पृथ्वी में 7 महाद्वीप कौन से हैं? - prthvee mein 7 mahaadveep kaun se hain?

धरती के सभी महाद्वीप जुड़कर एक हो जाएंगे

15 अगस्त 2016

पृथ्वी में 7 महाद्वीप कौन से हैं? - prthvee mein 7 mahaadveep kaun se hain?

इमेज स्रोत, waywire.com

हमारी धरती सात महाद्वीपों में बंटी है. एशिया, अफ्रीका, यूरोप, उत्तर और दक्षिण अमरीका, ऑस्ट्रेलिया और अंटार्कटिका. इसी तरह यहां पांच महासागर हैं. प्रशांत महासागर, अटलांटिक महासागर, हिंद महासागर, आर्कटिक महासागर और दक्षिणी महासागर.

वैज्ञानिक कहते हैं कि भविष्य में सारे महाद्वीप एक दूसरे से जुड़कर एक हो जाएंगे. उन्होंने इसका नाम भी रख लिया है, ''पैंजिया प्रॉक्सिमा''. ऐसा होने पर आप आराम से ऑस्ट्रेलिया से अमरीका के अलास्का सूबे तक पैदल चलकर जा सकेंगे. या फिर आप यूरोप के स्कैंडीनेविया से दक्षिण अमरीका के पैटागोनिया तक आराम से टहलते हुए जा सकेंगे.

अमरीका के इलिनॉय शहर की नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के क्रिस्टोफ़र स्कॉटीज़ इस ख़याल को लेकर बहुत उत्साहित हैं. वो कहते हैं कि आज से पांच करोड़ साल बाद ऑस्ट्रेलिया, आकर दक्षिणी पूर्वी एशिया से टकराने लगेगा. इसी तरह अफ़्रीकी महाद्वीप की यूरोप से टक्कर होने लगेगी. उस वक़्त अटलांटिक महासागर का दायरा भी बहुत बढ़ जाएगा.

ये सब इस वजह से होगा क्योंकि धरती के अंदर की चट्टानें लगातार खिसक रही हैं. इनके खिसकने के साथ ही समंदर और महाद्वीप भी खिसक रहे हैं. इनके खिसकने की रफ़्तार से ही वैज्ञानिकों ने अंदाज़ा लगाया है कि 25 करोड़ साल बाद सारे महाद्वीप एक दूसरे से जुड़ जाएंगे. स्कॉटीज़ ने तो बाक़ायदा इसका एनिमेशन भी तैयार कर लिया है. हालांकि वो ये भी कहते हैं कि पांच करोड़ साल से आगे जाकर क्या होगा, ये कहना मुश्किल है.

असल में धरती कई परतों से बनी है. इसकी ऊपरी प्लेट पर महाद्वीप और महासागर स्थित हैं. धरती की ये ऊपरी परत या प्लेट लगातार खिसक रही है. इसकी रफ़्तार 30 मिलीमीटर सालाना है.

आज धरती की प्लेट के खिसकने पर सैटेलाइट से निगरानी रखी जाती है. मगर हमें इस तकनीक के ईजाद होने से पहले ही पता था कि धरती की परतें खिसक रही हैं.

ये ख़याल सबसे पहले जर्मन भूवैज्ञानिक अल्फ्रेड वेगनर को, क़रीब सौ साल पहले आया था. उन्होंने देखा कि कुछ जानवरों के जीवाश्म जो अलग अलग महाद्वीपों पर पाए गए, बहुत मिलते-जुलते हैं. उन्हें समझ में नहीं आया कि दक्षिणी अमरीका और भारत, जो इतने दूर हैं, वहां करोड़ों साल पहले एक जैसे जानवर कैसे रहते होंगे?

अल्फ्रेड वेगनर ने कहा कि जब ये जीव ज़िंदा रहे होगे, तब धरती के सारे महाद्वीप एक दूसरे से जुड़े रहे होंगे. उन्होंने ये भी देखा कि जैसा दक्षिणी अमेरिका और अफ्रीका का नक़्शा है, यूं लगता है कि दोनों एक दूसरे से टूटकर दूर गए हैं. आज अगर दोनों इकट्ठे हो जाएं तो एक खांचे में फिट हो जाने जैसा होगा.

हालांकि जब वेगनर ने अपना ख़याल जाहिर किया था, तो उस वक़्त उसे ख़ारिज कर दिया गया था. लेकिन, वेगनर का महाद्वीपों के खिसकने का सिद्धांत बाद में जाकर सही पाया गया. लेकिन वेगनर के सिद्धांत के राज़, महाद्वीपों में नहीं, महासागरों के भीतर छुपे हुए थे. उन्हें उजागर किया अमरीकी भूवैज्ञानिक मैरी थार्प ने.

मैरी ने पचास के दशक में बताया था कि महासागरों की तलहटी समतल नहीं है. समंदर की लहरों के नीचे बड़े बड़े पहा़ड़, पठार और ऊबड़-खाबड़ इलाक़े हैं. मैरी ने समंदर की तलहटी का नक़्शा तैयार किया. पता चला कि अटलांटिक महासागर के अंदर हज़ारों किलोमीटर लंबी पर्वतमाला है. जिसकी चौड़ाई कई किलोमीटर है.

दूसरे महासागरों के अंदर भी ऐसे बड़े बड़े पहाड़ छुपे हैं. समंदर के भीतर के इन पहाड़ों पर से पर्दा उठने पर पता चला कि हमारी धरती का धरातल कैसे बना था.

समंदर के भीतर के इन पहाड़ों की अहमियत को हमें समझाया, अमरीकी नौसेना के अधिकारी हैरी हेस ने. हैरी, दूसरे महायुद्ध के दौरान पनडुब्बी के कमांडर रहे थे. उन्होंने, समुद्र के भीतर के कुछ नक़्शे, सोनार की मदद से तैयार किए थे.

हैरी का कहना था कि समुद्र का धरातल लगातर बदल रहा है. धरती की कोख में जो आग धधक रही है, उसका लावा अक्सर नीचे से ऊपर आता है. ये लावा समुद्र की तलहटी में फैलता जाता है. जब धरती के भीतर के दबाव से लावा बाहर आता है तो ऊपर की चट्टानें इधर-उधर होकर उस लावा को निकलने का रास्ता देती हैं. यही चट्टानें एक-दूसरे के ऊपर चढ़ती जाती हैं. इस तरह बनतें हैं समंदर के अंदर के पहाड़.

अब चूंकि धरती के भीतर से लावा लगातार निकल रहा है. इस वजह से समंदर के अंदर चट्टानों की हलचल मची हुई है. इसको ऐसे समझिए कि किसी बरतन में सूप उबल रहा है और वो चारों तरफ़ फैल रहा है. धरती के अंदर की गर्मी की वजह से जो लावा निकल रहा है, वो कुछ-कुछ बरतन में सूप उबलने जैसा ही है.

समुद्र की तलहटी की बनावट में बदलाव के असर से महाद्वीप भी खिसक रहे हैं. असल में सारे महाद्वीप, टेक्टोनिक प्लेट के ऊपर स्थित हैं. इनके नीचे की ये धरती की परत, समुद्र की तलहटी से निकल रहे लावे के दबाव से खिसक रही हैं. इसलिए महाद्वीप भी लगातार खिसक रहे हैं.

इसके सबूत वैज्ञानिकों को समुद्र तल से मिले हैं. वहां की चट्टानों की पड़ताल से पता चलता है कि वो कितनी पुरानी हैं. आज वैज्ञानिकों ने नई नई मशीनों से इस बात के काफ़ी सबूत जुटा लिए हैं कि समंदर के अंदर का धरातल धरती की कोख से निकल रहे लावे की वजह से लगातार फैल रहा है. इस फैलाव के असर से महाद्वीप भी अपनी जगह से खिसक रहे हैं.

हालांकि इसकी रफ़्तार बहुत कम है. मगर इससे वेगनर और हैरी हेस के विचार आज सही साबित हुए हैं.

इसी थ्योरी की बुनियाद पर स्कॉटीज़ जैसे वैज्ञानिक ये मानते हैं कि आज महाद्वीपों में बंटी धरती की ज़मीन पहले इकट्ठी थी. धरती के अंदर मची हलचल की वजह से ज़मीन के ये हिस्से एक दूसरे से दूर होते गए. हालांकि ऐसा होने में करोड़ों साल लग गए.

इस बात के सबूत हैं, वो जीवाश्म जो अलग-अलग महाद्वीपों में मिलते हैं. जैसे की मूंगे की चट्टानों के जीवाश्म जो अफ्रीका के उत्तरी हिस्से में भी पाए जाते हैं और अंटार्कटिका के पास भी. यानी करोड़ों साल पहले आज का अफ्रीका, अंटार्कटिका से लगा हुआ था.

इसी तरह आज के मगरमच्छ जैसे एक जानवर मेसोसॉरस के जीवाश्म दक्षिण अमरीका में भी पाए जाते हैं और अफ्रीका में भी, जबकि मेसोसारस मीठे पानी में रहता था. ऐसे में वो अटलांटिक महासागर के खारे पानी को पार करके अमरीका से अफ्रीका पहुंचा होगा, ऐसा सोचना ही ग़लत है.

ऐसे में वैज्ञानिकों का मानना है कि मेसोसॉरस धरती पर तब रहता था, जब अफ्रीका और दक्षिण अमरीका एक दूसरे से जुड़े हुए थे. ऐसा क़रीब तीस करोड़ साल पहले था. तब अमरीका और अफ्रीका के बीच अटलांटिक महासागर था ही नहीं.

ऐसा ही एक और घास खाने वाला जीव था लिस्ट्रोसॉरस. जिसके कंकाल, अफ्रीका, भारत और अंटार्कटिका तक में मिलते हैं. इसी तरह एक झाड़ी ग्लॉसोप्टेरिस के अंश, भारत के अलावा ऑस्ट्रेलिया, अंटार्कटिका और अफ्रीका में मिले हैं. इसके बीज इतने भारी थे कि हवा में उड़कर समंदर पार नहीं जा सकते थे.

वैज्ञानिक कहते हैं कि तब धरती के सारे महाद्वीप एक दूसरे से जुड़े थे. वो इसे पैंजिया कहते हैं. स्कॉटीज़ जैसे वैज्ञानिक मानते हैं कि जिस तरह से महाद्वीपों के नीचे की चट्टानें खिसक रही हैं, उससे अगले 25 करोड़ साल बाद सारे महाद्वीप फिर से एक-दूसरे से जुड़ जाएंगे.

हालांकि तीस से पचास करोड़ साल पहले धरती का रूप कैसा था, ये कहना बड़ा मुश्किल है. इसके पुख़्ता सबूत नहीं मिलते.

लेकिन, जिस तरह महाद्वीपों की प्लेट खिसक रही हैं, उससे आज से पच्चीस-तीस करोड़ साल आगे का अंदाज़ा लगाया जा सकता है. इसी अंदाज़ के मुताबिक़, 25 करोड़ साल बाद धरती के सारे महाद्वीप एकजुट होंगे.

लेकिन ये बातें सिर्फ़ अनुमान ही हैं. पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता कि धरती की परतें कैसे मुड़ेंगी? क्या रुख़ अपनाएंगी? बस एक बात पुख़्ता तरीक़े से कही जा सकती है. वो ये कि धरती के अंदर खलबली मची है. इसके असर से धरती की ऊपरी परत खिसक रही है.

धरती की प्लेट खिसकने से करोड़ों साल बाद क्या होगा, किसे पता? कौन उसे देखने को, उसकी तस्दीक़ करने को बैठा रहेगा? तब तक अंदाज़ा लगाने में क्या हर्ज है? इसमें भी तो ख़ूब मज़ा आता है.

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