मन बुद्धि का अर्थ क्या है? - man buddhi ka arth kya hai?

मन क्या है? मन के विभिन्न आयाम

मन बुद्धि का अर्थ क्या है? - man buddhi ka arth kya hai?
मन क्या है?

आम जन-जीवन मे मन शब्द का प्रयोग को ज्ञानइन्द्रिय की लिप्सा प्रकट करने के लिए की जाती है। जैसे ये खाने का मन कर रहा है, ये देखने का मन कर रहा है इत्यादि । लेकिन हमारा मन इससे ज्यादा जटिल है। 

योग विज्ञान मे मन को चार भागों में बाँटा गया है :- 

1. बुद्धि (तर्क की क्षमता)      2. अहम (पहचान)

3. मनस (याददाश्त) और      4. चित्त 

1. बुद्धि (तर्क की क्षमता) 

बुद्धि हमारे मन का वह पहलू है, जो हमें तार्किक क्षमता प्रदान करता है । तर्क से हम दो चिजों के बीच की अंतर देखने की कोशिश करते हैं। बुद्धि के माध्यम से हम भौतिक दुनिया की चिजों की पेचिदगी सुलझा पाते हैं। 

भौतिक विज्ञान या रसायन विज्ञान की सारी खोजें इसी बुद्धि की बदौलत हुई है। भौतिकता से जुड़े हर चिज की हम अपने तर्क के द्वारा व्याख्या देने की तथा उसके सत्यता की पुष्टी करने की कोशिश करते है।

लेकिन यदि हम बुद्धि का सही इस्तेमाल नहीं कर पाएं, तो यह घातक भी बन सकता है। क्योंकि तर्क के द्वारा गलत को सही और सही को गलत सिद्ध किया जा सकता है, जो कि अधिकांश वकील करते हैं। 

इसलिए कभी-कभी वह चिजें भी हमारे लिए सत्य हो जाती हैं जो वास्तव मे गलत है या हम उन चिजों पर विश्वास करने लग जाते हैं जिनका कोई अस्तित्व ही नहीं है। 

कभी-कभी ऐसा भी होता है कि बुद्धि का इस्तेमाल करने नही आने के कारण हम उल्टा - सिधा कोई भी तर्क देना शुरू कर देते हैं, जिसे कुतर्क कहा जाता है ।

लेकिन यदि हम इसका सही तरीके से इस्तेमाल करना सिख जाते हैं, तो मन का ये पहलू एक ताकतवर हथियार है। इंसानों से मे से अगर इस बुद्धि को हटा दिया जाए, तब इंसानों और जानवरों में कोई फर्क नहीं रह जाएगा । और तब शारिरिक रूप से ताकतवर शेर या हाथी का इस दुनिया पर वर्चस्व होगा। 

हम बुद्धि की बदौलत ही शरीर और मन के बीच का अंतर समझ पाते हैं। बुद्धि के बिना हम शरीर केन्द्रित बन जाएंगे। उसके बाद हम बस वही करेंगे जो हमारी ज्ञानइन्द्रियों को अच्छा लगेगा। हम बस वही चिजेेे खाना शुरू कर देंगे जो स्वाद में अच्छा लगेगा, भले ही वो हमारा पेट खराब दे। उसके बावजूद हम बार-बार वही खाएंगे अगर  इस बात का अवलोकन करने के लिए बुद्धि मौजूद न रहे ।

तो, इस प्रकार हम शरीर से परे जाकर शरीर की कार्य प्रणाली का अवलोकन कर पाते हैं। और यही बात जीवन के हर पहलू पर लागू होता है। मन को समझने के लिए मन से परे जाकर इसका अवलोकन करना होगा। भावनाओं को समझने के लिए भावनाओं से परे जाकर, इत्यादि।

2. अहम (पहचान) 

'अहम' मन का वह पहलू है जो भौतिक दुनिया मे हमारी पहचान को परिभाषित करता है। जैसे कोई स्वयं ही खुद का पहचान होता है, किसी के लिए उसका परिवार उसका पहचान होता है, किसी का पहचान उसका देश होता है इत्यादि। 

हमारी पहचान ही हमारी बुद्धि की दिशा तय करती है। अगर कोई राष्ट्रप्रेमी है तो वो अपने राष्ट्र को ही अपनी पहचान के रूप में देखेगा। ऐसे मे उसकी बुद्धि हमेशा राष्ट्र के बचाव के लिए काम करेगा।

 वही अगर कोई आतंकवाद को अपनी पहचान बना चुका है, तो उसकी बुद्धि आतंक फैलाने के तरिकों पर कार्य करेगी।

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हमरी पहचान क्या है?

तो बुद्धि और पहचान, इन दो पहलूओं मे ऐसा तालमेल है की अगर बुद्धि वाहन है तो पहचान उसका चालक। और साथ ही बुद्धि पहचान का रक्षक भी है।

इसलिए अगर कोई तेज बुद्धि गलत पहचान के। साथ जुड़ जाए तो वो विनाशकारी सिद्ध होती है। इसलिए बुद्धि की तीक्ष्णता जीतनी ज्यादा हो, उतना ही पहचान भी ज्यादा विस्तृत होना चाहिए। 

अगर तीक्ष्ण तार्किक क्षमता के साथ हम अपनी पहचान को किसी मजहब या राष्ट्र से जोड़ देंगे, तो अपने मजहब या राष्ट्र के लिए उचित तर्क तो प्रस्तुत कर पाएँगे, लेकिन स्थिति को विनाशकारी भी बना सकते हैं। 

दो देशों के बिच की लड़ाई, धर्म के नाम पर दंगे, सिमित पहचान रखने का नतिजा है। और चूँकी हम अपनी पहचान के लिए, लड़ रहे होते हैं, इसलिए इस तरह का विनाश फैलाकर भी गौरवान्वित महसूस करते हैं। 

इसलिए पुराने जमाने के गुरुकूलों में शिक्षा शुरू करने से पहले बच्चों को 'अहम ब्रम्हास्मि' का पाठ पढ़ाया जाता था, ताकि उनकी पहचान ब्रह्माण्डिय स्तर पर रहे। तो इस प्रकार हम देखते हैं, कि तेज बुद्धि होने के साथ-साथ हमारी पहचान भी असिमित होनी चाहिए |

3. मनस(याद्दाश्त)

'मनस' हमारे मन का वो पहलू है जो हमसे जुड़े सभी बदलावों की यादों को संग्रहित करके रखता है । ये यादें सिर्फ हमारे जन्म के बाद की ही नहीं होती, बल्कि जब से पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत हुई तब से लेकर आज तक की होती हैं। 

आप जानते होंगे पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत जलचर प्राणियों से हुई थी। जलचर का विकास होकर उभयचर बनें, फिर थलचर बने।

उसके लाखों सालों के बाद विकास की धीमी प्रक्रिया से गुजरते हुए बंदर बनें। और बंदरों का और विकास होने के बाद मानव अस्तित्व में आएं। 

इन बदलाओं की सारी यादें हमारे भीतर कैद हैं। उन्हीं यादों की वजह से हमारी शरीर एक निश्चित शारीरिक संरचना में रहता है। 

अगर एक गाय के बच्चा को और एक इंसान के बच्चा को जीवन भर एक ही भोजन दिया जाए, फिर भी गाय के बच्चे की शरीरीक संरचना गाय जैसी ही रहेगी और इंसानी बच्चे की इंसानों जैसी। यह उन्ही यादों की वजह से होता है।

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हमारी याद्दाश्त

मन का यह पहलू भी 'बुद्धि' और 'अहम' के समान ही महत्वपूर्ण है । अगर आपके जन्म के बाद की भी यादें मिटा दी जाए, तो आपके पास कीतनी भी तीक्ष्ण बुद्धि हो, आप मूर्ख ही लगेंगे।

मन के तीनों आयाम काफी ज्यादा हमारी भौतिकता से जुड़े हुए हैं। भौतिक जीवन को चलाने के लिए ये तीनों ही पहलु अनिवार्य रूप से महत्वपूर्ण हैं। 'चित्त' मन का आखिरी और सबसे सुक्ष्म आयाम है।

4. चित्त

चित्त हमारे मन का सुक्ष्मतम पहलु है। यह हमारी भौतिकता से परे है। इसलिए मन के बाकि तीन पहलुओं का इसपर कोई असर नहीं पड़ता है। लेकिन हमारे भौतिक अस्तित्व को थामे रखने के लिए यह भी बहुत महत्वपूर्ण है। 

चूँकि चित्त भौतिकता से परे है, इसलिए अगर हम चित्त तक पहुँच जाएँ, तो अपने बाकी भौतिक पहलुओं स्पष्ट अवलोकन कर पाएंगे।

 जब आप अपने चित्त को छु लेते हैं, तब आप अपने शरीर एवं मन के अन्य तीन पहलुयों कार्य प्रणाली स्पष्टतः देख पायेंगे, और नियंत्रित भी कर पाएंगे।

 योग विज्ञान में चित्त के बारे मे कहा गया है कि, 'जो अपने चित्त को छु लेता है, वह भगवान को भी अपने वश में कर सकता है।'

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चित्त क्या होता है?

मन बुद्धि का मतलब क्या होता है?

[वि.] - मूर्ख; अहमक; जिसकी बुद्धि मंद या हीन हो; मोटी अक्लवाला; अल्पबुद्धि।

मन और बुद्धि में क्या फर्क है?

बुद्धि और मन में बहुत बड़ा अंतर है, वैसे तो बुद्धि मन से पहले आती है उसका स्तर मन से नीचे होता है। इस कारण से ही मन की जीत को बड़ा कहा गया है। मगर फिर भी मन को पहले समझे गे जिससे बुद्धि को आसानी से समजा जा सके। मन आप को कल्पना और दर्शय देगा।

मन बुद्धि अहंकार क्या है?

मन में भावनाएँ व विचार उत्पन्न होते है। इन्द्रियों से input मन के पास ही जाता है। बुद्धि hard drive की तरह है जहाँ मेमोरी स्टोर होती है व अनुभव के अनुसार अपना निर्णय पेश करता है पर अहंकार अपने ज्ञान के अनुसार मन या बुद्धि के पक्षों निर्णय देता है और कर्म के लिए बाक़ी अंगों को प्रेरित करता है।

मन बुद्धि चित्त अहंकार में क्या अंतर है?

जब संकल्प-विकल्प होते है, सोचा-विचारी होती है, तब उस चेतन वृति को मन कहते हैं। जब कई यादों के संग्रह के रूप में देखा जाता है तो उसे चित्त कहते है। जब “मैं” भाव के रूप में इसका उपयोग होता तब इसका नाम अहंकार पड़ जाता है।