऐसिटाईल सुगन्ध (Rich Diacetyle Flavour) पायी जाती है । मक्खन में 78-80% बसा, 1.5 to 2.0% SNF तथा 15-20% नमी पायी जाती है । कुल्फी की उत्पादन विधि (Production Method): कुल्फी, मलाई की कुल्फी या मलाई का बर्फ एक हिमीकृत दुग्ध उत्पाद है जिसका संगठन पतली क्रीम के समान होता है । यह बहुत स्वादिष्ट तथा पौष्टिक पदार्थ है । भारत में कुल दुग्ध उत्पादन का 0.6% भाग कुल्फी निर्माण में प्रयोग किया जाता है । ये पोषण तथा स्वाद के लिए खाये जाते हैं । अब स्वास्थ्यवर्धक Probiotic कुल्फी निर्माण पर अनुसन्धान कार्य प्रगति पर है । Probiotic का अर्थ है कि वे पदार्थ या जीव जो आन्तीय सूक्ष्मजीव सन्तुलन (Intestinal Microbial Balance) बनाये रखते हैं । इस वर्ग में मुख्यतया लाभकारी जीवाणु आते हैं । कुल्फी के लिए निर्धारित वैधानिक मानक स्पष्ट नहीं है तथा आईसक्रीम के लिए निर्धारित संगठन के मिश्रण से ही कुल्फी तैयार की जाती है । परम्परागत रूप से तैयार की जा रही कुल्फी के संघटकों का स्तर आईसक्रीम से निम्न होता है तथा आईसक्रीम की तरह इससे Overrun भी नहीं होता है: इसको बनाने की लिए दूध को 5% वसा तथा 8.5% वसा रहित ठोस स्तर पर मानकीकृत करके वाष्पीकरण द्वारा 2:1 के अनुपात में गाढ़ा करते हैं । संघनन क्रिया उपरान्त उसमें गाढ़े दूध का लगभग 13% चीनी मिलाते हैं । सान्द्रण (Concentration) के समय ही 0.3% जिलेटिन या सोडियम एल्वीनेट व 0.2% Glycerol Monosterate (GMS) मिलाया जाता है । सान्द्र विलयन को 30°C ताप पर ठण्डा करके सुवास, रंग तथा मेवा मिलाकर कुल्फी मोल्ड में भर लिया जाता है । इन्हें बन्द करके -20°C ताप पर हिमीकरण के लिए रखते हैं । कुल्फी का उपयोग गर्मी के मौसम में ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत रुचि के साथ किया जाता है । वसा तथा प्रोटीन का यह एक अच्छा स्रोत है । इसमें वसा विलेय विटामिन तथा जल विलेय विटामिन भी प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं । संवर्धित दूध से बनी कुल्फी में ओषधीय गुण भी पाये जाते हैं । दुग्ध प्रसंस्करण का महत्व एवं विधियाँ उत्पादन के तुरन्त बाद दूध को ठण्डा कर लेना चाहिए अन्यथा दूध संयंत्र में पहुंचने तक अम्लीय हो जायेगा । अम्लीय होने के साथ-साथ जीवाणु की संख्या भी अधिक हो जाएगी । यह भी सम्भव है कि इन जीवाणुओं में कुछ व्याधिजनक जीवाणु भी हो । सामान्य तापक्रम पर दूध को अधिक समय तक रखने से दूध के कुछ अव्यवो (Constituents) का विघटन (Decomposition) हो जाता है जिससे दूध का स्कन्दन भी सकता है । अतः दूध को पशु से दोहन के बाद यथाशीघ्र ठण्डा करना आवश्यक हो जाता है । भारत में इनके प्रसंस्करण के लिए कच्चा दूध आम तौर गाय या भैंस से लिया जाता है, लेकिन यदा कदा अन्य स्तनधारियों जैसे बकरी, भेड एवं ऊँट का दूध भी प्रयुक्त होता है I दुग्ध-उत्पाद या डेयरी उत्पाद से अभिप्राय उन खाद्य वस्तुओं से है जो दूध से बनती हैं। यह आम तौर पर उच्च ऊर्जा प्रदान करने वाले खाद्य पदार्थ होते हैं। इन उत्पादों का उत्पादन या प्रसंस्करण करने वाले संयंत्र को डेयरी या दुग्धशाला कहा जाता है। दूध का प्रसंस्करण निम्नलिखित विधियों के द्वारा किया जा सकता है
दुग्ध मुख्यतया गाँवों में उत्पादित किया जाता है जबकि इसका उपभोग केन्द्र शहरी क्षेत्र में होता है । अतः यह आवश्यक है कि दूध को उत्पादन के तुरन्त बाद या तो उपभोक्ता तक पहुँचा दिया जाए या उसे ठण्डा किया जाए । परम्परागत तरीके से दूधिया कच्चे दूध को इसी अवस्था में शहरों में ले जाकर उसे वितरित करते है । अतः दूध की गुणवत्ता अच्छी नहीं रह पाती है । उपभोक्ताओं को अच्छा दूध प्रदान करने हेतु वर्तमान में देश के लगभग सभी शहरों में दुग्ध संघ चल रहे है । दूध प्रसंस्करण का कार्य कुछ एक घण्टों में पूरा नहीं होता है । अतः दूध को संयंत्र या अवशीतन केन्द्र (Chilling Centre) पर ठंडा किया जाता है । कुछ गांवों का एकत्रित दूध (Collected Milk) एक निश्चित स्थान पर संग्रह कर लिया जाता है जिसे Assembling Centre कहा जाता है । कुछ संग्रह केन्द्रों (Assembling Centres) का दूध एक स्थान पर एकत्र कर लिया जाता है जहाँ दूध को ठण्डा करने का संयंत्र भी लगा रहता है उसे केन्द्र को अवशीतन केन्द्र (Chilling Centre) कहा जाता है । यहाँ दूध को मशीन द्वारा 4.०C तापमान तक ठण्डा किया जाता । अवशीतलन का अभिप्राय दूध को एक ऐसे तापमान तक ठण्डा करने से है कि उसमें उपस्थित पानी बर्फ में परिवर्तित न हो तथा जीवाणुओं की वृद्धि रुक जाय। अवशीतन केन्द्र पर दूध को ठण्डा करने के लिए वही यंत्र प्रयोग में लाया जाता है जो पास्तुरीकरण प्रक्रिया की ‘उच्च ताप कम समय’ (HTST) विधि में तापन के लिए प्रयोग किया जाता है । अन्तर यह है कि इस यन्त्र में पास्तुरीकरण के समय दूध के तापन के लिए गर्म पानी या भाप का प्रयोग करते हैं जबकि अवशीतन के समय शीतलन माध्यम के रूप में ब्राईन घोल (Brine Solution) का प्रयोग करते हैं । दूध को अवशीतित अवस्था में पास्तुरीकरण की प्रक्रिया में जाने तक रखा जाता है । अवशीतनकेन्द्रकेमुख्यउपकरण (Major Items/Equipments at Chilling Centre): किसीअवशीतनकेन्द्रपरनिम्नलिखितउपकरणउपलब्धहोनेचाहिए:
दूधकोअवशीतितकरनेकीविधियाँ (Methods of Cooling/Chilling of Milk): उत्पादन तथा संग्रह केन्द्र पर दूध को विभिन्न विधियों का प्रयोग करके ठण्डा किया जाता है । जिनमेंप्रमुखरूपसेप्रयोगकीजानेवालीविधियाँनिम्नलिखितहैं:
iii. ताप अवरोधक (Insulated Tanks) टैंकों के ठण्डे पानी में दूध के डिब्बों को डुबो कर ठण्डा करना ।
vii. टयूबयुक्त सतही शीतक (Tubular Surface Cooler): इसमें सतही शीतक (Surface Cooler) के एक कक्ष में ठण्डे पानी की नलियां (Tubes) लगी होती हैं । कक्ष में से दूध प्रवाहित किया जाता है । जो नलिकाओं में से बहने वाले अवशीतित जल या ब्राइन सोलूसन के सम्पर्क में आकर ठण्डा होता है । दूध का प्रवाह ऊपर से नीचे की ओर होता है जो नीचे आकर एक ट्रे में एकत्र होते हुए भंडारण टैंक में चला जाता है । शीतक दो भागों में बंटा होता है उपर अवशीतित जल की नलिकाएं तथा नीचे ब्राईन, अमोनिया या फ्रियोन गैस युक्त नलिकाएं (Coils) होती है । viii. प्लेटशीतक (Plate Coolers): प्लेट शीतक का प्रयोग करके दूध को ठण्डा किया जाता है । इसमें प्लेटस (Plates) लगी होती हैं । एकान्तर (Alternate Plates) प्लेटों में ठण्डा पानी या प्रशीतक तथा बीच की दूसरी प्लेटों में दूध प्रवाहित होता है जो ठण्डी प्लेटों के सम्पर्क में आकर ठण्डा हो जाता है ।
कैबिनेट शीतक की कार्य क्षमता अधिक होती है । यह कई एक सतही शीतकों (Surface Coolers) को उदम (Vertical) स्थिति में संयुक्त करके कार्य में लिया जाता है । स्थान को कमी में कार्य करने के लिए यह विधि उपयुक्त है ।
डेरी संपन्त्र (Dairy Plant) में चबूतरे (Platform) पर दूध के डिब्बों में या टैंकर्स (Cans or Tankers) में लाया जाता है । यहाँपरदुग्धप्राप्तिकेलिएनिम्नलिखितक्रियाएं (Operations) कियेजातेहैं:
दूध के डिब्बों को ट्रक या टैम्पू आदि वाहन से उतार लिया जाता है । इस कार्य में सुविधा के लिए प्लेटफार्म की ऊचाई ट्रक की फर्श की ऊँचाई के बराबर रखी जाती है । उतारे गये डिब्बों को श्रेणीकरण के लिए एकत्र कर लिया जाना है । यदि दूध को टैंकर्स में लाया गया है तो उसे सही स्थिति में खड़ा करके पाईप द्वारा जोड़ दिया जाता है ii. श्रेणीकरण (Grading): दूध के मूल्य भुगतान हेतु दूध को गुणों के आधार पर विभिन्न वर्गों में बाँट लिया जाता है । यह सामान्यतया ज्ञानेन्द्रिय परीक्षण (Organoleptic Tests) के आधार पर किया जाता है । यहाँ दूध के वर्गीकरण करने वाला व्यक्ति (Milk) अनुभवी (Experienced) होने चाहिए । iii. दूधपरीक्षण (Milk Testing): दुग्ध डिब्बों (Milk Cans) में आये दूध के श्रेणीकरण के लिए डिब्बे का ढक्कन खोल कर दूध का रूप, गन्ध, ताप तथा तलछट आदि का परीक्षण किया जाता है । दूध का मूल्य भुगतान वसा तथा वसा रहित ठोस एवं उपरोक्त सुग्राही परीक्षणों (Sensory Tests) के आधार पर किया जाता है । प्रयोगशाला परीक्षण के लिए दूध को मिला कर नमूना भर कर रख लिया जाता है तथा डिब्बों को खाली करा दिया जाता है । प्लेटफार्म पर होने वाले परीक्षणों को 2 वर्गों में बाँटा जा सकता है:
इन्हें सुग्राही (Sensory) या जल्दी होने वाले परीक्षण (Rapid Platform Tests) भी कहा जाता है । क्योंकि ये जल्दी सम्पन्न हो जाते है । इस वर्ग में आने वाले मुख्य परीक्षण गन्ध (Flavour), स्वरूप (Appearance), ताप (Temperature), तलछट (Sediment) तथा अम्लता प्रतिशत (Acidity Percentage) है । ये परीक्षण दूध को देख कर छू कर या सूँघ कर किये जा सकते है ।
प्रयोगशाला में दूध का लैक्टोमीटर पाठयांक (Lactometer Reading) तथा वसा प्रतिशत (Fat Percentage) आदि का निर्धारण (Determination) किया जाता है ।
दूध को प्राप्त करके उसका मूल्य भुगतान करने तथा बेचने के लिए दूध का भार ज्ञात करना आवश्यक होता है । डिब्बों का दूध Weigh Bowl में उडेलते है । दूध उडेलने से पूर्व बाऊल को पैमाने पर रख कर Scale Dial की सूई को शून्य पर स्थिर कर लेते है । अब उसमें दूध उडेल कर उसके वजन का सही पाठयांक पड़ लिया जाता है । Weigh Tank का निकास वाल्व बडा होना चाहिए । जिससे तोलने के बाद वाल्व खोलते ही नीचे रखे Dump Tank में दूध की पूर्ण मात्रा शीघ्रता से चली जाए । इस टैंक से दूध को पम्प द्वारा ऊँचाई पर रखे कच्चे दूध के भंडारण टैंक (Raw Milk Storage Tank) में भेजा जाता है । टैंकर्स के दूध का आयतन फ्लो मीटर द्वारा ज्ञात किया जाता है जिसे बाद में गणना द्वारा भार में परिवर्तित कर लिया जाता है । दूध का आयतन ज्ञात करने के लिए एक विशेष यंत्र, Flow Meter का प्रयोग किया जाता है । (भार = आयतन × आपेक्षिक घनत्व) । यदि टैंकर्स को Weigh Bridge पर तोलना है तो टैंकर को तोलने से पूर्व उस पर जमे बर्फ या कीचड़ आदि को धोकर साफ कर लेना चाहिए तथा दूध का शुद्ध भार ज्ञात किया जा सके ।
दूध को प्राप्त कर तोलने के बाद भंडारण टैंकों में एकत्र कर लिया जाता है दूध को पास्तुरीकृत करने से पूर्व छाना जाता है । भंडारण टैंकों में दूध 5०C ताप पर ठण्डा रहता है । इस ताप पर दूध में वसा ठोस अवस्था में होती है तथा दूध की विस्कोसिटी (Viscosity) अधिक होती है । दूध को ठीक प्रकार से दक्षता पूर्वक (Efficiently) छानने के लिये उसका पूर्वतापन आवश्यक होता है । पूर्व तापन से दूध का वसा द्रव अवस्था (Liquid State) में आ जाता है तथा दूध की विस्कोसिटी भी कम हो जाती है अतः दूध की छनाई आसानी से हो सकती है । दूध को छानने से पूर्व 35 से 40०C ताप तक गर्म किया जाता है । इसके अतिरिक्त पूर्वतापन क्रिया के बाद दूध में भडारण के समय आने वाली स्थूलता (Age Thickening) भी नहीं आ पाती है तथा उसकी उष्मा के प्रति स्थिरता (Heat Stability) भी बढ़ जाती है ।
दूध में से धुल आदि दूर करने के उद्देश्य से उसे 35-40०C तापमान तक गर्म करके छाना जाता है । दूध को छानने के विकल्प के रूप में उस का स्वच्छीकरण (Clarification) भी किया जा सकता हैI दूध को छानने के लिए कपड़ा या छोटे छिद्रयुक्त पैड का प्रयोग किया जाता है । एकअच्छे छनने की निम्नलिखित विशेषताएँ होनी चाहिए :
स्वच्छीकरण (Clarification) स्वच्छीकरण के लिए एक मशीन का प्रयोग करते हैं जिसे स्वछीकारक (Clarifier) कहा जाता है । यह रूप तथा रचना में अपकेन्द्री क्रीम पृथक्कारक (Centrifugal Cream Separator) की तरह का होता है । दूग्ध प्रसंस्करण के समय फिल्टर या क्लारीफर को पास्तुरीकरण मशीन में दूध के प्रवेश करने से पहले या पुनर्जनन भाग (Regeneration Section) के पास लगायी जाता है । क्लारीफर के उपयोग से दूध की गन्दगी को अधिक दक्षता के साथ निकल कर अलग किया जा सकता है जबकि फिल्टर मात्र धूल के छोटे कणों को ही निकालकर अलग करता है । क्लारीफर द्वारा दूध को साफ करते समय, उसके बाऊल में बाह्य पदार्थ जैसे दुख प्रोटीन, ल्युकोसाइट, अयन की दुग्थ कोशिकाएं, वसा, कैल्शियम फास्फेट, कुछ लवण, जीवाणु तथा कभी-कभी लाल रक्त कोशिकाएं भी एकत्र हो जाते हैं । इन पदार्थों को चीकट या कीचड़ (Clarifier Slime) कहा जाता है ।
दूध को यदि किसी बर्तन में बिना हिलाये रख दिया उपस्थित वसा ऊपरी सतह पर क्रीम के रूप में एकत्र हो जाती है । स्प्रेटा दूध गुरुत्वाकर्षण खिंचाव के कारण नीचे बैठ जाता है । वसा कणों का आकार बढ्ने के साथ-साथ वसा की, उपरी सतह पर एकत्र होने की प्रवृति भी बढ जाती है । दूध को प्रसंस्करण के बाद काफी समय तक भंडारित करना समय परिवहन में दूध हिलता भी है । दूध के हिलने से भी वसा बड़े कणों के रूप में एकत्र हो जाती हैं । इस प्रकार दूध की वसा तथा स्प्रेटा दूध अलग-अलग होने से पूर्ण दूध की गुणवत्ता पर खराब प्रभाव पड़ता हैI वसा के पृथक्कीकरण को रेकने के लिए आवश्यक है कि दूध में वसा कणों को तोड़ कर इतना छोटा कर दिया जाए कि उसकी ऊपर उठने की प्रवृत्ति कम से कम रह जाए तथा दूध एक समांग विलयन (Homogeneous Solution) के रूप में बना रहे । इस प्रकार ”दूध में उपस्थित वसा कणों को तोड़ कर छोटा करने की किया समांगीकरण (Homogenization) कहलाती है ।” दूसरे शब्दों में हम इस प्रकार कह सकते है- ”समांगीकरण वह किया है जिसके द्वारा दूध की वसा गोलिकाओं को छोटी-छोटी गोलिकाओं में विभाजित किया जाता है ताकि दूध के भंडारण के समय उसके ऊपर क्रीम की पर्त (Cream Layer) सदा के रूप में वसा का एकत्रीकरण न हों तथा वसा दूध के समस्त आपतन में समान रूप में उपस्थित एवं वितरित रह सकें ।” समांगीकरणयन्त्र (Homogenizer): यह एक मशीन होती है जो वसा गोलिकाओं को छोटे-छोटे कणों में विभक्त करती है । इसमें एक उच्च दबाव वाला Piston Pump लगा होता है जो दूध को उच्च दाब पर समांगीकरण वाल्व तथा इसकी सीट (Seat) के मध्य एक संकरे छिद्र से दाब द्वारा निकालता है । इस संकरे रास्ते में से होकर दबाव के साथ दूध के आने के कारण यह बहुत तेज गति से बहता है । फलस्वरूप वसा गोलिकाएं आपस में रगड कर तथा टकरा कर छोटे-छोटे कणों में विभक्त हो जाती है । जिस प्रकार से एक तेज गति से बहने वाली नदी में पत्थर टूट कर तथा रगड कर छोटे-छोटे आकार के हो जाते है । ठीक उसी प्रकार से इस यन्त्र के अन्दर वसा की बडी गोलिकाएं छोटी-छोटी गोलिकाओं में परिवर्तित हो जाता है । यन्त्र का वाल्व तथा Seat कठोर धात्वीय पदार्थ के बने होते है ।
दूध की स्वच्छता (Milk Cleanliness) उसमें बाह्य पदार्थों की अनुपस्थिति को दर्शाती है जबकि दुग्ध सुरक्षितिकरण (Safeguarding) का अर्थ दूध को व्याधिजनक जीवाणुओं से मुक्त करना दर्शाता है । यह आवश्यक नहीं है कि साफ व स्वच्छ दूध उपभोग के लिए सुरक्षित भी होगा परन्तु सुरक्षित (Safe Milk) दूध हमेशा साफ व स्वच्छ ही होता है । मानव उपभोग के लिए दूध हमेशा साफ, स्वच्छ तथा सुरक्षित होना आवश्यक होता है । दूधकोसुरक्षितरखनेकीदोविधियाँहोतीहैं:
दूध को साफ व स्वच्छ करके एक निश्चित ताप पर उतने समय के लिए रखे कि उसमें उपस्थित सभी व्याधिजनक जीवाणु समाप्त हो जाए तथा पास्तुरीकृत दूध में अपास्तुरीकृत दूध का संक्रमण (Contamination) न हो ।
पास्तुरीकरण में दूध के प्रत्येक कण को क निश्चित तापमान पर निश्चित समय के लिए गर्म करना जिससे उसमें उपस्थित सभी हानिकारक जीवाणु (Pathogenic Organism) नष्ट हो जाए तथा दूध की खाद्य महत्ता तथा संगठन पर कोई विशेष विपरीत प्रभाव न पड़े । पास्तुरीकरण के तुरन्त बाद दूध को भंडारण करने के लिए 4०C तापमान पर ठण्डा किया जाता है ।” दूसरे शब्दों में अधिक स्पष्ट तौर पर हम यह भी कह सकते है कि ”दूध के प्रत्येक कण को कम से कम 145०F तापमान पर 30 मिनट के लिए या 161०F तापमान पर 15 सैकिंड के समय के लिए गर्म करना तथा तुरन्त ही 4-5०C तापमान पर ठण्डा कर देने की प्रक्रिया को पास्तुरीकरण कहते है । दूध का निर्जमीकरण (Sterilization of Milk): ”वह दूध जो 100०C या अधिक तापमान पर उतने समय के लिए गर्म किया जाए कि सामान्य ताप पर कम से कम 7 दिन तक उपभोग के लिए उपयुक्त अवस्था में रखा जा सके, निर्जमीकृत दूध कहलाता है ।” इस क्रिया को निर्जमीकरण (Sterilization) कहा जाता है व्यवसायिक रूप में निर्जमीकृत दूध पूर्ण रूप से जीवाणु विहीन (Sterile) नहीं होता है क्योंकि इस तापमान एवं समय के संयोग पर स्पोर्स (Spores) बनाने वाले जीवाणु स्पोर अवस्था (Spore Form) में जीवित बने रहते हैं जो बाद में भंडरण के समय उपयुक्त दशायें मिलने पर वृद्धि (Growth) करके दूध को खराब कर देते है यदि इन स्पोर्स को नष्ट करने हेतु ताप या समय बढाया जाये तो दूध के सामान्य गुणों विशेष रूप से रंग व गंध पर विपरीत प्रभाव पडता है । फलस्वरूप पदार्थ की व्यवसायिक माँग धट जाती है । दूध का पास्तुरीकरण (Pasteurization of Milk) पास्तुरीकरण में दूध के प्रत्येक कण को एक निश्चित तापमान पर निश्चित समय के लिए गर्म करना होता है जिससे उसमें उपस्थित सभी हानिकारक जीवाणु (Pathogenic Organism) नष्ट हो जाए तथा दूध की खाद्य महत्ता तथा संगठन पर कोई विशेष विपरीत प्रभाव न पड़े । पास्तुरीकरण के तुरन्त बाद दूध को भंडारण करने के लिए 4०C तापमान पर ठण्डा किया जाता है ।” दूसरे शब्दों में अधिक स्पष्ट तौर पर हम यह भी कह सकते है कि ”दूध के प्रत्येक कण को कम से कम 63०C तापमान पर 30 मिनट के लिए या 71.8०C तापमान पर 15 सैकिंड के समय के लिए गर्म करना तथा तुरन्त ही 4-5०C तापमान पर ठण्डा कर देने की प्रक्रिया को पास्तुरीकरण कहते है । उच्चतापअल्पकालीनपास्तुरीकरण (High Temperature Short Time Pasteurization): इस विधि में प्रयोग होने वाले यन्त्र में कच्चा दूध एक तरफ से प्रवेश करता है तथा 71.8०C ताप पर 15 सैकिंड के लिए पास्तुरीकृत होकर दूसरी तरफ से बाहर आना प्रारम्भ हो जाता है । अतः इस विधि में कार्य शुरू करने के 15 सैकिंड बाद पास्तुरीकृत दूध प्राप्त होना शुरू हो जाता है तथा कार्य चलने तक लगातार पास्तुरीकृत दूध प्राप्त होता रहता है । इस विधि में धारण विधि की भाँति पास्तुरीकृत दूध प्राप्त करने के लिए घण्टों प्रतीक्षा नहीं करनी पडती है । इस विधि का प्रयोग बडे पैमाने पर दूध को पास्तुरीकृत करने के लिए ही किया जा सकता है । छोटे पैमाने पर दूध के पास्तुरीकरण के लिए यह विधि उपयुक्त नहीं है । इस विधि में तमाम कार्य स्वचालित मशीनों द्वारा ही पूरा किया जाता है । अतः मानव श्रम (Man Power/Labour) की आवश्यकता कम पडती है । कुछ वर्षों पहले इस विधि में तापमान, समय तथा दूध के प्रवाह को नियंत्रित करने के यान्त्रिक साधन उपलब्ध नहीं थे अतः पहले इस विधि को फ्लैश (Flash) विधि के नाम से जाना जाता था । वर्तमान में मशीनों की गुणवत्ता अच्छी हो जाने से स्व-नियंत्रण यान्त्रिक तथा स्वचालित हो गया है और अब इस विधि को H.T.S.T. (High Temperature Short Time), उच्च ताप अल्प कालीन (पास्तुरीकरण) के नाम से जाना जाता है । उच्चतापअल्पकालीनपास्तुरीकरणयन्त्रकेप्रमुखभागोंमेंदुग्धपास्तुरीकरणकार्य–इसयन्त्रकेविभिन्नभागोंकेकार्यनिम्नलिखितप्रकारसेहै:
यह, यन्त्र में कच्चे दूध की आप्रर्ति को नियन्त्रित करता है तथा F.D.V. से वापिस आये अपास्तुरीकृत दूध को प्राप्त करता है ।
दूध के बहाव को नियन्त्रित करने के लिए पम्प का प्रयोग करते हैं । Regenerator तथा Heater के मध्य Rotary Positive Pump या Balance Tank के एक दम बाद Centrifugal Pump का प्रयोग किया जाता है ।
सामान्य रूप से H.T.S.T. प्रणाली में Plate Heat Exchanger का प्रयोग किया जाता है । ये अवकारी इस्पात (Stainless Steel) की बनी होती है । ये प्रत्येक इकाई में Press द्वारा कसी रहती हैं । दो प्लेटों के बीच लगभग 3 मी.मी. का खाली स्थान रखा जाता है । इस खाली स्थान में एकान्तर प्लेटों (Alternate Plates) के मध्य दूध बहता है तथा शेष एकान्तर प्लेटों के बीच खाली स्थान में गर्म या ठण्डा (आवश्यकतानुसार) पानी विपरीत (Opposite) दिशा में प्रवाहित होता है । Regenerator की Alternate Plates में पास्तुरीकृत तथा कच्चा दूध एक-दूसरे के विपरीत दिशा में बहता है । जहां पास्तुरीकृत दूध से प्लेट गर्म होकर उसके दूसरी तरफ बहने वाले कच्चे दूध को गर्म करती है । इसी प्रकार पास्तुरीकृत दूध ठण्डा होता रहता है । दूध की मात्रानुसार प्लेटों की संख्या कम या अधिक रखी जा सकती है प्लेटों के ऊपरी व निचले सिरे पर उचित छिद्र होते है जिनके माध्यम से दूध एवं गर्म या ठण्डा पानी एकान्तर प्लेटों में बिना एक दूसरे में मिले बहता रहता है ।
सन्तुलन टैंक (Balance Tank) से यन्त्र में आया हुआ कच्चा दूध शीतक (Cooler) में जाने से पूर्व पुनर्जनन भाग में पास्तुरीकृत दूध से गर्म होता है । इस विधि को दूध से दूध पुनर्जनन (Milk to Milk Regeneration) कहा जाता है । इससे कार्य में ऊर्जा व समय की बचत होती है । आगे इस कच्चे दूध को गर्म करने में कम ऊर्जा की आवश्यकता पडती है । इस भाग में 40०F ताप युक्त कच्चा दूध 120०F तापमान तक गर्म हो जाता है ।
पुनर्जनन भाग के बाद 40 से 90 Mesh Cloth का एक फिल्टर दूध को छानने के लिए लगाया जाता है । सामान्य रूप से दो छन्ने लगाने जाते हैं । परन्तु एक समय में केवल एक ही छनना कार्य करता है ।
छन्ना से छना हुआ दूध सीधा या समांगीकारक (Homogenizer) से होता हुआ उष्मक (Heater) में आ जाता है । यहाँ पर लगी प्लेटस में दूध को गर्म पानी की सहायता से 72०C ताप तक गर्म किया जाता है । इस गर्म दूध को 15 सैकिंड तक इस ही तापमान तक धारण किया जाता है यह ध्यान रखने की बात है कि इन 15 सैकिंड में Holding Tubes में दूध का तापमान 71.8०C से कम न होने पाये ।
तापन के तुरन्त बाद दूध धारण कुण्डल (Holding Rules) या धारण प्लेटस (Holding Plates) में से गुजरता है । इनकी क्षमता तथा दूध के प्रवाह की गति में एक सम्बन्ध होता है जिससे दूध को इनसे गुजरने में 15 सैकिड का समय लगता है तथा दूध का तापमान 15 सैकिंड तक 71.8०C रहता है ।
धारण कक्ष से दूध F.D.V. में आता है । इस वाल्व से दूध Balance Tank या Regeneration Chamber तथा Cooler में से होता हुआ भंडारण टैंक (Storage Tank) या Packaging Machine में जाता है । दूध का तापमान यदि 71.8०C से कम हो जाए तो दूध F.D.V. से Divert होकर पुनः पास्तुरीकरण होने के लिए कर F.C.B.T. (Float Controlled Balance Tank) में चला जाता है । तापमान 71.8०C या अधिक होने पर दूध का प्रवाह पुनर्जनन भाग की ओर जाता है । यहाँ से ठंडा होता हुआ दूध अन्तिम शीतलन के लिए Cooler में तथा Cooler में तथा Storage Tank में या Packaging Machine में चला जाता है ।
पास्तुरीकरण गर्म दूध F.D.V. से निकलकर पुनर्जनन भाग में Milk to Milk Regeneration क्रिया द्वारा ठण्डा लिए जाता है । यहाँ पर दूध के शीतलन कार्य में ऊर्जा की बचत होती है क्योंकि गर्म दूध Cooler में जाने से पहले Regeneration Section में, Balance Tank लिए आने वाले कच्चे ठण्डे दूध से काफी निम्न तापमान तक ठण्डा हो जाता है । पुनर्जनन 70-80% तक दक्षतापूर्ण हो जाता है । इस क्रिया में गर्म दूध 142०F से 82०F तथा 40०F का ठण्डा दूध (कच्चा) 120०F तक गर्म हो जाता है ।
पुनर्जनन भाग से दूध ठण्डा होने के लिये Coolers में प्रवेश करता है यहाँ पर शीतलक की प्लेट्स से होता हुआ गर्म दूध पहले ठंडे जल से तथा बाद में अवशीतित जल से ठण्डा होकर भंडारण टैंक में चला जाता है । कमसमयउच्चताप (H.T.S.T.) विधिकेलाभ:
प्रोबायोटिक्स युक्त दुग्ध एवं मांस उत्पाद इस नवीन युग का उपभोक्ता काफी जागरूक है, वह अपने भोजन से प्राप्त होने वाले पोषण के अलावा उससे सम्बन्धित स्वास्थ्य एवं सुरक्षा के प्रति चिंतित भी है। इसलिए रोजमर्रा की जिन्दगी में प्रोबायोटिक का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है। हालाकि प्रोबायोटिक के क्षेत्र में अब भी प्रारम्भिक दौर है इसके बावजूद ये आषाजनक प्रतीत होते है। जीवित सूक्ष्मजीवों जिन्हें पर्याप्त मात्रा में मेजबान में प्रषासित करने पर स्वास्थ्य लाभ प्रदान करते है ऐसे सूक्ष्मजीवों को प्रोबायोटिक कहतें है। ये सूक्ष्म जीव हमारे शरीर की आंतो में माइक्रोबियल संतुलन बनाने में सहायक है। प्रोबायोटिक्स युक्त उत्पाद- मुख्यतः इन्हे दुग्ध एवं मांस के उत्पादों में उपयोग किया जाता है क्योंकि दुग्ध एवं मांस की संरचना प्रोबायोटिक्स जीवों के विकास के लिए उपयुक्त है। प्रोबायोटिक्स युक्त दुग्ध उत्पाद – दही, पनीर, आइसक्रीम, किण्वित (फरमेन्टेड) दुग्ध इत्यादि। प्रोबायोटिक्स युक्त मांस उत्पाद – किण्वित सासेज आदि। प्रोबायोटिक से प्रदान होने वाले स्वास्थ्य लाभ :-
प्रोबायोटिक्स की कार्यविधि –
वर्तमान में उपयोग किये जाने वाली प्रोबायोटिक उपभेदों (स्ट्रेन) के मुख्यतः तीन प्रकार हैं। 1 लैक्टोबेसिलस प्रजातियाँ- लैक्ट. एसिडोफिलस, लैक्ट. प्लांटारम, लैक्ट. ब्रेविस।
प्रोबायोटिक्स मुख्य रूप से पाचन में सुधार, लेक्टोज असहिष्णुता, उच्च रक्त चाप में कमी, रक्षातंत्र में वृद्धि एवं डायरिया से बचाव आदि विशेषताओं के कारण सफलतापूर्वक उपयोग में लाया जा रहा है। पूर्व तथ्यों से प्रतीत होता है कि इसके स्वास्थ्य परिणाम लाभदायक एवं आशाजनित है जिनमें वृद्ध मनुष्यों में इसका उपयोग विशेष रूप से प्रासंगिक हो सकता है। अतः प्रोबायोटिक्स हमारे शरीर के प्रति फायदेमंद एवं सुरक्षित है। https://www.india.gov.in/hi/topics/agriculture/dairy https://www.pashudhanpraharee.com/milk-processing-milk-quality/ Please follow and like us: दूध एक संपूर्ण आहार कैसे हैं?दूध को एक संपूर्ण पौष्टिक आहार के रूप में माना जाता है जिसे शाकाहारी हो या मांसाहारी, बच्चा हो या बुर्जुग सभी वर्ग के लोग सेवन कर सकते हैं। दूध में कैल्शियम, मैगनीशियम, जिंक, फॉस्फोरस, ऑयोडीन, आयरन, पोटेशियम, फोलेट्स, विटामिन ए, विटामिन डी, राइबोफ्लेविन, विटामिन बी 12, प्रोटीन और स्वस्थ फैट मौजूद होता है।
दूध को संपूर्ण आहार क्यों मनाया जाता है?दूध को संपूर्ण आहार कहा गया है। दूध में शरीर को जरूर पोषण देने वाले सारे तत्व होते हैं। तभी तो शिशु को दूध पिलाने से ही सारे पोषण तत्व मिल जाते हैं। नवजात से लेकर वृद्ध तक के लिए दूध जरूरी आहार है।
क्या दूध पूर्ण आहार है?दूध ही एकमात्र ऐसा पेय या आहार है, जो कार्बोहायड्रेट, वसा और प्रोटीन का मिश्रण है। इसी कारण से यह पूर्ण आहार माना जाता है।
संपूर्ण आहार क्या है?जिस आहार में प्रोटीन , विटामिन सब कुछ उचित मात्रा में हो । दाल, चावल,रोटी, सब्जी दही, फल, सलाद आदि सब कुछ । पौष्टिकता से भरपूर आहार सम्पूर्ण आहार माना जाता है ।
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