श्री कृष्ण कथा का रचयिता कौन है? - shree krshn katha ka rachayita kaun hai?

संंक्षिप्त परिचय

ये आरंभ में शिक्षक थे। 1945 में राजस्व निरीक्षक के पद पर आये। इन्होंने हिन्दी एवं छत्तीसगढ़ी दोनों भाषाओं में रचना की। छत्तीसगढ़ी रचनाओं में श्री रामकथा (महाकाव्य), अब तो जागौ रे, डहर के कांटा (कहानी संग्रह), श्री कृष्ण कथा, सीता की अग्निपरीक्षा, डहर के फूल, अंधियारी रात (एकांकी), गजरा (काव्य संग्रह), नवा बिहान (एकांकी) आदि हैं। हिन्दी रचनाओं में वैदेही विछोह, युद्ध आमंत्रण, आह्वान (खण्डकाव्य), न्याय (नाटक), स्वतंत्रता के अमर सेनानी (खण्डकाव्य) इत्यादि हैं। इन्हें श्री राम कथा पर मध्य प्रदेश शासन का ईसुरी पुरस्कार मिला।

विस्तृत परिचय

7 मार्च सन् 1909 को छत्तीसगढ के जांजगीर जिले के अकलतरा रेलवे स्टेशन के पास एक छोटे से गांव पौना में कपिलनाथ कश्यप जी का जन्म हुआ. इनके पिता श्री शोभानाथ कश्यप साधारण किसान थे. माता श्रीमती चंद्रावती बाई भी अपने पति के साथ खेतों में कार्य करती थी. बालक कपिलनाथ के जन्म के तीन वर्ष के अंतराल में ही इनके पिता स्वर्गवासी हो गए एवं पांच साल के होते होते इनकी माता भी स्वर्ग सिधार गई. कपिलनाथ कश्यप जी मेधावी थे. इनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव में और माध्यमिक शिक्षा बिलासपुर में हुई. आगे की पढाई करते हुए किशोर कपिलनाथ को गांधी जी के असहयोग आंदोलन ने प्रभावित किया. और उन्होने अपने साथियों के साथ सरकारी स्कूल का बहिस्कार कर दिया. बाद मे इस स्कूल को अंग्रेजो ने बन्द कर दिया. कपिलनाथ कश्यप जी आगे पढना चाहते थे किन्तु उनकी परिस्थिति ऐसी नहीं थी कि उच्चतर अध्ययन के लिए बाहर जा सकें. सौभाग्यवश उनके गांव के जमीदार का पुत्र कलकत्ता से पढाई बीच में ही छोडकर भाग आया था. उसके जमीदार मां बाप उसे आगे पढाना चाहते थे पर वह अकेले नहीं जाना चाहता था. फलतः कपिलनाथ कश्यप जी को अवसर मिल गया और वे उसके साथ इलाहाबाद चले गए. क्रिश्चन कालेज से सन् 1927 में उन्होंनें इंटरमीडियेट किया और सन् 1931 में प्रयाग विश्वविद्यालय से स्नातक परीक्षा पास की.
विश्वविद्यालय में अध्ययन के समय इन्हें आचार्य रामचंद्र शुक्ल, डॉ.धीरेन्द्र वर्मा, डॉ.रामकुमार वर्मा जैसे प्राध्यापकों का आशिर्वाद सदैव प्राप्त होता रहा. इलाहाबाद में अध्ययन के दौरान उन्हंद महादेवी वर्मा जी से कविता का संस्कार प्राप्त करने का अवसर भी मिला. इलाहाबाद के सृजनशील परिवेश नें उनके जीवन में गहरा प्रभाव डाला और वे कविता लिखने लगे. कश्यप जी जब इलाहाबाद में अध्ययन कर रहे थे उन्हीं दिनों उन्हें शहीद भगत सिंह से कुछ क्षणों के लिए मिलने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ. कश्यप जी 27 फरवरी 1931 को अल्फ्रेड पार्क जाने के रास्ते में खडे थे तभी भगत सिंह जी आये और कश्यप जी को सायकल पकडाकर पैदल पार्क की ओर साथ चलने को कहा. कश्यप जी आकाशीय प्रेरणा से सायकल थाम कर पार्क की ओर उनके साथ चलते गये और उन्हें पार्क के पास छोडकर वापस आ गए. तब कश्यप जी को भान नहीं था कि उनके साथ चल रहे व्यक्ति भगत सिंह थे.
कश्यप जी तद समय के स्नातक थे वे चाहते तो उन्हें तहसीलदार या उच्च प्रशासनिक पद पर नौकरी मिल जाती किन्तु उन्होंनें पटवारी की नौकरी को अपने लिये चुना और शहर से दूर गांवों में किसानों के बीच रह कर जीवन यापन आरंभ किया. यद्यपि उनकी प्रतिभा, लगन एवं परिश्रम के बल पर उन्हें लगातार पदोन्नति मिलती रही और वे शीध्र ही सहायक भू अभिलेख अधीक्षक हो गए.
शासकीय सेवा करते हुए कपिलनाथ कश्यप जी नें हिन्दी एवं छत्तीसगढी में लगातार लेखन किया. उनकी छत्तीसगढ़ी कृतियो मे महाकाव्य श्रीराम काव्य व श्री कृष्ण काव्य. अब तो जागो और गजरा काव्य संग्रह. कथा संग्रह मे डहर के कांटा, हीरा कुमार व डहर के फूल. एकांकी मे अंधियारी रात और नवा बिहान. निसेनी निबंध संग्रह. श्रीमद् भागवत गीता और रामचरित मानस का छत्तीसगढ मे भाषानुवाद. हिन्दी साहित्य की कृतियो मे खण्ड काव्य वैदेही बिछोह, बावरी राधा, युद्ध आमंत्रण, सुलोचना विलाप, सीता की अग्नि परीक्षा, स्वतंत्रता के अमर सेनानी, कंस कारागार और आव्हान. काव्य संग्रह मे पीयूष एवं बिखरे फूल, न्याय, भ्रांत, श्री रामचन्द्र एवं चित्रलेखा है. इनमें से तीन छत्तीसगढी और एक हिन्दी कृति ही प्रकाशित हो पाई. शेष पाण्डुलिपियां आज भी प्रकाशन के इंतजार में कपिलनाथ कश्यप जी के पुत्र गणेश प्रसाद के पास सुरक्षित हैं.
गुमनाम जिन्दगी जीना पसन्द करने वाले महाकवि कपिलनाथ कश्यप जी की लेखनी से छत्तीसगढ ज्यादा परिचित नहीं था. जैसे जैसे इनकी रचनाओं पर समीक्षकों व साहित्यकारों की नजर पडी, उनकी कृतियों को पढ कर सभी आश्चर्यचकित हो गए. साहित्यकारों नें यहां तक कहा कि कश्यप जी जैसा रचनाकार बीसवी सदी में इस अंचल में न तो हुआ है और ना ही होगा. उन पर डॉ.सत्येन्द्र कुमार कश्यप नें पीएचडी किया. डॉ.विनय कुमार पाठक जी नें कपिलनाथ कश्यप जी के संपूर्ण रचनायात्रा पर एक विस्तृत ग्रंथ ‘कपिलनाथ कश्यप : व्यक्तित्व‘ के नाम से लिखा. धीरे धीरे कपिलनाथ कश्यप जी की लेखनी पाठकों तक पहुंची और अंचल नें उन्हें महाकवि के रूप में स्वीकारा. जीवनभर निस्वार्थ भाव से साहित्य सेवा करते हुए कपिलनाथ कश्यप जी का 2 मार्च 1985 को निधन हो गया.

Mahabharat ke rachayita kaun hai? or महाभारत के रचयिता कौन हैं? दोस्तों क्या आप जानना चाहते हैं कि महाभारत (mahabharata) के रचयिता कौन हैं या who wrote mahabharata, तो हमारे इस article को अंत तक जरूर पढ़िएगा।

आप में से बहुत लोगों ने कई websites पर यह सवाल पूछा है कि महाभारत के रचयिता कौन हैं, who wrote mahabharat और लोगों के मन में आज भी यह सवाल है कि आखिर महाभारत के रचयिता कौन हैं। 

इसी वजह से हमने आपके लिए यह आर्टिकल लिखा है, जिसमें हम आपके इस सवाल का जवाब देंगे और आपको इससे जुड़ी सारी जानकारी देंगे।

Post Contents:

1

  • महाभारत के रचयिता कौन हैं? (mahabharat ki rachna kisne ki)
  • महाभारत कैसे लिखी गई थी?
    • Ved Vyasa कौन थे?
    • Ved Vyasa को महाभारत लिखने की inspiration कहां से मिली थी?
    • महाभारत लिखने में Ved Vyasa को क्या दिक्कत आई थी?
    • Ganesha ने महाभारत  लिखने में क्या मदद की थी?
  • श्री गणेशा ने वेद व्यासा जी के सामने क्या condition रखी थी?
  • Mahabharat को शब्दों में लिखते समय गणेश और व्यास जी  को क्या दिक्कत आई?
  • महाभारत से हमें क्या सीख मिलती है?
  • निष्कर्ष 

महाभारत के रचयिता कौन हैं? (mahabharat ki rachna kisne ki)

श्री कृष्ण कथा का रचयिता कौन है? - shree krshn katha ka rachayita kaun hai?

ऐसा माना जाता है कि समय के साथ महाभारत और भी ज्यादा evolve हो गई है। पहले इसे Jay Samhita (जय संहिता) कहा जाता था। 

इसमें कुल 18 परवास या chapters हैं। Scriptures के हिसाब से इसके रचयिता Ved Vyasa हैं, जो कि एक बहुत ही बड़े साधु थे जिन्होंने इस epic को लिखा था। 

वह सत्यवती के पुत्र थे, जिन्हे Chitrangada (चित्रांगदा) और Vichitravirya (विचित्रवीर्य) के मरने के बाद हस्तिनापुर की रानी बनाने के लिए बुलाया गया था।

लेकिन हम में से कुछ ही लोगों को मालूम है कि वह तो गणेशा जी थे जिनकी मदद से यह epic कहानी हम तक पहुंच सकी थी। 

यह एक बहुत ही ज्यादा मजेदार कहानी है, जिसमें सबसे ज्यादा बेहतरीन कहानी सुनाने वाला और सबसे बेहतरीन लेखक ने मिलकर महाभारत लिखी थी।

अब जबकि आपको यह पता चल गया है कि महाभारत किसने लिखी थी, हम आपको यह बताते हैं कि महाभारत को कैसे लिखा गया था।

महाभारत कैसे लिखी गई थी?

हिंदू धर्म की दो सबसे बड़ी किताबें रामायण और महाभारत है। महाभारत दुनिया की सबसे लंबी लिखी जाने वाली कहानी है, जो मानवजाती के इतिहास में होने वाले सबसे बड़े युद्ध की दास्तां लोगों को सुनाती है। जो कौरवों और पांडवों के बीच में हुआ था। 

Ved Vyasa कौन थे?

जैसा कि हमने आपको बताया कि महाभारत को बहुत ही बड़े गुरु Ved Vyasa ने लिखा था।

इतना ही नहीं वेद व्यासा उन पांच पांडवों और 100 कौरवों के दादा थे। उनके पिताजी Dhritarashtra (धृतराष्ट्र) और पांडु, जोकि Vichitravirya (विचित्रवरिया) के बेटे थे उन्हें Kuru clan में ही दोनों ने पाला था। ऐसा कहा जाता है कि वेद व्यासा की जिंदगी अपने बच्चों और पोतों से भी बड़ी थी और उन्होंने उनसे भी ज्यादा लंबा जीवन जिया था।

Ved Vyasa को महाभारत लिखने की inspiration कहां से मिली थी?

एक बार जब वेद व्यासा  हिमालय पर्वत पर प्रार्थना कर रहे थे और ध्यान लगा रहे थे, तब उन्हें ब्रह्मा जी (जिन्होंने यह संसार बनाया है) का एक vision  दिखाई दिया, उस vision में ब्रह्मा जी ने वेद व्यासा को महाभारत लिखने को कहा, क्योंकि उन्होंने उसे अपनी आंखों के सामने होते हुए देखा और वही उसे लिखने के लिए सबसे बढ़िया इंसान थे।

महाभारत लिखने में Ved Vyasa को क्या दिक्कत आई थी?

वेद व्यासा को मालूम था कि महाभारत को लिखना बहुत ही ज्यादा कठिन काम होगा, क्योंकि इसमें ऐसी बहुत सी घटनाएं घटित हुई थी, जिन्हें लिखना बहुत ही ज्यादा कठिन था। 

और इसमें इतने बड़े-बड़े characters थे जिनके बारे में शब्दों में लिखना उन्हें बहुत ही ज्यादा कठिन लग रहा था। 

वेद व्यासा को यह बात समझ आ गई थी कि उन्हें इसे लिखने में किसी की सहायता की जरूरत पड़ेगी। ब्रह्मा जी ने जब उन्हें यह सलाह दी कि वह गणेशा जी की मदद ले, जोकि लोगों के दुखों को हरते हैं।

Ganesha ने महाभारत  लिखने में क्या मदद की थी?

श्री कृष्ण कथा का रचयिता कौन है? - shree krshn katha ka rachayita kaun hai?

जैसे ही वेद व्यासा ने श्री गणेशा के बारे में ध्यान लगाना शुरू किया, गणेशा जी उनके उनकी आंखों के सामने आ गए। और गणेशा जी ने व्यासा जी की महाभारत लिखने में मदद करने के लिए खुशी होकर हां कर दिया।  

लेकिन गणेशा जी को हिंदू धर्म में सबसे ज्यादा mischievous भगवान माना जाता है, उन्होंने एक बहुत ही बेहतरीन आईडिया बताया जिसकी मदद से वेद व्यासा इस महान कहानी को बहुत ही कम समय में लिख पाए।

श्री गणेशा ने वेद व्यासा जी के सामने क्या condition रखी थी?

वेद व्यासा से इस महान कहानी को बहुत ही जल्दी compose कर वाने के लिए, गणेश जी ने उनके सामने एक कंडीशन रखी है, उन्होंने यह कहा कि वेद व्यासा जी आप इस महान कहानी को मुझे बताइए और मैं इसे बहुत ही जल्दी लिखूंगा। 

हालाकि, अगर आप इस कहानी को सुनाते हुए कहीं भी रुक गए तो मैं जितनी भी कहानी लिखी हुई है, उसे साथ लेकर चला जाऊंगा और वेद व्यास जी ने उनकी इस कंडीशन को मान लिया।

हालांकि, वेद व्यासा जी ने भी गणेश जी के सामने अपनी एक कंडीशन रखी, उन्होंने कहा कि आप तभी इस कहानी की किसी लाइन को लिखना शुरू करेंगे जब आपको उस वाक्य का मतलब समझ में आएगा, और ऐसा करते समय वेद व्यासा जी को अगली लाइन बताने के लिए कुछ समय मिल जाएगा।

और फिर गणेशा जी ने इस महान कहानी को लिखना शुरू कर दिया।

जब भी वेद व्यासा जी थकने लगते थे वह गणेशा जी को इतनी ज्यादा कठिन लाइन बता देते थे कि उसे समझने में गणेशा जी को कुछ समय लग जाता था, जिसकी मदद से व्यासा जी को थकान मिटाने के लिए कुछ समय मिल जाता था और वह आगे की लाइन बताने के लिए तैयार हो जाते थे।

जब यह दोनों इस कहानी को लिख रहे थे तब उन्हें एक और दिक्कत का सामना करना पड़ा। गणेशा जी जिस प्राचीन पेन से लिख रहे थे वह लिखते समय टूट गया, क्योंकि वह गणेशा जी की लिखने की गति के साथ नहीं चल पा रहा था हालांकि, गणेश जी ने लिखना बंद नहीं किया और उन्होंने अपने एक tusk तोड़कर उससे लिखना शुरु कर दिया।

इसी वजह से, बहुत सी pictures में, गणेशा जी की केवल एक ही tusk दिखती है, और इसी तरह से इस महान कहानी को लिखा गाया था। 

हालाकि, यह एक बहुत ही बड़ी कहानी थी, इसे केवल तीन सालों में लिख दिया गया था, और यह काम गणेशा जी और व्यासा जी की कोशिशों के बिना नहीं हो पता।

श्री कृष्ण कथा का रचयिता कौन है? - shree krshn katha ka rachayita kaun hai?

महाभारत, इस दुनिया में 5000 सालों से भी ज्यादा समय से पहले मौजूद थी।

महाभारत सच में एक ऐसी कहानी है जो कुछ ऐसे सत्य बताती है, जो हमेशा जिंदा रहेंगे। 

महाभारत Greek के ग्रंथों से बहुत ही ज्यादा अलग है, जो ग्रीक के भगवानों के एडवेंचर और खोजों के बारे में बताते हैं। 

महाभारत अपनी सत्य कहानियों के साथ मोरल concepts के बारे में भी लोगों को बताती है, जो हर समय इंसान के साथ रहते हैं।

महाभारत अपने characters की जिंदगी  की मदद से हमें कर्म और धर्म के issues को संभालने के तरीकों के बारे में भी बताते हैं। 

इसमें कुछ ऐसे भी lessons हैं जो पढ़ने वाले के दिमाग में बहुत सारे सवालों को जन्म देते हैं, जिनके बारे में अपनी आम जिंदगी में नहीं सोचता है।

महाभारत की कहानी का सबसे जरूरी भाग है कुरुक्षेत्र में पांडवों और कौरवों के बीच में धर्म की लड़ाई। श्री कृष्णा ने इस युद्ध को धर्मयुद्ध भी कहा है।

इसमें Duryodhana (दुर्योधन) एक चालाक और schemes बनाने  वाला राजा होता है जो पांडवों की वीरता से जलता था और उसने पांडवों को राज्य से धोखाधड़ी से निकल दिया था। 

उसने Yudhisthira (युधिस्ठिर) को dice के एक गेम के लिए बुलाया और छल से उसे राज्य के बाहर निकल दिया।

पांडवों ने अपने जीवन के तेराह साल exile में गुजारे और जिसके बाद उन्हें अपना आधा राज्य वापस मिलना चाहिए था लेकिन दुर्योधन ने उन्हें वह देने से कर दिया।

उसके बाद भी पांडव लड़ना नहीं चाहते थे और वह केवल पांच गांव ही मांग रहे थे। हालाकि, दुर्योधन बहुत ही ज्यादा stubborn राजा था और उसने उन्हें वह भी देने से मना कर दिया था।

आखिर में, पांडवों ने कौरवों को युद्ध की चुनौती दी। पांडवों को पता था कि युद्ध में कितनी जाने जाती हैं, लेकिन उनके पास यही एक रास्ता बचा था। लेकिन महाभारत इस चीज का भी जिक्र करती है, की Yudhisthira (युधिष्ठिर) अभी भी लड़ना नहीं चाहते थे।

इसी तरह से, जंग के मैदान पर, जहां पर दो armies एक दूसरे को मारने के लिए उतरी थीं, Arjuna (अर्जुन) जोकि पांडवों की ओर से एक बहुत ही बड़ी शूरवीर थे, वह एक धर्म संकट में थे। 

उन्हें यह समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपने गुरुओं को कैसे मार सकते हैं, जिन्होंने उन्हें लड़ना सिखाया था। लेकिन अब वह दुश्मन की ओर से लड़ रहे थे, और जंग केवल उनको मार कर ही जीती जा सकती थी, वह अपने हत्यारों को डालना चाहते थे। महाभारत अर्जुन की इस दुविधा की मदद से हमें इंसान के जीवन में आई दिक्कतों के बारे में बहुत ही ज्यादा clarity से बताती है। 

उसके बाद, श्री कृष्ण उन्हें यह बताते हैं कि धर्म की जीत के लिए कभी-कभी अधर्म को भी अथॉरिटी के साथ मिटाना पड़ता है।  

और तभी श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता सुनाई। इस धर्मयुद्ध से यह सवाल उठता है कि सही रास्ता क्या है? 

एक इंसान यह सकता है कि जंग चाहे जितनी भी दर्दनाक हो बुराई को मिटाने के लिए इसकी जरूरत पड़ती ही है।

क्या यह कहना सही होगा कि धर्म तभी माना जाता है, जब ज्यादा लोगों वाले group को ज्यादा फायदा मिलता है?

हालांकि महाभारत हमारी आम जिंदगी में आने वाली चुनौतियों के बारे में हमें बताने की कोशिश करती है। महाभारत के बारे में सबसे ज्यादा interesting बात यह है कि यह पढ़ने वाले को मोरल issues के बारे में सोचने पर मजबूर कर देती है। 

हमारे आर्टिकल के इस भाग में हमने आपको mahabharata story के बारे में बताया। अब हम आपको बताएंगे कि आप महाभारत से क्या सीख सकते हैं।

महाभारत से हमें क्या सीख मिलती है?

श्री कृष्ण कथा का रचयिता कौन है? - shree krshn katha ka rachayita kaun hai?

महाभारत से हमें बहुत कुछ सीखने को मिल सकता है, लेकिन यह कुछ सात जरूरी चीजें हैं जो हम महाभारत से सीख सकते हैं।

1. अगर आप किसी इंसान से बदला लेना चाहते हैं, तो इस process में आपका भी नाश हो जाएगा। जैसे की कौरवों का हो गया था क्योंकि वह पांडवों को मिटाना चाहते थे।

2. आपको हमेशा सच के साथ होना चाहिए, चाहे उसके लिए आपको लड़ना ही क्यों ना पड़े। जैसे कि श्री कृष्ण ने अर्जुन को बताया था कि  उन्हें धर्म के साथ खड़ा होना होगा, चाहे उन्हें अपने परिवार से ही क्यों ना करना पड़े।  

इसी वजह से अर्जुन ने अपने शस्त्र (weapons) उठाए थे और कौरवों का नाश किया था।

3. महाभारत से हमें दोस्ती के अटूट बंधन के बारे में भी पता चलता है। जैसे कृष्ण और अर्जुन और साथ ही में Duryodhan और कर्ण की दोस्ती को देखकर भी हमें यह पता चलता है कि दोस्ती के लिए इंसान किस हद तक जा सकता है।

4. किसी भी विषय के बारे में आधी जानकारी होना बहुत ही ज्यादा खतरनाक हो सकता है। जैसे कि अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु से हमें यह बात पता लगती है कि आधी जानकारी होने से, कभी- कभी हमें बहुत ही ज्यादा दुखद परिणाम झेलना पड़ता है। 

जैसे अभिमन्यु इस जंग में घुस गए थे लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि इससे बाहर कैसे निकला जाता है।

5. आपको लालच में आकर कभी भी फैसला नहीं लेना चाहिए। जैसा कि हमें युधिष्ठिर को देखकर पता लगता है कि उन्होंने अपनी लालच की वजह से क्या जीता था? बल्कि, लालच में आकर वह अपना सब कुछ हार गए थे।

6. चाहे हमारी जिंदगी में कितनी भी कठिनाइयां आ जाए, हमें हार नहीं माननी चाहिए। इस वाक्य के लिए कर्ण से बेहतर उदाहरण क्या हो सकता है। कर्ण ने अपनी पूरी जिंदगी हार नहीं मानी। 

उन्होंने इस धर्मयुद्ध में अपनी पूरी जान लगा दी और वह भी अपनी दोस्ती की वजह से।

7. अगर आप एक स्त्री हैं, तो इसका मतलब यह नहीं कि आप किसी से कम हैं। Draupadi (द्रौपदी) को कौरवों ने humiliate किया और वह भी अपने पति की गलती की वजह से। 

लेकिन उन्होंने भी यह कसम खा ली की वह अपने बाल Duryodhana और दुशानना के खून से ही धोएंगी, यह शायद एक और वजह थी जिसपर यह धर्मयुद्ध (DharmaYudh) हुआ था।

अब आपको यह समझ आ गया होगा कि mahabharat kisne likha tha, अब हम आपको महाभारत पर अपने अंतिम विचार बताएंगे।

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निष्कर्ष 

दोस्तों महाभारत एक ऐसी कहानी है जिससे हमें कई विषयों पर सीख मिलती है, इससे हमें अपने जीवन का मकसद भी पता चलता है और हमें यह भी जानकारी मिलती है कि हमें इस जीवन को किस तरह से जीना चाहिए। आप चाहें तो इसपर बनी mahabharat katha भी देख सकते हैं।

इस आर्टिकल में हमने आपको बताया की महाभारत का रचयिता कौन थे या mahabharat kisne likhi, इसे कैसे लिखा गया और इससे हमें क्या सीख मिल सकती है। 
उम्मीद करते हैं कि आपको यह आर्टिकल महाभारत के रचयिता कौन हैं? or Mahabharat ke rachayita kaun hai पसंद आया होगा, अगर आपका कोई सवाल है, तो उसे comment करके जरूर पूछें। इस आर्टिकल को अंत तक पढ़ने के लिए धन्यवाद!

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