सामाजिक स्तरीकरण का रूप कौन कौन है? - saamaajik stareekaran ka roop kaun kaun hai?

 सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आधार - Main Basis of Social Stratification

यद्यपि सामाजिक स्तरीकरण का रूप प्रत्येक समाज में देखने को मिलता है। इसलिए इसे सार्वभौमिक प्रक्रिया कहा जाता है। लेकिन, प्रत्येक समाज में इसका आधार एक समान नहीं होता है। इन आधारों को मूल रूप से दो भागों में बाटा जा सकता है -

प्राणिशास्त्रीय आधार

सामाजिक-सांस्कृतिक आधार

1 प्राणिशास्त्रीय आधार 

समाज में स्तरीकरण का निर्धारण जन्म के आधार पर होता रहा है। जिसे प्राणिशास्त्रीय या जैविक आधार कहा जाता है। इसमें व्यक्ति की इच्छा व प्रयास का सवाल ही नहीं उठता। जैसे- - पुरुष या स्त्री का होना, गोरा या काला होना, अधिक या कम उम्र का होना आदि। प्राणिशास्त्रीय आधार के अंतर्गत निम्नलिखित आधार आते हैं

2. लिंग - 

सामाजिक स्तरीकरण का सबसे प्राचीन आधार लिंग-भेद है। आदिम सामाजिक व्यवस्था में स्त्री और पुरुषों को लिंग के आधार पर स्तरीकृत किया जाता रहा है। अधिकांश समाजों में पुरुषों की स्थिति स्त्रियों की तुलना में ऊंची मानी जाती है। जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में जितनी अधिक सुविधाएं एवं स्वतंत्रता पुरुषों को प्राप्त है, उतनी स्त्रियों को नहीं।

3 आयु 

सामाजिक स्तरीकरण का दूसरा प्राणिशास्त्रीय आधार आयु माना जाता है। मनुष्य को आयु के आधार पर कई अवस्थाओं में विभाजित किया गया है। किशोरावस्था, प्रौढ़ावस्था और वृद्धावस्था ये स्तरीकरण का प्रमुख आधार रहा है। व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा कम आयु वाले व्यक्ति की अपेक्षा अधिक आयु वाले व्यक्ति की अधिक होती है। प्राचीन कालीन पंचायती राज व्यवस्था में मुखिया का पद सदैव ही वयोवृद्ध व्यक्ति को प्रदान किया जाता था। अधिकांश समाजों में अधिक आयु के व्यक्तियों को अधिक सम्मान, आदर भाव एवं विशेष सुविधाएं प्रदान की जाती है।

4 प्रजाति 

प्रजातीय भिन्नता के आधार पर समाज में ऊंच-नीच का स्तरीकरण देखा जाता रहा है। शारीरिक विशेषताएं भी स्तरीकरण का प्रमुख आधार रही है। अफ्रीका और गोरी प्रजाति उन्हें श्रेष्ठ माना जाता है और विशेषाधिकार प्राप्त होता है, जबकि जो नीग्रो प्रजाति अथवा काले दूसरे दर्जे की नागरिकता प्राप्त होती है। ऐसी मान्यता है कि प्रजातियों में श्रेष्ठ स्वेत प्रजाति (काकेशियन) है क्योंकि इसका रंग सफ़ेद, रक्त उच्च स्तर का, उच्च मानसिक योग्यता एवं सभ्यता के प्रसारक हैं। इसके बाद क्रमश: योग्यता के अनुसार पीत प्रजाति (मंगोलायड) एवं सबसे नीचे श्याम प्रजाति (निग्रोयाड) है।

5. जन्म 

जनवरी सामाजिक स्तरीकरण उत्पन्न करता है कुल ऊंचे वंश अथवा ऊंची जातियों में जन्म लेने वालों की सामाजिक प्रतिष्ठा अन्य वंश में जन्म लेने वालों की प्रतिष्ठा से निम्न यानी की मानी जाती भारत की सामाजिक व्यवस्था के संदर्भ में देखा जाए तो जो कि यहां पर समाज जाति के आधार पर शुरू से ही 4 जातियों में विभाजित रहा है

जिसमें ब्राह्मणों को मनु की उच्च सामाजिक प्रतिष्ठा होती थी और वह जो कि निम्न सामाजिक प्रतिष्ठा होती थी या ब्राह्मण कुल में जन्म लेगा उसकी समय प्रतिष्ठा उठोगी तो स्तरीकृत व्यवस्था में उसका पद ऊंचा माना जाएगा इस आधार पर जन्म को भी सामाजिक स्तरीकरण का प्रमुख आधार माना गया है और जन सामाजिक स्तरीकरण का उत्पन्न करता है 

B. सामाजिक सांस्कृतिक आधार

सामाजिक स्तरीकरण का निर्धारण समाज एवं उसकी संस्कृति के आधार पर भी होता है जिसे सामाजिक-सांस्कृतिक आधार कहा जाता है। इसके अंतर्गत निम्नलिखित आधार हैं

6. संपत्ति 

संपत्ति के आधार पर भीसमाज में स्तरीकरण किया जाता है। आधुनिक समाजों में ही नहीं वरन आदिम समाजों में भी संपत्ति के आधार पर ऊंच-नीच का भेदभाव पाया जाता है। समाज में वह लोग जो ऊंचे माने जाते हैं जिनके पास अधिक संपत्ति होती है।

सभी प्रकार की सीता एवं विलासिता एवं सुख सुविधाओं की वस्तुएं खरीदने की क्षमता रखते हैं। इसके विपरीत गरीब तथा संपत्ति हीन की स्थिति निम्न होती है। संपत्ति के घटने एवं बढ़ने के साथ 7 समाज में व्यक्ति का स्तर घटता एवं बढ़ता जाता है।

7. व्यवसाय 

व्यवसाय भी सामाजिक स्तरीकरण का एक प्रमुख आधार है। समाज में व्यवसाय की उच्चता एवं निम्न का के आधार पर उससे जुड़े लोगों की स्थिति जय होती है। जैसे समाज में कुछ व्यवसाय को ऊंचा एवं प्रतिष्ठित माना जाता है। प्रशासक, डॉक्टर, अध्यापक, आदि इसी श्रेणी में आते हैं। फिर दूसरी तरफ कुछ व्यवसाय को निम्न माना जाता है, जैसे- शराब का काम, जूता बनाने का काम, मांस बेचने का काम आदि। इस प्रकार जो लोग प्रशासक, डॉक्टर व शिक्षण से जुड़े हैं की स्थिति ऊंची होती है, फिर अन्य लोगों की स्थिति होती है।

8 धर्म 

धर्म प्रधान समाजों में स्तरीकरण उत्पन्न करता है। जो लोग धार्मिक कर्मकांड संलग्न होते हैं, धार्मिक उपदेश देते हैं एवं धर्म के अध्ययन में रत रहते हैं, उन्हें सामान्य लोगों से ऊंचा माना जाता है। भारत में पंडे पुजारी, धार्मिक गुरुओं, साधु-संतों एवं ब्राह्मणों की स्थिति उनके धार्मिक ज्ञान और धर्म से संबंधित होने के कारण ही ऊंची रही है। वर्तमान में धर्म के महत्व के घटने के साथ-साथ कर निर्धारण में इसका प्रभाव भी कमजोर होता जा रहा है।

9. राजनीतिक शक्ति 

सामाजिक स्तरीकरण का एक महत्वपूर्ण आधार राजनीति कहा जाता है। जिसके हाथ में शासन की बागडोर होती है उनकी स्थिति ऊंची होती है। शासन व्यवस्था के अंतर्गत राजकीय सत्ता के आधार पर ऊंच-नीच का स्तरीकरण देखने को मिलता है। उदाहरण स्वरुप भारत में शासन व्यवस्थाके अंतर्गत सबसे ऊंचा स्थान राष्ट्रपति को प्राप्त है फिर उसके बाद क्रमशः उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, उप प्रधानमंत्री, कैबिनेट स्तर के मंत्री व राज्य मंत्री आदि आते हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि सामाजिक स्तरीकरण के अनेक आधार हैं।


सामाजिक स्तरीकरण के रूप कौन कौन से हैं?

सामाजिक स्तरीकरण मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है- जातिगत और वर्गगत। जातिगत स्तरीकरण:- जाति के आधार पर व्यक्ति अथवा समूह का सामाजिक स्तर निश्चित करना जातिगत स्तरीकरण कहा जाता है; जैसे – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र।

सामाजिक स्तरीकरण क्या है इसके रूपों पर चर्चा करें?

मैक्स वेबर का कहना है कि— “समाज में पाई जाने वाली आसमान शक्ति की एक संगठित अभिव्यक्ति सामाजिक स्तरीकरण है।” समाज के सभी सदस्यों में शक्ति का बंटवारा समान रूप से ना होकर आसमान रूप से होता है अर्थात किसी को कम शक्ति और किसी को अधिक शक्ति प्राप्त होती है। समाज में समान शक्ति वाले व्यक्तियों के समूह को वर्ग कहा जाता है।

सामाजिक स्तरीकरण का निम्नलिखित कार्य कौन सा है?

समाज में व्यक्ति की स्थिति अथवा सामाजिक स्तरीकरण की व्यवस्था में उसका स्थान, उसकी व्यक्तिगत रुचियों को किस सीमा तक निर्धारित करती है।

सामाजिक स्तरीकरण का क्या उदाहरण है?

सामाजिक स्तरीकरण से आशय ऐसे समाज से है, जो विभिन्न स्तरों में विभाजित रहता है उदाहरण के तौर पर हिन्दू समाज का चार वर्गों-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र तथा अलग-अलग जातियों में विभाजन या पश्चिमी समाजों का पूंजीपति एवं सर्वहारा वर्ग में विभाजन सामाजिक स्तरीकरण के ही उदाहरण हैं।