ले चल वहाँ भुलावा देकर Show
ले चल वहाँ भुलावा देकर, मेरे नाविक! धीरे-धीरे। जिस निर्जन में सागर लहरी, अंबर के कानों में गहरी— निश्छल प्रेम-कथा कहती हो, तज कोलाहल की अवनी रे! जहाँ साँझ-सी जीवन-छाया ढीले अपनी कोमल काया, नील नयन से ढुलकाती हो, ताराओं की पाँति घनी रे! जिस गंभीर मधुर छाया में—विश्व चित्र-पट चल माया में— विभुता विभु-सी पड़े दिखाई दुख-सुख वाली, सत्य बनी रे! श्रम-विश्राम क्षितिज बेला से—जहाँ सृजन करते मेला से, अमर जागरण उषा नयन से—बिखराती हो ज्योति घनी रे! स्रोत :
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ले चल वहाँ भुलावा देकर जिस निर्जन में सागर लहरी,
जिस गम्भीर मधुर छाया में, टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख
ले चल मुझे भुलावा देकर कविता के कवि कौन है?ले ले चल मुझे भुलावा देकर कविता छायावादी प्रेम सौंदर्य के महान कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित है।
ले चल मुझे भुलावा देकर मेरे नाविक धीरे धीरे किसकी पंक्ति है?ले चल वहाँ भुलावा देकर / जयशंकर प्रसाद
ले चल मुझे भुलावा देकर की भाषा क्या है?राजभाषा हिंदी: ले चल मुझे भुलावा देकर
21 ले चल मुझे भुलावा देकर किसकी रचना है A जयशंकर प्रसाद B महादेवी वर्मा C सुमित्रानन्दन पंत D इनमें से कोई नहीं?ले चल वहाँ भुलावा देकर -जयशंकर प्रसाद
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