विरह और वेदना की कवयित्री कौन है? - virah aur vedana kee kavayitree kaun hai?

“महादेवी जी का काव्य करुणा और विरह की मर्मस्पर्शिनी कथा है।”“महादेवी जी का काव्य करुणा और विरह की मर्मस्पर्शिनी कथा है।” इस कथन के अनुरूप महादेवी जी के काव्य का मूल्यांकन कीजिए।

हिन्दी में छायावादी साहित्य में वेदना वियोग की अनुभूति प्रदान करने वाली महीषा वर्मा जी के गीतों में विरह के अनुभव की तेजस्विता को देखते ही उन्हें आधुनिक समय की मीरा कहा जाता है।

महादेवी जी छायावादी काव्य धारा में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। उनकी कविता में भावों की तीव्रता, वेदना, ममता, विरह, रहस्योन्मुखता प्रकृति का मानवीकरण और तन्मयता इतनी प्रखर है कि महादेवी जी के गीत छायावादी काव्य की प्रधान प्रवृत्ति वेदना और रहस्यवाद के गहन में ही अभिव्यंजक बन गये हैं। वस्तुतः महादेवी जी वेदना की कवयित्री हैं। उनकी सभी काव्य रचनायें नीहार, रश्मि, नीरजा, यामा, परिक्रमा आदि इसी भावधारा से ओत-प्रोत हैं और प्रेम और विरहोत्कण्ठा की विवृत्ति सर्वत्र हुई है। महादेवी वर्मा की वेदानानुभूति की तुलना भक्तियुगीन कवयित्री मीरा से की जाती है क्योंकि प्रिय से मिलन की निश्छल उत्कण्ठा मीरा में भी मिलती है। मीरा के प्रिय सगुण साकार श्रीकृष्ण थे जिन्हें वे गली-गली में कुंजों में खोजती है, तो महादेवी जी का प्रिय निर्गुण निराकार ऐसा ब्रह्म है, जो अणु-अणु में व्याप्त है, और उसे महादेवी जी नक्षत्र लोक से लेकर समष्टि में खोजती हैं। इस प्रकार महादेवी जी ने वैयक्तिक वेदना को समष्टिगत पीड़ा का रूप प्रदान कर दिया है तथा समग्र सृष्टि में व्याप्त अज्ञात के प्रति अपनी जिज्ञासा और मिलनोत्कण्ठा को व्यक्त कर इसे रहस्यात्मक बना दिया है।

वेदनानुभूति- महादेवी जी के काव्य का मुख्य भाव वेदना है। पीड़ा और हृदय का स्वर और आँसू की सेज ही उनका जीवन हो गया है। वे निरन्तर प्रियतम के वियोग से उपजी पीड़ा का अनुभव करती हुई उसी में लीन हैं-

मैं नीर भरी दुःख की बदली।
*   *   *   *   *
विस्तृत नभ का कोई कोना,
मेरा न कभी अपना होना,
परिचय इतना इतिहास यही
उमड़ी कल थी मिट आज चली।

विरह की तीव्रता- इस वेदना का कारण महादेवी जी ने विरह को माना है। प्रियतम के वियोग के कारण उनका जीवन निरन्तर उसी की प्राप्ति की कामना करता हुआ क्षीण हो रहा है। विरह उनके जीवन का अंग बन गया है और प्रिय के वियोग में विरहिणी आकुल है क्योंकि उसका प्रिय संसारी नहीं है। वह सर्वत्र रहकर वियोगिनी के पास नहीं है। अणु-अणु में उसका स्वरूप विद्यमान है परन्तु वह कहीं से भी वियोगिनी की कथा को शान्त नहीं कर पाता क्योंकि वह समष्टि बोध में है। महादेवी जी का जीवन विरहमय हो गया है। वे कहती हैं-

विरह का जलजात जीवन विरह को जलजात।
वेदना में जन्म करुणा में मिला विश्वास ॥

कवयित्री को अपने प्रेम की सरस स्मृति बारम्बार आती है परन्तु वे उसको एक आवरण में रखकर व्यक्त करती है।

उस सूने पथ में अपने पैरों की छाप छिपाये।
नीरव मानस में वे धीरे-धीरे आये ॥

इस चिर वियोग ने उनके जीवन को वेदनामय बना दिया है। वे उस वेदनाजन्य पक्ष को ही देखने का आग्रह करती है। यह वेदना ही उनका जीवन बन गया है। इस वेदना का वे आदान नहीं चाहती। आँसू का उपहार चढ़ाकर भी वे उसके बदले में प्रियतम से कोई वाँछा नहीं रखती-

प्रिय तुम क्या? चिर मेरे जीवन,
मेरे सब सब में प्रिय तुम,
किससे व्यापार करूँगी मैं?
आँसू का मोल न लूंगी मैं ॥

मिलनोत्कण्ठा- वस्तुतः महादेवी जी पीड़ा को प्रियतम द्वारा प्राप्त वरदान मानती हैं। उनका प्रिय, वर्ण और गुण से परे हैं। उनकी आत्मा प्रतिपल अपने प्रियतम से मिलने के लिये आकुल रहती है। उनकी विरहिणी आत्मा को प्रियतम के विरह में एक असीम आनन्द की अनुभूति होती है। जिस प्रकार दीपक स्वयं जलकर अपने प्रकाश से सारे अन्धकार को दूर कर देता है उसी प्रकार महादेवी जी भी दीपक की भांति जलने में आनन्द का अनुभव करती हैं क्योंकि वे कहती हैं-

क्या हार बनेगा वह जिसने सीखा न हृदय को विधवाना।
नित जलता रहने दो तिल तिल अपनी ज्वाला में उर मेरा।
इसकी विभूति में फिर आकर अपने पद चिन्ह बना जाना ॥

प्रकृति से तादात्म्य – महादेवी जी की यह पीड़ा जब तक उनकी थी तभी तक दुःख मिलता रहा परन्तु जब उन्होंने सम्पूर्ण सृष्टि से तादात्म्य स्थापित कर लिया तो यही पीड़ा आनन्द देने लगी अब वे अकेले नहीं हैं। सम्पूर्ण प्रकृति उनके साथ हो और वे सबकी पीड़ा को शांत करने का प्रयास करते- ‘करते वियोग में हत होती जाती हैं

मत यथित हो फल,
किसको सुख दिया संसार ने?
स्वार्थमय सबको बनाया है,
यहाँ करतार ने।

इस प्रकार महादेवी वर्मा की विरहानुभूति में रहस्यात्मकता होने के बावजूद दार्शनिक जटिलता नहीं है। वे मूलतः भाव प्रवण कवियत्री हैं और प्रिय के अलौकिकता का संकेत करती हुई भी उनकी कवितायें विरह वेदना और प्रकृति के मार्मिक रूप को प्रकट हुई करुणा से आप्लावित कर लेती हैं। वेदना और वियोग का यही प्रमुख स्वर उन्हें आधुनिक युग में मीरा के समकक्ष स्थान देता है।

IMPORTANT LINK

  • सूर के पुष्टिमार्ग का सम्यक् विश्लेषण कीजिए।
  • हिन्दी की भ्रमरगीत परम्परा में सूर का स्थान निर्धारित कीजिए।
  • सूर की काव्य कला की विशेषताएँ
  • कवि मलिक मुहम्मद जायसी के रहस्यवाद को समझाकर लिखिए।
  • सूफी काव्य परम्परा में जायसी का स्थान निर्धारित कीजिए।
  • ‘जायसी का वियोग वर्णन हिन्दी साहित्य की एक अनुपम निधि है’
  • जायसी की काव्यगत विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  • जायसी के पद्मावत में ‘नख शिख’
  • तुलसी के प्रबन्ध कौशल | Tulsi’s Management Skills in Hindi
  • तुलसी की भक्ति भावना का सप्रमाण परिचय
  • तुलसी का काव्य लोकसमन्वय की विराट चेष्टा का प्रतिफलन है।
  • तुलसी की काव्य कला की विशेषताएँ
  • टैगोर के शिक्षा सम्बन्धी सिद्धान्त | Tagore’s theory of education in Hindi
  • जन शिक्षा, ग्रामीण शिक्षा, स्त्री शिक्षा व धार्मिक शिक्षा पर टैगोर के विचार
  • शिक्षा दर्शन के आधारभूत सिद्धान्त या तत्त्व उनके अनुसार शिक्षा के अर्थ एवं उद्देश्य
  • गाँधीजी के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन | Evaluation of Gandhiji’s Philosophy of Education in Hindi
  • गाँधीजी की बुनियादी शिक्षा व्यवस्था के गुण-दोष
  • स्वामी विवेकानंद का शिक्षा में योगदान | स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन
  • गाँधीजी के शैक्षिक विचार | Gandhiji’s Educational Thoughts in Hindi
  • विवेकानन्द का शिक्षा के क्षेत्र में योगदान | Contribution of Vivekananda in the field of education in Hindi
  • संस्कृति का अर्थ | संस्कृति की विशेषताएँ | शिक्षा और संस्कृति में सम्बन्ध | सभ्यता और संस्कृति में अन्तर
  • पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धान्त | Principles of Curriculum Construction in Hindi
  • पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धान्त | Principles of Curriculum Construction in Hindi
  • घनानन्द की आध्यात्मिक चेतना | Ghanananda Spiritual Consciousness in Hindi
  • बिहारी ने शृंगार, वैराग्य एवं नीति का वर्णन एक साथ क्यों किया है?
  • घनानन्द के संयोग वर्णन का सारगर्भित | The essence of Ghananand coincidence description in Hindi
  • बिहारी सतसई की लोकप्रियता | Popularity of Bihari Satsai in Hindi
  • बिहारी की नायिकाओं के रूपसौन्दर्य | The beauty of Bihari heroines in Hindi
  • बिहारी के दोहे गम्भीर घाव क्यों और कहाँ करते हैं? क्या आप प्रभावित होते हैं? 
  • बिहारी की बहुज्ञता पर प्रकाश डालिए।

Disclaimer

Disclaimer: Target Notes does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: [email protected]

विरह की कवयित्री कौन है?

महादेवी जी ने अपना काव्य वेदना और करूणा की कलम से लिखा उन्होने अपने काव्य में विरह वेदना को इतनी सघन्नता से प्रस्तुत किया कि शेष अनुभूतियां भी उनकी पीड़ा के रंगों में रंगी हुई जान पड़ती है। महादेवी का विरह उनके समस्त काव्य में विधमान है।

कवयित्री महादेवी वर्मा के काव्य का मूल भाव क्या है?

महादेवी वर्मा के काव्य में प्रेम एक मूल भाव के रूप में प्रकट हुआ है उनका प्रेम अशरीरी है। यह करूणा से आप्लावित प्रेम है अलौकिक दिव्य सता के प्रति उनकी इस प्रणयानुभूति में दाम्पत्य प्रेम की झलक भी मिलत है और लौकिक स्पर्श का आभास भी।

वेदना और कल्पना के कवि कौन हैं?

वैसे बाद में मुक्तिबोध छायावादी भावुकता के विरूद्ध ठोस यथार्थ की कविताएं लिखने लगे। लेकिन 'वेदना और कल्पना' में छायावादी रूझान से इंकार नहीं किया जा सकता है। सन् 1936 में लिखी गई इस कविता में मनुष्य के सुख-दुख के परस्पर वैषम्य से उत्पन्न कवि के अन्तर्मन का द्वंद्व अभिव्यक्त हुआ है।

वेदना की गायिका कौन है?

प्रेम की पीर और विरह वेदना की अमर गायिका मीरा का कृष्ण भक्ति शाखा के साधकों और कवियों में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है ।