शूद्र कितने प्रकार के होते हैं? - shoodr kitane prakaar ke hote hain?

इसे सुनेंरोकेंअपेक्षाकृत रूप से अंत: शूद्र जातियों के शिखर पर आसीन संपन्न जमींदार समूहों जैसे कम्मा, रेड्डी, कापू, गौड़ा, नायर, जाट, पटेल, मराठा, गुज्जर, यादव, इत्यादि जातियां दशकों से खुद ब्राह्मण-बनिया जातियों की आदतों और पूर्वाग्रहों को अपनाने में लगीं थीं.

शूद्र का देवता कौन है?

इसे सुनेंरोकेंऋग्वैदिक काल में शूद्रों के देवता कौन थे? Notes: ऋग्वैदिक काल में देवताओं के भी वर्ण होती थीं जैसे कि अग्नि ब्राह्मण थे। इंद्र और वरुण क्षत्रिय, मारुत और रुद्र वैश्य तथा पूषन शूद्र थे।

हिंदुओं में शूद्र कौन है?

इसे सुनेंरोकें’शूद्र’ शब्द का असली अर्थ – ‘सेवा कर्म करने वाला, उपनयन संस्कार हीन, तपस्या से हीन और मनोविकारों (काम, क्रोध, लोभ, ईर्ष्या, आलस्य, अहंकार आदि) को वश में न रख सकने वाला’ होता है।

पढ़ना:   दलिया कैसे तैयार करते हैं?

शूद्र वर्ण क्या है?

इसे सुनेंरोकेंशूद्र भारतीय समाज व्यवस्था में चतुर्थ वर्ण या जाति है। शूद्र शब्द मूलत: विदेशी है और संभवत: एक पराजित अनार्य जाति का मूल नाम था। वायु पुराण का कथन है कि शोक करके द्रवित होने वाले परिचर्यारत व्यक्ति शूद्र हैं। भविष्यपुराण में श्रुति की द्रुति (अवशिष्टांश) प्राप्त करने वाले शूद्र कहलाए।

शूद्र कितने प्रकार के होते हैं?

इसे सुनेंरोकेंशूद्रों को भी दो श्रेणियों में बांटा गया है अर्थात दो प्रकार के शूद्र होते हैं, एक अबहिष्कृत और दूसरा बहिष्कृत।

शूद्र जाति का गोत्र क्या है?

इसे सुनेंरोकेंचूंकि शूद्र वर्ण व्यवस्था के प्रमुख अंग है अतः इनमे भी गोत्र है और वह है काश्यप गोत्र।

शूद्र वर्ण के लोग कैसे होते हैं?

इसे सुनेंरोकेंवे मूढ़ किस्म के लोग होते हैं। ऐसे लोग पढ़े लिखे भी हो सकते हैं और अनपढ़ भी। शूद्रत्व से अर्थ है ब्रह्म को छोड़कर अन्य में मन रमाने वाला निकृष्ट चिंतन व निकृष्ट कर्म करने वाला। तथाकथित ब्राह्मण समाज में भी शूद्र होते हैं।

पढ़ना:   रनिंग के लिए सबसे अच्छा शूज कौन सा होता है?

शूद्र पहले कौन थे?

इसे सुनेंरोकेंशूद्र भारत में हिन्दू वर्ण व्यवस्था के चार वर्णों में से एक है। जो कि जन्म के आधार पर थी। भारतीय समाज सुधारक और पॉलिमेथ बी आर अम्बेडकर द्वारा लिखित पुस्तक हु वज़ द शूद्रस? में ऋग्वेद, महाभारत और अन्य प्राचीन वैदिक धर्मग्रंथों का हवाला देते हुए वे कहते हैं कि शूद्र मूल रूप से आर्य थे और वे क्षत्रिय थे।

गीता में शूद्रों के बारे में क्या लिखा है?

इसे सुनेंरोकेंश्लोक ४:१३ में भगवद गीता से पता चलता है कि मानव जाति चार वर्गों (वर्णों) में स्थापित है। इसका मतलब यह है कि जो जातियों बनाई गई हैं, वे परिवर्तनशील नहीं हैं क्योंकि वे तब बनाई जाती हैं जब लोग बनाए जाते हैं। आप एक जाति के साथ पैदा हुए हैं और उसी जाति में मरते हैं।

1990 के दशक की शुरुआत में जब सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू किया तो वह पल शूद्रों के लिए एक ऐतिहासिक क्षण था. इस कदम ने सरकारी नौकरियों और सरकारी उच्च शिक्षा में अन्य पिछड़ी जातियों – एक श्रेणी जिसमे अधिकतर पारंपरिक रूप से मजदूरी और कारीगरी करने वाली शूद्र जातियां सम्मिलित थीं – के लिए आरक्षण लागू कर दिया. आयोग ने भारतीय समाज की वर्ण व्यवस्था में सबसे दयनीय मानी जाने वाली श्रेणी के रूप में इन चौथी और सबसे निचली जातियों की पहचान की थी. श्रेष्ठतर समझी जाने वाली जातियों के बरअक्स वे सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक दृष्टि से बहुत पिछड़े हुए थे फिर भी उन्हें सकारात्मक पक्षपात की नीति, जिसे आजादी के बाद दलितों और आदिवासियों (अनुसूचित जातियां और अनुसूचित जनजातियां) के लिए अपनाया गया था, से बाहर रखा गया था. आयोग ने ऐतिहासिक पिछड़ेपन के आधार पर अन्य पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण की एक अलग श्रेणी तैयार की. ब्राह्मण और वैश्य जातियों, यहां तक कि शूद्रों के एक तबके ने भी, इस कदम का कड़ा विरोध किया. अपेक्षाकृत रूप से अंत: शूद्र जातियों के शिखर पर आसीन संपन्न जमींदार समूहों जैसे कम्मा, रेड्डी, कापू, गौड़ा, नायर, जाट, पटेल, मराठा, गुज्जर, यादव, इत्यादि जातियां दशकों से खुद ब्राह्मण-बनिया जातियों की आदतों और पूर्वाग्रहों को अपनाने में लगीं थीं. 1996 में प्रकाशित अपनी पुस्तक, मैं हिंदू क्यों नहीं हूं, में मैंने इन ‘उच्च’ शूद्र जातियों का वर्णन नव-क्षत्रियों के रूप में किया था. ये समूह इस भरोसे खुद का संस्कृतिकरण कर रहे थे कि वर्ण व्यवस्था में पारंपरिक रूप से दूसरे स्थान पर आसीन और लगातार क्षय होते, क्षत्रियों का स्थान ले पाएंगे.    

मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू हुए ढाई दशक बीत चुके हैं. एक पूरी पीढ़ी बड़ी हो चुकी है. यह वक़्त है पूछने का कि आरक्षण इन शूद्र अन्य पिछड़ी जातियों को कितनी दूर तक लेकर आया है? उच्च शूद्र जातियों, जिन्होंने इस आरक्षण का विरोध किया, का क्या भला हुआ? आज शूद्र भारत में खुद को कहां पाते हैं? भारत की कुल जनसंख्या में शूद्रों की तादाद तकरीबन आधी है – एक ऐसा देश जो जनसंख्या के मामले में दुनिया में दूसरे नंबर पर है. अस्सी के दशक में, मंडल आयोग इस नतीजे पर पहुंचा कि भारत में अन्य पिछड़ी जातियों की तादाद, जिसमे उच्च शूद्र जातियां शामिल नहीं हैं, 52 प्रतिशत है. आज की तारीख में यह संख्या 65 करोड़ से अधिक बैठती है, जो अमरीका की जनसंख्या से दोगुना और पाकिस्तान या ब्राजील से तीन गुना है. जबकि अगड़ी जातियों, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को मिलाकर भी यह कुल जनसंख्या का 20 प्रतिशत से ज्यादा नहीं बैठता.

इतनी बड़ी संख्या होने के बावजूद भी, शूद्रों का प्रतिनिधित्व राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में, चाहे वह सरकार, निजी व्यवसायों, धर्म और शिक्षा में, पर्याप्त नहीं था. राष्ट्रीय स्तर पर तो विशेषतौर पर वे ब्राह्मणों और वैश्यों, खासकर, वैश्यों के अधीन थे. यही बात उच्च शूद्रों के ऊपर भी लागू होती है, जो आज अजीबोगरीब स्थिति में हैं. अन्य पिछड़ी जातियों की सूची में उनका नाम शामिल न किए जाने की वजह रही है उनके द्वारा इस बात पर जोर देना कि उनका अन्य शूद्रों से उच्चतर रूतबा है. इस वक्त लाखों-लाख लोग पूरे देश भर में अवसरों की गतिशीलता में गतिरोध की वजह से गुस्से में हैं और मांग कर रहे हैं कि उन्हें भी अन्य पिछड़ी जातियों की सूची में शामिल किया जाए ताकि वे भी आरक्षण का लाभ उठा सकें.

शूद्र कितने प्रकार के होते हैं? - shoodr kitane prakaar ke hote hain?
शूद्र कितने प्रकार के होते हैं? - shoodr kitane prakaar ke hote hain?

1990 में मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू किए जाने के लिए संघर्ष करते शूद्र ओबीसी. आज “उच्च” शूद्र, जिन्होंने पहले ओबीसी आरक्षण का विरोध किया था, स्वयं को ओबीसी सूची में डाले जाने की मांग कर रहे हैं.

बीसीसीएल

राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में शूद्र कहां हैं? उनमे सबसे अमीर भी कृषि अर्थव्यवस्था पर निर्भर हैं, जो पारंपरिक रूप से उनकी आय का प्रमुख साधन रहा है. उद्योग और वित्त के क्षेत्र में उन्होने कोई खास तरक्की नहीं की है. इस क्षेत्र पर बनियों का दबदबा रहा है. पूंजी के लिए शूद्रों को उन पर ही हमेशा की तरह निर्भर रहना पड़ता है. व्यवसाय के क्षेत्र में एक भी ऐसा शूद्र परिवार नहीं है जो अंबानियों, अडानियों या मित्तल को चुनौती देता हो. गरीब शूद्र आज भी खेतों, निर्माण स्थलों और फैक्ट्रियों में काम करते हैं जहां रोज नए शूद्र कारीगर शामिल हो रहे हैं क्योंकि आधुनिक उद्योग के जमाने में उनके परंपरागत कौशल का लगातार अवमूल्यन हुआ है. राष्ट्रीय चेतना और संस्कृति में शूद्र  कहां बसते हैं? समकालीन भारत में बौद्धिक, दार्शनिक और सामाजिक-राजनीतिक क्षेत्र में उनका कोई खास योगदान नहीं रहा है. औरतों की तो रहने ही दीजिए, किसी भी शूद्र मर्द को हिंदू धर्म में किसी भी प्रभावशाली पद पर नहीं आने दिया गया है, हालांकि हर कहीं शूद्रों पर हिंदू धर्म को आक्रमकता के साथ थोपा गया है. भारत के हिंदुओं में सबसे अधिक शूद्रों की संख्या है, लेकिन धर्म के मामलों में उनके मत को तरजीह नहीं दी जाती. खुद शूद्रों में जाति-आधारित पाबंदी इस कदर घर कर गई है कि कोई भी शूद्र पुरोहित बनने की सोचता भी नहीं है. इसके अलावा विरले ही ऐसा कोई शूद्र बुद्धिजीवी होगा, जो उनसे भूत, वर्तमान और भविष्य के बारे में उनके समूह के सामाजिक और राजनीतिक स्थान पर बात कर सके. हद से हद ऐसी शख्सियतें, प्रादेशिक स्तर पर मौजूद हैं और अपनी-अपनी भाषाओं में उनसे संवाद करती हैं लेकिन राष्ट्रीय बहस में वे कभी शरीक नहीं हो पातीं. अकादमिक दुनिया और मीडिया ने भी शूद्र दिमागों को अपने यहां जगह नहीं दी.

Kancha Ilaiah Shepherd is a social scientist, academic and writer. He is the author of books such as Why I Am Not A Hindu and Post-Hindu India.

हिंदुओं में शूद्र कौन है?

शूद्र आर्यो के सूर्यवंशी समुदाय में से ही थे । 3. शूद्रों का अलग से कोई वर्ण नहीं था। वे भारतीय आर्य समुदाय के क्षत्रिय वर्ण में आते थे।

शूद्र जाति में कौन कौन से लोग आते हैं?

अपेक्षाकृत रूप से अंत: शूद्र जातियों के शिखर पर आसीन संपन्न जमींदार समूहों जैसे कम्मा, रेड्डी, कापू, गौड़ा, नायर, जाट, पटेल, मराठा, गुज्जर, यादव, इत्यादि जातियां दशकों से खुद ब्राह्मण-बनिया जातियों की आदतों और पूर्वाग्रहों को अपनाने में लगीं थीं.

शूद्र का देवता कौन है?

ऋग्वैदिक काल में शूद्रों के देवता कौन थे? Notes: ऋग्वैदिक काल में देवताओं के भी वर्ण होती थीं जैसे कि अग्नि ब्राह्मण थे। इंद्र और वरुण क्षत्रिय, मारुत और रुद्र वैश्य तथा पूषन शूद्र थे।

शूद्र का दूसरा नाम क्या है?

पिछड़ा वर्ग शूद्र वर्ण का ही अंग है। अनुसूचित जातियों को अछूत वर्ग में शामिल किया गया है जिनको छूना मना था, जिनको नीच, कमीन तथा अस्पृश्य आदि के नाम से जाना जाता रहा ।