अशोक के फूल निबंध में लेखक क्या संदेश देना चाहते हैं? - ashok ke phool nibandh mein lekhak kya sandesh dena chaahate hain?

अशोक के फूल निबंध का सारांश - हजारी प्रसाद द्विवेदी

अशोक के फूल निबंध का सारांश - हजारी प्रसाद द्विवेदी

प्रस्तुत निबन्ध में हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने ‘अशोक के फूल’ की सांस्कृतिक परम्परा की खोज करते हुए उसकी महत्ता प्रतिपादित की है। इस फूल के पीछे छिपे हुये विलुप्त सांस्कृतिक गौरव की याद में लेखक का मन उदास हो जाता है और वह उमड़-उमड़ कर भारतीय रस-साधना के पीछे हजारों वर्षों पर बरस जाना चाहता है। वह उस वैभवशाली युग की रंगस्थली में विचरण करने लगता है; जब कालिदास के काव्यों में नववधू के गृह प्रवेश की भाँति शोभा और गरिमा को बिखेरता हुआ ‘अशोक का फूल’ अवतरित हुआ था। कामदेव के पांच वाणों में सम्मिलित आम, अरविन्द, नील कमल तो उसी प्रकार से सम्मान पाते चले आ रहे है। हां, बेचारी चमेली की पूछ अवश्य कुछ कम हो गयी है, किन्तु उसकी माँग अधिक भी थी, तब भी एकमात्र अशोक ही भुलाया गया है। ऐसा मोहक पुष्प क्या भुलाने योग्य है, क्या संसार में सहृदयता मिट गयी है?

लेखक ईस्वी सन् की पृष्ठभूमि पर पहँुचकर सोचने लगता है, जबकि अशोक का शानदार पुष्प भारतीय साहित्य और शिल्प में अद्भुत महिमा के साथ आया था। सम्भवत: अशोक गन्धर्वों का वृक्ष है जिसकी पूजा गन्धर्वों और यक्षों की देन है । प्राचीन साहित्यों में मदनोत्सव के रूप में अशोक की पूजा का बड़ा सरस वर्णन मिलता है। राजघरानों की रानी के कोमल पद प्रहार से ही यह खिल उठता था। अशोक वृक्ष में रहस्यमयता है। यह उस विशाल सामन्ती सभ्यता की परिष्कृत रूचि का परिचायक है जो प्रजा के खून पसीने से पोषित होकर जवान हुई थी, लाखों और करोड़ों की उपेक्षा करके समृद्ध हुई थी।

मनुष्य की जीवन शक्ति बड़ी निर्मम है। यह सभ्यता और संस्कृति के वृथा मोहों को रौंदती चली आ रही है। वह सभ्यता, संस्कृति, धर्माचारों, विश्वास, उत्सव, वृत्त किसी की भी परवाह न कर मस्तानी चाल से अपने रास्ते जा रही है। इस तेज धारा में अशोक कभी वह गया है। अशोक वृक्ष में एक प्रकार से कोई परिवर्तन नहीं आया है। वह उसी मस्ती में हँस रहा है। हाँ, उसे हमारा देखने का दृष्टिकोण अवश्य बदलता है। हम व्यर्थ उदासी को ओढ़े हुये मरे जा रहे हैं। कालिदास ने अपने ढंग से उसे रूप दिया है और हमें भी अपने दृष्टिकोण से आनन्द लेना चाहिए।
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Author: Admin

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यह लेख आपको हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा रचित कुटज तथा अशोक के फूल निबंध पर संपूर्ण जानकारी देगा। अंत तक अवश्य पढ़े ताकि आपको हर एक चीज बारीकी से समझ में आ जाए और आपको किसी प्रकार की समस्या ना रह जाए। लेख शुरू करने से पहले हम आपसे अनुरोध करना चाहते हैं कि अगर आपको इस लेख में किसी भी प्रकार की कमी लगे या फिर कुछ समझ में ना आए तो आप नीचे कमेंट बॉक्स में अवश्य बताएं। किस विषय के ऊपर आपको लेख चाहिए यह भी आप हमें सूचित कर सकते हैं।

‘ कुटज ‘ ,’ अशोक के फूल ‘ हजारी प्रसाद द्विवेदी

कुटज द्विवेदी जी का व्यक्तिपरक निबंध है।

इस निबंद में पौधों के बहाने द्विवेदी जी ने कई कालों का सांस्कृतिक यात्रा की है।

‘कुटज’ का मूल संदेश है ‘अपराजित रहो ‘ |

‘कुटज’ जिस काल की रचना है।

उस काल में द्विवेदी जी को काशी विश्वविद्यालय की राजनीति का शिकार होना पड़ा था। उन्हें चंडीगढ जाना पड़ा था। वे इस पौधे के बहाने उन समझौता वादी और स्वार्थप्रेरित राजनीति करने वाले लोगों पर व्यंग्य करते है।

कुटज व्यक्तित्व की अबाध स्वतंत्रता का कायल है। उसमे मस्ती और आत्मविश्वास है। जो जीवन के सहज प्रवाह में उसे मिला है।

अशोक के फूल

अशोक वृक्ष और उसके फूलों के माध्यम से भारत के प्राचीन इतिहास , संस्कृति ,जीवन दृष्टि , धर्म , संसाधनों तथा विभिन्न जातिओं के विषय में जानकारी दी है।

उन्होंने बताया है कि आर्यों का आर्येतर जातियों से संघर्ष हुआ , जो जातियां गर्वीली थी और उन्होंने आर्यों का प्रभुत्व नहीं माना ,जैसे दैत्य ,असुर ,राक्षस ,दानव उनसे संघर्ष हुआ और जो शांतिप्रिय जातियां थी जैसे यक्ष – गंधर्व वह आर्यों से मिल गयी।

उन्होंने बताया है कि संस्कृत कवि कालिदास से पूर्व अशोक के वृक्ष एवं फूल तो थे पर महिमामंडित करने वाले कालिदास ही थे।

सुंदरियों के नूपुरों के मृदु आघात से फूलता था , वे अपने कानो में फूल के आभूषण बनाकर पहनती थी। उनसे अपने केशों का श्रृंगार करती थी।

भारतीय धर्म साधना में भी इसका महत्व था।

आर्येतर जातियों ने वरुण , कुबेर ,इंद्र , कामदेव की पूजा अर्चना में इस पुष्प का प्रयोग किया।

महाभारत काल में संतान के इच्छुक स्त्रियां वृक्षों के देवताओं के पास जाती थी इनमें अशोक का वृक्ष महत्वपूर्ण था।

व्रत रखने और अशोक की 8 पत्तियां खाने से स्त्रिया गर्भवती हो जाती थी।

यक्ष और गंधर्व भी इस पोस्ट का प्रयोग करते थे और उत्सवों पर इसके फूलों से सजावट भी करते थे।

लेखक बताता है कि इसे आरंभिक युग के बाद सामंतवादी व्यवस्था का अंत होने पर जब भूत-प्रेतों , पीरों , काली- दुर्गा की पूजा होने लगी तब अशोक का गौरव समाप्त हो गया।

उसे पुष्प हीन कोटि का माने जाने लगा।

मुसलमानों के शासन काल में यह पुष्प साहित्य से भी निष्काषित कर दिया गया।

लेखक ने अशोक के फूल की गरिमा तथा उसके पतन का इतिहास बताते हुए मानव जाति के उत्थान – पतन की कथा प्रस्तुत की है। तथा परिवर्तन को प्रकृति का सहज स्वाभाविक धर्म बताते हुए निराश ना होने का संदेश दिया है।

निबंध में मुख्यता पाठकों को यह संदेश दिया गया है –

१ – भारत का अतीत गौरवपूर्ण है इन्हें स्मरण करना इसका अनुकरण करना एक प्रकार का पितृ ऋण चुकाना है।

२ सांसारिक स्वार्थों , संकुचित विचारधारा को त्याग कर अहिंसा , मित्रता , उदारता जैसे उदास भावों को अपनाओ इसमें सबका कल्याण है।

परिवर्तन तथा विकास सृष्टि का शाश्वत नियम है अतः अतीत को याद कर दुखी मत हो अतीत को ध्यान में रखकर वर्तमान का निर्माण करो।

संघर्ष युद्ध विग्रह से मत डरो पूरी शक्ति के साथ संघर्ष करो संघर्ष ही नई शक्ति प्रदान करता है।

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अशोक के फूल निबंध में लेखक क्या संदेश देना चाहते हैं स्पष्ट कीजिए?

प्रस्तुत निबन्ध में हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने 'अशोक के फूल' की सांस्कृतिक परम्परा की खोज करते हुए उसकी महत्ता प्रतिपादित की है। इस फूल के पीछे छिपे हुये विलुप्त सांस्कृतिक गौरव की याद में लेखक का मन उदास हो जाता है और वह उमड़-उमड़ कर भारतीय रस-साधना के पीछे हजारों वर्षों पर बरस जाना चाहता है।

अशोक के फूल निबंध का उद्देश्य क्या है?

'अशोक के फूल' नामक निबन्ध आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के सामाजिक एवं सांस्कृतिक चिन्तन की परिणति है। भारतीय परम्परा में अशोक के फूल दो प्रकार के होते हैं-श्वेत एवं लाल पुष्प। श्वेत पुष्प तान्त्रिक क्रियाओं की सिद्धि के लिए उपयोगी हैं, जबकि लाल पुष्प स्मृतिवर्धक माना जाता है।

अशोक के फूल से क्या आशय है?

अशोक कल्प में बताया गया है कि अशोक के फूल दो प्रकार के होते हैं - सफेद और लाल। सफेद तो तांत्रिक क्रियाओं में सिद्धिप्रद समझकर व्यवहृत होता है और लाल स्मरवर्धक होता है।

अशोक के फूल से क्या आशय है Class 12?

उत्तर -लेखक कहना चाहता है कि यह संसार स्वार्थी व्यक्तियों से भरा पड़ा है ! यहाँ हर व्यक्ति अपने ही स्वार्थ को साधने में लगा हुआ है । उसे अपने ही स्वार्थ को सिद्ध करने से फुरसत नहीं है , तो वह अशोक के फूल की क्या परवाह करेगा , जो शायद उसके लिए किसी काम का नहीं है ।