Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 9 Hindi Kshitij Chapter 17 बच्चे काम पर जा रहे हैं Textbook Exercise Questions and Answers. Show
RBSE Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 बच्चे काम पर जा रहे हैंRBSE Class 9 Hindi बच्चे काम पर जा रहे हैं Textbook Questions and Answersप्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3.
प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. रचना और अभिव्यक्ति - प्रश्न 7. प्रश्न 8. पाठेतर सक्रियता - 'वर्तमान युग में सभी बच्चों के लिए खेलकूद और शिक्षा के समान अवसर प्राप्त हैं'-इस विषय पर वाद-विवाद आयोजित कीजिए। विपक्ष में विचार-हमारे देश में शासन की ओर से सभी बच्चों को खेलकूद और शिक्षा के समान अवसर दिये गये हैं, परन्तु यह बात कुछ असंगत है। क्योंकि एकदम गरीब, बेसहारा या अनाथ बच्चों को पहले रोटी की चिन्ता रहती है। वे यदि काम न करें तो भूखे रह जाते हैं, उन्हें सहारा देने वाला कोई नहीं है। वे मैले-कुचैले, झोंपड़ियों या खुले आसमान में भूखे रहकर खेलकूद एवं शिक्षा की बात कैसे सोच सकते हैं? इन कारणों से वे मजबूरी में कोई काम करके जीवनयापन करते हैं। उनके लिए सर्वशिक्षा अभियान कोरा नारा है। RBSE Class 9 Hindi बच्चे काम पर जा रहे हैं Important Questions and Answersवस्तुनिष्ठ प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. बोधात्मक प्रश्न - प्रश्न 1. क्या सारी गेंदें अन्तरिक्ष में गिर गई हैं? प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. बच्चे काम पर जा रहे हैं Summary in Hindiकवि-परिचय - राजेश जोशी हिन्दी के प्रमुख कवियों में माने जाते हैं। इनका जन्म मध्यप्रदेश के नरसिंहगढ़ जिले में सन् 1946 में हुआ। इन्होंने शिक्षा पूरी करने के बाद पत्रकारिता प्रारम्भ की और कुछ वर्षों तक अध्यापन भी किया। इन्होंने कविताओं के अतिरिक्त कहानियों, नाटकों तथा निबन्धों की भी रचना की। इनके कई काव्य-संग्रह प्रकाशित हैं। ये माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार, मध्यप्रदेश शिखर सम्मान तथा साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हैं। पाठ-परिचय - पाठ्यक्रम में राजेश जोशी की कविता 'बच्चे काम पर जा रहे हैं संकलित है। सामाजिक-आर्थिक विडम्बना के कारण आज लाखों बच्चे काम पर जाने को विवश हैं। काम पर जाने वाले बच्चों से उनका बचपन छिन जाता है। वे बच्चे खेल, शिक्षा एवं जीवन की उमंग से वंचित हो जाते हैं। श्रमिक रूप में उनका हर तरह से शोषण उत्पीड़न भी होता है। प्रस्तुत कविता में इसी आधार पर हार्दिक पीड़ा की अभिव्यक्ति हुई है। भावार्थ एवं अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्न बच्चे काम पर जा रहे हैं 1. कोहरे से ढकी सड़क पर बच्चे काम पर जा रहे हैं कठिन-शब्दार्थ :
भावार्थ - कवि भावुकता के साथ कहता है कि सुबह-सवेरे घने कोहरे से ढकी हुई सड़क पर भीषण ठंड से जूझते हुए बच्चे मजदूरी करने अपने काम पर जा रहे हैं। कवि कहता है कि यह हमारे समय की सबसे भयानक स्थिति है कि बच्चों को खेलने-कूदने की जगह काम करना पड़ रहा है और इससे भी भयानक बात यह है कि इस समस्या को सामान्य वर्णन की तरह कहा जा रहा है। इस वर्णन को कहते हुए किसी की संवेदनाएँ इनके प्रति नहीं जागतीं और न किसी को क्रोध ही आता है। इस कारण इसका क्रमिक वर्णन करना भी अत्यधिक भयानक है। इस बात को तो प्रश्न रूप में लिखा जाना चाहिए, अर्थात् बच्चे काम पर क्यों जा रहे हैं, उनके सामने ऐसी क्या मजबूरी है? इस तरह प्रश्नात्मक रूप में लिखा जाना अपेक्षित है। इस उम्र में उन्हें तो स्कूल जाना चाहिए था, फिर क्यों उन्हें मजदूरी करनी पड़ रही है, क्यों अपना बचपन इस तरह बिताना पड़ रहा है? प्रश्न 1. कवि ने 'भयानक पंक्ति' किसे बताया है? 2. क्या अन्तरिक्ष में गिर गई हैं सारी गेंदें कठिन-शब्दार्थ :
भावार्थ : सुबह-सुबह घने कोहरे से ढकी सड़कों पर बच्चों को काम पर जाते देखकर कवि व्यथित होकर पूछता है कि आखिर ये बच्चे काम पर क्यों जा रहे हैं? क्या इन बच्चों के द्वारा खेली जाने वाली सारी गेंदें आकाश में गिर गई हैं अर्थात् खो गई हैं? गेंदें न मिलने से ये काम पर जा रहे हैं? क्या इन्हें शिक्षा, प्राप्ति में सहायक पुस्तकें नहीं मिल रही हैं? क्या उन सारी रंग-बिरंगी पुस्तकों को दीमकों ने चट कर दिया है? क्या इनके खेलने में काम आने वाले सारे खिलौने किसी काले पहाड के नीचे दब गये हैं. जहाँ से उन्हें निकाल पाना संभव नहीं है? अथवा इन्हें ज्ञान-प्रदान करने वाली सारी पाठशालाओं की इमारतें किसी भूकम्प में नष्ट हो गई हैं? इन बच्चों को खेलने के लिए मैदान, बाग-बगीचे और घरों के आँगन चाहिए, परन्तु क्या ये सारे ही साधन अचानक नष्ट हो गये हैं? यदि ऐसा नहीं है तो फिर किस कारण ये बच्चे काम पर जा रहे हैं? किन कारणों से इन्हें मजदूरी करने को विवश होना पड़ रहा है? यह अतीव चिन्तनीय विषय है। प्रश्न 1. 'अन्तरिक्ष में गिर गई हैं सारी गेंदें' इससे कवि क्या कहना चाहता है? 2. इसमें काला पहाड भयंकर आर्थिक विषमता, शोषण-उत्पीडन एवं स्वार्थपरता को बढावा देने वाली विचारधारा का प्रतीक है। शोषक लोग ही इस समस्या के मूल कारण हैं, जिससे आर्थिक विषमता एक अतीव भयानक मजबूरी बन गई है। 3. अगर विद्यालयों की इमारतें होतीं, तो सारे बच्चे वहाँ पढ़ने जाते, वहाँ पर अपना बचपन ज्ञान-प्राप्ति में व्यतीत करते। परन्तु सुबह-सुबह सब बच्चे काम पर जा रहे हैं, इससे प्रतीत होता है कि विद्यालयों की इमारतें भूकम्प में ढह गई हैं। बच्चों को पढ़ने-लिखने का अवसर या सुविधा न मिलने से कवि ने ऐसा कहा है। 4. इससे कवि ने यह भाव व्यक्त किया है कि बचपन के सुख छिन जाने से बच्चों का जीवन यातनामय बन गया है। पढ़ने-लिखने की उम्र में वे काम के बोझ से दब रहे हैं, उनके सारे सुख समाप्त हो गये हैं तथा उनका जीवन एकदम मनोरंजन- विहीन हो गया है। 3. तो फिर बचा ही क्या है इस दुनिया में? कठिन-शब्दार्थ : हस्बमामूल = यथावत्। भावार्थ : कवि सोचता है कि यदि बच्चे सुबह-सुबह मजदूरी करने जा रहे हैं, तो इसका अर्थ है कि दुनिया में खिलौने, पुस्तकें, मनोरंजन के उपकरण, खेल के साधन एवं पाठशालाएँ आदि सब नष्ट हो चुके हैं। बच्चों के मनोरंजन एवं उपयोग की चीजें नहीं रहीं, तो फिर इस दुनिया में बचा ही क्या है? वस्तुतः यदि ऐसा हो जाता, तो कितनी बड़ी भयानक बात हो जाती? परन्तु सच तो यह है कि इस संसार में खेलने-कूदने और मनोरंजन की सारी चीजें ज्यों की त्यों उपलब्ध हैं फिर भी देश के बच्चे इनसे वंचित हैं, क्योंकि इस संसार की हजारों सड़कों पर अर्थात् सर्वत्र ही बहुत छोटे-छोटे बच्चे रोजाना काम पर जाते हैं। अर्थात् यह समस्या केवल हमारे देश की नहीं है, अपितु सारे विश्व के गरीब देशों की समस्या है। इस कारण बच्चों का सुखमय बचपन छिन रहा है और वे रोजाना काम पर जा रहे हैं। यह बाल-मजदूरी की समस्या वास्तव में ही चिन्ता का विषय है। प्रश्न 1. 'अगर ऐसा होता' कथन से कवि ने क्या संकेत किया है? 2. इससे भी अधिक भयानक स्थिति यह है कि बच्चों के मनोरंजन के सारे साधन, खिलौने, खेलने-कूदने आदि की सब चीजें संसार में उपलब्ध हैं, पर वे गरीब जरूरतमन्द बच्चों को नहीं मिल रही हैं, वे उनसे वंचित हो रहे हैं, क्योंकि उनके सामने पेट भरने की विकराल समस्या आ खड़ी हुई है। 3. इससे यह आशय है कि बच्चों का काम पर जाना किसी एक देश की समस्या नहीं है। बाल-श्रम की यह समस्या आर्थिक विषमता से ग्रस्त समस्त गरीब देशों में रहने वाले बच्चों की है इसलिए यह समस्त विश्व की भयानक मानवीय समस्या है। 4. इससे कवि ने यह व्यंजना की है कि आर्थिक विषमता से ग्रस्त समाज में बच्चों का किस तरह शोषण होता है, किस तरह उन्हें बचपन के सखों से वंचित किया जाता है? बाल-श्रम की समस्या समाज पर कितना बडा कलंक है, मानव-समाज का कितना बड़ा अभिशाप है? कवि के अनुसार भयानक स्थिति क्या है?प्रश्न (ग) कवि के अनुसार सबसे भयानक स्थिति क्या है ? उत्तरः सबसे भयानक स्थिति यह है कि सब कुछ होते हुए भी अर्थात् मैदान, घर के आँगन, पुस्तकें आदि होते हुए भी बच्चे उनका प्रयोग नहीं कर पा रहे क्योंकि उन्हें काम पर जाना है।
हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति क्या है?"बच्चे काम पर जा रहे हैं, सुबह-सुबह, हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है यह, भयानक है, इसे विवरण की तरह लिखा जाना चाहिए, काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे?.... तो फिर बचा ही क्या है इस दुनिया में?... दुनिया की हज़ारों सड़कों से गुजते हुए बच्चे, बहुत छोटे- छोटे बच्चे काम पर जा रहे हैं..."
भयानक है इसे विवरण की तरह लिखा जाना चाहिए कवि ने ऐसा क्यों कहा है?Answer: प्रश्न (ख) इसे विवरण की तरह लिखा जाना क्यों भयानक है ? उत्तरः इसे विवरण की तरह लिखा जाना भयानक है, क्योंकि इससे यह महसूस होता है कि इस ज्वलंत समस्या पर समाज उदासीन है। अतः समाज को जागृत करने के लिए इसे सवाल की तरह लिखा जाना चाहिए था।
बच्चे काम पर जा रहे हैं यह भयानक प्रश्न कैसे बनता है?बच्चों का काम पर जाना एक बड़े हादसे के समान इसलिए है क्योंकि खेलने-कूदने और पढ़ने-लिखने की उम्र में काम करने से बालश्रमिकों का भविष्य नष्ट हो जाता है। इससे एक ओर जहाँ शारीरिक विकास अवरुद्ध होता है, वहीं उनका मानसिक विकास भी यथोचित ढंग से नहीं हो पाता है। ऐसे बच्चे जीवनभर के लिए अकुशल श्रमिक बनकर रह जाते हैं।
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