महत्वपूर्ण बिंदु Show
( 1 ) रक्त परिसंचरण तंत्र ( Blood Circulatory System ) - इसमें प्रमुख रूप से हृदय तथा रक्त वाहिनियाँ सम्मिलित होती हैं । रक्त के अलावा शरीर में एक अन्य द्रव्य लसिका का भी परिवहन किया जाता है । ( 2 ) रुधिर कोशिकाएँ - रुधिर में तीन प्रकार की कोशिकाएँ पाई जाती हैं -
इनके अतिरिक्त रक्त में प्लाज्मा पाया जाता है । ( 2) रक्त समूह - लाल रक्त कणिकाओं पर पाये जाने वाले प्रतिजनों की उपस्थिति तथा अनुपस्थिति के आधार पर रक्त को चार समूहों में बाँटा गया है ए , बी , एबी और ओ । आरएच प्रतिजन की उपस्थिति के आधार पर रक्त दो प्रकार का होता है - Rh+ व Rh- ( 3 ) धमनी व शिरा - जिन रक्तवाहिनियों में O2 , युक्त शुद्ध रक्त प्रवाहित होता है , उन्हें धमनी तथा जो विऑक्सीजनित अपशिष्ट युक्त रक्त का परिवहन करती हैं , उन्हें शिरा कहते हैं । ( 4 ) हृदय पेशी ऊतकों से बना मांसल खोखला तथा बंद मुट्ठी के आकार का लाल रंग का होता है । इस पर पाया जाने वाला आवरण हृदयावरण ( Pericordium ) कहलाता है । हृदय में चार कक्ष ' पाये जाते हैं , जिनमें दो आलिन्द व दो निलय होते हैं । ( 5 )रक्त की pH 7 . 4 ( हल्का क्षारीय ) कितनी होती है । ( 6 )रक्त का निर्माण लाल अस्थि मज्जा में ( भ्रूणावस्था व नवजात शिशुओं में प्लीहा में ) होता है ( 7 )एक सामान्य व्यक्ति में रक्त की लगभग 5 लीटर मात्रा होती है । ( 8 )RBC का लाल रंग हिमोग्लोबिन नामक प्रोटीन के कारण होता है । ( 9 )प्रतिरक्षा प्रदान करने वाली प्राथमिक कोशिकाए लिम्फोसाइट कोशिकाएं होती हैं । ( 10 )रक्त का थक्का जमाने में सहायक कोशिकाएं बिम्बाणु या थ्रोम्बोसाइट होती हैं । ( 11 )माइट्रल या द्विवलन कपाट बायें आलिंद व निलय के बीच में पाया जाता है । ( 12 ) आलिंद - निलय कपाटों ( माइट्रल व त्रिलवन कपाटों ) के बंद होने पर लब ध्वनि आती है तथा अर्धाचन्दाकार कपाटों के बंद होने पर डब ध्वनि आती है । ( 13 )द्विसंचरण परिसंचरण किसे कहते हैं । ( 14 ) रक्त को एक परिसंचरण चक्र पूरा करने हेतु हृदय में से होकर दो बार गुजरना पड़ता है इसे द्विसंचरण कहते हैं | ( 15 )रक्त के द्रव भाग को प्लाज्मा नाम से जाना जाता है । ( 16 ) हृदय चक्र - हृदय के एक स्पन्दन प्रारंभ होने से लेकर अगले स्पन्दन के प्रारंभ होने तक हृदय के विभिन्न भागों में होने वाले परिवर्तनों के क्रम को हृदय चक्र कहते हैं । विस्तृत विवरण [ I ] रक्तरक्त एक तरल संयोजी ऊतक होता है । जो रक्त वाहिनियों के अंदर विभिन्न अंगों में लगातार बहता रहता है । रक्त वाहिनियों में प्रवाहित होने वाला यह गाढ़ा , कुछ चिपचिपा , लाल रंग का द्रव्य , एक जीवित ऊतक है । यह एक श्यान तरल है । रक्त मानव व अन्य पशुओं में आवश्यक पोषक तत्व व ऑक्सीजन को कोशिकाओं में तथा कोशिकाओं से चयापचयी अपशिष्ट उत्पादों ( Meta Bolic Waste Proudcts ) तथा कार्बन डाई ऑक्साइड को परिवहन करता है । रक्त एक हल्का क्षारीय तरल है जिसका pH - 7 . 4 होता है । रक्त का निर्माण लाल अस्थि मज्जा ( Red Bone Marrow ) में होता है । भ्रूणावस्था तथा नवजात शिशुओं में रक्त का निर्माण प्लीहा में होता है । मनुष्य में करीब 5 - 6 लीटर रक्त होता है । 1. रक्त के घटक -:रुधिर के दो भाग होते हैं -
2. रक्त के समूह -:मनुष्य के लाल रक्त कणिकाओं ( RBC ) की सतह पर पाये जाने वाले विशेष प्रकार के प्रतिजन ( Antigen ) A व B की उपस्थिति या अनुपस्थिति के आधार पर मनुष्य के रक्त को चार समूहों में विभक्त किया गया है -
3. रक्त के कार्य ( Functions of Blood )-:
[ II ]रक्त परिसंचरण ( Blood Circulation )परिसंचरण तंत्र विभिन्न अंगों का एक संयोजन है जो शरीर की कोशिकाओं के मध्य गैसों , पचे हुए पोषक तत्वों , हार्मोन , उत्सर्जी पदार्थों आदि का परिवहन करता है । मानवों में बंद परिसंचरण तंत्र पाया जाता है जिसमें रक्त , हृदय तथा रक्त वाहिनियाँ सम्मिलित होते है । रक्त के अलावा एक अन्य द्रव्य लसिका ( Lymph ) भी इस परिवहन का एक हिस्सा है । लसिका एक विशिष्ट तंत्र लसिका तंत्र द्वारा गमन करता है । यह एक खुला तंत्र है । परिसंचरण तंत्र में रक्त एक तरल माध्यम के तौर पर कार्य करता है जो परिवहन योग्य पदार्थों के अभिगमन में मुख्य भूमिका निभाता है । हृदय इस तंत्र का केन्द्र है जो रुधिर को निरंतर रक्त वाहिकाओं में पंप करता है । 1. हृदय ( Heart )पेशीय उत्तकों से बना मानव हृदय माँसल , खोखला तथा बंद मुट्ठी के आकार का लाल रंग का अंग है । यह एक दोहरी भित्ति के झिल्लीमय आवरण द्वारा घिरा हुआ रहता है । इसे हृदयावरण ( Pericardium ) कहते हैं । इसमें हृदयावरणी द्रव्य ( Pericardial Fluid ) पाया जाता है । यह द्रव्य हृदय की बाहरी आघातों से रक्षा करता है । हृदय में चार कक्ष पाए जाते हैं - ऊपरी दो अपेक्षाकृत छोटे होते है तथा अलिंद ( Atrium ) कहलाते हैं । निचले दो हिस्से अपेक्षाकृत बड़े होते हैं तथा निलय ( Ventricle ) कहलाते हैं । अतः लम्बवत् रूप से हृदय को बाएँ व दाएँ भाग में बांटने पर दोनों भागों में एक - एक आलिन्द तथा निलय मिलता है । बांए ओर के आलिन्द व निलय आपस में एक द्वविवलन कपाट ( Bicuspid Valve ) जिसे माइट्रल ( Mitral ) वाल्व या बाँया एट्रियोवेंट्रीकुलर ( एवी ) वाल्व ( Atrioventricular Valve ) कहा जाता हैं से जुड़े होते हैं । दाहिनी ओर के निलय व अलिंद के मध्य त्रिवलक एट्रियोवेंट्रीकुलर वाल्व ( Tricuspid Atrioven Tricular Valve ) पाया जाता है । ये कपाट रूधिर को विपरित दिशा में जाने से रोकते हैं । कपाट के खुलने व बंद होने से लब - डब की आवाज आती है । दाएँ व बाएँ अंलिद व निलय आपस में पेशीय झिल्ली से पृथक होते है । अलिंद व निलय लयबद्ध रूप से संकुचन व शिथिलन ( Contraction And Relaxation ) की क्रिया में सलंग्न रहते हैं । इस क्रिया से हृदय शरीर के विभिन्न भागों में रक्त पम्प करता है । शरीर से अशुद्ध अपशिष्ट मिला रक्त महाशिरा ( Vena Cave ) द्वारा दाएं अलिंद में आता है । दाएं अलिंद में एकत्र होने के पश्चात् ये वाल्व खुल जाता है तथा अलिंद से रक्त दाएं निलय में प्रवेश करता है । दाएँ निलय के संकुचित होने पर यहां से फुफ्फुस धमनी ( Pulmonary Artery ) रक्त को फेफड़ो में ले जाती है । फेफड़ों में श्वसन प्रक्रिया द्वारा यह रक्त ऑक्सीकृत किया जाता है । साफ रक्त फुफ्फुस शिरा द्वारा बाएँ अलिंद में प्रवेश करता है जहां से ये वाल्व से होते हुए बाएँ निलय में प्रवेश करता है । निलय के संकुचन के कारण महाधमनी ( Aorta ) द्वारा रक्त शरीर में प्रवाहित होने भेजा जाता है । यह चक्र निंरतर चलता रहता है । इस चक्र को हृदय चक्र ( Cardiac Cycle ) कहा जाता है । हृदय में होने वाले संकुचन को प्रंकुचन ( Systole ) तथा शिथिलावस्था को अनुशिथिलन ( Diastole ) कहा जाता है । इस प्रक्रिया में रक्त दो बार हृदय से गुजरता है पहले शरीर से हृदय में अशुद्ध रक्त तथा फिर शुद्ध रक्त फेफड़ो से हृदय में प्रवेशित होता है | शुद्ध रक्त तत्पश्चात् बाएँ निलय से महाशिरा द्वारा शरीर में वापस भेज दिया जाता है । इस प्रकार के परिसंचरण को द्विसंचरण कहा जाता है एक फुप्फुसीय तथा दूसरा दैहिक । ह्रदय पेशीन्यास स्वउत्तेजनीय होता है और हृदय की गतिविधियों की गति निर्धारित करता है । इसे पेस मेकर ( गति प्रेरक ) कहा जाता है । 2.रक्त वाहिकाएँ ( Blood Vessels )शरीर में रक्त का परिसंचरण वाहिनियों द्वारा होता है । रक्त वाहिकाएँ एक जाल का निर्माण करती है जिनमें प्रवाहित होकर रक्त कोशिकाओं तक पहुँचता है । ये दो प्रकार की होती है - ( A ) धमनी - वे वाहिकाएँ जिनमें ऑक्सीजनित साफ रक्त प्रवाहित होता है धमनी कहलाती है । ये हृदय से रक्त को आगे पहुंचाती है । ( B ) शिरा - वे वाहिकाएँ जिनमें विऑक्सीजनित अपशिष्ट युक्त रक्त प्रवाहित होता है । ये रक्त को हृदय की ओर ले जाती है । रक्त वाहिनियाँ उत्तकों , अंगों में पहुंच कर केशिकाओं का विस्तृत समूह बनाती है । Also Read- रक्त : संरचना एवं कार्य परिसंचरण तंत्र का मुख्य कार्य क्या है?इस तंत्र का काम शरीर के प्रत्येक भाग में रुधिर को पहुँचाना है, जिससे उसे पोषण और ऑक्सीजन प्राप्त हो सकें। इस तंत्र का केंद्र हृदय है, जो रुधिर को निरंतर पंप करता रहता है और धमनियाँ वे वाहिकाएँ हैं जिनमें होकर रुधिर अंगों में पहुँचता है तथा केशिकाओं द्वारा वितरित होता है।
परिसंचरण तंत्र के प्रमुख अंग कौन कौन से हैं?परिसंचरण तंत्र में हृदय और रक्त वाहिनियाँ होती हैं। मानव शरीर में रक्त, धमनियों और शिराओं में प्रवाहित होता है तथा हृदय पंप की तरह कार्य करता है। रक्त में प्लैज़्मा, लाल रक्त कोशिकाएँ (RBC), श्वेत रक्त कोशिकाएँ (WBC) और पट्टिकाणु होते हैं।
परिसंचरण तंत्र के कितने भाग होते हैं?FAQs. रुधिर परिसंचरण तंत्र कितने प्रकार का होता है? परिसंचरण दो प्रकार का होता है, जिन्हें क्रमश: खुला परिसंचरण तंत्र एवं बंद परिसंचरण तंत्र कहते हैं। जिसमें गैसीय परिवहन लाल रुधिर कणिकाएँ हीमोग्लोबिन द्वारा ऑक्सीजन व कार्बन डाईऑक्साइड का परिवहन करती हैं।
परिसंचरण कितने प्रकार के होते हैं?Solution : परिसंचरण दो प्रकार का होता है, जिन्हें क्रमश: खुला परिसंचरण तंत्र (Open circulatory system) एवं बंद परिसंचरण तंत्र (Closed circulatory system) कहते हैं।
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