वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा कम क्यों नहीं होती? - vaayumandal mein okseejan kee maatra kam kyon nahin hotee?

Oxygen level on earth: धरती पर जितनी ऑक्सीजन है, वह एक ग्रह के रूप में हमारे वातावरण को संतुलित करती है. अगर इसका संतुलन बिगड़ा तो नुकसान भी बड़े हो सकते हैं.

वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा कम क्यों नहीं होती? - vaayumandal mein okseejan kee maatra kam kyon nahin hotee?

ऑक्सीजन सिलेंडर ले जाता एक व्यक्ति. (प्रतीकात्मक तस्वीर)

जिस तरह से कोरोना के कारण भारत ऑक्सीजन की कमी से जूझ रहा है, ऐसे में कई यूजर ये सवाल पूछ रहे हैं कि अगर धरती पर ऑक्सीजन की मात्रा दोगुनी हो जाए तो क्या होगा? दरअसल, इसका जवाब देने से पहले हमें ये समझना होगा कि आखिर वातावरण में कितनी ऑक्सीजन होती है, जिसमें हम सभी जीते हैं. दूसरा, वो कौन सी गैस हैं, जो ज्यादा मात्रा में हैं.

कितनी है ऑक्सीजन?

साइंस पर लिखने वाली एक इंटरनेशनल वेबसाइट insh.world के मुताबिक हमारे वातावरण में करीब 20.3% ऑक्सीजन है, जबकि नाइट्रोजन की मात्रा 78% है. एक व्यक्ति एक दिन में करीब 23000 बार सांस लेता है. सांस के साथ जब ऑक्सीजन शरीर में जाती है, तो वह हमारे दिमाग और सेल्स को स्वस्थ रखने का काम करती है यानी एनर्जी देती है. शरीर में 90 प्रतिशत एनर्जी ऑक्सीजन से आती है, जबकि बाकी एनर्जी खाने और पानी के जरिए मिलती है.

ऑक्सीजन दोगुनी हो जाए तो?

1. जितने भी छोटे-मोटे कीड़े मकोड़े, कोकरोच आदि हैं उनका आकार बहुत बड़ा हो जाएगा. बिल्कुल वैसा ही, जैसा कभी-कभी आपने छोटे कीड़ों को हॉलीवुड मूवी में एक बड़े आकार में देखा होगा. क्योंकि वह अगर ऐसे कीटों को ज्यादा ऑक्सीजन मिल जाए तो उनका आकार बड़ा हो जाएगा. यानी एक चीटीं का आकार एक कबूतर के बराबर भी हो सकता है. साइंस के मुताबिक, 30 करोड़ साल पहले जब धरती के वातावरण में करीब 30 प्रतिशत ऑक्सीजन थी तब कीड़े-मकोड़ों का साइज काफी बड़ा था.

2. कोई भी व्यक्ति ज्यादा एनर्जी महसूस करेगा. इंसान के भीतर ब्लड सर्कुलेशन बेहतर हो जाएगा. बीमारियां कम हो जाएंगी. लेकिन यह बेहद कम समय के लिए क्योंकि कुछ ऐसी लॉन्ग टर्म बीमारियां भी इसके साथ आएंगी, जो इंसानी जीवन पर प्रभाव डाल सकती हैं. साथ ही शरीर में ऑक्सीजन लेवल ज्यादा हो जाएगा तो ऑक्सीजन टॉक्सिटी का खतरा भी बढ़ जाएगा.

3. जंगल की आग और विनाशकारी हो जाएगी. वातारण में ज्यादा ऑक्सीजन होने से आग की घटनाएं बढ़ जाएंगी और जल्दी-जल्दी आग लगने लगेंगी.

4. माउंट एवरेस्ट पर जाने के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर की जरूरत नहीं पड़ेगी. आप इतनी ऊंची चोटी पर पहुंचकर भी ऑक्सीजन आसानी से ले पाएंगे.

5. सबसे बड़ी बात, ऑक्सीजन न सिर्फ हमारे (मनुष्य और जीव-जंतुओं) लिए एक जरूरी भूमिका अदा करती है, बल्कि एक ग्रह के रूप में पूरी धरती का संतुलन बनाती है. इसलिए अगर धरती पर ऑक्सीजन की मात्रा अधिक हो जाएगी तो संतुलन बिगड़ने का डर भी रहेगा.

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नई दिल्ली: पृथ्वी पर जीवन का उद्भव (Evolution of life)  एक जटिल प्रक्रिया थी. इसके बारे में आज भी बहुत सारे ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब अभी तक नहीं मिले हैं. इन्हीं में से एक सवाल है प्राणियों के लिए वायुमंडल में ऑक्सीजन कब से उपलब्ध होना शुरू हुई. एक शोध के अनुसार इस बारे में निर्णायक भूमिका हमारी पृथ्वी मैंटल परत की रही थी.

ऑक्सीजन तो बहुत समय पहले से बनने लगी थी, लेकिन..
पृथ्वी पर पहले ऑक्सीजन 2.4 अरब साल पहले जमा होना शुरू हुई. यह एक ग्रेट ऑक्सीडेशन इवेंट के दौरान हुआ था. यह एक लंबे समय से एक पहेली थी कि जब भूगर्भीय संकेतों से यह पता चल रहा था कि 2.4 अरब साल के भी करोड़ों साल पहले शुरुआती बैक्टीरिया फोटो सिंथेसिस से ऑक्सीजन वायुमंडल में छोड़ रहे थे तब वह ऑक्सीजन कहां गई.

ऑक्सीजन बढ़ने से रुकने लगी, तो कैसे हुआ ये
कुछ था जिसकी वजह से ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ने से रुक गई. ताजा अध्ययन से पता चला है कि अरबों साल पहले ज्वालामुखी से निकली गैसों कै वजह ऐसा हो रहा था. नेचर कम्यूनिकेशन्स में प्रकाशित यह शोध वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के अध्ययन पर आधारित है. इस शोध के प्रमुख लेखक शिनतारो काडोया का कहना है कि आंकड़े दर्शाते है कि पृथ्वी की मैंटल के विकास का हमारे वायुमंडल के विकास से  संबंध हो सकता है और अंततः जीवन के विकास से भी. यह अध्ययन वायुमंडल मेंऑक्सीजन के उद्भव की क्लासिक हायपोथेसिस को फिर से जगा रहा है.

पृथ्वी के अंदर की परत की भूमिका
बहुकोशिका जीवन (Multicellular life) के लिए लगातार ऑक्सीजन की उपलब्धता एक अहम आवश्यकता है. इसी लिए पृथ्वी पर ऑक्सीजन की सांस लेने वाले जीवन के पनपने के लिए वायुमंडल में ऑक्सीजन का जमा होना जरूरी था. काडोया का कहना है कि अगर मैंटल में बदलाव ने वायुमंडलीय ऑक्सीजन को नियंत्रित किया है, जैसा कि अध्ययन कह रहा है तो मैंटल ने भी फिर जीवन के पनपने में अहम भूमिका निभाई होगी.

वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा कम क्यों नहीं होती? - vaayumandal mein okseejan kee maatra kam kyon nahin hotee?

मैंटल पृथ्वी की ऊपरी सतह के ठीक नीचे की दूसरी सतह है जो ज्वालामुखी के जरिए वायुमंडल को प्रभावित करती रही थी. (प्रतीकात्मक तस्वीर)

इस पुराने शोध ने दिखाया रास्ता
इस शोध का आधार साल 2019 में किया गया एक शोध है जिसमें पता चला कि पूर्व में पृथ्वी का मैंटल कम आक्सीकृत था या उसमें ऐसे पदार्थों की भरमार थी जो ऑक्सीजन से प्रतिक्रिया करते हों. उस शोध में पुराने 3.55 अरब साल पुराने आग्नेय शैलों का अध्ययन किया गया था. दक्षिण अफ्रीका और कनाडा की कुछ जगहों से नमूने एकत्र किए गए थे. उस अध्ययन के सह लेखक रॉबर्ट निकलास, इगोर पुश्टेल और एरियल एन्बर इस ताजा अध्ययन के भी सह लेखक हैं और उन्हें इसका अध्ययन किया कि मैंटल ने किस प्रकार उन ज्वालामुखी गैसें को प्रभावित किया जो सतह तक आईं.

तो ऐसे हटने लगी थी वायुमंडल से ऑक्सीजन
ज्वालामुखी आर्चियन एयोन आज के मुकाबले तब ज्यादा सक्रिय था जब पृथ्वी पर केवल सूक्ष्म जीवन चारों और फैला था. ज्वालामुखी के फूटने से मैग्मा, जो पिघली और कम पिघली चट्टानों का मिश्रण है, फैला और उसके साथ ही कई गैसें भी निकल कर आईं जब ज्वालामुखी नहीं फट रहा था. उन गैसों का ऑक्सीकरण हो गया, यानि वे हवा में मौजूद ऑक्सीजन से प्रतिक्रिया कर गईं. ऑक्सीजन हमेशा ही इलेक्ट्रॉन की भूखी होती है. जब भी उसे इलेक्ट्रॉन देने वाला अणु मिल जाता है वह उससे प्रतिक्रिया कर नया अणु बना लेती है . इसे ही ऑक्सीकरण कहते हैं.  ज्वालामुखी से निकलने वाली बड़ी मात्रा में हाइड्रोजन ने भी ऑक्सीजन से प्रतिक्रिया की होगी और वायुमंडल से ऑक्सीजन हटा दी होगी.

मैंटल में हुआ बदलाव फिर बदला वायुमंडल
मैंटल पृथ्वी की ऊपरी सतह क्रस्ट के ठीक नीचे एक चट्टानों की एक नर्म परत है.  यह परत ज्वालामुखी से निकलने वाले पिघली चट्टानों और गैसों का नियंत्रित करती है. पुराने कम ऑक्सीकृत मैंटल ने ज्यादा मात्रा में हाइड्रोजन निकाली होगी. 2019 के शोधपत्र ने दर्शाया था कि धीरे धीरे हमारी मैटल की परत 3.5 अरब साल पहले तक ऑक्सीकृत होती गई थी. अध्ययन में कुछ अवसादी शैलों का भी अध्ययन किया गया जिसमें यह पाया गया कि सूक्ष्म जीवों से निकली ऑक्सीजन 2.5 अरब साल पहले ज्वालामुखी में खपने वाली ऑक्सीजन से ज्यादा हो गई और वायुमंडल में जमा होने लगी.

वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा कम क्यों नहीं होती? - vaayumandal mein okseejan kee maatra kam kyon nahin hotee?

पृथ्वी पर बैक्टीरिया काफी पहले से ऑक्सीजन पैदा करने लगे थे. (प्रतीकात्मक फोटो)

धीरे धीरे बढ़ने लगी ऑक्सीजन
शोधकर्ताओं का कहना है कि ज्वालामुखी गैसें फोटोसिंथेसिस प्रक्रिया शुरू होने के बाद भी करोड़ो सालों तक वायुमंडल की ऑक्सीजन को खाती रहीं. लेकिन फिर मैंटल का खुद ही ऑक्सीकरण हो गया और फिर वायुमडंल में ज्वालामुखी से इस तरह की गैसें ही निकलना कम हो गईं जो ऑक्सीकृत हो सकती थीं. तभी से वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ने लगी.

इस अध्ययन से पृथ्वी पर जीवन के उद्भव (Evolution) की जटिल प्रक्रिया को समझने में मदद मिलेगी. शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि इससे दूसरे ग्रहों में जीवन की संभावनाओं तलाशने में सहायता मिल सकती है.

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Tags: Earth, Research, Science

FIRST PUBLISHED : June 11, 2020, 19:04 IST