समर्थ मांग का क्या अर्थ है - samarth maang ka kya arth hai

माँग का नियम वस्तु की कीमत एवं उसकी माँगी गई मात्रा के संबंध को बतलाता है। वस्तु की कीमत में परिवर्तन होने पर उसकी माँगी गई मात्रा में भी परिवर्तन होता है। माँग के नियम के अनुसार वस्तु की कीमत एवं इसकी माँगी गई मात्रा के बीच विपरीत संबंध होता है । अर्थात् वस्तु की कीमत में वृद्धि होने पर उसकी माँग घटती है तथा वस्तु की कीमत में कमी होने पर उसकी माँग बढ़ती है। वस्तु की कीमत में वृद्धि होने पर मॉग में कमी होने की एवं वस्तु की कीमत में कमी होने पर माँग में वृद्धि होने की प्रवृत्ति को अर्थशास्त्र में माँग के नियम से जाना जाता है । माँग के नियम के प्रतिपादन का श्रेय प्रो. मार्शल को है ।

प्रो.मार्शल के अनुसार, “अन्य बातें समान रहने पर जैसे-जैसे वस्तु की कीमत में कमी होती जाती है, वैसे-वैसे उसकी माँग बढ़ती जाती है। इसके विपरीत, जैसे-जैसे वस्तु की कीमत में वृद्धि होती जाती है, वैसे-वैसे उसकी माँग घटती जाती है।”

नियम की मान्यताएं या सीमाएं

उक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि प्राय: सभी अर्थशास्त्रियों ने इस नियम की क्रियाशीलता के लिए “अन्य बातें समान रहें” वाक्यांश का प्रयोग किया है। इससे प्रतीत होता है कि कीमत और मूल्य का संबंध कुछ मान्यताओं पर आधारित है।

ये निम्नांकित हैं

(1) व्यक्ति की आय स्थिर रहनी चाहिए।

(2) उसके स्वभाव, रुचि, फैशन आदि में कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए।

(3) वस्तुओं की कीमत भी स्थिर रहनी चाहिए।

(4) कोई नई स्थानापन्न वस्तु की खोज नहीं होनी चाहिए।

(5) वस्तु प्रतिष्ठा प्रदान करने वाली नहीं होनी चाहिए ।

(6) भविष्य में वस्तु की कीमत में और अधिक परिवर्तन की संभावना नहीं होना चाहिए।

उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरणः उदाहरण के लिए हम मान लेते हैं कि बाजार में जब नारंगी की कीमत 50 पैसे प्रति नारंगी है तब उपभोक्ता 10 नारंगियाँ खरीदते हैं। नारंगी की कीमत घटकर 40 पैसे हो जाने पर उपभोक्ता 20 नारंगियाँ खरीदते हैं । इसी प्रकार 30 पैसे की कीमत पर 30 नारंगियां, 20 पैसे की कीमत पर 40 नारंगियाँ तथा 10 पैसे की कीमत पर 50 नारंगियाँ उपभोक्ता खरीदते हैं। दूसरे शब्दों में, जैसे-जैसे नारंगियों की कीमत घटती जाती है वैसे-वैसे उनकी माँग बढ़ती जाती है । इसे एक माँग तालिका के रूप में प्रदर्शित किया गया है

माँग तालिका
नारंगियों का मूल्य   नारंगियों की माँग
50 पैसे                  10
40 पैसे                  20
30 पैसे                  30
20 पैसे                  40
10 पैसे                  50
उपरोक्त माँग तालिका में नारंगी के विभिन्न मूल्यों पर उसकी माँगी गई मात्राओं को प्रदर्शित किया गया है । माँग तालिका से स्पष्ट है कि जब नारंगी का मूल्य 50 पैसे है तब इसकी माँग 10 है, 40 पैसे मूल्य पर माँग 20 है, 30 पैसे मूल्य पर माँग 30 है, 20 पैसे मूल्य पर माँग 40 है तथा 10 पैसे मूल्य पर माँग 50 है । तालिका से यह भी स्पष्ट होता है कि जैसे-जैसे नारंगी का मूल्य घटता जाता है, वैसे-वैसे उसकी माँग बढ़ती जाती है।

रेखाचित्र द्वारा स्पष्टीकरण :

माँग तालिका के आधार पर माँग वक्र का निर्माण किया जा सकता है जो निम्नानुसार होगा- रेखाचित्र में Y अक्षांश पर नारंगी का मूल्य एवं X अक्षांश पर नारंगियों की माँग को प्रदर्शित किया गया है। माँग तालिका के आधार पर नारंगियों के विभिन्न मूल्यों पर उसकी माँग के अनुसार विभिन्न बिन्दु प्राप्त किए गए हैं। इन बिन्दुओं को मिलाती हुई एक रेखा DD खींची गई है, जिसे माँग वक्र कहा जाता है। माँग वक्र ऊपर से नीचे की ओर दाहिनी तरफ गिरता हुआ होता है जो इस बात की व्याख्या करता है कि

समर्थ मांग का क्या अर्थ है - samarth maang ka kya arth hai

जैसे-जैसे वस्तु की कीमत घटती जाती है वैसे-वैसे उसकी माँग बढ़ती जाती है ।

माँग का नियम लागू होने के कारण

1. आय प्रभाव- एक वस्तु की कीमत में परिवर्तन होने पर उपभोक्ता की वास्तविक आय में भी परिवर्तन हो जाता है । एक वस्तु की कीमत कम हो जाने पर उपभोक्ता अपनी पहले जितनी ही मौद्रिक आय से वस्तुओं की पूर्वापेक्षा अधिक इकाइयाँ खरीद सकता है।

2. क्रेताओं की संख्या में परिवर्तन- किसी वस्तु की कीमत पहले से कम हो जाती है। तो नए उपभोक्ता भी उस वस्तु को क्रय करने में समर्थ हो जाते हैं। इसी प्रकार वस्तु की कीमत बढ़ जाने पर उसके क्रेता कम हो जाते हैं । इस प्रकार क्रेताओं की संख्या में परिवर्तन होना भी माँग के नियम की पुष्टि करता है ।

3. सीमॉत उपयोगिता ह्रास नियम- इस नियम से ज्ञात होता है कि जब किसी वस्तु की मात्रा बढ़ जाती है तो उसकी सीमाँत उपयोगिता कम होती जाती है । उपभोक्ता किसी वस्तु का मूल्य उसकी सीमाँत उपयोगिता से अधिक देने को तैयार नहीं होता है । इस आधार पर जब किसी वस्तु की जितनी अधिक मात्राएं क्रय की जाती हैं, तब उसकी सीमाँत उपयोगिता उतनी ही घटती जाती है।

4. प्रतिस्थापन प्रभाव- जब किसी वस्तु की कीमत घटती है, तो वह वस्तु ‘अधिक आकर्षक हो जाती है अपेक्षाकृत उन स्थानापन्न वस्तुओं के जिनकी कीमत में कमी नहीं हुई है। अतः उपभोक्ता अन्य वस्तुओं के स्थान पर इस वस्तु का प्रयोग करना प्रारंभ कर देंगे। उदाहरणार्थ, यदि चाय की कीमत कम हो जाती है और काफी की कीमत स्थिर रहती है, तब कुछ लोग चाय का प्रयोग काफी के स्थान पर करेंगे।

माँग के नियम के अपवाद :

कुछ परिस्थितियों में कीमत अधिक होने पर भी लोग वस्तुओं को अधिक मात्रा में खरीद लेते हैं। ऐसी स्थिति में माँग वक्र झुकने के बजाय ऊपर की ओर जा सकता है। ऐसी स्थितियों को माँग के नियम के अपवाद कहते हैं।

माँग के नियम के प्रमुख अपवाद -

1. वस्तु की किस्म में सुधार का प्रभाव- वस्तु की किस्म में सुधार होने पर उपभोक्ता कीमत बढ़ने पर भी अधिक मात्रा में क्रय करने को तत्पर रहते हैं, भले ही उनका यह सोचना गलत हो ।

2. फैशन में परिवर्तन- माँग का नियम उन वस्तुओं पर भी लागू नहीं होता जो कि फैशन या चलन में नहीं रहतीं । जो वस्तु फैशन में नहीं रहती, उसकी कीमत में कमी होने पर भी माँग में वृद्धि नहीं होती।

3. प्रदर्शनकारी वस्तुएं- कुछ वस्तुएं वर्तमान युग में प्रदर्शनकारी वस्तुएं होते हुए भी, अनिवार्यता का सम्मान प्राप्त किए हुए हैं। ऐसी वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होने के बावजूद माँग बढ़ जाती है। उदाहरणार्थ, स्कूटर की माँग कीमतों में वृद्धि के बावजूद भी बढ़ रही है।

4. दिखावट की इच्छा- कभी-कभी धनी लोग अपने धन का प्रदर्शन करने के लिए उन्हीं वस्तुओं को अधिक खरीदते हैं, जिनकी कीमतें अधिक होती हैं। इस प्रकार की वस्तुओं की कीमत ज्यों-ज्यों बढ़ती हैं, उनका उपयोग वैसे-वैसे अधिक प्रतिष्ठामूलक समझा जाने लगता है। इसके विपरीत, मूल्य कम होने पर वे उन्हें खरीदना बंद कर देते हैं।

5. अज्ञानता- कभी-कभी उपभोक्ता अपनी भूलवश अधिक कीमती वस्तु को अधिक उपयोगी समझ बैठता है। अतः वह ऐसी वस्तु खरीदता है, जिसकी कीमत अधिक है।

समर्थ मांग का अर्थ क्या है?

समग्र मांग से तात्पर्य किसी भी अर्थव्यवस्था में किसी और समस्त उत्पाद और समस्त सेवाओं की कुल मांग से होता है।

मांग का क्या अर्थ है?

अर्थशास्त्र में माँग (demand) किसी माल या सेवा की वह मात्रा होती है जिसे उस माल या सेवा के उपभोक्ता भिन्न कीमतों पर खरीदने को तैयार हों। आमतौर पर अगर कीमत अधिक हो तो वह माल/सेवा कम मात्रा में खरीदी जाती है और यदि कीमत कम हो तो अधिक मात्रा में।

समग्र मांग क्या है प्रमुख?

किसी वित्तीय वर्ष मे किसी क्षेत्र के सम्पूर्ण मांग को समग्र मांग कहते है.... समग्र मांग के घटक - consumption, Investment, सरकार का व्यय.

मांग क्या है इसके प्रकारों का वर्णन कीजिए?

जब किसी वस्तु की मांग, कुछ मूल वस्तुओं की खरीद से जुड़ी होती है तो उसकी मांग व्युत्पन्न मांग कहलाती है। दूसरी ओर, उन वस्तुओं की, जिनकी मांग कुछ अन्य वस्तुओं की मांग से नही जुड़ी होती है, स्वायत्त मांग कहलाती है, जैसे भोजन, वस्त्र, आवास आदि। उपभोक्ता वस्तुओं की मांग स्वायत्त मांग होती है।