परशुराम जी ने किसका वध किया? - parashuraam jee ne kisaka vadh kiya?

आज हम आप को बताये गए को काटा था परशुराम ने अपनी माँ का सर , और कहा पे उनको अपनी माँ के हत्या के पास से मुक्ति मिले थी

परशुराम विष्णु जी के उग्र अवतार है | उन्हें भगवान विष्णु का छठा अवतार भी कहा जाता है। पितामह भृगु द्वारा सम्पन्न नामकरण संस्कार के अनन्तर राम, जमदग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और शिवजी द्वारा प्रदत्त परशु धारण किये रहने के कारण वे परशुराम कहलाये। | उनके पिता का नाम जमदग्नि और उनकी माता का नाम रेणुका है | परशुराम इनकी सबसे छोटी संतान थे और बहुत हे आज्ञाकारी थे | इनके ४ बढ़े भाई थे | एक दिन उनके पिता ने उनकी माता से पास के जंगल से हवन के लिए लकड़ी लेन को कहा पर वो यज्ञ का समय बीतने के बाद आयी | जब जामदग्न्य ने उनकी देरी से आने का कारण पूतचा पर वो झूठ बोली की उन्हें यज्ञ के लिए लकडिया नहीं मिली और वो गलती से बहुत आगे चली गयी | जबकि वो वांकी एक नदी में गन्धर्वो और अवसराओ की जल क्रीडया देखने लगी और समय का पता नहीं लगा | जामदग्न्य बहुत तपस्वी थे उन्हों ने अपनी दिव्यदृष्टि से सब जान लिया की वो किस कारण देरी से आयी | अपनी पत्नी के झूठ बोलने से वो बहुत क्रोदित हुए | उन्हों ने अपने पुत्रो को बुलाया और उन्हों ने बताया की आपकी माता ने झूठ बोलै है , तुम अपनी माता का सर काट दो | बाकी पुत्रो ने अपनी माता का सर नहीं कटा पर जब परशुराम से कहा के अपनी माता के साथ अपने भाइयो का सर भी काट दो तो उन्होंने बिना विलमह किये आज्ञा का पालन किया | जमदग्नि बहुत पर्सन हुए और परशुराम से कहा की पुत्र तुम कोई वरदान मानगो | तब परशुराम ने खा की उनकी माँ और सभी भाई जीवित होजाए और उनको इस बात का समरण न रहे की उनका मैंने सर काटा था | जमदग्नि नई वैसा ही किया और सभी जीवित होगये और किसी को इस बात का समरण नहीं रहा | परशुराम फि मातृकुण्डिया चित्तौरगढ़ में जेक शिव की तपस्या की और तब उनको माता की हत्या के दोष से मुक्ति मिली |

1.अपने शिष्य भीष्म को नहीं कर सके पराजित

महाभारत के अनुसार महाराज शांतनु के पुत्र भीष्म ने भगवान परशुराम से ही अस्त्र-शस्त्र की विद्या प्राप्त की थी। एक बार भीष्म काशी में हो रहे स्वयंवर से काशीराज की पुत्रियों अंबा, अंबिका और बालिका को अपने छोटे भाई विचित्रवीर्य के लिए उठा लाए थे। तब अंबा ने भीष्म को बताया कि वह मन ही मन किसी और का अपना पति मान चुकी है तब भीष्म ने उसे ससम्मान छोड़ दिया, लेकिन हरण कर लिए जाने पर उसने अंबा को अस्वीकार कर दिया।

तब अंबा भीष्म के गुरु परशुराम के पास पहुंची और उन्हें अपनी व्यथा सुनाई। अंबा की बात सुनकर भगवान परशुराम ने भीष्म को उससे विवाह करने के लिए कहा, लेकिन ब्रह्मचारी होने के कारण भीष्म ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। तब परशुराम और भीष्म में भीषण युद्ध हुआ और अंत में अपने पितरों की बात मानकर भगवान परशुराम ने अपने अस्त्र रख दिए। इस प्रकार इस युद्ध में न किसी की हार हुई न किसी की जीत।

2. ऐसे हुआ भगवान परशुराम का जन्म

महर्षि भृगु के पुत्र ऋचिक का विवाह राजा गाधि की पुत्री सत्यवती से हुआ था। विवाह के बाद सत्यवती ने अपने ससुर महर्षि भृगु से अपने व अपनी माता के लिए पुत्र की याचना की। तब महर्षि भृगु ने सत्यवती को दो फल दिए और कहा कि ऋतु स्नान के बाद तुम गूलर के वृक्ष का तथा तुम्हारी माता पीपल के वृक्ष का आलिंगन करने के बाद ये फल खा लेना।

किंतु सत्यवती व उनकी मां ने भूलवश इस काम में गलती कर दी। यह बात महर्षि भृगु को पता चल गई। तब उन्होंने सत्यवती से कहा कि तूने गलत वृक्ष का आलिंगन किया है। इसलिए तेरा पुत्र ब्राह्मण होने पर भी क्षत्रिय गुणों वाला रहेगा और तेरी माता का पुत्र क्षत्रिय होने पर भी ब्राह्मणों की तरह आचरण करेगा।

तब सत्यवती ने महर्षि भृगु से प्रार्थना की कि मेरा पुत्र क्षत्रिय गुणों वाला न हो भले ही मेरा पौत्र (पुत्र का पुत्र) ऐसा हो। महर्षि भृगु ने कहा कि ऐसा ही होगा। कुछ समय बाद जमदग्रि मुनि ने सत्यवती के गर्भ से जन्म लिया। इनका आचरण ऋषियों के समान ही था। इनका विवाह रेणुका से हुआ। मुनि जमदग्रि के चार पुत्र हुए। उनमें से परशुराम चौथे थे। इस प्रकार एक भूल के कारण भगवान परशुराम का स्वभाव क्षत्रियों के समान था।

किया श्रीकृष्ण के प्रस्ताव का समर्थन

महाभारत के युद्ध से पहले जब भगवान श्रीकृष्ण संधि का प्रस्ताव लेकर धृतराष्ट्र के पास गए थे, उस समय श्रीकृष्ण की बात सुनने के लिए भगवान परशुराम भी उस सभा में उपस्थित थे। परशुराम ने भी धृतराष्ट्र को श्रीकृष्ण की बात मान लेने के लिए कहा था।

क्यों किया कार्तवीर्य अर्जुन का वध?

एक बार महिष्मती देश का राजा कार्तवीर्य अर्जुन युद्ध जीतकर जमदग्रि मुनि के आश्रम से निकला। तब वह थोड़ा आराम करने के लिए आश्रम में ही रुक गया। उसने देखा कामधेनु ने बड़ी ही सहजता से पूरी सेना के लिए भोजन की व्यवस्था कर दी है तो वह कामधेनु के बछड़े को अपने साथ बलपूर्वक ले गया। जब यह बात परशुराम को पता चली तो उन्होंने कार्तवीर्य अर्जुन की एक हजार भुजाएं काट दी और उसका वध कर दिया।

फीचर डेस्क, अमर उजाला Published by: सोनू शर्मा Updated Wed, 13 Feb 2019 05:37 PM IST

भगवान परशुराम को कौन नहीं जानता है। उन्हें जगत के पालनहार भगवान विष्णु का छठा अवतार माना जाता है। कहते हैं कि परशुराम ने 21 बार समस्त क्षत्रिय वंशों का संहार कर भूमि को क्षत्रिय विहिन कर दिया था। इसका उल्लेख पुराणों में भी मिलता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान परशुराम ने ऐसा क्यों किया था? 

भगवान परशुराम द्वारा 21 बार क्षत्रियों के संहार के पीछे एक रोचक कहानी है। दरअसल, महिष्मती नगर के राजा सहस्त्रार्जुन क्षत्रिय समाज के हैहय वंश के राजा कार्तवीर्य और रानी कौशिक के पुत्र थे। सहस्त्रार्जुन का वास्तविक नाम अर्जुन था। कहते हैं कि उन्होंने भगवान दत्तात्रेय को अपनी तपस्या द्वारा प्रसन्न करके उनसे 10,000 हाथों का आशीर्वाद प्राप्त किया था।  इसके बाद से ही अर्जुन का नाम सहस्त्रार्जुन पड़ा। 

कहा जाता है महिष्मती सम्राट सहस्त्रार्जुन अपने घमंड में चूर होकर धर्म की सभी सीमाओं को लांघ चूका था। उसके अत्याचारों से जनता त्रस्त हो चुकी थी। वेद-पुराण और धार्मिक ग्रंथों को मिथ्या बताकर ब्राह्मण का अपमान करना, ऋषियों के आश्रम को नष्ट करना, उनका अकारण वध करना, प्रजा पर निरंतर अत्याचार करना, यहां तक कि उसने अपने मनोरंजन के लिए मदिरा के नशे में चूर होकर स्त्रियों के सतीत्व को भी नष्ट करना शुरू कर दिया था। 

ऐसे ही एक बार सहस्त्रार्जुन अपनी पूरी सेना के साथ जंगलों से होता हुआ जमदग्नि ऋषि के आश्रम में विश्राम करने के लिए पहुंचा। महर्षि जमदग्रि ने भी सहस्त्रार्जुन को अपने आश्रम का मेहमान समझकर खूब स्वागत सत्कार किया। कहते हैं ऋषि जमदग्रि के पास देवराज इंद्र से प्राप्त दिव्य गुणों वाली कामधेनु नामक चमत्कारी गाय थी। 

जमदग्नि ऋषि ने कामधेनु गाय के मदद से देखते ही देखते कुछ ही पलों में सहस्त्रार्जुन की पूरी सेना के लिए भोजन का प्रबंध कर दिया। कामधेनु गाय की ऐसी अद्भुत शक्तियों को देखकर सहस्त्रार्जुन के मन में उसे पाने की इच्छा जाग उठी। उसने ऋषि जमदग्नि से कामधेनु को मांगा, लेकिन उन्होंने ये कहकर उसे देने से इनकार कर दिया कि यह गाय ही उनके जीवन के भरण-पोषण का एकमात्र जरिया है। लेकिन सहस्त्रार्जुन कहां मानने वाला था। 

परशुराम जी ने किसका वध किया था?

लेकिन परशुराम जी ने पिता के कहने पर अपनी मां का वध किया था. जिसकी वजह से उन्हें मातृ हत्या का पाप भी लगा. उन्हें अपने इस पाप से मुक्ति भगवान शिव की कठोर तपस्या करने के बाद मिली. भगवान शिव ने परशुराम को मृत्युलोक के कल्याणार्थ परशु अस्त्र प्रदान किया, यही वजह थी कि वो बाद में परशुराम कहलाए.

क्या परशुराम ने अपनी मां का वध किया था?

ब्रह्रावैवर्त पुराण के अनुसार, भगवान परशुराम को एक बार उनके पिता ने आज्ञा दी थी कि वो अपनी मां का वध कर दें। भगवान परशुराम आज्ञाकारी पुत्र थे। इसलिए उन्होंने अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए तुरंत अपनी मां का सिर धड़ से अलग कर दिया था

परशुराम ने कितनी बार क्षत्रिय का वध किया?

14 मई 2021, दिन शुक्रवार को अक्षय तृतीया है। हर साल अक्षय तृतीया के दिन परशुराम जयंती मनाई जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान परशुराम विष्णु जी के छठवें अवतार हैं। परशुराम जी से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें एक ये है कि भगवान परशुराम ने क्षत्रिय कुल का 21 बार सर्वनाश किया था।

परशुराम का वध कैसे हुआ?

भगवान परशुराम मृत्यु से मुक्त हैं। वह उन 7 चिरंजीवी में से हैं, जिन्हें हमेशा के लिए अमर माना जाता है। भगवान परशुराम को दशावतार से संबंधित भगवान विष्णु के छठे अवतार के रूप में जाना जाता है।