घर का मुखिया अनुशासित होता है, तो परिवार भी अनुशासन में रहता है। परिवार कितना विकसित होता हैै और कैसे एक ख़ुशहाल और मज़बूत परिवार के रूप में उभरकर आता है यह निर्भर करता है उस घर के ‘मुखिया’ पर। उनका घर के छोटे और बड़े सदस्यों के प्रति व्यवहार व अनुशासन प्रणाली इस प्रकार होनी चाहिए जो परिवार को एक मज़बूत व प्रेम की डोरी में बांधकर रख सके। और इसकी शुरुआत होती है घर के छोटे सदस्यों के बालपन से। Show परिवार के छोटे सदस्य अपने बड़ों से दो प्रकार से सीखते हैं, पहला, जो उन्हें बोलकर सिखाया जाता है, दूसरा, जो बोला है उसे करके दिखाकर। स्पष्ट है, आचरण बोलकर नहीं, अभ्यास में लाकर सिखाया जाता है। पर अनुशासन ज़रूरी क्यों है? हम कई बार किसी भी व्यक्ति के लिए सुनते हैं कि ‘वह अच्छे परिवार से है’, लेकिन सवाल यह है कि ‘अच्छा परिवार’ बनता कैसे है? अच्छा परिवार यानी अनुशासित और ज़िम्मेदार परिवार, जहां हर सदस्य नियम और क़ायदों के साथ चलता है। नियम ही परिवार, मनुष्य और वस्तुओं के प्रति सम्मान की भावना उत्पन्न करते हैं। परिजनों, मेहमानों, मूक प्राणियों की भावनाओं तथा वस्तुओं और व्यवस्थाओं के प्रति संवेदनशीलता की जैसी क़द्र इंसान घर में करेगा, वैसा ही उसका आचरण बाहर की दुनिया में होगा। नियम और क़ायदे परिवार की नींव हैं, जो व्यक्ति को बेहतर इंसान बनाते हैं। इससे सबका जीवन समान रूप से व्यतीत होता है और वे परिवार के प्रति ज़िम्मेदार बनते हैं। ज़िम्मेदारी का भाव घर के साथ-साथ बाहर भी क़ायम रहता है। इस तरह तय कर सकते हैं नियम... एक वक़्त का खाना साथ खाएं कहते हैं कि जो परिवार साथ बैठकर खाना खाता है वो हमेशा एक-साथ होता है। साथ खाना खाने से रिश्ते मज़बूत होते हैं और एक-दूसरे के अनुभव साझा करने के लिए भी वक़्त मिल जाता है। घर के बड़े एक ऐसा वक़्त चुन सकते हैं जब पूरा परिवार घर पर मौजूद हो, जैसे कि रात का भोजन साथ कर सकते हैं। यह नियम भी होना चाहिए कि भोजन करते समय कोई अन्य कार्य नहीं करेगा जैसे कि ना तो मोबाइल का इस्तेमाल करना है और ना ही टीवी देखना है। ध्यान केवल परिवार और भोजन पर होना चाहिए। प्रार्थना भी सभी सदस्योंके साथ करें जब हम प्रार्थना, पूजापाठ या इबादत करते हैं, तो अपने साथ-साथ दूसरों के लिए भी प्रार्थना करते हैं। यदि बच्चों को इसमें शामिल करेंगे, तो उनमें स्वार्थ का भाव दूर होने के साथ-साथ दूसरों के लिए प्रार्थना करने का भाव विकसित होगा। इसका दूसरा फ़ायदा यह भी है कि यदि रीति-रिवाज बच्चों में छुटपन से ही डालेंगे, तो वे इन्हें समझेंगे, संस्कारी बनेंगे और जानकार भी। सुबह और शाम के समय यदि बच्चे घर पर मौजूद हैं, तो उन्हें पूजापाठ में शामिल करें। बड़ों के द्वारा की जा रही विधियों को देखकर ही बच्चे सीख सकते हैं। एक समय की प्रार्थना में पूरे परिवार की उपस्थिति अनिवार्य करें। जब एक-साथ प्रार्थना करेंगे, तो साथ मज़बूती से खड़े हो सकेंगे। सबके दायरे तय करें घर में किस समस्या की चर्चा पर कौन शामिल होगा और किस हद तक शामिल होगा यह घर के मुखिया को तय करना होगा। छोटे किन मुद्दों में शामिल होंगे और किन में नहीं ये दायरे तय करने का हक़ भी सिर्फ़ घर के मुखिया या बड़ों का होगा। इन सारी बातों से छोटों में एक अनुशासित व्यवहार विकसित होगा, साथ ही साथ परिवार के सदस्यों में प्रेम व सम्मान बना रहेगा। समय सीमा का नियम बनाएं कुछ चीज़ों के लिए समय सीमा तय करें जिसका पालन बच्चों से लेकर बड़ों तक सब करें। एक नियम आठ घंटे की नींद लेने का बनाएं। ये सबके लिए समान हो। ऐसा ना हो कि बच्चों को जल्दी सोने के निर्देश देकर बड़े देर रात तक जागते रहें। दूसरा नियम घर लौटने के समय का है। कोशिश यह करनी है कि हर सदस्य शाम को तय समय तक घर लौटकर आ जाए। हालांकि जिनकी देर रात तक दफ़्तर में काम करने की मजबूरी है, उन्हें छूट दी जा सकती है, लेकिन अन्य सदस्यों के लिए यह नियम अपरिवर्तनीय होना चाहिए। भेदभाव पैदा ना होने दें प्रिय बच्चे या प्रिय बहू-बेटे को लेकर पक्षपात वाला रवैया बड़े ना बनाएं। जिन नियमों में लचीलापन है, वो सबके लिए है और जिनके पालन में छूट नहीं दी जा सकती, वो भी सबके लिए समान हो। फिर भी सवाल उठ सकते हैं, जैसे पहले जिन मामलों में सख़्ती थी, अब छूट क्यों है? ऐसे सवालों पर घर के मुखिया को खुलकर बात करनी चाहिए और अपना पक्ष इस तरह स्पष्ट करना चाहिए कि बच्चों के मन में कोई कड़वाहट ना उपजे। सवाल पूछने, जिज्ञासाओं को सामने रखने को प्रोत्साहित कीजिए, यह असरदार और कारगर प्रक्रिया है। वित्तीय ज़िम्मेदारी बराबर रखें संयुक्त परिवार में घर ख़र्च के हिस्सों को लेकर सबसे ज़्यादा मुद्दे खड़े होते हैं। अगर परिवार में दो बेटे हैं, एक की आय दूसरे की तुलना में कम है तो इसे संतुलित करने की ज़िम्मेदारी भी मुखिया की है। जब घर ख़र्च को सदस्यों में बांटें, तो फ़ीसदी के हिसाब से तय करें, जैसे हर सदस्य को अपनी आय का पांच या दस फ़ीसदी देना है। महाभारत में पांडवों का परिवार श्रेष्ठ परिवार था। उस परिवार में 3 बातें हर सदस्य में थी।पहली एक-दूसरे के प्रति जैसा प्रेम, दूसरी समर्पण और तीसरी कर्तव्य की भावना का ज्ञान।ऐसा आज के परिवार में नहीं होता है। परिवार होता क्या है? ऐसे लोगों का समूह जो भौतिक और मानसिक स्तर पर एक-दूसरे से प्रगाढ़ता से जुड़ा हो। जिसके सभी सदस्य अपना फर्ज पूरी ईमानदारी से निभाते हैं और उदारता पूर्वक एक-दूसरे के लिये त्याग करते हैं, परेशानियों में सहयोग करते हैं। कोई भी परिवार संगठित, विकसित और उन्नतिशील तभी हो सकता है, जबकि उसका प्रत्येक सदस्य अपने कर्तव्य को अपना धर्म मानकर पूरी निष्ठा और गहराई से पालन करे।
महाभारत में पांडवों का परिवार देखिए। मां कुंती और पांचों भाई। मां ने पहले अपने कर्तव्य निभाए। अपनी सौतन माद्री की दोनों संतानों नकुल और सहदेव को भी अपने बच्चों जैसा ही प्रेम और परवरिश दी। संस्कार दिए। सभी बेटे भी ऐसे ही हैं। मां के मुंह से निकली हर बात को पूरा करना, बड़े भाई के प्रति आदर, हर भाई को अपने कर्तव्य का भलीभांति ज्ञान था। किसे क्या करना है जिम्मेदारी तय थी। तभी पांडव जहां भी रहे, सुखी रहे। जिन परिवारों में ऐसा समर्पण नहीं होता, वहां अक्सर वैमनस्यता, अलगाव और बिखराव की स्थिति पैदा हो जाती है।
परिवार की खुशहाली और समृद्धि तभी संभव है जबकि परिवार का कोई भी सदस्य स्वार्थी, विलासी और दुर्गुणी न हो। यदि परिवार में धर्म-कर्तव्यों के प्रति पूरी आस्था और समर्पण होगा तो वे अच्छी तरह से समझ पाएंगे कि स्वार्थ की बजाय स्नेह-सहयोग का माहौल ही फायदेमंद है। किसी भी परिवार में अलगाव, बिखराव या मन-मुटाव तभी पैदा होता है, जबकि सदस्यों में अपने कर्तव्य की बजाय अधिकार को पाने की अधिक जल्दी होती है।
यदि कर्तव्य और फर्ज को गहराई से समझकर इनके बीच संतुलन साध लिया जाए तो कोई भी परिवार टूटने और बिखरने से बच सकता है। यानि जिस परिवार में अधिकारों से पहले कर्तव्यों की फिक्र की जाती है, वहीं पर स्नेह, सहयोग और सद्भावना कायम रह पाती है। जहां पर इस तरह की सुलझी हुई सद्बुद्धि का माहौल होगा वहीं पर सुख-संपत्ति से भरा-पूरा राम परिवार जैसा वातावरण होगा। परिवार के सदस्य को क्या करना चाहिए?परिवार को चलाने की जिम्मेदारी हर किसी की होती है। अगर हर व्यक्ति परिवार में अपनी जिम्मेदारी को समझें तो एक सदस्य पर घर के काम का बोझ नहीं आता है। सदस्यों की क्षमताओं के आधार पर काम बांट देने चाहिए। किसी एक ही व्यक्ति से सारे काम नहीं हो सकते।
घर परिवार में कैसे रखें खुशहाली?Family Ko Khush Kaise Rakhe | 10 बातें घर-परिवार में खुशहाली रखने.... परिवार के सदस्यों की सभी विवेकपूर्ण जरुरतों की पूर्ति करें. खर्च के साथ ही साथ बचत की आदत भी डालें. घरेलू खर्च में, कटौती करें. अभिभावकों को एक साथ अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए. यदि आप घर के मुखिया है तो आपको खुश रहना होगा. हम परिवार के सदस्यों के बीच संबंध कैसे मजबूत कर सकते हैं?पारिवारिक संबंधों को मजबूत और खुशहाल बनाने के लिए परिवार के प्रत्येक सदस्य को मिल जुल कर साथ साथ रहना चाहिए. परिवार के हर सदस्य की दुख तकलीफ को अपना समझकर घर का हिस्सा बना रहना चाहिए. परिवार में सभी सदस्य आर्थिक सामाजिक और राजनीतिक रूप से सम्मान नहीं होते है. कुछ बहुत ही अच्छी पोजीसन में कोई कमजोर. मानसिक रूप से कमजोर. परिवार में कौन कौन सदस्य होते हैं?हिन्दी मे पारिवारिक संबंधो के नाम. नाना : माँ का पिता. नानी : माँ की माँ. मामा : माँ का भाई. मामी : मामा की पत्नी. मौसी : माँ की बहन. मौसा : मौसी का पति. दादा : पिता का पिता. दादी : पिता की माँ. |