संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से वाक्य के अन्य शब्दों के साथ उनका (संज्ञा या सर्वनाम का) सम्बन्ध सूचित हो, उसे ‘कारक’ कहते हैं। Show या व्याकरण में संज्ञा या सर्वनाम शब्द की वह अवस्था जिसके द्वारा वाक्य में उसका क्रिया के साथ संबंध प्रकट होता है उसे कारक कहते हैं। संज्ञा अथवा सर्वनाम को क्रिया से जोड़ने वाले चिह्न अथवा परसर्ग ही कारक कहलाते हैं। उदाहरण (1) राधा ने गीत सुनाया। कारक के भेदहिन्दी में कारको की संख्या आठ है- (1) कर्ता कारक हिन्दी में इनके अर्थ स्मरण करने के लिए इस पद की रचना की गई हैं- कर्ता ने अरु कर्म को, करण रीति से जान। संप्रदान को, के लिए, अपादान से मान। का, के, की, संबंध हैं, अधिकरणादिक में मान। रे ! हे ! हो ! संबोधन, मित्र धरहु यह ध्यान। (1) कर्ता कारकजिस रूप से क्रिया (कार्य) के करने वाले का बोध होता है वह कर्ता कारक कहलाता है। इसका विभक्ति-चिह्न ‘ने’ है। जो वाक्य में कार्य करता है उसे कर्ता कहा जाता है अथार्त वाक्य के जिस रूप से क्रिया को करने वाले का पता चले उसे कर्ता कहते हैं। कर्ता कारक का प्रयोग
1. परसर्ग सहित भूतकाल की सकर्मक क्रिया में कर्ता के साथ ने परसर्ग लगाया जाता है। (1) राधा ने पत्र लिखा। 2. परसर्ग रहित भूतकाल की अकर्मक क्रिया में परसर्ग का प्रयोग नहीं किया जाता है। (1) सोहन गाना गाता है (2) कर्म कारकजिस संज्ञा या सर्वनाम पर क्रिया का प्रभाव पड़े उसे कर्म कारक कहते है। इसकी विभक्ति ‘को‘ है। लेकिन कहीं कहीं पर कर्म का चिन्ह लोप होता है। बुलाना , सुलाना , कोसना , पुकारना , जमाना , भगाना आदि क्रियाओं के प्रयोग में अगर कर्म संज्ञा हो तो को विभक्ति जरुर लगती है। जब विशेषण का प्रयोग संज्ञा की तरह किया जाता है तब कर्म विभक्ति को जरुर लगती है। (1) मोहन ने कीड़े को मारा। (3) करण कारकवाक्य में जिस साधन से क्रिया होता है, उसे करण कारक कहते है। करण कारक के दो विभक्ति चिन्ह होते है : से और के द्वारा। (1) बालक गेंद से खेल रहे है। (4) सम्प्रदान कारकसंप्रदान का अर्थ है-देना। जब वाक्य में किसी को कुछ दिया जाए या किसी के लिए कुछ किया जाए तो वहां पर सम्प्रदान कारक होता है। सम्प्रदान कारक के विभक्ति चिन्ह के लिए या को हैं। जब वाक्य में किसी को कुछ दिया जाए या किसी के लिए कुछ किया जाए तो वहां पर सम्प्रदान कारक होता है। (1) माँ बच्चों के लिए खाना लाई। (5) अपादान कारकसंज्ञा के जिस रूप से एक वस्तु का दूसरी से अलग होना पाया जाए वह अपादान कारक कहलाता है। संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से अलग होना , उत्पन्न होना , डरना , दूरी , लजाना , तुलना करना आदि का पता चलता है उसे अपादान कारक कहते हैं। विभक्ति-चिह्न ‘से’ है। (1) पेड़ से फल गिरा। (6) सम्बन्ध कारकसंज्ञा या सर्वनाम का वह रूप जो हमें किन्हीं दो वस्तुओं के बीच संबंध का बोध कराता है, वह संबंध कारक कहलाता है। सम्बन्ध कारक के विभक्ति चिन्ह का, के, की, ना, ने, नो, रा, रे, री आदि हैं।इसकी विभक्तियाँ संज्ञा, लिंग, वचन के अनुसार बदल जाती हैं। (1) रीटा की बहन माया है। (7) अधिकरण कारकशब्द के जिस रूप से क्रिया के आधार का बोध होता है अधिकरण कारक उसे कहते हैं। इसके विभक्ति-चिह्न ‘में’ और ‘पर’ है। भीतर, अंदर, ऊपर, बीच आदि शब्दों का प्रयोग इस कारक में किया जाता है। इसकी पहचान किसमें , किसपर , किसपे आदि प्रश्नवाचक शब्द लगाकर भी की जा सकती है। कहीं कहीं पर विभक्तियों का लोप होता है तो उनकी जगह पर किनारे , आसरे , दीनों , यहाँ , वहाँ , समय आदि पदों का प्रयोग किया जाता है। (1) मेज पर पानी का गिलास रखा है। (8) संबोधन कारकसंज्ञा या सर्वनाम का वह रूप जिससे किसी को बुलाने, पुकारने या बोलने का बोध होता है, तो वह सम्बोधन कारक कहलाता है। |