Solution : उत्पादन प्रकाशसंश्लेषण के दौरान पादपों द्धारा एक निश्चित समयावधि में प्रति इकाई क्षेत्र द्धारा उत्पन्न किए गए जैव मात्रा या कार्बन सामग्री की मात्रा है। जैव मात्रा के उत्पादन की दर को उत्पादकता कहते हैं। अपघटन एक प्रक्रिया है जिसमें जटिल कार्बनिक सामग्री को अकार्बनिक तत्त्वों जैसे- `CO_2`, जल एवं पोषकों में खंडित किया जाता है। Show उत्पादकता का आशय इस बात से है कि लोग कितनी उत्कृष्टता के साथ संसाधनों को जोड़कर वस्तुएँ या सेवायें उत्पादित करते हैं। देशों के लिये इसका आशय है उपलब्ध संसाधनों जैसे कच्चे माल, श्रम, कौशल, मंहगे उपकरणों, भूमि , बौद्धिक सम्पत्ति, प्रबंधन क्षमता तथा वित्तीय पूंजी से अत्यधिक उत्पादन किस प्रकार किया जाये। Q.33: उत्पादक और उपभोक्ता में अंतर बताओ। उत्तर : उत्पादकउपभोक्ता(1) ऐसे जीव जो प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया से अपना भोजन बनाते हैं उन्हें उत्पादक कहते हैं।(2) हरे पौधे उत्पादक जीव कहलाते हैं। (1) ऐसे जीव जो अपने भोजन के लिए दूसरे जीवों पर निर्भर करते हैं, उपभोक्ता कहते हैं।(2) सारे जंतु उपभोक्ता कहलाते हैं। by Biology experts to help you in doubts & scoring excellent marks in Class 12 exams….Question : उत्पादक एवं अपघटक में अंतर स्पष्ट कीजिए | उत्पादन एवं उपभोग में क्या अंतर है? इसे सुनेंरोकेंउत्पादन एक प्रकार का नाम है, जिसके अंतर्गत अपनी आवश्यकताओं एवं उपयोगिताओं में वृद्धि तथा उनको पूरा करने के लिए वस्तुओं का निर्माण या सृजन किया जाता है। उपभोग एक क्रिया है, जिसके द्वारा अपनी प्रत्येक संतुष्टि के लिए वस्तुओं और सेवाओं का उपयोग किया जाता है, और इसकी उपयोगिता मूल्य को उपभोक्ता द्वारा चुकाई जाती है। उपभोग फलन से क्या आशय है? इसे सुनेंरोकेंउपभोग फलन को परिभाषित करते हुए ने कहा है कि ‘उपभोग फलन यह बतलाता है कि उपभोक्ता आय के प्रत्येक सम्भव स्तर पर उपभोग की वस्तुओं पर कितना खर्च करना चाहेंगा। उत्पादक और उपभोक्ता के ऊर्जा स्रोतों में क्या अंतर है?इसे सुनेंरोकेंस्वपोषी – जिसमें जीव अपने भोज्य पदार्थों का निर्माण स्वयं करते हैं। जैसे-सभी हरे पेड़-पौधे प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया के द्वारा अपने भोजन का निर्माण खुद करते हैं। विषमपोषी – जिसमें जीव अपने भोज्य पदार्थों का संश्लेषण स्वयं नहीं करते बल्कि ये इन्हें जीवित या मृत पौधों तथा जंतुओं के शरीर से प्राप्त करते हैं। पढ़ना: एरोप्लेन में क्या क्या सामान ले जा सकते हैं? उत्पादन और उत्पादकता में क्या अंतर है? इसे सुनेंरोकेंउत्पादकता एवं उत्पादन में अंतर ‘उत्पादकता’ साधनों का कुल उत्पत्ति से अनुपात है। समस्त साधनों से प्राप्त होने वाला माल एवं सेवाएँ ‘उत्पादन’ है। इसमें व्यय के पहलू पर ध्यान नहीं दिया जाता है क्योंकि साधनों पर अधिक से अधिक व्यय करके उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है, लेकिन यह आवश्यक नहीं है कि उत्पादकता में वृद्धि हो गई हो। उत्पादक कौन होते हैं? इसे सुनेंरोकेंवे हरे पेड़-पौधे जो प्रकाश-संश्लेषण प्रक्रिया से सूर्य के प्रकाश और क्लोरोफिल की उपस्थिति में अकार्बनिक पदार्थों से कार्बनिक पदार्थ का निर्माण कर सकते हैं, उन्हें उत्पादक कहते हैं। सर्वप्रथम उत्पादकता का विचार 1766 में प्रकृतिवाद के संस्थापक क्वेसने के लेख में सामने आया। बहुत समय तक इसका अर्थ अस्पष्ट रहा। एम0एम0 मेहता ने इस संबंध में ठीक ही लिखा है, ‘‘दुर्भाग्य से, उत्पादकता शब्द औद्योगिक अर्थशास्त्र के उन कुछ शब्दों में से है जिन्होनें अनेक विभिन्न एवं विरोधी विवेचन उत्पन्न किये है।’’ उत्पादकता की अवधारणा को भली प्रकार समझने के लिए निम्न प्रमुख विद्वानों के विचार प्रस्तुत किये जा रहे हैं :
उत्पादकता को समझने के लिए उत्पादन एवं लागत की स्पष्ट परिभाषा करनी होगी। उत्पादन के अंतर्गत उन सभी वस्तुओं एवं सेवाओं को सम्मिलित किया जाता है, जिनके अंतर्गत न केवल औद्योगीकरण एवं कृषि संबंधी उत्पाद पदार्थ सम्मिलित होते है।, बल्कि चिकित्सकों, शिक्षकों, दुकानों, कार्यालयों, परिवहन संस्थानों तथा अन्य सेवा उद्योगों में रत व्यक्ति भी सम्मिलित होते है।। लागत से हमारा अभिप्राय उत्पादन में सम्मिलित सभी प्रकार के प्रयासों एवं बलिदानों अर्थात् प्रबंधकों, षिल्पियों एवं श्रमिकों के कार्य से है। सारांश में लागत का अभिप्राय उत्पादन को अपना योगदान देने वाले सभी कारकों का प्रयास एवं बलिदान है। इस प्रकार पूर्ण उत्पादकता की अवधारणा को स्पष्ट करने हेतु निम्न सूत्र को प्रयोग में लाया जा सकता है। समस्त प्रकार का उत्पादन उत्पादकता = ------------- समस्त प्रकार की लागत दूसरे शब्दों में उत्पादकता को समस्त प्रकार की लागत का प्रति इकाई उत्पादन कहा जा सकता है उत्पादकता एवं उत्पादन में अंतरप्राय: ‘उत्पादकता’ एवं ‘उत्पादन’ शब्द को पर्यायवाची समझे जाने की भूल की जाती है। वास्तव में इन दोनों शब्दों में पर्याप्त अंतर है। ‘उत्पादकता’ साधनों का कुल उत्पत्ति से अनुपात है यानी प्रति साधन की इकाई का उत्पादन से अनुपात है। समस्त साधनों से प्राप्त होने वाला माल एवं सेवाएँ ‘उत्पादन’ है। इसमें व्यय के पहलू पर ध्यान नहीं दिया जाता है क्योंकि साधनों पर अधिक से अधिक व्यय करके उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है, लेकिन यह आवश्यक नहीं है कि उत्पादकता में वृद्धि हो गई हो। उदाहरणार्थ यदि एक कारखाने में 1000 व्यक्ति 500 वस्तुयें बनाते हैं तथा दूसरे कारखाने में समान दशा में 2000 व्यक्ति केवल 800 वस्तुयें बनाते हैं। निश्चय ही दूसरे कारखाने का उत्पादन प्रथम कारखाने से अधिक है, लेकिन दूसरे कारखाने की उत्पादकता प्रथम कारखाने से कम है।उत्पादकता को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकउत्पादकता को प्रभावित करने वाले कारक अत्यंत जटिल तथा अंतसंर्ब ंधित है क्योंकि इन्हें किसी तार्किक एवं क्रमबद्ध क्रम में व्यवस्थित करना कठिन है। यह प्रमाणित करना कठिन है कि उत्पादन में वृद्धि अमुक कारक के परिणाम स्वरूप है अथवा अनेक कारकों के सम्मिलित प्रभाव के कारण है। वर्गीकरण की प्रविधि एवं विधितंत्र में विभेद होते हुए भी कुछ प्रमुख कारकों को सरलतापूर्वक विभेदीकृत किया जा सकता है। इस कारकों पर प्रकाश डालने वाले कुछ प्रमुख विचार है -
अंतराष्ट्रीय श्रम संगठन के उत्पादकता मिशन ने जो भारत में 1952-54 में रहा तथा जिसने भारत सरकार को अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत किया इस विचार से सहमति व्यक्त की है कि इस दिशा की संपूर्ण औद्योगिक व्यवस्था में प्राविधिक प्रतिरूपों की तुलना में मानवीय कारकों के सेवायोजन पर अधिक बल दिया जाना चाहिये। इसने यह विचार व्यक्त किया, ‘‘भारत में जनशक्ति का बाहुल्य तथा पूँजी की कमी है। उत्पादन-वृद्धि करने हेतु प्रविधियों का प्रयोग, आवश्यक रूप से बहुलता पूर्ण मानवीय साधनों के सबसे अधिक अच्छे प्रयोग तथा समस्त स्वरूपों में पूँजी की बर्बादी को रोकने की आवश्यकता द्वारा नियंत्रित होना चाहिये। उद्योग के क्षेत्र में मनुष्य स्थूल रूप से श्रमिकों, प्रबंधकों एवं अधीक्षकों के रूप में वर्गीकृत किए जा सकते हैं। उत्पादन की प्रक्रिया से प्रत्यक्ष रूप से संबंधित होने के कारण श्रमिकों का महत्व सर्वोपरि है। वी0 वी0 गिरि ने ठीक ही लिखा है कि औद्योगिक संस्थान के अंतर्गत श्रमिक प्रभुत्व पूर्ण अंशधारी है तथा उनके सहयोग, अच्छे कार्य, अनुशासन, ईमानदारी एवं चरित्र के बिना उद्योग प्रभाव पूर्ण परिणामों अथवा लाभों को प्राप्त करने में समर्थ नही होगा। उद्योग के अंतर्गत मानसिक व्यवस्था चाहे जितनी कुशल क्यों न हो, यदि मानवीय तत्त्व सहयोग करने से इन्कार कर दे तो उद्योग चल पाने में असमर्थ हो जाता है। नियोजन, नियंत्रण, समन्वय एवं सम्प्रेरणा से संबंधित नाना प्रकार के कार्यो का संपादन करते हुए प्रबंधकों के प्रतिनिधि भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। कुछ विशेषज्ञों ने तो इन्हें आर्थिक क्षेत्र की युद्ध भूमि में महत्त्वपूर्ण अधिकार कहा है। किन्तु ये दोनों औद्योगिक संगठन के अंतर्गत विरोधी दिशाओं में कार्य करते हैं और इन दोनों को एक दूसरे के समक्ष अधीक्षकगण ही ला सकते हैं जैसा कि इस कथन से स्पष्ट है, ‘‘व्यवसायिक संसार में अधीक्षक विरोधी दिशाओं में कार्य करने वाली दो आर्थिक शक्तियों के मध्य एक विवेचक है। प्रबंधकों को उत्पादन की इकाई को लागत को कम करने हेतु निरंतर संघर्ष करते हुए बचत-पूर्ण मनोवृत्ति वाला होना चाहिए जबकि श्रमिक वैयक्तिक रूप से तथा अपने संगठन दोनों के माध्यम से निरंतर अपनी आर्थिक स्थिति को अधिक अच्छा बनाने के लिए दबाब डालते रहते हैं। अधीक्षक प्रबंध का एक सदस्य है, इसलिए उससे यह आशा की जाती है कि श्रमिकों के साथ अपने दैनिक संपर्को में प्रबंधकों की आर्थिक विचारधारा को परावर्तित करें। श्रमिकों द्वारा अन्य दिशाओं में डाले गये दबाब, मजदूरी बढ़ाने की लगातार मांग तथा श्रमिकों के सामाजिक संगठन द्वारा उत्पादन के चेतन परिसीमन जैसे कारकों में परावर्तित होते हैं। उत्पादन और उत्पादकता में क्या अंतर है?उत्पादकता एवं उत्पादन में अंतर
'उत्पादकता' साधनों का कुल उत्पत्ति से अनुपात है। समस्त साधनों से प्राप्त होने वाला माल एवं सेवाएँ 'उत्पादन' है। इसमें व्यय के पहलू पर ध्यान नहीं दिया जाता है क्योंकि साधनों पर अधिक से अधिक व्यय करके उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है, लेकिन यह आवश्यक नहीं है कि उत्पादकता में वृद्धि हो गई हो।
उत्पादकता का अर्थ क्या होता है?'उत्पादकता' साधनों का कुल उत्पत्ति से अनुपात है यानी प्रति साधन की इकाई का उत्पादन से अनुपात है। समस्त साधनों से प्राप्त होने वाला माल एवं सेवाएँ 'उत्पादन' है।
उत्पादन से क्या तात्पर्य है?उद्योगों द्वारा किसी वस्तु तथा सेवा का निर्माण करना। जिससे मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सकती है उसे उत्पाद कहते है।
उत्पादकता की इकाई क्या है?उत्तर- उत्पादकता (Productivity)– एक पारिस्थितिक तंत्र में इकाई (प्रायः 1 वर्ष) में इकाई क्षेत्र (एक वर्ग मीटर) के जीवों द्वारा ऊर्जा के स्थिरीकरण की दर को उत्पादकता कहते हैं अथवा पारिस्थितिक तंत्र के इकाई क्षेत्र में निश्चित समयावधि के दौरान निर्मित कार्बनिक पदार्थों की मात्रा को उत्पादकता कहते हैं।
|