बच्चा देने वाली भैंस को क्या खिलाना चाहिए? - bachcha dene vaalee bhains ko kya khilaana chaahie?


    नवजात बच्छे/बच्छियों का बीमारियों से बचाव रखना बहुत आवश्यक है क्योंकि छोटी उम्र के बच्चों में कई बिमारियाँ उनकी मृत्यु का कारण बनकर पशुपालक को आर्थिक हनी पहुंचती है| नवजात बच्छे/बच्छियों की प्रमुख बीमारियां निम्नलिखित है:-

    1.काफ अतिसार(काफ डायरिया व्हायट स्कौर/कोमन स्कौर):


    छोटे बच्चों में दस्त उनकी मृत्यु में एक प्रमुख हार्न है| बच्चों में दस्त लगने के अनेक कारण हो सकते हैं| जिनमें अधिक मात्रा में दूध पी जाना, पेट में संक्रमण होना, पेट में कीड़े होना आदि शामिल हैं| बच्चे को दूध उचित मात्रा में पिलाना चाहिए| यह मात्रा न्छे के वज़न का 1/10 भाग पर्याप्त होती है|अधिक दूध पिलाने से बच्चा उसे हज़म नहीं कर पात और वह सफेत अतिसार का शिकार हो जाता है|कई बार बच्चा खूंटे से स्वयं खुलकर माँ का दूध अधिक पी जाता है और उसे दस्त लग जताए हैं|ऐसी अवस्था में बच्चे को एंटीबायोटिक्स अथवा कई अन्य एन्तिबैक्टीरीयल दवा देने कई आवश्यकता पड़ती है जिन्हें मुंह अथवा इंजेक्शन के दार दिया जा सकता है| बच्चे के शरीर में पानी की कमी हो जाने पर ओ.आर.एस. का घोल अथवा इंजेकशन द्वारा डेक्ट्रोज-सेलायं दिया जाता है| पेट के संक्रमण के उपचार के लिए गोबर के नमूने के परीक्षण करके उचित दवा का प्रयोग किया जा सकता है| कई बच्चों में कोक्सीडियोसिस से खुनी दस्त अथवा पेचिस लह जाते हैं जिसका उपचार कोक्सीडियोस्टेट दवा का प्रयोग किया जाता है|

    2.पेट में कीड़े (जूने) हो जाना:


    प्राय: गाय अथवा भैंस के बच्चों के पेट में कीड़े हो जाते हैं जिससे वे काफी क्म्जोत हो जाते है| नवजात बच्चों में ये कीड़े मन के पेट से ही आ जाते हैं| इसमें बच्चों को गस्त अथवा कब्ज लग जाते हैं| पेट के कीड़ों के उपचार के लिए पिपराजीन दवा का प्रयोग सर्वोतम हैं| गर्भवस्था कई अंतिम अवधि में गाय या भैंस को पेट में कीड़े मारने कई दवा देने से बच्चों मेंजन्म के समय पेट में कीड़े नहीं होते| बच्चों को लगभग 6 माह की आयु होने तक हर डेढ़ -दो महीनों के बाद नियमित रूप से पेट के कीड़े मारने कई दवा (पिपरिजिन लिक्किड अथवा गोली) अवश्य देनी चाहिए|

    3.नाभि का सडना (नेवल इल):


    कई बार नवजात नवजात बच्छे/बच्छियों की नाभि में संक्रमण हो जाता है जिससे उसकी नाभि सूज जाती है तथा उसमें पिक पड़ जात है| कभी कभी तो मक्खियों के बैठने से उसमें कीड़े(मेगिट्स)भी हो जाते है| इस बिमारी के होने पर नजदीकी पशुचिकित्सालय से इसका ठीक प्रकार से ईलाज कराना चाहिए अन्यथा कई और जटिलतायें उत्पन्न होकर बचे कई म्रत्यु होने का खतरा रहता है| बच्चे के पैदा होने के बाद, उसकी नाभि को शी स्थान से काट कर उसकी नियमित रूप से एंटीसेप्टिक ड्रेसिंग करने तथा इसे साफ स्थान पर रखने से इस बीमारी को रोका जा सकता है|

    4.निमोनियां:


    बच्चों का यदि खासतौर पर सर्दियों में पूरा ध्यान ना रखा जाए तो उसको निमोनिया रोग होने कई संभावना हो जाती है| इस बीमारी में बच्चे को ज्वर के साथ खांसी तथा सांस लेने में तकलीफ हो जाती है तथा वह दूध पीना बंद कर देता है| यदि समय पर इसका इलाज ना करवाया जाय तो इससे बच्चे की मृत्यु भी हो जाती है| एंटीबायोटिक अथवा अन्य रिगाणु निरोधक दवाईयों के उचित प्रयोग से इस बीमारी को ठीक किया जा सकता है| जड़ों तथा बरसात के मौसम में बच्चों की उचित देख-भाल करके उन्हें इस बीमारी से बचाया जा सकता है|

    5.बछड़े/बछडियों का टायफड (साल्मोनेल्लोसिस):


    यह भयंकर तथा छुतदार रोग एक बैक्टीरिया द्वरा फैलता है| इसमें पशु को तेज़ बुखार तथा खुनी दस्त लग जाते हैं| इलाज के आभाव में मृत्यु डर काफी अधिक हो सकती है|इस बीमारी में एंटीबायोटिक्स अथवा एन्तिबैक्टीरीतल दवायें प्रयोक की जीती है| प्रभावित पशु को अन्य स्वस्थ पशुओं से अलग रखकर उसका उपचार करना चाहिए| पशुशाला की यथोचित सफाई रख कर तथा बछड़े/बछडियों की उचित देख भाल द्वारा इस बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है|

    6.मुंह व खुर की बीमारी (फुट एंड माउथ डिजीज):


    बड़े उम्र के पशुओं में तेज़ बुखार होने के साथ-साथ मुंह व खुर में छाले व घाव होने के लक्षण पाए जाते हैं लेकिन बच्छे/बच्छियों में मुंह व खुर के लक्षण बहुत कम देखे जाते हैं| बच्चों में यह रोग उनके हृदय पर असर करता है जिससे थोड़े ही समय में उन्किम्रित्यु हो जाती है|हालांकि वायरस (विषाणु) से होने वाली इस बीमारी का कोई ईलाज नहीं है लेकिन बीमारी हो जाने पर पशु चिकित्सक की सलाह से बीमारी पशु को द्वितीय जीवाणु संक्रमण से अवश्य बचाया जा सकता है| यदि मुंह व खुर में घाव हो ती उन्हें पोटैशियम परमैगनेटके 0.1 प्रतिशत घोल से साफ करके मुंह में बोरो-ग्लिसरीन तथा खुरों में फिनायल व तेल लगाना चाहिए| रोग के नियन्त्रण के लिए स्वस्थ बच्चों को बीमार पशुओं से दूर रखना चाहिए तथा बीमार पशुओं की देखभाल करने वाले व्यक्ति को स्वस्थ पशुओं के पास नहीं आना चाहिए| बच्चों को सही समय पर रोग निरोधक टीके लगवाने चाहिए|बच्चों में इस बीमारी की रोकथाम के लिए पहला टिका एक माह,दूसरा तीन माह तथा तीसरा छ: माह की उम्र में लगाने चाहिए| इसके पश्चात हर छ:-छ: महीने बाद नियमित रूप में यह टिका लगवाना चाहिए|

पशुओं के अंतिम तीन महीने तथा प्रसव काल की अवधि जोखिम भरी होती है, इसलिए पशुपालकों को पशुओं के ब्याने के समय और उसके तुरंत बाद की सावधानियों की जानकारी होना अति आवश्यक है ताकि संभावित जोखिमों को टाला जा सके।

पशुओं में प्रसव समीप होने के लक्षण

  • पशु का अयन विकसित एवं आकार में बड़ा हो जाता है।
  • योनि से स्राव होता है।
  • सैक्रोसियाटिक लिगामेंट ढीले पड़ जाते हैं, जिससे पूंछ के दोनों ओर गड्ढे पड़ जाते हैं।
  • प्रसव प्रारंभ होने के करीब पशु बार-बार उठता बैठता है।
  • प्रसव के करीब पशु की भूख भी कम हो जाती है।
  • प्रसव से 1 महीने पूर्व तक पशुओं को कृमि नाशक दवा जैसे फेनबेंडाजोल या पायरेंटल पामोएट दी जा सकती है।
  • गर्भाशय में बच्चा दो द्रव से भरी थैलियों से घिरा रहता है जिसमें पहली थैली को एलनटॉयस तथा दूसरी थैली को एमनियोटिक थैली कहते हैं।

प्रसव के 3 चरण होते हैं। गाय, भैंस, प्रसव के पहले चरण में 2 से 24 घंटे का समय ले सकती है तथा प्रसव का पहला चरण पहली मुतलेंडी फूटने के साथ ही समाप्त हो जाता है। प्रथम चरण में गर्भाशय ग्रीवा  परिपक्व होकर उसका मुंह खुल जाता है एवं बच्चा अपनी सामान्य प्रेजेंटेशन पोजीशन एवं पोसचर को अख्तियार करता है तथा गर्भाशय के संकुचन का प्रारंभ हो जाता है। अक्सर देखा गया है कि पहली थैली/ मुतलेंडी फूटते ही पशुपालक, अति उत्साहित हो जाते हैं तथा बच्चे को जल्दी से जल्दी बाहर निकालना चाहते हैं।

प्रसव के दूसरे चरण में आधे से 2 घंटे का समय लग सकता है अतः पहले मूतलेंडी के फूटने के बाद कुछ समय इंतजार करना चाहिए, अक्सर पशुपालक को जब बच्चे की दोनों टांगे  मुतलेंडी के साथ योनि द्वार पर दिखाई देती है, तो पशुपालक बिना रुके मुतलेंडी को फाड़कर टांगो को खींचता है एवं इस प्रकार एक सामान्य प्रसव कठिन/ असामान्य प्रसव में परिवर्तित हो जाता है।

ऐसा भी देखा गया है कि मुतलेंडी के फूटने पर लिसलिसा पदार्थ बच्चे के चारों ओर लिपटा होता है, अतः बच्चे की टांग खींचने पर वह फिसलती हैं और पशुपालक अपनी पकड़ बनाने के लिए हाथों पर रेत या मिट्टी लगाकर बच्चे की टांगों को खींचता है। ऐसा करना बिल्कुल ही वर्जित है क्योंकि इससे संक्रमण का खतरा हो सकता है। पशुपालकों को समझना चाहिए कि ऐसा करने से बच्चेदानी अर्थात गर्भाशय में संक्रमण हो सकता है तथा ऐसे पशु में बाद में गर्भाशय शोथ/मेट्राइटिस की समस्या से ग्रसित हो जाते हैं।

और देखें :  देशी संकर गाय एवं भैंसों में कृत्रिम गर्भाधान का उपयुक्त समय एवं कृत्रिम गर्भाधान से पूर्व ध्यान देने योग्य मुख्य बिन्दु

बछड़े के योनि द्वार से पूर्णतया बाहर निकलने पर बछड़े के नाक और कान को साफ कर देना चाहिए, तथा एक बार उसकी पिछली टांगे पकड़ कर उल्टा लटका दें, ताकि उसकी नासिका एवं फेफड़ों में भरा पानी बाहर निकल जाए। प्रसव पूर्ण होने के पश्चात बच्चे को गाय,भैंस के आगे रख देना चाहिए और गाय भैंस को अपने नवजात बछड़े को चाटने देना चाहिए।

बच्चा देने वाली भैंस को क्या खिलाना चाहिए? - bachcha dene vaalee bhains ko kya khilaana chaahie?
बच्चा देने वाली भैंस को क्या खिलाना चाहिए? - bachcha dene vaalee bhains ko kya khilaana chaahie?

बछड़े के खड़े होने के पश्चात उसे मां का खीस/ कोलोस्ट्रमअवश्य पिलाएं ऐसा करने से उसे रोग प्रतिरोधक क्षमता प्राप्त होती है, जो जीवन पर्यंत उसे विभिन्न रोगों से लड़ने की क्षमता प्रदान करती है। बछड़े को यदि मॉ का दूध स्वयं पीने में दिक्कत हो तो उसे सहायता करें। अधिक कोलोस्ट्रम या खीस एक साथ नहीं पिलाएं बल्कि थोड़ा थोड़ा करके पिलाएं। यदि नवजात बछड़ा इधर-उधर दौड़ता है तो उसे ऐसा करने दें।

कई पशुपालक गाय की जेर गिरने से पहले खीस नहीं पिलाते हैं जो कि अत्यंत हानिकारक है। बछड़े के खीस पीने से, ऑक्सीटॉसिन हार्मोन का स्राव होता है, जिससे जेर बाहर निकलने में सहायता मिलती है। ब्याए हुए हुए पशु को पौष्टिक एवं ऊर्जा युक्त आहार दें जैसे कि तेल, गुड़,गेहूं का चोकर, अदरक, मेथी तथा काला जीरा भी दे सकते हैं। दो से 3 दिन तक ऐसा सुपाच्य भोजन ही दें क्योंकि इस समय पशु का पाचन कमजोर होता है।

ब्याई हुए पशु का खींस पूरा नहीं निकालना चाहिए ऐसा करने से, दुग्ध ज्वर नामक बीमारी हो सकती है। प्रसव की तीसरी अवस्था में  पशु का जेर बाहर निकलता है  उसके पश्चात भी गर्भाशय में संकुचन होते रहते हैं जिससे कि गर्भाशय लगभग 40 से 45 दिन में अपनी पूर्व अवस्था में आ जाता है। जेर के गिरने के पश्चात उसे दूर ले जाकर गड्ढे में गाड़ दें ताकि गाय उसे खा न ले।

और देखें :  अधिक उत्पादन हेतु पशुओं को आहार एवं जल/ पानी देने के नियम

नवजात बछड़े की नाभि नाल यदि नहीं टूटी है तो थोड़ी दूर पर  दो जगह  बांधकर  बीच से  कैंची से काट दें तथा उस पर टिंचर आयोडीन अथवा बीटाडीन लगा दें। ब्याने के 3 से 4 दिन बाद सामान्य दाना जिसमें गेहूं का चोकर, दाल की चुनी व खल देना आरंभ कर सकते हैं।हरा चारा यदि उपलब्ध हो तो आवश्यक रूप से खिलाना चाहिए। लगभग 50 ग्राम नमक भी पशु को देना चाहिए। यदि पशु में पहले के प्रसव में कैल्शियम की कमी देखी गई हो तो कैल्शियम की जेल 3 दिन तक अवश्य पिलाना चाहिए।

कुछ पशु ब्याने के तुरंत बाद अपने बछड़े को लेकर काफी अधीर हो जाते हैं। पशुपालक ऐसे पशुओं का ध्यान रखें कि वह बछड़े को गाय से ज्यादा दूर नहीं ले जाएं और स्वयं का भी ध्यान रखें अन्यथा पशु उन्हें चोटिल कर सकता है ।

बछड़े के मरने की स्थिति में भी कुछ पशु अत्याधिक अधीर हो जाते हैं वह अपना दूध नहीं उतारते तथा ग्वाले को दूध निकालने नहीं देते ऐसे पशुओं से धीरे-धीरे प्रेम का बर्ताव करें तथा यदि कोई दूसरा बछड़ा उपलब्ध हो तो उस गाय के योनि का स्राव, बछड़े पर लगाकर, गाय के पास ले जाकर उसे गाय द्वारा अपनाने का प्रयास करें यदि ऐसा प्रयास भी सफल ना हो सका तो चिकित्सक से सलाह लें।

गाय के मरने की स्थिति में नवजात बछड़े को दूध चिकित्सक की सलाह से पिलाएं बछड़े को उसके बजन का 10 प्रतिशत दूध बोतल से दिन में दो से तीन बार 3 हफ्ते तक पिलाना चाहिए।

इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।

लेखक

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    बच्चा देने वाली भैंस को क्या खिलाना चाहिए? - bachcha dene vaalee bhains ko kya khilaana chaahie?

    डॉ. संजय कुमार मिश्र

    पशु चिकित्सा अधिकारी, पशुपालन विभाग, उत्तर प्रदेश, पूर्व सहायक आचार्य, मादा पशु रोग एवं प्रसूति विज्ञान विभाग, दुवासु, मथुरा, उत्तर प्रदेश, भारत

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    बच्चा देने वाली भैंस को क्या खिलाना चाहिए? - bachcha dene vaalee bhains ko kya khilaana chaahie?

    डॉ. जितेंद्र कुमार अग्रवाल

    सहायक आचार्य, मादा पशु रोग एवं प्रसूति विज्ञान विभाग, दुवासु, मथुरा, उत्तर प्रदेश

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    बच्चा देने वाली भैंस को क्या खिलाना चाहिए? - bachcha dene vaalee bhains ko kya khilaana chaahie?

    डॉ. विकास सचान

    सहायक आचार्य, मादा पशु रोग एवं प्रसूति विज्ञान विभाग, उत्तर प्रदेश पंडित दीन दयाल उपाध्याय पशुचिकित्सा विज्ञान विश्वविध्यालय एवं  गो-अनुसन्धान संस्थान (दुवासु) मथुरा, उत्तर प्रदेश

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    बच्चा देने वाली भैंस को क्या खिलाना चाहिए? - bachcha dene vaalee bhains ko kya khilaana chaahie?

    डॉ. अनुज कुमार

    सहायक आचार्य, मादा पशु रोग विज्ञान विभाग, उत्तर प्रदेश पंडित दीन दयाल उपाध्याय पशुचिकित्सा विज्ञान विश्वविध्यालय एवं  गो-अनुसन्धान संस्थान (दुवासु), मथुरा, उत्तर प्रदेश

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    बच्चा देने वाली भैंस को क्या खिलाना चाहिए? - bachcha dene vaalee bhains ko kya khilaana chaahie?

    प्रो. अतुल सक्सेना

    आचार्य एवं विभागाध्यक्ष, मादा पशु रोग एवं प्रसूति विज्ञान विभाग, उत्तर प्रदेश पंडित दीन दयाल उपाध्याय पशुचिकित्सा विज्ञान विश्वविध्यालय एवं गो-अनुसन्धान संस्थान, दुवासु, मथुरा, उत्तर प्रदेश

    बच्चा देने वाली भैंस को क्या खिलाए?

    गाभिन गाय या भैंस को साधारणतया 25 से 30 किलोग्राम हरा चारा, दो से चार किलोग्राम सूखा चारा, दो से तीन किलोग्राम दाना एवं 50 ग्राम नमक रोज दें। } गाभिन पशु के ब्याने के करीब दो सप्ताह पहले अन्य पशुओं से अलग कर दें। अच्छी गुणवत्ता के शीघ्र पाचक चारों में चोकर अलसी मिलाकर दें।

    डिलीवरी के बाद भैंस को क्या देना चाहिए?

    प्रसव के बाद भैंस की देखभाल: भैंस को गुड़, बिनौला तथा हरा चारा खाने को देना चाहिए। उसे ताजा या हल्का गुनगुना पानी पिलाना चाहिए। अब उसके जेर गिरा देने का इंतजार करना चाहिए। आमतौर पर भैंस ब्याने के बाद 2-8 घंटे में जेर गिरा देती है।

    भैंस को नींबू खिलाने से क्या फायदा होता है?

    ऐसे में घरेलू नुस्खे में पशुपालक द्वारा पशु को दिए जाने वाले नींबू से विटामिन-सी की आपूर्ति होती है और चीनी दूध का लेवल बनाए रखती है। तीन दिन देना होता है काढ़ा : दोनों चीजों का काढ़ा बनाकर पशु को दिन में 2-3 बार खिलाने की जरूरत है।

    भैंस को नमक खिलाने से क्या फायदा होता है?

    पशु आहार के साथ नमक खिलाने से पशुओं में पाचन क्रिया बेहतर बनती है और पशुओं की भूख भी बढ़ती है. नमक के सेवन से लार निकलती है, जो जारे और संतुलित आहार को पचाने में मददगार होती है. पशु चिकित्सकों द्वारा दूध की कमी वाले पशुओं को नमक का घोल देने या पशु आहार में नमक डालकर खिलाने की सलाह दी जाती है.