योग शब्द के तत्व कौन कौन से हैं? - yog shabd ke tatv kaun kaun se hain?

सामान्य भाव में योग का अर्थ है जुड़ना। यानी दो तत्वों का मिलन योग कहलाता है। आत्मा का परमात्मा से जुड़

सामान्य भाव में योग का अर्थ है जुड़ना। यानी दो तत्वों का मिलन योग कहलाता है। आत्मा का परमात्मा से जुड़ना यहां अभीष्ट है। योग की पूर्णता इसी में है कि जीव भाव में पड़ा मनुष्य परमात्मा से जुड़कर अपने निज आत्मस्वरूप में स्थापित हो जाए। भक्ति का भाव भी यही है। भक्ति में भक्त अपने भगवान से अलग नहीं होना चाहता। वह सदैव अपने इष्ट की शरण में रहता है। शरणागत होने के कारण ईश्वर का संग उसे सदैव प्राप्त होता रहता है। ईश्वर से सहज मिलन हो जाए, यही योग सिखलाता है। अब परमात्मा के इस योग यानी मिलने में कौन बाधक है। ये बाधक तत्व हैं-हमारी चित्तवृत्तियां। तालाब के शांत जल में यदि कंकड़ का एक टुकड़ा गिर जाए तो उसमें अनेक तरंगें उत्पन्न हो जाती हैं। उसमें छोटी-छोटी और बड़े आकार के वृत्तों वाली कई तरंगें उत्पन्न होने लगती हैं। उस अशांत जल में मनुष्य का चेहरा स्पष्ट नहीं दिखलाई पड़ेगा। यदि जल की तरंग समाप्त हो तो जल पुन: शांत हो जाता है। इस स्थिति में आकृति स्पष्ट दिखाई पड़ने लगेगी। ठीक इसी प्रकार हमारे चित्त की वृत्तियां हैं। इंद्रियों के विषयों के आघात से उसमें अनेक तरंगें उत्पन्न हो जाती हैं और उत्पन्न तरंगों के कारण मानव अपने निज स्वरूप को नहीं देख पाता। यदि उसकी चित्तवृत्तियां समाप्त हों तो वह अपने निज आत्मस्वरूप को देखने में सक्षम हो जाए।

महर्षि पतंजलि ने अपने योग सूत्र में स्पष्ट किया है कि चित्त को विभिन्न वृत्तियों में परिणत होने से रोकना योग है। मनुष्य के शरीर में सभी ओर बिखरी चित्तवृत्तियों को सब ओर से खींचकर एक ओर ले जाना यानी केंद्र की ओर जाना ही योग कहलाता है। हमें तो आत्मा पर छाए चित्त के विक्षेप को समाप्त कर उसे शुद्ध करना होता है। योग द्वारा हम अपने चित्त को शुद्ध करके आत्मा का साक्षात्कार प्राप्त कर सकते हैं। महर्षि पंतजलि ने योग की व्यापक विवेचना की है। इसमें कई सोपान हैं-यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। अष्टांग योग की इस पद्धति के माध्यम से साधना करने की इच्छा रखने वाला व्यक्ति सद्गुरु के सान्निध्य में इन सोपानों पर यम-नियम को साधते हुए ध्यान और समाधि की उच्चतम अवस्था पर पहुंच कर चिन्मय आत्मा का साक्षात्कार कर सकता है। फिर अपने आत्मा में परब्रह्म परमात्मा के दर्शन प्राप्त कर तद्स्वरूप होता हुआ आनंद को प्राप्त कर सकता है।

[अशोक वाजपेयी]

योग जितना पुराना है, उतना ही समृद्ध भी। एक योग के अनेक रूप हैं, मसलन हठ योग, अष्टांग योग आदि। आइए जानें, योग के इन अलग-अलग रूपों के बारे में : हठ योग

'हठ' शब्द का इस्तेमाल जबर्दस्ती के लिए होता है, लेकिन जब 'हठ' के साथ 'योग' जुड़ जाए, तो वह आध्यात्मिक हो जाता है। 'हठ' शब्द दो अक्षरों से मिलकर बना है। 'ह' हकार यानी दायां नासिका स्वर, जिसे पिंगला नाड़ी भी कहते हैं। 'ठ' ठकार यानी बायां नासिका स्वर, जिसे इड़ा नाड़ी कहते हैं। इन दोनों स्वरों के योग से 'हठयोग' बनता है, जिससे मध्य स्वर या सुषुम्ना नाड़ी में प्राण का आवागमन होता है और कुंडलिनी शक्ति व चक्र जागृत होते हैं।

यह मन को संसार की ओर जाने से रोककर अंतर्मुखी करने की एक प्राचीन भारतीय साधना पद्धति है। हठयोग साधना की मुख्य धारा शैव रही है। मत्स्येन्द्रनाथ और गोरखनाथ उसके प्रमुख आचार्य माने गए हैं। गोरखनाथ के अनुयायी हठयोग की साधना करते थे। उन्हें नाथ योगी भी कहा जाता है। बौद्धों ने भी हठयोग को अपनाया। घेरण्ड संहिता में हठयोग की साधना के सात अंगों का जिक्र मिलता है। ये हैं : षट्कर्म, आसन, मुद्रा, प्रत्याहार, प्राणायाम, ध्यान और समाधि।

अष्टांग योग या राजयोग

महर्षि पतंजलि के योग को ही अष्टांग योग या राजयोग कहा जाता है। इसके आठ अंग होते हैं। भगवान बुद्ध का आष्टांगिक मार्ग भी योग के इन्हीं आठ अंगों का हिस्सा है। आमतौर हम जिस योग का अभ्यास करते हैं या चर्चा करते हैं, वह यही है। योग की सबसे प्रचलित धारा है यह। इसे आठ अंग इस तरह हैं : यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि। इन आठ अंगों के अपने-अपने उप अंग भी हैं। मोटे तौर पर इनमें से तीन अंगों पर ही ज्यादा जोर दिया जाता है। ये हैं : आसन, प्राणायाम और ध्यान।

अनुसार योग

यह हठ योग का ही एक रूप है, जिसे अमेरिकी योग टीचर जॉन फ्रेंड ने 1997 में शुरू किया था। पश्चिम देशों की स्वास्थ्य आधारित अप्रोच और अध्यात्म के तमाम तत्वों को एक साथ मिलाकर इसे विकसित किया गया। द अनुसार स्कूल ऑफ हठ योगा दुनिया भर में अनुसार योग के टीचर्स के लिए मानक तैयार करने का काम करता है। फ्रेंड ने अनुसार इंक की स्थापना की। बाद में विवादों में फंसने के बाद 2012 में उन्होंने इसे छोड़ दिया।

हॉट योग

यह प्राचीन योग का ही एक रूप है। देसी योग का यह मॉडर्न रूप भारत में भी प्रचलित है। कई सिलेब्रिटीज इसे कर रहे हैं। हॉट योगा ग्लैमर से भरा, लेकिन मुश्किल है। बिक्रम योगा को इसी कैटिगरी में रखा जाता है। 90 मिनट के बिक्रम योगा के सत्र में शामिल हैं 26 जटिल आसन और दो प्राणायाम।

यह सब एक ऐसी जगह होता है, जहां का तापमान 40 डिग्री सेंटिग्रेड या उससे ऊपर सेट किया जाता है और आर्द्रता होती है 50 प्रतिशत के आसपास। आसनों को करते वक्त रहने वाले हॉट टेम्प्रेचर के कारण ही इसे हॉट योगा कहा जाने लगा होगा। फॉरेस्ट योगा, पावर योगा को इसी कैटिगरी में रखा जाता है।

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योग के तत्व कितने होते हैं?

इसे आठ अंग इस तरह हैं : यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि।

योग के तत्व क्या हैं?

योग विद्या में निर्देशित अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, शौच, उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय 8 Page 9 योग के आधारभूत तत्व संतोष, तप, स्वाध्याय व ईश्वर प्रणिधान पारिवारिक वातावरण को सुसंस्कारित और समृद्ध बनाते है।

योग शब्द कौन से होते हैं?

जो शब्द अन्य शब्दों के योग से बने हो तथा जिनके प्रत्येक खण्ड का कोई अर्थ हो, उन्हें यौगिक शब्द कहते है। यह मेल प्रत्यय, उपसर्ग तथा अन्य रूढ़ शब्दों का होता है। डाकघर, पीला - पन, देशवासी आदि। जो शब्द अन्य शब्दों के योग से बनते हो, परन्तु एक विशेष अर्थ के लिए प्रसिद्ध होते है, उन्हें योगरूढ़ शब्द कहते है।