Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Hindi Antra Chapter 1 ईदगाह Textbook Exercise Questions and Answers. Show
RBSE Class 11 Hindi Solutions Antra Chapter 1 ईदगाहRBSE Class 11 Hindi ईदगाह Textbook Questions and Answersप्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. चिमटे से तुम्हारे खिलौनों पर प्रहार करूँ तो उनकी जान निकल म्हारी खंजरी का पेट फाड़ देगा, मेरा यह चिमटा। मेरा चिमटा बहादर है, यह आग में, पानी में, आँधी और तफानों में डटा खड़ा रहेगा। शेर के आने पर तुम्हारे खिलौने डरकर भाग जायेंगे पर मेरा चिमटा रुस्तमे-हिन्द है, शेर की गरदन पर सवार होकर उसकी आँखें निकाल लेगा। हामिद के तर्क सुनकर सारे साथी निरुत्तर हो गए। प्रश्न 7. प्रश्न 8. अमीना चिमटे को देखकर दुखी हुई। बच्चे जैसे बिना सोचे-समझे क्रोध करने लगते हैं, वैसे ही अमीना भी क्रोधित हो गई। किन्तु हामिद का स्नेह और विवेक देखकर वह गद्गद हो गई और बच्चों की तरह रोने लगी। उसका यह रुदन बालिका की तरह था। इसी से लेखक ने कहा-"बच्चे हामिद ने बूढ़े हामिद का पार्ट खेला था। बुढ़िया अमीना बालिका अमीना बन गई थी।" प्रश्न 9. प्रश्न 10. योग्यता-विस्तार से - प्रश्न 1. प्रश्न 2.
RBSE Class 11 Hindi ईदगाह Important Questions and Answersबहुविकल्पीय प्रश्न - प्रश्न 1. प्रश्न
2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न
5. अतिलघु उत्तरीय प्रश्न - प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न
4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. लघु उत्तरीय प्रश्न - प्रश्न 1. प्रश्न
2. बड़े-बूढ़े चिन्तित भी हैं। आर्थिक अभाव के कारण त्योहार कैसे मनेगा? चौधरी कायम अली के पास से पैसे लाने की चिन्ता में हैं। उन्हें चिन्ता है यदि चौधरी ने सहायता नहीं की तो त्योहार और मेले का आनन्द फीका पड़ जाएगा। हामिद की दादी अमीना भी चिन्तित है। एक ओर उसे हामिद को अकेले मेले में भेजने की चिन्ता है, तो दूसरी ओर पैसों की तंगी के कारण त्योहार मनाने की चिन्ता है। इस प्रकार कहानी में उल्लास और चिन्ता का सुन्दर समन्वय हुआ है। प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न - प्रश्न 1. आगे निकलने की होड़-बच्चों में होड़ की प्रवृत्ति बड़ी प्रबल होती है। वे अपनी चीज को अच्छा दूसरों की चीज को बुरा समझते हैं। ईद के मेले में बच्चों ने खिलौने खरीदे और हामिद ने चिमटा खरीदा। सब अपने सिपाही, वकील और खंजरी की तारीफ करते हैं और हामिद के चिमटे को बुरा बताते हैं। हामिद मिट्टी के खिलौनों को टूटने वाला, खंजरी को पानी से खराब होने वाली बताता है। अपने चिमटे को आग, पानी, आँधी और तूफान में डटने वाला बताकर श्रेष्ठ सिद्ध करता है। निश्छलता-बच्चे स्वभाव से निश्छल होते हैं। उन्हें जैसा समझा दो वे मान जाते हैं। अमीना ने भी हामिद को बता दिया था कि अब्बाजान पैसे कमाने गए हैं। पैसों की ढेर सारी थैलियाँ लेकर आयेंगे। अम्मीजान खुदा के घर से अच्छी-अच्छी चीज लेकर आयेंगी। बच्चे हामिद ने दादी की बात को सत्य मान लिया। यह बच्चे की निश्छलता का ही प्रमाण है। प्रश्न 2. प्रश्न 3. गील-हामिद - चार-पाँच वर्ष का है पर उसमें बच्चों की सी लडने-झगडने की प्रवत्ति नहीं है। साथी मिठाई खाते समय उसे चिढ़ाते हैं। मोहसिन रेवड़ी देने के लिए बुलाता है और स्वयं खा जाता है। महमूद गुलाब जामुन देने को बुलाता है। इस प्रकार साथी उसकी उपेक्षा करते हैं, हँसी उड़ाते हैं पर वह उनसे झगड़ता नहीं। दुकानों पर खिलौने और मिठाइयाँ देखकर उसका मन ललचाता नहीं। वह सहनशील है, धैर्य के साथ सब देखता रहता है। तार्किक साथी - अपने-अपने खिलौनों की तारीफ करते हैं पर वह तर्क देकर सबको निरुत्तर कर देता है। खिलौने टूट जायेंगे, चिमटा खंजरी का पेट फाड़ सकता है। पानी पड़ने पर खंजरी खत्म हो जाएगी। मेरा चिमटा शेर है। आग, पानी, आँधी और तूफान में डटा रहेगा। शेर की गरदन पर सवार होकर उसकी आँख निकाल लेगा। इन तर्कों से उसने सब साथियों को परास्त कर दिया। विवेकशील - छोटी उम्र का बालक हामिद विवेकशील है। वह समझता है कि पैसों को कैसे खर्च किया जाए और चीज अधिक उपयोगी है। वह चाहता तो अन्य बच्चों की तरह मिठाई और खिलौनों पर पैसे खर्च कर देता। किन्तु वह अपनी दादी के कष्ट को जानता था। इसलिए उसने सोच-समझकर चिमटा ही खरीदा। प्रश्न 4. प्रश्न 5. क्योंकि -
कहानी का दूसरा शीर्षक 'हामिद' भी रखा जा सकता है क्योंकि यह कहानी का मुख्य पात्र है। हामिद की भावना के आधार पर 'हामिद का चिमटा' भी रखा जा सकता है। लेकिन उपयुक्त शीर्षक 'हामिद' ही रहेगा। प्रश्न 6. वह अपनी बूढ़ी दादी अमीना के पास रहता है। अमीना हामिद को अकेले ईदगाह भेजने से डर रही है कि कहीं हामिद मेले में खो न जाए। साथ ही उसे ईद की तैयारियाँ करने व सभी कामवालियों को देने के लिए सेवैयों का इंतजाम करने की भी चिन्ता है। हामिद अपनी दादी अमीना को अपना ख्याल रखने का विश्वास दिलाकर सभी बच्चों के साथ ईदगाह के लिए चल पड़ता है। सभी बच्चे मार्ग में पड़ने वाली इमारतों के विषय में चर्चा करते हैं। तभी ईदगाह दिखाई पड़ता है। उसके ऊपर इमली के घने वृक्षों की छाया है। नीचे फर्श पर जाजिम बिछा हुआ है। सेजेदार नमाज पढ़ने के लिए उस पर कतारों पर खड़े हुए हैं। ग्रामीण भी वजू करके नमाज अदा करने के लिए पंक्तियों में पीछे की ओर खड़े हो जाते हैं। नमाज शुरू होती है, लाखों सिर एक साथ सिजदे में झुकते हैं। सभी एक साथ खड़े होते हैं फिर एक ही साथ घुटनों के बल बैठे जाते हैं। यह दृश्य देखने में अत्यन्त सुन्दर लगता है। यह सामूहिक नमाज भाईचारा पैदा करती है। नमाज खत्म होने पर सभी गले मिलते हैं और बच्चे मेले की ओर दौड़ पड़ते हैं। मोहसिन, महमूद, नूरे और सम्मी लकड़ी के बने ऊँट और घोड़ों वाले झूले पर झूलते हैं। मिठाइयाँ खरीदकर खाते हैं और अपनी-अपनी पसंद के खिलौने खरीदते हैं, वे सभी हामिद को बहुत चिढ़ाते हैं, किन्तु हामिद न झूले झूलता है न मिठाइयाँ खाता है और न ही खिलौने खरीदता है क्योंकि उसके पास केवल तीन ही पैसे हैं। वह उन पैसों से कोई उपयोगी वस्तु लेना चाहता था। वह मन ही मन ललचाता है फिर भी खिलौने और मिठाइयों की बुराइयाँ करता है। अतः हामिद लोहे के सामान वाली दुकान पर चिमटा देखकर उसे अपनी बूढ़ी दादी की रोटी सेकते समय आग से जलती उँगलियों का ध्यान आता है। वह दुकानदार से तीन पैसों में एक चिमटा खरीदता है। उसके हाथ में चिमटा देखकर सभी साथी उसका मजाक उड़ाते हैं लेकिन अपने तर्क से वह उन सभी को निरुत्तर कर देता है। वह अपने चिमटे को 'रुस्तम-ए-हिन्द' की उपाधि देता है। हामिद के तर्कों से प्रभावित होकर सभी बच्चे उसके चिमटे के बदले अपने खिलौने उसे थोड़ी देर के लिए देने को तैयार हो जाते हैं। ग्यारह बजे तक सभी गाँव वापस लौट आये। बच्चों ने खेलकर थोड़ी देर में ही अपने-अपने खिलौने तोड़ डाले। अमीना हामिद को गोद में लेकर उसे दुलारने लगती है, लेकिन उसके हाथ में खिलौनों की जगह चिमटा देखकर क्रोध करने लगती है। जब हामिद उससे कहता है कि रोटी सेंकते समय उसकी उँगलियाँ आग में जल जाती थीं। इसलिए उसकी उँगलियों को आग से बचाने के लिए उसने यह चिमटा खरीदा। यह सुनकर अमीना का क्रोध शांत हो जाता है और उसकी आँखों में आँसू भर आते हैं। वह हामिद के भोलेपन और असीम स्नेह को देखकर रोने लग जाती है और हामिद को हजारों दुआएँ देती है और बेचारा भोला हामिद इस रहस्य को समझ नहीं पाता। प्रश्न 7. प्रेमचंद ने क्वींस कॉलेज से हाईस्कूल की परीक्षा पास की। सन् 1910 में इण्टर तथा सन् 1919 में बी. ए. की परीक्षाएँ पास की। आप शिक्षा विभाग में सब डिप्टी इंस्पैक्टर रहे। सन 1920 में गाँधी जी के होकर आपने सरकारी नौकरी छोड़ दी और साहित्य सेवा का अपना ध्येय बना लिया। 8 अक्टूबर, सन 1936 को आपका देहावसान हो गया। साहित्यिक परिचय - पहले आप उर्दू में नवाबराय नाम से लिखते थे। उनके कहानी संग्रह 'सोजेवतन को अंग्रेज सरकार ने जब्त कर लिया। तत्पश्चात् आप हिन्दी में आए और प्रेमचन्द नाम से लिखने लगे। उनकी पहली कहानी 'पंच परमेश्वर', 'सरस्वती-पत्रिका' में छपी थी। आपने लगभग 300 कहानियाँ तथा आठ उपन्यास लिखे। 'गोदान' उनका प्रसिद्ध उपन्यास है। प्रेमचन्द के कथा साहित्य में भारतीय जीवन का सफल चित्रण हुआ है। दलितों, किसानों, मजदूरों तथा महिलाओं की पीड़ा उनमें मुखरित हुई है। उनके कथा-साहित्य का फलक अत्यंत व्यापक है। आप प्रगतिवादी विचारधारा के कथाकार हैं तथा गाँधीवाद से प्रभावित है, कथा-साहित्य को जासूसी तथा तिलिस्म की दुनिया से निकलकर उसे समाज की यथार्थ समस्याओं तक ले जाने का श्रेय प्रेमचन्द को है। आपकी भाषा सरल, विषयानुरूप तथा पाठकों के समझ में आने वाली है। उसमें मुहावरे तथा लोकोक्तियों का प्रयोग सफलतापूर्वक हआ है। तत्सम शब्दों के साथ-साथ उर्दू, अरबी, फारसी, अंग्रेजी तथा लोकभाषा के शब्द उसमें मिलते हैं। आपने वर्णनात्मक शैली, विवरणात्मक शैली तथा संवाद शैली का प्रयोग किया है। कृतियाँ - मानसरोवर (आठ भाग) तथा गुप्तधन (दो भाग) नामक कहानी संग्रहों में आपकी लगभग 300 कहानियाँ संग्रहीत हैं। आपने सेवासदन, प्रेमाश्रम, निर्मला, रंगभूमि, कायाकल्प, गबन, कर्मभूमि, गोदान आदि उपन्यासों की रचना की है। ईदगाह Summary in Hindiलेखक परिचय - प्रेमचंद का जन्म 1880 ई. में वाराणसी जनपद के लमही ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम मुंशी अजायबलाल और माता का नाम आनन्दी देवी था। प्रेमचंद हिन्दी जगत में उपन्यास सम्राट् के नाम से प्रसिद्ध हैं। प्रेमचंद प्रारम्भ में उर्दू में नवाब राय के नाम से लिखते थे। इनका प्रथम कहानी संग्रह 'सोजे वतन' था जिसे अंग्रेज सरकार ने जब्त कर लिया। इसके बाद आपने हिन्दी में प्रेमचंद नाम से लिखना आरम्भ किया। उन्होंने कहानी, उपन्यास, निबन्ध आदि अनेक विधाओं में साहित्य सृजन का कार्य किया। आपने छुआछूत, विधवा विवाह, साम्प्रदायिक भावना, कृषकों की समस्या, ग्राम सुधार, जमींदारी प्रथा, पुलिस के हथकण्डे आदि तात्कालिक समस्याओं का अपने उपन्यास और कहानियों में मार्मिक चित्रण किया है। प्रेमचंद ने कहानी और उपन्यास को मानव जीवन से जोड़ने का प्रशंसनीय प्रयास किया। आपकी कहानियाँ आदर्शोन्मुखी यथार्थवाद पर आधारित हैं। प्रेमचंद की भाषा सरल, सहज भावानुकूल एवं प्रवाहपूर्ण है। उनकी भाषा में लोकोक्ति एवं मुहावरों का सहज रूप से प्रयोग हुआ है। उर्दू व अंग्रेजी के शब्द भी आपकी भाषा में मिलते हैं। आपने वर्णनात्मक शैली, संवाद शैली, विवरणात्मक शैली तथा मनोविश्लेषणात्मक शैली का प्रयोग अपने साहित्य में किया है।। रचनाएँ - मानसरोवर (आठ भाग) और गुप्त धन (दो भाग) उनके कहानी संग्रह हैं। निर्मला, सेवासदन, कर्मभूमि, रंगभूमि, प्रेमाश्रम, गबन, गोदान, कायाकल्प उनके प्रसिद्ध उपन्यास हैं। कर्बला, संग्राम, प्रेम की वेदी नाटक हैं। 'विविध प्रसंग' और 'कुछ विचार' निबन्ध संग्रह हैं। उन्होंने कई पत्रिकाओं का संपादन किया। पाठ परिचय : ईदगाह 'प्रेमचंद' द्वारा रचित बाल मनोविज्ञान पर केंद्रित कहानी है। यह कहानी उत्साह से युक्त त्योहार ईद को केंद्र में रखकर लिखी गई है। इस कहानी में प्रेमचंद जी ने ग्रामीण मुस्लिम जीवन को बहुत ही सरल तथा सुरुचिपूर्ण ढंग से रेखांकित किया है। यह एक छोटे बच्चे पर आधारित कथा है, जो ईद के समय ईदगाह जाता है। उसकी दादी उसे कुछ पैसे देती है जिससे वह उनसे मेले में कुछ खा-पी सके। परन्तु वह उन पैसों से खाने के स्थान पर अपनी दादी के लिए एक चिमटा खरीद लेता है। कहानी का सारांश : ईद और उत्साह - कहानी का आरम्भ ईद के त्योहार से हुआ है। सारा वातावरण आनन्दमय है। सभी ईदगाह जाने की तैयारी में जुटे हैं। बच्चों में अजीब उत्साह है। कोई कुरता ठीक कर रहा है तो कोई जूतों में तेल लगा रहा है। कोई शीघ्रता से बैलों को सानी-पानी दे रहा है। बच्चों को गृहस्थी की कोई चिन्ता नहीं। वे तो जल्दी से जल्दी ईदगाह जाना चाहते हैं। वे सोचते हैं कि लोग जल्दी ईदगाह क्यों नहीं चलते। बच्चे पैसों को गिनते हैं और पुनः जेब में रख लेते हैं। भोला हामिद - माता-पिता विहीन चार-पांच साल का हामिद अपनी बूढ़ी दादी अमीना की गोद में सोता है और प्रसन्न। रहता है। दादी अमीना ने उसे बता रखा है कि उसके अब्बाजान रुपये कमाने गए हैं और बहुत-सी थैलियाँ लाएँगे। अम्मीजान अल्लाहमियाँ के घर से उसके लिए अच्छी चीजें लेने गई हैं। भोला हामिद क्या जाने कि उसके माता-पिता उसे हमेशा के लिए अकेला छोडकर स्वर्ग सिधार गए हैं। वह तो दादी की बातों को सनकर प्रसन्न है। सोचता है अब्बाजान थैली भरकर रुपये लायेंगे और वह अपने लिए जूते-टोपी खरीदेगा। इसी आशा में वह प्रसन्न है। सोचता है महमूद, मोहसिन, नूरे और सम्मी से उसके पास पैसे अधिक होंगे। वह दादी अमीना से अपने शीघ्र लौटने की बात कहता है। अमीना की व्यथा - ईद का त्योहार सभी के लिए ढेरों खुशियाँ लेकर आया है, पर अमीना के जीवन से सुख कोसों दूर चला गया है। उसकी आँखों के आँसू रुक नहीं रहे हैं। अल्लाह ने उसके पुत्र आबिद को उससे छीन लिया। अभाव के कारण आज घर में अनाज का एक दाना भी नहीं है। वह मन ही मन ईद के त्योहार को कोसती है। अमीना का दिल कचोट रहा है। गाँव के सभी बच्चे अपने पिता के साथ जायेंगे, अभागा हामिद किसके साथ जायेगा। अकेला बच्चा कहीं खो न जाये। वह बच्चे के साथ जाना चाहती है लेकिन सेवैयाँ कौन पकाएगा। धोबिन, नाइन, मेहतरानी और चूड़िहारिन को क्या देगी। उसके पास तो पाँच पैसे ही हैं। इसी चिन्ता में वह अकेली कोठरी में बैठी रो रही है। मार्ग का दृश्य और बच्चे - मार्ग में सड़क के दोनों ओर आमों के बगीचे थे। पेड़ों में आम और लीचियाँ लगी थीं। बड़ी-बड़ी इमारतें थीं। अदालत और कॉलेज थे। हलवाइयों की दुकानें सजी थीं। आम और लीचियों को देखकर बच्चे शरारत करते। कोई लड़का कंकड़ी उठाकर आम पर मारता। माली अन्दर से गाली देता हुआ निकलता। माली के गाली देने पर बच्चे दूर खड़े होकर हँसते। शरारत करते हुए बच्चे आगे निकल जाते। कभी पेड़ के नीचे खड़े होकर पीछे रहने वालों का इन्तजार करते। हामिद के पैरों में तो पर ही लग गए थे। इंदगाह का दृश्य - बच्चे सबके साथं ईदगाह पहुँचे। ऊपर वृक्षों की घनी छाया थी। नीचे पक्के फर्श पर जाजिम बिछा था। इक्के-ताँगे तथा मोटरों पर सवार टोलियाँ ईदगाह आ रही थीं, जिनके वस्त्र बड़े भड़कीले थे। ग्रामीणों को अपनी विपन्नता का ध्यान ही नहीं था। रोजेदारों की लम्बी पंक्तियाँ थीं, बाद में आने वाले पीछे खड़े हो जाते। पद और धन के कारण कोई बड़ा-छोटा नहीं था। इस्लाम की निगाह में कोई छोटा-बड़ा नहीं है, सब बराबर हैं। बाल स्वभाव और स्पर्धा - बच्चों का खिलौनों के प्रति अधिक झुकाव रहता है। मिठाई के प्रति भी अधिक रुचि होती है। ईदगाह के मेले में खिलौनों की दुकानों को देखकर हामिद के साथ खिलौने खरीदने लगे। महमूद ने सिपाही, मोहसिन ने भिश्ती और नूरे ने वकील खरीदा। उसके साथियों ने खाने की चीजें खरीदी और खाई। सबने हामिद का मजाक भी उड़ाया। अपने-अपने खिलौनों की तारीफ की। हामिद के पास केवल तीन पैसे थे। उसने अपनी दादी के कष्ट को ध्यान में रखकर चिमटा खरीदा। उसने यह सिद्ध कर दिया कि खिलौनों से चिमटा अधिक अच्छा और उपयोगी है। सभी साथी अपने खिलौने हामिद के हाथ में देते हैं और उसका चिमटा देखते हैं। बच्चे घर जाकर खिलौने दिखाते हैं और हामिद दादी को चिमटा देता है। अमीना का वात्सल्य - मेले से लौटने पर अमीना ने हामिद को गोदी में उठाकर प्यार किया पर उसके हाथ में चिमटा देखकर वह चौंक गई। चिमटा देखकर उसे दुःख हुआ और आश्चर्य भी। हामिद ने दोपहर में कुछ नहीं खाया, यह सोचकर उसे दुःख हुआ। हामिद की बात सुनकर अमीना का हृदय गदगद हो गया। हामिद के सद्भाव और स्नेह को देखकर वह रोती रही और उसे दुआएँ देती रही। कठिन शब्दार्थ :
महत्वपूर्ण मद्याशों की सप्रसंग व्याख्याएँ - 1. कितना मनोहर, कितना सुहावना प्रभात है। वृक्षों पर कुछ अजीब हरियाली है, खेतों में कुछ अजीब रौनक है, आसमान पर कुछ अजीब लालिमा है। आज का सूर्य देखो कितना प्यारा, कितना शीतल है मानो संसार को ईद की बधाई दे रहा है। संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित 'ईदगाह' शीर्षक कहानी से उद्धत है। इसके लेखक कथा-सम्राट मुंशी प्रेमचन्द हैं। प्रस्तुत गद्यांश में ईद की प्रातः का मनोरम वर्णन किया है। व्याख्या - तीस रोजों के बाद ईद आई है। बालक और वृद्ध सभी प्रसन्न हैं। ईद के दिन प्रकृति भी प्रसन्न दिखाई दे रही । है। प्रभात की सुनहरी किरणें चारों ओर बिखर रही हैं। सभी को प्रातः का दृश्य मनोहर और सुहावना लग रहा है। प्रभात की। किरणें वृक्षों और खेतों पर पड़ रही हैं। वृक्षों की हरियाली अन्य दिनों की अपेक्षा अजीब दिखाई दे रही है। सूर्य की किरणों का स्पर्श पाकर खेतों की शोभा अनूठी दिख रही है। सुनहरी किरणों के कारण आसमान में अजीब लालिमा है। सूर्य ने भी अपनी तीक्ष्णता छोड़कर शीतलता धारण कर ली है। आज वह अधिक प्यारा लग रहा है। लोगों को ऐसा लगता है मानो सूर्य भी ईद की बधाई देने आया है। सभी को प्रात:कालीन शोभा सुहावनी लग रही है। विशेष :
2. लड़के सबसे ज्यादा प्रसन्न हैं। किसी ने एक रोज़ा रखा है, वह भी दोपहर तक, किसी ने वह भी नहीं; लेकिन ईदगाह जाने की खुशी उनके हिस्से की चीज़ है। रोज़े बड़े-बूढ़ों के लिए होंगे। इनके लिए तो ईद है। रोज़ ईद का नाम रटते थे आज वह आ गई। अब जल्दी पड़ी है कि लोग ईदगाह क्यों नहीं चलते। इन्हें गृहस्थी की चिंताओं से क्या प्रयोजन! सेवैयों के लिए दूध और शक्कर घर में है या नहीं, इनकी बला से, ये तो सेवैयाँ खाएँगे। वह क्या जानें कि अब्बाजान क्यों बदहवास चौधरी कायम अली के घर दौड़े जा रहे हैं। उन्हें क्या खबर कि चौधरी आज आँखें बदल लें, तो सारी ईद मुहर्रम हो जाए। सन्दर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित मुंशी प्रेमचन्द द्वारा रचित 'ईदगाह' नामक कहानी से लिया गया है। उपर्युक्त गद्यांश के अन्तर्गत लेखक ने गाँव के बच्चों व बड़ों में ईदगाह जाने के उत्साह का वर्णन किया है। व्याख्या - लेखक कहते हैं कि ईद के अवसर पर लड़के सबसे अधिक उत्साहित दिखाई दे रहे हैं। इनमें से किसी ने एक दिन का रोजा रखा है। वह भी केवल दोपहर तक के लिए। ज्यादातर बच्चों ने रोजा रखा ही नहीं है। इन सभी की प्रसन्नता का कारण रोजा नहीं अपितु ईद के त्योहार पर ईदगाह जाना है। रोजा रखना बड़े-बूड़ों का काम है। ईद का त्योहार तो प्रसन्नता देने वाला है। सभी को ईदगाह जाने की जल्दी है। वे बड़ों के जल्दी ईदगाह न चलने पर परेशान हो रहे हैं। बड़ों को घर-गृहस्थी की चिन्ता है किन्तु बच्चों को इससे कोई मतलब नहीं है कि उनके खाने के लिए सेवइयाँ का इंतजाम करने के लिए उनके पिता कितने परेशान हैं। वे चौधरी कायम अली के घर ईद का त्योहार मनाने के लिए कुछ रुपये माँगने के लिए गए हैं। अगर चौधरी पैसा देने से मना कर दे तो ईद के त्योहार की यह खुशी मुहर्रम के मातम में बदल जायेगी। बच्चे यह नहीं जानते कि बिना पैसों के सारा त्योहार फीका हो जायेगा। विशेष :
3. आशा तो बड़ी चीज़ है और फिर बच्चों की आशा! उनकी कल्पना तो राई का पर्वत बना लेती है। हामिद के पाँव में जते नहीं हैं, सिर पर एक फटी-परानी टोपी है, जिसका गोटा काला पड़ गया है, फिर भी वह प्रसन्न है। जब उसके अब्बाजान थैलियाँ और अम्मीजान नियामतें लेकर आएँगी, तो दिल के अरमान निकाल लेगा। सन्दर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित प्रसिद्ध कहानीकार प्रेमचन्द की 'ईदगाह' कहानी से लिया गया है। कहानी के नायक हामिद के माता-पिता दोनों की मृत्यु हो चुकी है। उसकी दादी ने उसे बताया हुआ है कि उसके माता-पिता अल्लाह के पास उसके लिए अच्छी-अच्छी चीजें लेने गए हैं। हामिद की आशा इतनी दृढ़ है कि उसके माता-पिता के अल्लाह के पास से लौटने पर उसके सभी कष्ट दूर हो जाएँगे। व्याख्या - लेखक कहते हैं कि आशा मनुष्य के मन की महत्वपूर्ण भावना है। जिसके बल पर वह कष्टपूर्ण जीवन भी सरलता से काट लेता है। बच्चों के मन में आशा की भावना अधिक बलवती (मजबूत) होती है। बच्चे कल्पनाशील होते हैं। वे अपनी कल्पना के आधार पर बहुत बड़ी बातें सोच लेते हैं। हामिद के माता-पिता नहीं हैं। परिवार में आमदनी का कोई जरिया न होने के कारण निर्धनता में जीवन व्यतीत कर रहा है। उसके पास ईद पर पहनने के लिए न नए कपड़े हैं और न ही पैरों में पहनने के लिए जूते हैं। उसके सिर पर एक पुरानी टोपी है जिसका गोटा काला पड़ गया है। फिर भी हामिद प्रसन्न है। उसे आशा है कि उसकी सभी परेशानियाँ जल्दी ही दूर हो जाएँगी। उसके पिता उसके लिए थैलियों में भरकर पैसे लाएँगे। उसकी माँ ईश्वर के आशीर्वाद के रूप में उसके लिए अनेक चीजें लेकर आएँगी। तब उसके पास किसी भी चीज की कमी नहीं होगी। उसकी सभी इच्छाएं पूरी हो जायेंगी। विशेष :
4. अभागिन अमीना अपनी कोठरी में बैठी रो रही है। आज ईद का दिन और उसके घर में दाना नहीं! आज आबिद होता तो क्या इसी तरह ईद आती ओर चली जाती! इस अंधकार और निराशा में वह डबी जा ने बुलाया था इस निगोड़ी ईद को? इस घर में उसका काम नहीं लेकिन हामिद! उसे किसी के मरने-जीने से क्या मतलब? उसके अंदर प्रकाश है, बाहर आशा। विपत्ति अपना सारा दलबल लेकर आए, हामिद की आनंद भरी चितवन उसका विध्वंस कर देगी। सन्दर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित 'ईदगाह' कहानी से लिया गया है। इसके लेखक प्रसिद्ध कहानीकार मुंशी प्रेमचन्द हैं। उपर्युक्त गद्यांश में हामिद की दादी अमीना की चिन्ता और दुःख का वर्णन है। वह इस बात से दु:खी है कि वह पैसों के अभाव में ईद का त्योहार कैसे मनायेगी ? व्याख्या - लेखक कहता है कि बेचारी अमीना अपने दुर्भाग्य पर अपनी कोठरी में बैठकर आँसू बहा रही है। ईद का त्योहार है और उसके घर में अनाज का एक दाना भी नहीं। ऐसी स्थिति में वह ईद का त्योहार कैसे मनाएगी ? यदि आज उसका पुत्र आबिद जिन्दा होता तो उसकी ईद इतनी बेरंग और उदास नहीं होती। आबिद, ईद से पहले ही सारा इंतजाम कर देता। उसे ऐसी निराशा का सामना नहीं करना पड़ता। वह बहुत च्याकुल और निराश थी। वह परेशान होकर सोच रही थी कि यह ईद आई ही क्यों ? इसके विपरीत हामिद के मन में अपार उत्साह, उमंग और आशा थी। अपनी इसी आशा के बल पर वह किसी भी संकट का सामना करने का सामर्थ्य रखता था। विशेष :
5. उस अठन्नी को ईमान की तरह बचाती चली आती थी इसी ईद के लिए, लेकिन कल ग्वालन सिर पर सवार हो गई तो क्या करती! हामिद के लिए कुछ नहीं है, तो दो पैसे का दूध तो चाहिए ही। अब तो कुल दो आने पैसे बचे रहे हैं। तीन पैसे हामिद की जेब में, पाँच अमीना के बटुवे में। यही तो बिसात है और ईद का त्योहार, अल्लाह ही बेड़ा पार लगाए। धोबन, नाइन, मेहतरानी और चूड़िहारिन सभी तो आएंगी। सभी को सेवैयाँ चाहिए और थोड़ा किसी की आँखों नहीं लगता। किस-किस से मुँहचुराएगी। और मुँहक्यों चुराए? साल-भर का त्योहार है। जिंदगी खैरियत से रहे, उनकी तकदीर भी तो उसकी के साथ है। बच्चे को खुदा सलामत रखे, दिन भी कट जाएँगे। सन्दर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित 'ईदगाह' नामक कहानी से ली गई हैं। इसके लेखक प्रसिद्ध कथा सम्राट मुंशी प्रेमचन्द हैं। प्रस्तुत गद्यांश के अन्तर्गत लेखक ने अमीना की निर्धनता का मार्मिक चित्रण किया है। व्याख्या - हामिद की दादी अमीना एक गरीब महिला है। उसका इकलौता पुत्र आबिद पिछले वर्ष हैजे की बीमारी के कारण चल बसा था। वह अपने पोते हामिद का पालन-पोषण बहुत ही कठिनाई से सिलाई करके करती थी। फहीमन के कपड़े सिलने पर उसे आठ आने सिलाई के मिले थे, जिन्हें वह ईद के त्योहार के लिए बचाकर रखे हुई थी। लेकिन ईद से एक दिन पहले ही दूधवाली पैसों के लिए तगादा करने लगी तो उसका हिसाब करना पड़ा। जिस अठन्नी को अमीना सहेजकर रखे हुई थी, अब ग्वालिन को पैसे देने के बाद उसके पास केवल दो आने ही शेष बचे थे, जिसमें से उसने तीन पैसे हामिद को ईद के मेले के लिए दे दिए थे और शेष बचे पाँच पैसों से वह सेवइयों की जुगाड़ कर रही थी। अपनी कोठरी में वह अल्लाह से दुआ कर रही थी कि वह ही उसका बेड़ा पार लगाए। त्योहार पर सभी कामवालियों को सेवइयाँ देनी पड़ेंगी। फिर चाहे वह धोबिन हो या नाइन, जमादारिन हो या चूड़ीवाली। जरा-सी सेवइयों से इनका काम नहीं चलेगा, सब मुँह फुला लेंगी और फिर त्योहार रोज-रोज थोड़े ही आते हैं। ये बेचारी भी तो त्योहार पर आस लगाए रहती हैं। इनकी तकदीर भी तो इन त्योहारों के साथ बँधी रहती है। बस मेरा पोता खैरियत से रहे, अल्लाह उसे सही-सलामत रखे, गरीबी के ये दिन भी कट ही जाएँगे। विशेष :
6. मोहसिन ने प्रतिवाद किया-यह कानिसटिबिल पहरा देते हैं! तभी तुम बहुत जानते हो। अजी हज़रत, यह चोरी कराते हैं। शहर के जितने चोर-डाकूहैं,सब इनसे मिलें रहते हैं। रात को येलोगचोरों सेतो कहते हैं, चोरी करो और आप दूसरे मुहल्ले में जाकर 'जागते रहो! जागते रहो!'पुकारते हैं। जभी इन लोगों के पास इतने रुपये आते हैं। मेरे मा एक' थाने में कानिसटिबिल हैं। बीस रुपया महीना पाते हैं, लेकिन पचास रुपये घर भेजते हैं। अल्ला कसम! मैंने एक बार पूछा था कि मा,, आप इतने रुपये कहाँ से पाते हैं? हँसकर कहने लगे-बेटा,अल्लाहदेता है। फिर-आप ही बोले-हम लोग चाहें तो एक दिन में लाखों मारलाएँ। हम तो इतना ही लेते हैं, जिसमें अपनी बदनामी न हो और नौकरी न चली जाए। सन्दर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित 'ईदगाह' नामक कहानी से लिया गया है। इसके लेखक मुंशी प्रेमचन्द हैं। प्रस्तुत गद्यांश के अन्तर्गत ईदगाह के मार्ग में पुलिस लाइन की इमारत देखकर बच्चे आपस में बातचीत करते हैं। कोई उनकी दैनिक क्रिया बताता है तो कोई रात में पहरा देने वाली बात। एक उन्हें चोरों के साथ मिलकर चोरी करने वाला कहता है। व्याख्या - एक लड़के के यह कहने पर कि पुलिस चोरी न हो इसलिए रात-भर गश्त लगाती रहती है। मोहसिन, इसका विरोध करता है। वह हामिद सहित अन्य बच्चों को मूर्ख साबित करते हुए कहता है कि यही लोग (पुलिस) चोरों के साथ मिलकर चोरियाँ करवाते हैं और खुद दूसरे मोहल्लों में जागते रहो-जागते रहो' की आवाजें लगाकर पहरा देते हैं। इन चोरियों में मिले माल में इनका भी हिस्सा होता है। मोहिसन उन बच्चों को अपने एक मामा के विषय में बताता है जो कि पुलिस में है। वह कहता है कि उसके मामू की तनख्वाह तो केवल बीस रुपये मासिक है लेकिन वह हर महीने अपने घर पचास रुपये भेजते हैं। अपनी इस बात को सिद्ध करने के लिए मोहसिन अल्लाह की कसम खाकर कहता है कि उसने जब अपने मामू से यह पूछा कि उनको इतने रुपये कहाँ से मिलते हैं। तब पहले तो उन्होंने हँसकर कहा कि अल्लाह देता है। फिर खुद ही बताया कि यदि वह चाहें तो एक दिन में लाखों रुपया कमा सकते हैं। लेकिन वह रिश्वत में बस उतना ही रुपया लेते हैं, जिससे उनकी बदनामी न हो और न ह संकट आए। विशेष :
7. कई बार यही क्रिया होती है, जैसे बिजली की लाखों बत्तियों एक साथ प्रदीप्त हों और एक साथ बुझ जाएँ और यही क्रम चलता रहे। कितना अपूर्व दृश्य था, जिसकी सामूहिक क्रियाएँ, विस्तार और अनंतता हृदय को श्रद्धा, गर्व और आत्मानंद से भर देती थीं, मानो भ्रातृत्व का एक सूत्र समस्त आत्माओं को एक लड़ी में पिरोए हुए है। संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश उपन्यास सम्राट, प्रेमचंद की सुप्रसिद्ध कहानी 'ईदगाह' से लिया गया है। प्रस्तुत अवतरण में कहानीकार ने ईद की नमाज अदा करने का यथार्थ वर्णन किया है। रोजेदार सामूहिक रूप में एक साथ सिज़दे में सिर झुकाते हैं, उठते हैं और घुटनों के बल बैठते हैं। व्याख्या - कहानीकार प्रेमचंद ने ईदगाह के दृश्य का सजीव एवं चित्रोपम वर्णन किया है। रोजेदार पंक्तिबद्ध खड़े होकर नमाज अदा करते हैं। नमाज अदा करते समय लाखों सिर एक साथ सिजदे में झुक जाते हैं। सामूहिक रूप में एक साथ खड़े होते हैं, एक साथ झुकते और घुटनों के बल बैठते हैं। नमाज अदा करने की यह क्रिया बार-बार होती है। उनकी सामूहिक रूप में एक साथ की हुई क्रिया ऐसी प्रतीत होती है, मानो बटन दबाने पर बिजली की लाखों बत्तियाँ एक साथ प्रकाश बिखेर रही हैं और एक साथ बुझ जाती हैं। यह दृश्य बड़ा अद्भुत था। दूर तक लम्बी कतार में खड़े इन रोजेदारों की क्रियाएँ उनके हृदय में श्रद्धा, गर्व और आत्मिक प्रसन्नता भर रही थीं। दर्शकों का हृदय भी श्रद्धा और आनन्द से भर जाता था। उनमें भाईचारे भाव भरा था, लगता था जैसे माला में एक धागा सारे मोतियों को बांधे रखता है उसी प्रकार भ्रातृत्व के सूत्र ने उनकी आत्मा को बाँध रखा हो। सभी में एकता की भावना विद्यमान थी। विशेष :
8. कितने सुंदर खिलौने हैं। अब बोलना ही चाहते हैं। महमूद सिपाही लेता है, खाकी वर्दी और लाला पगड़ीवाला, कंधे पर बंदूक रखे हुए; मालूम होता है अभी कवायद किए चला आ रहा है। मोहसिन को भिश्ती पसंद आया। कमर झुकी हुई है, ऊपर मशक रखे हुए है। मशक का मुँह एक हाथ से पकड़े हुए है। कितना प्रसन्न है। शायद कोई गीत गा रहा है। बस, मशक से पानी उड़ेलना ही चाहता है। नूरे को वकील से प्रेम है। कैसी विद्वत्ता है उसके मुख पर! काला चोगा, नीचे सफेद अचकन, अचकन के सामने की जेब में घड़ी, सुनहरी जंजीर, एक हाथ में कानून का पोथा लिए हुए। मालूम होता है, अभी किसी अदालत से जिरह या बहस किए चले आ रहे हैं। सन्दर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित 'ईदगाह' नामक कहानी से लिया गया है। इसके लेखक प्रसिद्ध कथा-सम्राट 'मुंशी प्रेमचन्द' हैं। सामूहिक नमाज के बाद बच्चे मेले का आनन्द लेने पहुँच जाते हैं और खिलौने की दुकान से तरह-तरह के खिलौने खरीदते हैं। व्याख्या - लेखक कहता है कि मेले में दुकानों पर रखे हुए खिलौने बहुत सुन्दर थे। वे सभी जीवित लग रहे थे। जैसे अभी बोल पड़ेंगे। महमूद ने खाकी रंग की वर्दी पहने और सिर पर लाल पगड़ी पहने हुए वाला सिपाही खरीदा। ऐसा लग रहा था कि जैसे वह अभी-अभी ड्रिल या परेड करके आया हो। मोहसिन को भिश्ती अच्छा लगा। उसकी झुकी कमर पर मशक लदी हुई है, जिसका मुँह उसने अपने हाथ से पकड़ रखा है। ऐसा लग रहा है कि वह प्रसन्न होकर कोई गीत गा रहा हो और अपनी मशक से जमीन पर पानी गिराना चाह रहा हो। नूरे को वकील से प्यार था अतः ल खरीदा। उसने काले चोले के नीचे सफेद कमीज पहन रखी थी, जिसकी जेब में सुनहरी जंजीर से बंधी घड़ी रखी हुई थी। उसके हाथ में कानून की मोटी किताब थी। वह खिलौना जीता-जागता वकील ही लग रहा था। उसे देखकर लगता था जैसे कोई वकील न्यायालय से किसी मुकदम की बहस करके आ रहा हो। विशेष :
9. हामिद खिलौनों की निंदा करता है-मिट्टी ही के तो हैं, गिरे तो चकनाचूर हो जाएँ; लेकिन ललचाई हुई आँखों से खिलौनों को देख रहा है। और चाहता है कि ज़रा देर के लिए उन्हें हाथ में ले सकता। उसके हाथ अनायास ही लपकते हैं। लेकिन लड़के इतने त्यागी नहीं होते हैं, विशेषकर जब अभी नया शौक है। हामिद ललचाता रह जाता है। सन्दर्भ एवं प्रसंग - उपर्युक्त गद्यांश पाठ्य-पुस्तक में संकलित मुंशी प्रेमचन्द द्वारा लिखित प्रसिद्ध कहानी 'ईदगाह' से लिया गया है। जब सभी बच्चे खिलौने खरीदकर उनकी प्रशंसा करने लगते हैं तब हामिद खिलौनों की निंदा करता है, किन्तु मन ही मन उन्हें हाथ में लेने के लिए ललचाता भी है, किन्तु पैसे न होने के कारण वह उन्हें खरीद भी नहीं पाता है। व्याख्या - हामिद के दोस्तों ने खिलौनों की दुकान से मिट्टी के बने सुन्दर-सुन्दर खिलौने खरीदे किन्तु हामिद उन खिलौनों को कैसे खरीद सकता था। उसके पास कुल तीन ही पैसे तो थे। अतः वह उन खिलौनों की बुराई करके अपने मन को समझा रहा था। स्वयं से कहता है कि ये तो बस मिट्टी के बने हैं। यदि हाथ से फिसले तो तुरन्त टूट जाएंगे। लेकिन वह मन ही मन उन खिलौनों के लिए ललचाता है। काश ये खिलौने कुछ देर के लिए उसके हाथ में आ जाते। इसी सोच के साथ उसके हाथ अपने ही आप अपने दोस्तों के खिलौनों की ओर बढ़ जाते हैं। किन्तु बच्चों में त्याग की इतनी भावना नहीं होती कि वे किसी और को अपना नया खिलौना छूने दें। अभी तो उनका खुद का ही शौक पूरा नहीं हुआ, क्योंकि उन्होंने खिलौना अभी तो खरीदा था तो अभी कैसे हामिद को दे सकते है बस ललचाई नजरों से खिलौनों को देखता रहा और उनकी निंदा करता रहा। विशेष :
10. उसे खयाल आया, दादी के पास चिमटा नहीं है। तवे से रोटियाँ उतारती हैं, तो हाथ जल जाता है। अगर वह ' चिमटा ले जाकर दादी को दे-दे, तो वह कितनी प्रसन्न होंगी! फिर उनकी उँगलियाँ कभी न जलेंगी। घर में एक काम की चीज़ हो जाएगी। खिलौने से क्या फायदा। व्यर्थ में पैसे खराब होते हैं। ज़रा देर ही तो खुशी होती है। फिर तो खिलौने को कोई आँख उठाकर नहीं देखता। या तो घर पहुँचते-पहुँचते टूट-फूटकर बराबर हो जाएँगे। चिमटा कितने काम की चीज़ है। रोटियाँ तवे से उतार लो, चूल्हे में सेंक लो। कोई आग माँगने आए तो चटपट चूल्हे से आग निकालकर उसे दे दो। सन्दर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित मुंशी प्रेमचन्द द्वारा लिखित 'ईदगाह' नामक कहानी से ली गई हैं। प्रेमचन्द ने हामिद के अपनी दादी के प्रति प्रेम और चिन्ता की भावना का वर्णन किया व्याख्या - हामिद के साथ के बच्चे खिलौने लेकर आगे बढ़ गए। लेकिन हामिद लोहे के सामान की एक दुकान पर रुक गया। वह दुकान पर रखे लोहे के चिमटे को देखकर सोचने लगता है कि दादी के पास चिमटा नहीं है। जब भी वह चूल्हे पर रोटियाँ सेंकती हैं तो उनका हाथ जल जाता है। यदि वह यह चिमटा खरीद लेता है तो उनकी उँगलियाँ कभी नहीं जलेंगी और वह उसे खुश होकर बहुत सारी दुआएँ देगी। कम से कम घर में एक काम की चीज हो जाएगी। दा ? बस पैसों की बर्बादी है। बस थोडी देर की खशी है, फिर टूट-फट कर बराबर। चिमटा काम की चीज है। चिमटे की सहायता से कई काम हो सकते हैं। तवे से रोटी उतारी जा सकती है। रोटी को चिमटे से पकड़कर चूल्हे की आग में सेंका जा सकता है। यदि कोई व्यक्ति आग माँगने आए तो तुरन्त चिमटे से चूल्हे से आग निकालकर उसे दी जा सकती है। ऐसा सोचकर हामिद चिमटा खरीदने का निश्चय करता है। विशेष :
11. हामिद-खिलौना क्यों नहीं है? अभी कंधे पर रखा, बंदूक हो गई। हाथ में ले लिया, फकीरों का चिमटा हो गया, चाहूँ तो इससे मजीरे का काम ले सकता हूँ। एक चिमटा जमा, तो तुम लोगों के सारे खिलौनों की जान निकल जाए। तुम्हारे खिलौने कितना ही जोर लगाएँ, मेरे चिमटे का बाल भी बांका नहीं कर सकते। मेरा बहादुर शेर है-चिमटा। सन्दर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित प्रसिद्ध कथा सम्राट मुंशी प्रेमचन्द द्वारा लिखित 'ईदगाह' नामक कहानी से लिया गया है। अपनी दादी के लिए चिमटा खरीदकर उसे बंदूक की तरह अपने कंधे पर रखकर अपने दोस्तों के पास आया। तब उसके साथी उसका और उसके चिमटे का मजाक उड़ाते हैं। हामिद अपने तर्क के माध्यम से उनके मजाक का प्रत्युत्तर देता है। व्याख्या - हामिद महमूद के कथन को तर्कपूर्वक काटते हुए कहता है कि चिमटा किसी खिलौने से कम नही है। यदि इसे कंधे पर रख लो तो यह बंदूक बन जाता है। हाथ में लेने पर यह फकीरों का चिमटा बन जाता है। इसे मंजीरे की तरह भी बजाया जा सकता है। अपने चिमटे का प्रभाव जमाने के लिए हामिद अपने साथियों से कहता है कि यदि वह अपना चिमटा उनके खिलौनों में मार दे तो सभी जरा-सी देर में टूट जाएँगे। मेरा चिमटा इतना बहादुर है कि तुम्हारे सारे खिलौने मिलकर चाहे कितनी ताकत लगा लें, लेकिन मेरे चिमटे का कुछ भी बिगाड़ नहीं सकते है। विशेष :
12. 'उसके पास न्याय का बल है नीति की शक्ति। एक ओर मिट्टी है, दूसरी ओर लोहा, जो इस वक्त अपने को फौलाद कह रहा है। वह अजेय है, घातक है।' संदर्भ एवं प्रसंग - प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रेमचंद की बाल स्वभाव पर आधारित कहानी 'ईदगाह' से ली गई हैं। यह हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अंतरा भाग-1' की पहली कहानी है। हामिद के सभी साथी अपने खिलौनों की प्रशंसा कर रहे थे और हामिद का उपहास कर रहे थे। हामिद ने अपने चिमटे की उपयोगिता सिद्ध कर दी। उसके तर्कों को सुनकर सभी बच्चे परास्त हो गए। हामिद के तर्क न्यायसंगत थे। उन्हीं का वर्णन यहाँ किया है। व्याख्या - हामिद ने अपने साथियों की बात सुनकर अपने चिमटे का महत्त्व बताते हुए जो तर्क दिये वे न्याय- संगत और सत्य पर आधारित थे। उसने चिमटे की मिथ्या प्रशंसा नहीं की थी। उसने नैतिक आधार पर ही साथियों को निरुत्तर किया। उसने अपने मित्रों के साथ अनीति नहीं की। साथियों के खिलौने मिट्टी के थे जो नाशवान थे। उसका चिमटा लोहे का जो कठोर और मजबूत था। खिलौने सुन्दर हो सकते हैं किन्नु नाशवान हैं, चिमटा शीघ्र टूटने वाला नहीं है। मिट्टी के खिलौने कमजोर हैं। वे फौलाद के समान कठोर नहीं हैं। उसका चिमटा रुस्तमे हिन्द है। शेर के सामने भिश्ती के छक्के छूट जाएंगे, सिपाही मिट्टी की बन्दूक छोड़कर भाग जाएगा, वकील साहब की तो नानी ही मर जाएगी। तुम्हारे खिलौने कायर हैं, मेरा चिमटा अजेय है। शेर की गर्दन पर चढ़कर उसकी आँख निकाल लेगा। मेरा चिमटा तुम्हारे खिलौनों पर वार कर दें तो उनकी पसलियाँ टूट जायें। वह घातक है। हामिद के तर्क न्यायसंगत थे। विशेष :
13. बुढ़िया का क्रोध तुरंत स्नेह में बदल गया और स्नेह भी वह नहीं, जो प्रगल्भ होता है और अपनी सारी कसक शब्दों में बिखेर देता है। यह मूक स्नेह था, खूब ठोस, रस और स्वाद से भरा हुआ। बच्चे में कितना त्याग, कितना सद्भाव और कितना विवेक है! दूसरों को खिलौने लेते और मिठाई खाते देखकर इसका मन कितना ललचाया होगा? इतना जब्त इससे हुआ कैसे ? वहाँ भी इसे अपनी बुढ़िया दादी की याद बनी रही। अमीना का मन गद्गद हो गया। संदर्भ-प्रस्तुत गद्यावतरण प्रेमचंद की बाल मनोविज्ञान पर आधारित कहानी 'ईदगाह' से उद्धृत है। प्रसंग मेले में हामिद ने कुछ नहीं खाया और तीन पैसे में अपनी दादी के लिए चिमटा खरीद लिया। चिमटे को देखकर अमीना को क्रोध आया किन्तु हामिद का कथन सुनकर उसका क्रोध शान्त हो गया और हामिद के प्रति स्नेह उत्पन्न हो गया, जिसे वह शब्दों में अभिव्यक्त नहीं कर सकी। व्याख्या - हामिद के हाथ में चिमटा देखकर बुढ़िया अमीना को क्रोध आ गया। दिनभर इसने कुछ नहीं खाया और तीन पैसे खर्च करके केवल चिमटा खरीद लिया। उसकी बेसमझी पर अमीना को क्रोध आया। किन्तु हामिद का सरल उत्तर सुनकर अमीना का क्रोध शान्त हो गया और तुरन्त ही स्नेह का भाव जाग्रत हो गया। वह स्नेह ऐसा नहीं था जिसे वह बोलकर व्यक्त करती। अन्दर ही अन्दर उसका हृदय स्नेह से अभिभूत हो गया। यदि वह उस स्नेह को बोलकर व्यक्त करती तो उसमें कुछ क्रोध का पुट हो सकता था जो अमीना को कष्ट देता। उसका वह स्नेह अव्यक्त था जिसे वह मौन रूप में व्यक्त कर रही थी। उसका स्नेह हृदय के अन्तरतम में व्याप्त था, वह वास्तविक था, उसमें गहराई थी। अमीना के स्नेह में वात्सल्य का रस भरा था और हामिद के भोलेपन तथा अपने प्रति स्नेह का स्वाद भरा था, आनन्द का स्वाद भरा था। अमीना सोचने लगी हामिद ने अपनी इच्छाओं का दमन करके कितना बड़ा त्याग किया है। उसके हृदय में मेरे प्रति कितना सद्भाव है। वह कितना विवेकी है जो उपयोगी वस्तु को खरीदकर लाया है। जब अन्य सभी खिलौने खरीद रहे होंगे और मिठाई खा रहे होंगे तब उसका मन भी ललचाया होगा तब इस संयमी बच्चे ने मन पर नियंत्रण कर मेरी चिन्ता करके चिमटा खरीदा, यह उसके त्याग और सद्भाव का प्रमाण है। उस मेले में भी वह अपनी बुढ़िया दादी को नहीं भूला। यह सोचकर अमीना का मन गद्गद हो गया। विशेष :
गुड़िया के पैसे मांगने पर लेखक ने क्या समझा?लेखक ने समझा की बुढ़िया भीक मांग रही है और उसके बेटे के इलाज के लिए पैसे मांगना तो एक बहाना है । 2. रात में लेखक इसलिए डरने लग गया क्युकी उसकी मोटरसाइकिल खराब हो गई और वह एक घने जंगल के बीच फस गया ।
लेखक ने बुढ़िया को क्या समझा?जैसे वायु की लहरें कटी हुई पतंग को सहसा भूमि पर नहीं गिर जाने देतीं उसी तरह खास परिस्थितियों में हमारी पोशाक हमें झुक सकने से रोके रहती है। 2. इनके लिए बेटा-बेटी, खसम-लुगाई, धर्म-ईमान सब रोटी का टुकड़ा है। 3.
बेटी द्वारा पैसे दिए जाने पर बुढ़िया ने क्या कहा?1. बेटी द्वारा पैसे दिए जाने पर बुढ़िया ने क्या कहा? उत्तर: बेटी द्वारा पैसे दिए जाने पर बुढ़िया ने पैसे लेने से इंकार करते हुए कहा कि मेरे पास इतना समय नहीं है कि मैं घर-घर जाकर पैसे माँगू।
लेखक ने बुढ़िया के दुख का अंदाजा कैसे लगाया?लेखक ने बुढ़िया के दु:ख का अंदाजा लगाने के लिए अपने पड़ोस में रहने वाली एक संभ्रांत महिला को याद किया। उस महिला का पुत्र पिछले वर्ष चल बसा था। तब वह महिला ढाई मास तक पलंग पर पड़ी रही थी। उसे अपने पुत्र की याद में मूर्छा आ जाती थी।
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