पिताजी के द्वारा कार चलाई गई कौन सा वाक्य है? - pitaajee ke dvaara kaar chalaee gaee kaun sa vaaky hai?

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से वाक्य के अन्य शब्दों के साथ उनका (संज्ञा या सर्वनाम का) सम्बन्ध सूचित हो, उसे ‘कारक’ कहते हैं।

या 

व्याकरण में संज्ञा या सर्वनाम शब्द की वह अवस्था जिसके द्वारा वाक्य में उसका क्रिया के साथ संबंध प्रकट होता है उसे कारक कहते हैं।

संज्ञा अथवा सर्वनाम को क्रिया से जोड़ने वाले चिह्न अथवा परसर्ग ही कारक कहलाते हैं।

उदाहरण 

(1)  राधा ने गीत सुनाया
(2)  रीता कलम से लिखती है
(3)  गरीबो को खाना।
(4)  पेड़ से आम गिरा।
(5)  उसने बिल्ली को भगा दिया
(6)  राम सीता के लिए लंका गए
(7)  मैं मोहन के द्वारा संदेश भेज दूंगा। 

कारक के भेद

हिन्दी में कारको की संख्या आठ है-

(1)  कर्ता कारक 
(2)  कर्म कारक 
(3)  करण कारक 
(4)  सम्प्रदान कारक
(5)  अपादान कारक
(6)  सम्बन्ध कारक
(7)  अधिकरण कारक
(8)  संबोधन कारक

हिन्दी में इनके अर्थ स्मरण करने के लिए इस पद की रचना की गई हैं-

कर्ता ने अरु कर्म को, करण रीति से जान।

संप्रदान को, के लिए, अपादान से मान।

का, के, की, संबंध हैं, अधिकरणादिक में मान।

रे ! हे ! हो ! संबोधन, मित्र धरहु यह ध्यान।

 
पिताजी के द्वारा कार चलाई गई कौन सा वाक्य है? - pitaajee ke dvaara kaar chalaee gaee kaun sa vaaky hai?

(1)  कर्ता कारक 

जिस रूप से क्रिया (कार्य) के करने वाले का बोध होता है वह कर्ता कारक कहलाता है।

इसका विभक्ति-चिह्न ‘ने’ है।

जो वाक्य में कार्य करता है उसे कर्ता कहा जाता है अथार्त वाक्य के जिस रूप से क्रिया को करने वाले का पता चले उसे कर्ता कहते हैं।

कर्ता कारक का प्रयोग

  1. परसर्ग सहित
  2. परसर्ग रहित

1. परसर्ग सहित

भूतकाल की सकर्मक क्रिया में कर्ता के साथ ने परसर्ग लगाया जाता है।

(1)   राधा ने पत्र लिखा।
वाक्य में क्रिया का कर्ता राधा है। इसमें ‘ने’ कर्ता कारक का विभक्ति-चिह्न है। इस वाक्य में लिखा श्याम ने उत्तर कह दिया। भूतकाल की क्रिया है।
(2)  राम ने घर की सफ़ाई की
(3)  मजदूर ने मिट्टी को फावड़े से खोदा।
(4)  श्याम ने उत्तर कह दिया।
(5)  सुरेश ने आम खाया।
(6)  मेरे मित्र ने मेरी सहायता की।
(7)  अध्यापक ने विद्यार्थियों को डांटा।
(8)  रोहन ने कहानी लिखा।
(9)  वाणी ने खाना बनाया। 

2. परसर्ग रहित

भूतकाल की अकर्मक क्रिया में परसर्ग का प्रयोग नहीं किया जाता है।

(1)  सोहन गाना गाता है
वाक्य में वर्तमानकाल की क्रिया का कर्ता सोहन है। इसमें ‘ने’ विभक्ति का प्रयोग नहीं हुआ है।
(2)  नरेश खाना बनाता  है।
(3)  बालक लिखता है।
(4)  उससे दिल्ली जाना है
(5)  लड़की स्कूल जाती है।
(6)  सोनू कहानियाँ लिखता है।
(7)  गुंजन हँसती है
(8)  गीता नाचती है
(9)  राम को अब जाना चाहिये

(2)  कर्म कारक 

जिस संज्ञा या सर्वनाम पर क्रिया का प्रभाव पड़े उसे कर्म कारक कहते है। 

इसकी विभक्ति ‘को‘ है। लेकिन कहीं कहीं पर कर्म का चिन्ह लोप होता है।

बुलाना , सुलाना , कोसना , पुकारना , जमाना , भगाना आदि क्रियाओं के प्रयोग में अगर कर्म संज्ञा हो तो को विभक्ति जरुर लगती है। जब विशेषण का प्रयोग संज्ञा की तरह किया जाता है तब कर्म विभक्ति को जरुर लगती है।

(1)  मोहन ने कीड़े को मारा।
(2)  माँ बच्चों को सुला रही है
(3)  मालिक ने नौकर को पुकारा।
(4)  लोगों ने चोर को पकड़ा।
(5)  सीता ने गीता को बुलाया।
(6)  बड़े लोगों को सम्मान देना चाहिए।
(7)  नेहा फल को खाती है।
(8)  रामू ने पक्षियों को पानी पिलाया।
(9)  गोपाल ने राधा को बुलाया।
(10)  अध्यापक ने बालक को समझाया।

(3)  करण कारक

वाक्य में  जिस साधन से क्रिया होता है, उसे करण कारक कहते है।

करण कारक के दो विभक्ति चिन्ह होते है : से और के द्वारा।

(1)  बालक गेंद से खेल रहे है।
इस वाक्य में कर्ता बालक खेलने का कार्य ‘गेंद से’ कर रहे हैं। अतः ‘गेंद से’ करण कारक है।
(2)  बच्चा बोतल से दूध पीता है।
(3)  राम ने रावण को बाण से मारा।
(4)   वह कुल्हाड़ी से पेड़ काटता  है
(5)  सीता ने फूलों से रंगोली को सजाया।
(6)  बच्चे खिलौने से खेल रहे हैं।
(7)  हम नेत्रों से देखते हैं
(8)   वह कार से घर जा रहा है
(9)  ग्वाला गाय से दूध दोहता है
(10)  वह लड़का ठण्ड से काँप रहा था।

(4)  सम्प्रदान कारक

संप्रदान का अर्थ है-देना।

जब वाक्य में किसी को कुछ दिया जाए या किसी के लिए कुछ किया जाए तो वहां पर सम्प्रदान कारक होता है।

सम्प्रदान कारक के विभक्ति चिन्ह के लिए या को हैं।

जब वाक्य में किसी को कुछ दिया जाए या किसी के लिए कुछ किया जाए तो वहां पर सम्प्रदान कारक होता है।

(1)  माँ बच्चों के लिए खाना लाई
(2)  मोहन ने गरीबों को कपड़े दिए
(3)  मैं पिता जी के लिए चाय बना रहा हूँ।
(4)  यह चावल पूजा के लिए हैं
(5)  रमेश मेरे लिए कोई उपहार लाया है।
(6)  भोजन के लिए सब्जी लाओ।
(7)  बच्चा दूध के लिए रो रहा है
(8)  सीमा ने गीता को एक किताब पकड़ाई
(9)  अमन ने श्याम को गाड़ी दी।
(10)  राकेश फूलों को पसंद करता है। 

(5)  अपादान कारक

संज्ञा के जिस रूप से एक वस्तु का दूसरी से अलग होना पाया जाए वह अपादान कारक कहलाता है।

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से अलग होना , उत्पन्न होना , डरना , दूरी , लजाना , तुलना करना आदि का पता चलता है उसे अपादान कारक कहते हैं। 

विभक्ति-चिह्न ‘से’ है।

(1)  पेड़ से फल गिरा।
(2)  सूरज घर से चल पड़ी।
(3)  बिल्ली छत से कूद पड़ी
(4)  सांप बिल से बाहर निकला।
(5)  हिमालय से गंगा निकलती है।
(6)  पृथ्वी सूर्य से दूर है।
(7)  आसमान से बिजली गिरती है।
(8)  लड़का छत से गिरा है।
(9)  चूहा बिल से बाहर निकला।
(10)  दूल्हा घोड़े से गिर पड़ा।

(6)  सम्बन्ध कारक

संज्ञा या सर्वनाम का वह रूप जो हमें किन्हीं दो वस्तुओं के बीच संबंध का बोध कराता है, वह संबंध कारक कहलाता है।

सम्बन्ध कारक के विभक्ति चिन्ह का, के, की, ना, ने, नो, रा, रे, री आदि हैं।इसकी विभक्तियाँ संज्ञा, लिंग, वचन के अनुसार बदल जाती हैं।

(1)  रीटा की बहन माया है
(2)  यह माला की पुस्तक है
(3)  यह रामेश के पिता जी हैं
(4)  यह सोहन का खिलौना है
(5)  राजा दशरथ के चार बेटे थे।
(6)  गीता का पैर दर्द हो रहा है
(7)  मेरा लड़का बहुत होशियार है
(8)  मेरी बेटी का नाम सोनिया है
(9)  बरैली रवि का गाँव है
(10)  वह राजीव की बाइक है 

(7)  अधिकरण कारक

शब्द के जिस रूप से क्रिया के आधार का बोध होता है अधिकरण कारक उसे कहते हैं। 

इसके विभक्ति-चिह्न ‘में’ और ‘पर’ है।

भीतर, अंदर, ऊपर, बीच आदि शब्दों का प्रयोग इस कारक में किया जाता है।

इसकी पहचान किसमें , किसपर , किसपे आदि प्रश्नवाचक शब्द लगाकर भी की जा सकती है। कहीं कहीं पर विभक्तियों का लोप होता है तो उनकी जगह पर किनारे , आसरे , दीनों , यहाँ , वहाँ , समय आदि पदों का प्रयोग किया जाता है।

(1)  मेज पर पानी का गिलास रखा है
(2)  फ्रिज में सब्जियाँ रखी है।
(3)  पेड़ पर तोता बैठा है।
(4)  बच्चे कक्षा में पढ़ रहे है
(5)  सीता पलंग पर सो रही है
(6)  जून में बहुत गर्मी पड़ती है
(7)  रोहन कार में बैठकर बाज़ार जा रहा है
(8)  हमे किसी पर भी अत्च्याचार नहीं करना चाहिए
(9)  मेरी बेटी में बहुत सारे गुण हैं
(10)  कुर्सी पर नेहा बैठी हुई है 

(8)  संबोधन कारक

संज्ञा या सर्वनाम का वह रूप जिससे किसी को बुलाने, पुकारने या बोलने का बोध होता है, तो वह सम्बोधन कारक कहलाता है।