तजी का ऐसा आचरण निश्चय ही समाज में शान्ति स्थापित करने में सहायक हो सकता है। समाज में अधिक-से-अधिक सामान जोड़ने की भावना, दिखावे की प्रतिस्पर्धा से अशान्ति उत्पन्न होती है। इसमें फिजूलखर्ची और महँगाई भी बढ़ती है। इच्छाओं का दमन न होने से असन्तोष पनपता है, घृणा-द्वेष बढ़ता है। भगतजी के समान आचरण से समाज में शान्ति स्थापित हो सकती है। प्रश्न 3. जो लोग बाजार की चकाचौंध में न आकर अपनी आवश्यकता की ही वस्तुएँ खरीदते हैं, इसी प्रकार दुकानदार भी ग्राहकों को उचित मूल्य पर आवश्यकतानुसार चीजें बेचते हैं, उन्हें लोभ-लालच में रखकर ठगते नहीं हैं, इसमें भी बाजार की सार्थकता है। प्रश्न 4. इस रूप में देखा जाए तो हम लेखक के इस मत से सहमत हैं कि बाजार जाति, धर्म, लिंग आदि का भेद मिटाकर सामाजिक समता की भी रचना करता है। परन्तु हम एक बात से पूरे सहमत नहीं हैं, क्योंकि क्रय-शक्ति न रखने वाला व्यक्ति स्वयं को दूसरों से हीन समझता है तथा उसमें कुछ निराशा का भाव आ जाता है। बाजार में अमीर और गरीब ग्राहकों में भेदभाव बढ़ता है, समता की हानि होती है तथा असन्तुष्टि तथा असंतोष का भाव उत्पन्न होता है। प्रश्न 5. (ख) जयपुर शहर के एक प्रसिद्ध व्यवसायी एवं धन्नासेठ के जवान बेटे को कैंसर हो गया। उसके उपचार में पानी की तरह पैसा खर्च किया गया और बड़े-बड़े डाक्टरों से महँगा इलाज करवाया गया, परन्तु वह नहीं बचाया जा सका। इस तरह उसकी जीवन-रक्षा में पैसे की शक्ति काम नहीं आयी। पाठ के आसपास – प्रश्न 1. (ख) मन खाली न हो-मन खाली न होने से व्यक्ति बाजार की चकाचौंध से आकृष्ट नहीं होता है तथा फिजूल की चीजें भी नहीं खरीदता है। जैसे मैं प्रतिदिन केवल सब्जी खरीदने जाता हूँ और केवल सब्जियाँ खरीद कर ही लौट आता हूँ। मैं बाजार की अन्य चीजों को देखता तक नहीं। (ग) मन बन्द हो-जब मन बन्द हो, तो कोई भी चीज अच्छी नहीं लगती है। जैसे मिठाई का मधुर स्वाद अरुचिकर लगता है, बाजार की सजावट एवं रोशनी फीकी लगती है, कोई भी वस्तु आकर्षक नहीं लगती है। तब वह व्यक्ति बाजार से तुरन्त लौट आता है। (घ) मन में नकार हो-मन में नकारात्मक भाव रखने से बाजार पूरी तरह छल-कपट वाला लगता है। उदाहरण के लिए मावे की मिठाई में नकली मावे का मिश्रण लगता है, आईसक्रीम सेक्रीन मिली लगती है, फैशन के कपड़े बेढंगे लगते हैं और सारे व्यापारी ठग लगते हैं। प्रश्न 2.
वैसे कोई भी व्यक्ति सदा एक ही प्रकार का ग्राहक नहीं रहता है। समय और आवश्यकता के अनुसार ग्राहकों में परिवर्तन आ जाता है। मैं अपने आपको आवश्यकतानुसार वस्तुएँ खरीदने वाला ग्राहक मानता हूँ। मैं उसी वस्तु को खरीदना पसन्द करता हूँ, जिसकी जरूरत हो। गैर-जरूरी एवं फालतू चीजों को खरीदना मैं फिजूलखर्ची मानता हूँ और इसी बात का सदा ध्यान रखता हूँ। प्रश्न 3. सामान्य हाट-बाजार में वस्तुएँ वाजिब मूल्य पर मिलती हैं। वहाँ सामान्य लोग ग्राहक होते हैं और पर्चेजिंग पावर का दुरुपयोग नहीं होता है। वे अपनी जेब का ध्यान रख कर उचित मोल-भाव करके जरूरी वस्तुएँ खरीदते हैं। प्रश्न 4. प्रश्न 5. जैसे स्त्रियाँ स्वयं को सुन्दर, सजी-धजी एवं सम्पन्न दिखाने की इच्छा रखती हैं। इस कारण वे क्रीम-पाउडर आदि प्रसाधन सामग्री, घर का सजावटी सामान तथा नये कपड़े आदि के साथ आभूषणों की खरीद करती हैं। इस तरह की प्रवृत्तियों के कारण वे माया को जोड़ने में विवश हो जाती हैं। आपसदारी – प्रश्न 1.
प्रश्न 2. प्रश्न 3. नकली सामान पर नकेल जरूरी अपना क्रेता वर्ग बढ़ाने की होड़ में एफएमसीजी यानी तेजी से बिकने वाले उपभोक्ता उत्पाद बनाने वाली कम्पनियाँ गाँव के बाजारों में नकली सामान भी उतार रही हैं। कई उत्पाद ऐसे होते हैं जिन पर न तो है और न ही उस तारीख का जिक्र होता है जिससे पता चले कि अमक सामान के इस्तेमाल की अवधि समाप्त हो चकी है। आउटडेटेड या पुराना पड़ चुका सामान भी गाँव-देहात के बाजारों में खप रहा है। ऐसा उपभोक्ता मामलों के जानकारों का मानना है। नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट्स रिडेसल कमीशन के सदस्य की मानें तो जागरूकता अभियान में तेजी लाए बगैर इस गोरखधंधे पर लगाम कसना नामुमकिन है। .उपभोक्ता मामलों की जानकार पुष्पा गिरि माँजी का कहना है, “इसमें दो राय नहीं कि गाँव-देहात के बाजारों में नकली सामान बिक रहा है। महानगरीय उपभोक्ताओं को अपने शिकंजे में कसकर बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ, खासकर ज्यादा उत्पाद बेचने वाली कम्पनियाँ, गाँव का रुख कर चुकी हैं। वे गाँव वालों की अज्ञानता और उनके बीच जागरूकता के अभाव का पूरा फायदा उठा रही हैं। उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए कानून जरूर हैं लेकिन कितने लोग इनका सहारा लेते हैं यह बताने की जरूरत नहीं। गुणवत्ता के मामले में जब शहरी उपभोक्ता ही उतने सचेत नहीं हो पाए हैं तो गाँव वालों से कितनी उम्मीद की जा सकती है।” इस बारे में नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट्स रिड्रेसल कमीशन के सदस्य जस्टिस एस.एन. कपूर का कहना है, “टीवी ने दूर-दराज के गाँवों तक में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को पहुँचा दिया है। बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ विज्ञापन पर तो बेतहाशा पैसा खर्च करती हैं लेकिन उपभोक्ताओं में जागरूकता को लेकर वे चवन्नी खर्च करने को तैयार नहीं हैं। नकली सामान के खिलाफ जागरूकता पैदा करने में स्कूल और कॉलेज के विद्यार्थी मिलकर ठोस काम कर सकते हैं। ऐसा कि कोई प्रशासक भी न कर पाए।” बेशक, इस कड़वे सच को स्वीकार कर लेना चाहिए कि गुणवत्ता के प्रति जागरूकता के लिहाज से शहरी समाज भी कोई ज्यादा सचेत नहीं है। यह खुली हुई बात है कि किसी बड़े ब्रांड का लोकल संस्करण शहर या महानगर का मध्य या निम्न मध्य वर्गीय उपभोक्ता भी खुशी-खुशी खरीदता है। यहाँ जागरूकता का कोई प्रश्न ही नहीं उठता क्योंकि वह ऐसा सोच-समझकर और अपनी जेब की हैसियत को जानकर ही कर रहा है। फिर गाँववाला उपभोक्ता ऐसा क्यों न करे। पर फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि यदि समाज में कोई गलत काम हो रहा है तो उसे रोकने के जतन न किए जाएँ। यानी नकली सामान के इस गोरखधंधे पर विराम लगाने के लिए जो कदम या अभियान शुरू करने की जरूरत है वह तत्काल हो।
(ख) उपभोक्ताओं के हितों को ध्यान में रखकर सामान बनाने वाली कम्पनियों का यह दायित्व है कि वे घटिया एवं नकली सामान नहीं बेचें। पुराने पड़े माल को या समयावधि समाप्त हुए माल को नया बनाकर बाजार में न भेजें। माल उचित मूल्य पर तथा उच्च कोटि का तैयार करना कम्पनियों का नैतिक दायित्व बनता है। (ग) ब्रांडेड वस्तु को खरीदने के पीछे यह मानसिकता रहती है कि उसे अच्छी गुणवत्ता वाली माना जाता है। ब्रांडेड वस्तु महँगी भी होती है, परन्तु क्रय-शक्ति रखने वाले लोग उन्हें खरीदना अपनी शान समझते हैं। यह उनकी दिखावे की प्रवृत्ति होती है। प्रश्न 4. विज्ञापन की दुनिया – प्रश्न 1.
प्रश्न 2. अपने एजेंट रखना, जो घर-घर जाकर सामान दिखाकर प्रचार करें। भाषा की बात – प्रश्न 1.
अनौपचारिक वाक्य –
प्रश्न 2. प्रश्न 3.
ऊपर दिये गये वाक्यों की रचना हिन्दी भाषा की है। इनमें प्रयुक्त अंग्रेजी एवं उर्दू शब्दों के हिन्दी पर्याय मिल जाते हैं, परन्तु वाक्य में अभिव्यक्ति की सहजता, प्रखरता एवं सम्प्रेषणीयता की दृष्टि से इस तरह के भाषागत मिश्रित प्रयोग उचित रहते हैं। प्रश्न 4.
भी – 1. वह कल भी आयेगा।
तो – 1. पुस्तक तो उठाओ।
तीनों का एक-साथ प्रयोग –
प्रश्न 1. RBSE Class 12 बाजार दर्शन Important Questions and Answers प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11.
प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. निबन्धात्मक प्रश्न – प्रश्न 1. उन्हें बाजार में जो अच्छा लगता है उसे वे खरीद लेते हैं ये जाने बिना कि उन्हें उनकी कितनी जरूरत है। इस जादू के उतरने पर उन्हें पता चलता है कि ज्यादा चीजें सुख नहीं देतीं बल्कि उसमें बाधा डालती हैं, जैसे-लेखक के मित्र मामूली चीज लेने गए थे और अनेक सामानों से भरे बण्डल ले आये। यह बाजार का जादू ही था जिसने उनकी जेब खाली करवा दी। प्रश्न 2. वे सदैव छः आने का चूरन बेचते और बच जाने पर बच्चों में मुफ्त बाँट देते हैं। अनेक फैन्सी स्टोर के सामने से गुजरते वक्त भी उनका मन नहीं ललचाता। उनका कार्य पंसारी की दुकान से होता जहाँ से वह जीरा व काला नमक खरीद कर वापस आ जाते। वे खुली आँख, संतुष्ट मन व प्रसन्नचित्त हृदय वाले व्यक्ति हैं। वे जरूरत-भर को अपना सामान खरीद बाजार को कृतार्थता प्रदान करते हैं। प्रश्न 3. प्रश्न 4. उसे उसका जीवन विडम्बना से पूर्ण बताती है कि तुम मुझसे वंचित हो और तुम इसीलिए दुःखी व परेशान हो। यह पैसे की व्यंग्य शक्ति मन से कमजोर व्यक्ति को ही विचलित करती है ‘भगतजी’ जैसे व्यक्तियों को नहीं, जिनके मन में बल है, शक्ति है, जो पैसे के तीखे व्यंग्य के आगे अजेय ही नहीं रहता वरन् उस व्यंग्य की क्रूरता को पिघला भी देता है। प्रश्न 5. लेकिन इसमें भी क्रेता की सम दृष्टि साबित होती है, विक्रेता की नहीं। क्योंकि क्रय-शक्ति से हीन व्यक्ति स्वयं को औरों के समक्ष कमजोर व दुर्बल समझता है। हीनता की भावना उसकी गरीबी का मजाक उड़ाती-सी प्रतीत होती है इसलिए यह बात सिर्फ एक ही पक्ष पर लागू होती है। दूसरे पक्ष को इस अन्तर की वेदना व असमानता सदैव भोगनी पड़ती है। |