राजस्थान में सती प्रथा सबसे ज्यादा कौन सी जाति में प्रचलित है? - raajasthaan mein satee pratha sabase jyaada kaun see jaati mein prachalit hai?

राजस्थान में सती प्रथा सबसे ज्यादा कौन सी जाति में प्रचलित है? - raajasthaan mein satee pratha sabase jyaada kaun see jaati mein prachalit hai?
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डाकन प्रथा या डायन प्रथा एक कुप्रथा थी जो पहले राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में काफी प्रचलित थी , इसमें ग्रामीण औरतों पर डाकन यानी अपनी तांत्रिक शक्तियों से नन्हें शिशुओं को मारने वाली पर अंधविश्वास से उस पर आरोप लगाकर निर्दयतापूर्ण मार दिया जाता था। इस प्रथा [1] के कारण सैकड़ों स्त्रियों को मार दिया जाता था। १६वीं शताब्दी में राजपूत रियासतों ने कानून बनाकर इस प्रथा पर रोक लगादी थी [2] । इस प्रथा पर सर्वप्रथम अप्रैल 1853 ईस्वी में मेवाड़ में महाराणा स्वरुप सिंह के समय में खेरवाड़ा (उदयपुर) में इसे गैर कानूनी घोषित कर दिया था।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. डाकन प्रथा एक कुरीति और अंधविश्वास Archived 2017-08-29 at the Wayback Machine अभिगमन तिथि :०५ जून २०१६
  2. HC notice to govt over practice of dayan pratha' अभिगमन तिथि :०५ जून २०१७


इसे जनजातियों की सामाजिक परंपरा में हस्तक्षेप मना जाता है । हालाकि ऐसा नही क्योंकि ये कुप्रथाओं में सुधार के प्रयास थे जो कि एक प्रकार से अंधविश्वास था। ( अजय गौमलाडू देलाड़ी )

सती जैसी प्रथाएं समाज के लिए कलंक है. इस तरह की प्रथाएं समाज में महिलाओं के खिलाफ अन्याय को बढ़ावा देती हैं. इस प्रथा की आड़ में जाने कितने परिवार खत्म हुए, बच्चों से मां का आसरा छीना गया. इस कुप्रथा के खिलाफ एक बड़ी लड़ाई के बाद आज ही के दिन यानी 4 दिसंबर को हमारे समाज को इस कुप्रथा से मुक्ति मिली थी.

1 सती जैसी प्रथाएं समाज के लिए कलंक है. इस तरह की प्रथाएं समाज में महिलाओं के खिलाफ अन्याय को बढ़ावा देती हैं. इस प्रथा की आड़ में जाने कितने परिवार खत्म हुए, बच्चों से मां का आसरा छीना गया. इस कुप्रथा के खिलाफ एक बड़ी लड़ाई के बाद आज ही के दिन यानी 4 दिसंबर को हमारे समाज को इस कुप्रथा से मुक्ति मिली थी. सती प्रथा में पति की मृत्यु के बाद पत्नी को भी चिता पर बिठा दिया जाता था. उसे भी अपने प्राण त्यागने के लिए विवश किया जाता था.

2 सती प्रथा में पति की मृत्यु के बाद पत्नी को भी चिता पर बिठा दिया जाता था. उसे भी अपने प्राण त्यागने के लिए विवश किया जाता था. मान्यताओं के अनुसार मां दुर्गा के रूप सती ने पति भगवान शिव की पिता दक्ष के द्वारा किये गये अपमान से क्षुब्ध होकर अग्नि में आत्मदाह कर लिया था. कई लोग मानते हैं कि यहीं से सती प्रथा की शुरुआत हुई थी.

3 मान्यताओं के अनुसार मां दुर्गा के रूप सती ने पति भगवान शिव की पिता दक्ष के द्वारा किये गये अपमान से क्षुब्ध होकर अग्नि में आत्मदाह कर लिया था. कई लोग मानते हैं कि यहीं से सती प्रथा की शुरुआत हुई थी. लेकिन इसे भी सती प्रथा के समान नहीं माना जा सकता क्योंकि इस समय उनके पति जीवित थे.

4 लेकिन इसे भी सती प्रथा के समान नहीं माना जा सकता क्योंकि इस समय उनके पति जीवित थे. भारतीय इतिहास की बात करें तो गुप्तकाल में 510 ईसवी के आसपास सती प्रथा के होने के प्रमाण मिलते हैं. महाराजा भानुप्रताप के राज घराने के गोपराज की युद्ध में मृत्यु हो जाने के बाद उनकी पत्नी ने अपने प्राण त्याग दिए थे.

5 भारतीय इतिहास की बात करें तो गुप्तकाल में 510 ईसवी के आसपास सती प्रथा के होने के प्रमाण मिलते हैं. महाराजा भानुप्रताप के राज घराने के गोपराज की युद्ध में मृत्यु हो जाने के बाद उनकी पत्नी ने अपने प्राण त्याग दिए थे. अपनी आंखों के सामने पाप होते हुए देख भी लोगों ने उसे धर्म का आदर करना समझा. कुछ क्षेत्रों में तो लोगों ने मृत पति की जायदाद पर कब्ज़ा करने के लिए पत्नियों को जबर्दस्ती सती होने पर जोर दिया. लेकिन फिर 19वीं शताब्दी में इसे रोकने के लिए बदलाव की हवा बहने लगी.

6 अपनी आंखों के सामने पाप होते हुए देख भी लोगों ने उसे धर्म का आदर करना समझा. कुछ क्षेत्रों में तो लोगों ने मृत पति की जायदाद पर कब्ज़ा करने के लिए पत्नियों को जबर्दस्ती सती होने पर जोर दिया. लेकिन फिर 19वीं शताब्दी में इसे रोकने के लिए बदलाव की हवा बहने लगी. आधुनिक भारत के जनक राजा राम मोहन राय ने सती प्रथा को खत्म करने के लिए कई जतन किए. इसी के साथ उन्होंने विधवा विवाह को भी सही ठहराया.

7 आधुनिक भारत के जनक राजा राम मोहन राय ने सती प्रथा को खत्म करने के लिए कई जतन किए. इसी के साथ उन्होंने विधवा विवाह को भी सही ठहराया. राजा राम मोहन राय ने सती प्रथा जैसी की गलत परंपराओं और उनके बुरे प्रभावों के साथ उसके निवारण पर हिंदी, अंग्रेजी और बांग्ला भाषा में पुस्तकें लिखकर फ्री में बंटवाईं.

8 राजा राम मोहन राय ने सती प्रथा जैसी की गलत परंपराओं और उनके बुरे प्रभावों के साथ उसके निवारण पर हिंदी, अंग्रेजी और बांग्ला भाषा में पुस्तकें लिखकर फ्री में बंटवाईं. 4 दिसंबर, साल 1829 को लॉर्ड विलियम बेंटिक की अगुवाई और राजा राम मोहन राय जैसे भारतीय समाज सुधारकों के प्रयासों से सती प्रथा पर भारत में पूरी तरह से रोक लगी थी.

प्राचीन सन्दर्भ[संपादित करें]

इस प्रथा को इसका यह नाम देवी सती के नाम से मिला है जिन्हें दक्षायनी के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार देवी सती ने अपने [1]पिता दक्ष द्वारा अपने पति महादेव शिव के तिरस्कार से व्यथित हो यज्ञ की अग्नि में कूदकर आत्मदाह कर लिया था। सती शब्द को अक्सर अकेले या फिर सावित्री शब्द के साथ जोड़कर किसी "पवित्र महिला" की व्याख्या करने के लिए प्रयुक्त किया जाता है।

  महाभारत मे राजा पांडु की के संग उनकी एक पत्नी माद्री सती हुई थी 

कृष्ण के संग उनकी 4 रानियां सती हुई थी ये एक स्वेच्छिक कुरीति थी कोई धार्मिक प्रथा नही... किंतु इसे कई जातियों ने पूर्ण रुप से लागू कर रखा था जिससे इसका प्रचार प्रसार हुआ !

सती प्रथा के कारण[संपादित करें]

प्राचीन काल में सती प्रथा का एक यह भी कारण रहा था। आक्रमणकारियों द्वारा जब पुरुषों की हत्या कर दी जाती थी, उसके बाद उनकी पत्नियाँ अपनी अस्मिता व आत्मसम्मान को महत्वपूर्ण समझकर स्वयमेव अपने पति की चिता के साथ आत्मत्याग करने पर विवश हो जाती थी।

कालांतर में महिलाओं की इस स्वैच्छिक विवशता का अपभ्रंश होते-होते एक सामाजिक रीति जैसी बन गयी, जिसे सती प्रथा के नाम से जाना जाने लगा।

सती प्रथा का अन्त[संपादित करें]

ब्रह्म समाज के संस्थापक राजा राममोहन राय ने सती प्रथा के विरुद्ध समाज को जागरूक किया। जिसके फलस्वरूप इस आन्दोलन को बल मिला और तत्कालीन अंग्रेजी सरकार को सती प्रथा को रोकने के लिये कानून बनाने पर विवश होना पड़ा था। अन्तत: उन्होंने सन् 1829 में सती प्रथा रोकने का कानून पारित किया। इस प्रकार भारत से सती प्रथा का अन्त हो गया।

हैदरबाद के छठे निज़ाम- महबूब अली खान ने स्वयं 12 नवंबर,1876 को एक चेतावनी घोषणा जारी किया और कहा, अब यह सूचित किया गया है कि यदि भविष्य में कोई भी इस दिशा में कोई कार्रवाई करता है, तो उन्हें गंभीर परिणामों का सामना करना पड़ेगा। अगर तलुकादार, नवाब, जगदीड़, ज़मीनदार और अन्य इस मामले में लापरवाही और लापरवाही पाए जाते हैं, सरकार द्वारा उनके खिलाफ गंभीर कार्रवाई की जाएगी "[2]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • बाल विवाह
  • दहेज प्रथा
  • डाकन प्रथा
  • बलि प्रथा

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. IBN Khabar. "आज भी मौजूद है 'सती प्रथा'– IBN Khabar". अभिगमन तिथि 5 जून 2016.[मृत कड़ियाँ]
  2. "Letters leave a rich legacy of rulers" (अंग्रेज़ी में). मूल से 20 सितंबर 2018 को पुरालेखित.

राजस्थान में सती प्रथा सबसे ज्यादा कौन सी जाति में प्रचलित थी?

राजस्थान में इस प्रथा का सर्वाधिक प्रचलन राजपूत जाति में था। राजस्थान में सर्वप्रथम 1822 ई. में बूंदी रियासत में विष्णुसिंह ने सतीप्रथा को गैर कानूनी घोषित किया गया।

राजस्थान की प्रथम महिला सती कौन थी?

राजस्थान में 32 साल पहले हुआ रूप कंवर सती कांड एक बार फिर से सुर्खियों में है. चार सितंबर 1987 को सीकर जिले के दिवराला गांव में अपने पति की मौत के बाद उसकी चिता पर जलकर 18 साल की रूप कंवर 'सती' हो गई थी.

राजस्थान के प्रथम सती कौन थी?

भारतीय इतिहास की बात करें तो गुप्तकाल में 510 ईसवी के आसपास सती प्रथा के होने के प्रमाण मिलते हैं. महाराजा भानुप्रताप के राज घराने के गोपराज की युद्ध में मृत्यु हो जाने के बाद उनकी पत्नी ने अपने प्राण त्याग दिए थे. 5 भारतीय इतिहास की बात करें तो गुप्तकाल में 510 ईसवी के आसपास सती प्रथा के होने के प्रमाण मिलते हैं.

सती प्रथा पर प्रतिबंध लगाने वाली पहली राजपूत रियासत कौन सी थी?

सती प्रथा को सहमरण या अन्वारोहण भी कहा जाता है। अधिनियम के तहत सर्वप्रथम रोक कोटा रियासत में लगाई। 1832 में विलियम बैंटिक ने दास प्रथा पर रोक लगाई