हृदय और फेफड़ों की कार्यप्रणाली को कैसे सुधारा जा सकता है - hrday aur phephadon kee kaaryapranaalee ko kaise sudhaara ja sakata hai

श्वसन / Respiratory Health

जब हम सांस लेते हैं, हवा में उपस्थित आक्सीजन फेफेड़ों में पहुंचती है और खून के निकट संपर्क में आती है जो उसे अवशोषित कर लेता है और शरीर के सभी भागों में ले जाता है। साथ ही साथ खून कार्बन डाइआक्साइड को शरीर भर से लाकर फेफड़ों में छोड़ता है जो उच्छवास के साथ फेफड़ों से बाहर निकाल दी जाती है।

फेफड़े पक्षाधात से नहीं प्रभावित होते लेकिन छाती, उदर और डाइएफ्रैम की पेशियां प्रभावित हो सकती हैं। श्वसन से जुड़ी विभिन्न पेशियों के संकुचन के साथ फेफड़े फैल जाते हैं जिससे छाती के भीतर का दबाव बदल जाता है और फेफडों में हवा भर जाती है। यह निश्वास है जिसके लिए पेशीय शक्ति की आवश्यकता होती है। उन्हीं पेशियों के शिथिलन के साथ आपके फेफड़ों से हवा बाहर निकलती है और आप उच्छवास लेते हैं।

अगर सी-3 के स्तर पर या उससे ऊपर फ़ालिज मार जाता है तो मध्यच्छद तंत्रिका (फ्रेनिक नर्व) उद्दीपित नहीं होती और डाइएफ्रैम काम नहीं करता और सांस लेने के लिए यांत्रिक सहायता- यानी संवातक (वेंटिलेटर) की ज़रूरत पड़ती है।

मध्यवक्षीय स्तर पर या इससे ऊपर फ़ालिज के शिकार व्यक्तियों को गहरी सांस लेने और बलपूवर्क श्वांस छोड़ने में परेशानी होती है। क्योंकि वे उदर या अंतरापर्शुक पेशियों (इंटरकोस्टल मसिल्स) का उपयोग नहीं कर पाते। ऐसे लोग दम लगा कर सांख नहीं पाते। इससे फेफड़ों में जकड़न आ सकती है और श्वसन संक्रमण हो सकते हैं।

यही नहीं, स्राव सरेस का काम कर सकते हैं और आपकी श्वांस नली की दीवारें आपस में चिपक सकती हैं और स्वांस नली सही ढंग से फैलती नहीं। इसे एटीलैक्टेसिस या फेफड़े के कुछ हिस्से का निष्किय हो जाना कहा जाता है। पक्षाघात के शिकार बहुत-से लोगों के इससे पीडि़त होने की आशंका रहती है। कुछ लोगों का सर्दी-जुकाम या श्वसनतंत्र के संक्रमण आसानी से ठीक नहीं होते और हमेशा छाती के सर्दी-जुकाम से ग्रस्त रहते हैं। अगर श्वासनली के स्राव में जीवाणु पलने लगते हैं तो उनके न्यूमोनिया का शिकार होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।

समर्थित खांसी एक उपयोगी तकनीक है। कोई व्यक्ति ताकत लगा कर पेट को ऊपर से दबाता है और ऊपर तक दबाता जाता है, यह क्रिया उदर पेशियों का काम करती है जो सामान्य स्थितियों में जोर से खांसने का काम करती हैं। यह क्रिया हीम्लिच मैनुवर से सौम्य होती है और श्वास के प्राकृतिक लय के साथ तालमेल बना कर उदरपेशियों को दबाना बहुत ही महत्वपूर्ण होता है।

एक और तकनीक है थपथपाना:

यह मूलत: पसलियों पर हल्की थपकियां लगाने की क्रिया है जिससे आपके फेफड़ों के ढीले होने में मदद मिलती है।

आसनी अपवाह (पोस्चुरल ड्रेनेज) इससे आपके फेफड़ों के निचले भाग से आपकी छाती में ऊपर की तरफ स्राव के प्रवाह के लिए गुरुत्व बल का इस्तेमाल किया जाता है, जहां से व्यक्ति खांस कर उसे बाहर निकाल सकता है या और ऊपर ला कर निगल सकता है। ऐसा तब होता है जब 15-20 मिनट तक सर पैरों से नीचे रहता है।

श्वासनली के उच्छेदन के साथ संवातक का इस्तेमाल करने वालों के फेफड़ों से खींच कर

स्राव निकालना पड़ता है;

यह काम घंटे- घंटे पर या दिन में एक बार करना पड़ सकता है।

संवातक (वेंटिलेटर्स): मूलत: दो तरह के यांत्रिक संवातक होते हैं। नकारात्मक दाब संवातक, जैसे लोहे के फेफड़े, छाती के बाहरी भाग में निर्वात पैदा करते हैं, जिससे छाती फैल जाती है और फेफड़ों में हवा भर जाती है। सकारात्मक दाब संवातक, जो 1940 के दशक से उपलब्ध हैं, सीधे फेफड़ों में हवा भरने के इसके उल्टे सिद्धांत पर काम करते हैं।

सकारात्मक दाब संवातन के लिए नाक या मुंह पर लगाये जाने वाले छोटे-से फेसमास्क का इस्तेमाल किया जा सकता है। ऐसे मरीजों में जो अंशकालिक तौर पर सांस लेने के कृत्रिम साधनों का उपयोग करते हैं, इस तरह के अनाक्रामक श्वसन यंत्र स्वासनली, उच्छेदन से पैदा होने वाली जटिलताओं से बचाव करते हैं।

एक और तकनीकी श्वसन में छाती में मध्यच्छद तंत्रिका (फ्रेनिक नर्व) को उद्दीपन देने के लिए एक विद्युतीय यंत्र लगा दिया जाता है ताकि वह डायएफ्रैम को नियमित रूप से संकेत दे और वह सिकुड़े और फेफड़ों में हवा भरे। मध्यच्छद तंत्रिका पेसर 1950 के दशक से उपलब्ध हैं और काफी मंहगे हैं और व्यापक रूप से उनका इस्तेमाल नहीं होता।

श्वासनली उच्छेदन की देख-भाल

बोल न पाने से लेकर निगलने में परेशानी तक श्वासनली उच्छेदन नलियों के साथ बहुत-सी पेचीदगियां जुड़ी होती हैं। श्वासनली उच्छेदन के बाद लगायी जाने वाली कुछ नलियों की बनावट इस तरह की होती है कि निस्श्वास छोड़ते समय हवा ऊपर की तरफ मुड़ जाती है जिससे व्यक्ति नियमित समयांतराल पर बोल सकता है। श्वासनली उच्छेदन के साथ जुड़ी एक और पेचीदगी है संक्रमण। यह नली गले में लगी परकीय वस्तु होती है और उन सूक्ष्म रोगाणुओं को शरीर में प्रवेश करा सकती है जिन्हें नाक और गले की प्रतिरक्षा प्रणाली सामान्य रूप से रोक लेती है। श्वासनली उच्छेदन की जगह को नियमित रूप से साफ करना और उस पर पट्टी लगाना महत्वपूर्ण बचावी उपाय होता है।

क्रैम हास्पिल, यूनिवर्सिटी आफ़ मियामी स्कूल आफ़ मेडलिन, यूनिवर्सिटी आफ़ वाशिंगटन स्कूल आफ़ मेडिसिन/डिपार्टमेंट आफ़ रिहैबिलिटेशन मेडिसिन।

सतर्क हो जाएं: सांस लेने में हो रही है दिक्कत, यानी फेफड़ों में पहुंचा है संक्रमण

अमर उजाला रिसर्च टीम, नई दिल्ली Published by: Jeet Kumar Updated Sun, 02 May 2021 06:15 AM IST

सार

देश के विभिन्न चिकित्सालयों में आ रहे लाखों कोरोना संक्रमितों की जांच के आधार पर चिकित्सकों ने यह तीन लक्षण पहचाने हैं, जहां फेफड़े खुद बता रहे हैं कि उन तक संक्रमण पहुंच चुका है।

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हृदय और फेफड़ों की कार्यप्रणाली को कैसे सुधार जा सकता है?

मत्स्यासन योग का अभ्यास यह योग मुद्रा ऑक्सीजन की मात्रा को बढ़ाने और शरीर में रक्त परिसंचरण को भी सुधारने में मददगार मानी जाती है। कई प्रकार के श्वसन विकारों को दूर करने, फेफड़े और हृदय के कार्यों को बेहतर बनाए रखने के लिए रोजाना इस योगासन के अभ्यास की आदत आपके लिए फायदेमंद साबित हो सकती है।

क्या खाने से फेफड़ा साफ होता है?

दालचीनी की चाय सांस और संक्रमण की परेशानी से निजात दिलाने में मदद करती है. - अदरक एंटी बैक्टीरियल और एंटी वायरल और एंटी इंफ्लेमेटरी गुणों से भरपूर होता है. ऐसे में यह फेफडों की समस्याओं से निजात दिलाने में मदद करती है. इससे बलगम की समस्या कुछ दिनों में ठीक हो जाती है.

फेफड़ों के स्वास्थ्य में सुधार कैसे करें?

शारीरिक रूप से सक्रिय रहना आपके फेफड़ों को स्वस्थ रखने में मदद कर सकता है। फेफड़ों की बेहतर सेहत के लिए सांस वाले अभ्यास करना ज्यादा फायदेमंद माने जाते हैं।.
एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर चीजें खाएं।.
फ्लू और निमोनिया के टीके लगवाएं। ... .
रोजाना व्यायाम करें, जो आपके फेफड़ों को ठीक से काम करने में मदद करते हों।.

फेफड़ों को शुद्ध करने के लिए क्या करना चाहिए?

फेफड़ों का ऐसे रखें ख्याल.
यदि आस-पास हरियाली हो तो ऐसा करना फेफड़ों के लिए अच्छा माना जाता है. ... .
नियमित रूप से व्यायाम करना भी बेहद जरूरी होता है. ... .
एक्सरसाइज के साथ-साथ व्यक्ति को अपने खाने का ख्याल रखना भी जरूरी होता है. ... .
फेफड़ों को मजबूत बनाने के लिए व्यक्ति को भरपूर मात्रा में पानी का सेवन नहीं करना चाहिए..