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आने वाले समय में क्या ये ख़त्म हो जाएगा? अगर ऐसा हुआ तो क्या ये बातचीत के जरिए संभव होगा या फिर मैदान-ए-जंग में? या फिर ये युद्ध 2024 तक भी खिंच सकता है? सर्दियों के बाद रूस का आक्रमण होगा निर्णायकमाइकल क्लार्क, एसोसिएट डायरेक्टर, स्ट्रेटेजिक स्टडीज़, एक्सेटर, ब्रिटेनइतिहास गवाह है. सर्दियों का मौसम उन सभी के लिए अभिशाप साबित हुआ, जिन्होंने यूरेशियाई घास के मैदानों- द ग्रेट स्टेपीज के पार जाकर किसी भी दूसरे देश पर हमले की कोशिश की. नेपोलियन से लेकर हिटलर और स्टालिन तक, सबको स्टेपी के मैदानों की सर्दियों का सामना करते हुए अपनी सेना को आगे बढ़ाते रहना पड़ा और अब व्लादिमीर पुतिन, जो मैदान-ए-जंग में आक्रमण से अपने सैनिकों को पीछे हटा रहे हैं, उसकी वजह भी ये सर्दियां ही हैं. पुतिन की योजना है, सर्दियां खत्म होने का इंतजार करने और वसंत शुरू होते ही सेना को नए सिरे से आक्रमण के लिए तैयार करने की. सर्दियों में इस तरह के युद्धविराम की जरूरत दोनों पक्षों को है, लेकिन यूक्रेन की सेना इस मौसम में भी आगे बढ़ने के मामले में रूस की सेना से बेहतर साबित हो रही है और हम उम्मीद करते हैं वो कम से कम डोनबास इलाके में रूस पर दबाव बनाए रखने में कामयाब होगी. कड़ाके की ठंड के बावजूद अगर यूक्रेन को रूस पर इस तरह की बढ़त हासिल हो रही है, तो वो शायद ही रुकना या पीछे हटना चाहेगा. हालांकि दक्षिणी पश्चिमी इलाके में, खासतौर पर खेरसॉन पर दोबारा कब्जे के बाद, यूक्रेन के आक्रमण में ठहराव आ सकता है. ऐसी हालत में नीप्रो नदी के पूर्वी हिस्से के पार जाकर रूस को क्रीमिया से जोड़ने वाले अहम रोड और रेल लिंक्स पर दबाव बनाने का अनुमान थोड़ा ज्यादा हो जाएगा, लेकिन यूक्रेन की तरफ से इसके लिए अचानक बड़े हमले की संभावना से इंकार भी नहीं किया जा सकता. जहां तक 2023 का सवाल है, तो युद्ध की पूरी दशा और दिशा सर्दियों के बाद रूस की तरफ से होने वाले आक्रमणों पर निर्भर करती है. कुछ दिन पहले ही राष्ट्रपति पुतिन ये कह चुके हैं कि उनके 50 हजार से ज्यादा सैनिक वॉर फ्रंट पर तैनात हैं, जबकि ढाई लाख सैनिकों को अगले साल आक्रमण के लिए तैयार किया जा रहा है. इसलिए जब तक रूस के इन नए सैनिकों की तैनाती को लेकर स्थिति साफ नहीं हो जाती, तब तक जंग के सिवा किसी और स्थिति की गुंजाइश बनती नहीं दिख रही. इसलिए ये जो थोड़ी देर के लिए युद्ध विराम की स्थिति बनी है, वो लंबे समय तक नहीं बनी रहने वाली. पुतिन ये साफ कर चुके हैं कि जीत से कम पर वो मानने वाले नहीं और यूक्रेन इस बात का एलान कर चुका है कि उसके सैनिक आख़िरी दम तक पीछे हटने वाले नहीं. इमेज कैप्शन, 26 दिसंबर को बाखमुट में यूक्रेनी सेना की एक कार्रवाई यूक्रेन अपनी पूरी ज़मीन वापस हासिल करेगाएंड्रेई पियन्टकोवस्की, साइंटिस्ट और वॉर एनालिस्ट, वॉशिंग्टन डीसीमेरी नज़र में यूक्रेन 2023 के वसंत आने तक रूस के कब्ज़े में गए अपने सभी इलाके दोबारा वापस हासिल कर लेगा. इस नतीजे पर पहुंचने के पीछे दो वजहें बेहद साफ हैं. इसमें सबसे पहली और अहम वजह है यूक्रेनी सेना का मनोबल और दृढ़ निश्चय और एक देश के रूप में पूरे यूक्रेन का एकजुट होकर युद्ध में डटे रहने का साहस. ऐसी मिसाल युद्ध के पूरे आधुनिक इतिहास में पहले कभी नहीं देखी गई. और जो दूसरी वजह है वो है पश्चिमी देशों को हुआ एक जबरदस्त एहसास. बरसों तक रूसी तानाशाह के मान-मनुहार के बाद पश्चिमी देशों ने जिन ऐतिहासिक चुनौतियों को महसूस किया है, वो नाटो के महासचिव जेन्स स्टोलटेनबर्ग के हालिया बयान में साफ झलकता है. स्टोलटेनबर्ग ने कहा था- "हम लोग (पश्चिमी देश) अभी जो कीमत पैसे से चुका रहे हैं, यूक्रेन के लोग अपने खून से चुका रहे हैं. तानाशाह सत्ता जब अपनी सेना का सम्मान करेगी, तब हम लोगों को और भी बड़ी कीमत चुकानी होगी. तब हम सभी के लिए ये दुनिया पहले से कहीं ज़्यादा ख़तरनाक हो चुकी होगी." जहां तक मौज़ूदा जंग में यूक्रेन की जीत का सवाल है, तो ये इस बात से तय होगी कि नाटो युद्ध का पासा पलटने वाले सैनिक साज़-ओ-सामान (टैंक, लड़ाकू जहाज और लंबी दूरी की मिसाइलें) यूक्रेन को कितनी तेज़ गति से मुहैया कराता है. मैं उम्मीद करता हूं कि मेलिटोपोल आने वाले महीनों में (हो सकता है कुछ हफ्तों में) जंग का निर्णायक मैदान बनेगा. मेलिटोपोल पर कब्जे के बाद यूक्रेनी सेना की पहुंच ओजोवा समुद्र तक आसान हो जाएगी. इसके बाद ये लोग क्रीमिया के सभी सप्लाई और संचार लाइन्स को ठप कर सकते हैं युद्ध के इस मोर्चे पर यूक्रेन की इस आक्रामक बढ़त के बाद तकनीकी बातचीत में रूस के आत्मसमर्पण पर औपचारिक सहमति बनेगी. इसमें विजेता होंगे यूक्रेन के साथ अमेरिका और ब्रिटेन, जो सुरक्षा की नई अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को आकार देंगे. मेरी नज़र में इस जंग का कोई अंत नहींबारबरा जैंचेटा, डिपार्टमेंट ऑफ वॉर स्टडीज़, किंग्स कॉलेज, लंदनजंग की शुरुआत से पहले व्लादिमीर पुतिन को ये लगा था कि यूक्रेन उनकी मजबूत सेना के आगे हथियार डाल देगा. उन्हें ये भी लगा था कि उनके इस आक्रमण में कोई और देश यूक्रेन के साथ नहीं खड़ा होगा." "पुतिन के ये सारे आकलन गलत साबित हुए और इसकी वजह से आज ये पूरा संघर्ष एक ऐसे युद्ध में तब्दील हो चुका है, जिसका अंत फ़िलहाल नजर नहीं आ रहा. ये सर्दियां बेहद कठिन होंगी, क्योंकि यूक्रेन की सेना और आम लोगों का हौसला तोड़ने के लिए रूस बुनियादी ढांचों पर हमले तेज करेगा, लेकिन बर्बादी और तबाही के बीच यूक्रेन ने गजब की प्रतिरोध क्षमता का परिचय दिया है. ये लोग डटे रहेंगे और ये युद्ध लंबा खिंचता चला जाएगा. ऐसे माहौल में बातचीत की संभावना बेहद कमजोर दिखती है, क्योंकि स्थाई शांति के लिए कम से कम एक पक्ष को अपनी मुख्य मांगों में बदलाव करना होगा, लेकिन इस बात के कोई संकेत नहीं है, कि ऐसा किसी भी पक्ष ने किया या आने वाले दिनों में जल्दी करने वाला है. युद्ध आख़िर ख़त्म कैसे होगा?इसका एक ही रास्ता दिखता है. युद्ध में होने वाले जान और माल का नुकसान. यही वो पहलू है जो जंग को लेकर रूस के राजनीतिक नेतृत्व का उन्माद खत्म करेगा. रूस के अंदर ये कभी भी हो सकता है. अगर अतीत में देखें, तो जिस भी युद्ध में गलत आकलन का ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ा, जैसे वियतनाम में अमेरिका को, अफगानिस्तान में सोवियत रूस को, ऐसे सभी युद्धों का खात्मा ऐसे ही हुआ. इन सभी देशों में राजनीतिक हालात बदलते ही सरकारों को युद्ध से हाथ खींचना ही पड़ा. चाहे ये सम्मानजनक थे या नहीं, इसके अलावा कोई विकल्प भी नहीं था. यूक्रेन के मामले में भी ऐसा मुमकिन हो सकता है, बशर्ते युद्ध में जान-माल के नुकसान को लेकर रूस पर बढ़ते घरेलू दबाव के साथ पश्चिमी देश यूक्रेन के समर्थन में डटकर खड़े रहें. लेकिन अफ़सोस, कि ये सेना के साथ आर्थिक मोर्चे पर भी ये लड़ाई अभी जारी रहेगी. सभवतः 2023 के आख़िर तक भी ये ख़त्म होती नहीं दिखती. इमेज कैप्शन, यूक्रेनी सैनिक बेन होज़ेज, यूरोप में अमेरिकी सेना के पूर्व कमांडिंग जनरलहालांकि अभी राजधानी कीएव में यूक्रेनी सेना की जीत के जश्न की योजना बनाना थोड़ी जल्दबाजी होगी, लेकिन सारे हालात अभी यूक्रेन के पक्ष में हैं. यूक्रेन इस जंग को इसी साल जीत लेगा, इसे लेकर मेरे मन में कोई संदेह नहीं. हालांकि सर्दियों की वजह से चीजें थोड़ी धीमी रफ्तार से बदलेंगी, लेकिन यूक्रेन की सेना रूस से हर मोर्चे पर बेहतर करेगी, क्योंकि उसके पास ब्रिटेन कनाडा और जर्मनी की तरफ से ठंड में इस्तेमाल होने वाले बेहतर साज़ो- सामान हैं. जनवरी आते आते यूक्रेन अपनी तरफ से युद्ध का अंतिम अभियान शुरू कर देगा और वो अभियान होगा क्रीमिया को रूस के कब्जे से आज़ाद करने का. हम ये जानते हैं कि दुनिया का हर युद्ध आपके सैन्य तंत्र के साथ आपकी इच्छा शक्ति का कड़ा इम्तिहान लेता है. इस लिहाज से जब मैं यूक्रेन के लोगों और सेना का संकल्प देखता हूं. जिस तरह से ये मुश्किल हालातों में भी ये सैन्य तंत्र बेहतर रखने की कोशिश कर रहे हैं, इसके आगे मुझे रूस की हार के सिवा कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा. इस नतीजे पर मैं तब पहुंचा जब रूसी सेना खेरसॉन से पीछे हटी. इसकी वजह से एक तो यूक्रेनी सेना और लोगों का मनोबल बढ़ा, दूसरी तरफ इसकी वजह से क्रेमलिन की किरकिरी हुई. तीसरी सबसे अहम बात, इसकी वजह से रूस के कब्जे वाला पूरा क्रीमिया अब यूक्रेनी सेना और हथियारों की पहुंच में आ चुका है. मेरा यक़ीन है कि 2023 के आख़िर तक क्रीमिया पर यूक्रेन का कब्ज़ा पूरी तरह बहाल हो जाएगा. हालांकि इसे लेकर कुछ समझौते भी हो सकते हैं ताकि रूस सेवास्तोपोल में तैनात अपनी नौसेना बेस को धीरे धीरे हटा सके. इसके साथ संभवतः उस संधि का भी अंत (2025 तक) हो जाएगा जो क्रीमिया पर रूस के कब्ज़े से पहले की गई थी. इसके अलावा अजोव समुद्री तट पर यूक्रेन के बुनियादी ढांचों को बहाल करने की कोशिशें तेज हो जाएगीं. इसमें मारियुपोल और बर्देयान्स्क जैसे बंदरगाह और उत्तर क्रीमिन नहर भी शामिल हैं. जो हो रहा है, वही आगे भी होगाडेविड गेंडलमैन, सैन्य विशेषज्ञ, इसरायल ये सोचने की बजाय की ये युद्ध कैसे ख़त्म होगा, यहां देखना ये दिलचस्प होगा कि अगले चरण में किस पक्ष को क्या हासिल होता है. अभी जो यूक्रेन के साथ जंग चल रही है, उसके मोर्चे पर रूस के सिर्फ आधे सैनिक, जिनकी तादाद करीब तीन लाख है, वो तैनात हैं. इसके अलावा, खासतौर पर खेरसॉन से पीछे हटने के बाद, जो बाकी सैनिक हैं वो रूस को अगले हमले के लिए ताक़तवर बनाने के लिए काफी हैं. लुहांस्क औऱ दोनेत्स्क जैसे क्षेत्रों पर रूस का कब्ज़ा भले ही बरकरार रहे, लेकिन दक्षिणी यूक्रेन के डोनबास में यूक्रेनी सेना को घेरने के लिए पावलोग्रैड पर कब्जे जैसी बात असंभव लगती है. ज्यादा संभावना रूस की तरफ से मौजूदा रणनीति के जारी रहने की ही दिखती है, जिसके तहत वो यूक्रेन की सेना को बाखमुत और अवादिविका जैसे संकरे क्षेत्रों में निशाना बना कर उन्हें आगे बढ़ने से रोक रही है. रूस यही रणनीति स्वाटोव-क्रिमिना इलाके में भी अपना रहा है. इमेज कैप्शन, रूस यूक्रेन के बुनियादी ढांचे पर हमले करता रहा है. इसके अलावा यूक्रेन के बिजली संयंत्रों को निशाना बनाने के साथ दूसरे बुनियादी ढांचे को तबाह कर रूस अपनी बढ़त बनाए रखने की रणनीति जारी रख सकता है. खेरसॉन से रूस को पीछे धकेलने के बाद बड़ी संख्या में यूक्रेनी सैनिक अब स्वतंत्र हैं. इनके लिए सबसे रणनीतिक महत्व वाला इलाका है दक्षिणी हिस्सा. मेलिटोपोल या बर्डेयांस्क, जिस पर कब्ज़े का मतलब है रूस की मुख्य भूमि को क्रीमिया से अलग कर देना. ये यूक्रेन की एक बड़ी जीत साबित हो सकती है, इसलिए रूस की मेलिटोपोल की किलेबंदी जबरदस्त तरीके से की जा रही है. यूक्रेन के पास दूसरा बड़ा विकल्प है- स्वाटोव. इस पर कब्जे में कामयाबी का मतलब है रूसी सेना के पूरी उत्तरी मोर्चाबंदी पर सीधा ख़तरा. अब यहां सवाल ये उठता है कि इस मोर्चे पर आक्रमण के लिए यूक्रेन के पास कितने सैनिक बाकी बचे हैं? और ये भी कि अगले एक से तीन महीने के बीच यूक्रेनी जनरल ज़ालुज़नी कितने नियमित और रिजर्व सैनिकों की टुकड़ी हमले के लिए तैयार करते हैं. इसमें सैनिकों के साथ सैन्य वाहन और भारी भरकम हथियारों का इंतज़ाम भी निर्णायक होगा. इन सवालों का जवाब बर्फबारी के बाद मिलेगा. इस जवाब के आधार पर ही हम अंदाजा लगा सकेंगे, कि रूस और यूक्रेन के बीच जो चल रहा है वो किस तरह से ख़त्म होगा. |