ईदगाह मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित गद्य रूप में एक कहानी है। इस लेख में आप मुंशी प्रेमचंद का संक्षिप्त जीवन परिचय, पाठ का सार तथा परीक्षा में पूछे जाने वाले महत्वपूर्ण प्रश्नों का अध्ययन कर सकेंगे। Show
ईदगाह कहानी बाल मनोविज्ञान पर आधारित है , जिसमें एक बालक के इर्द-गिर्द पूरी घटना घूमती है। वह बालक अंत में बूढ़ी (दादी) स्त्री को भी अपने बालपन से बालक बना देता है। इस कहानी में मुंशी प्रेमचंद ने हामिद नाम के बालक के माध्यम से बाल मनोविज्ञान का सूक्ष्मता से लेख लिखा है। यह कहानी अंत तक रोचक और कौतूहल उत्पन्न करता है। Idgah summary and question answer in Hindiईदगाह ( जीवन परिचय, पाठ का सार, एवं महत्वपूर्ण प्रश्न )यह कहानी मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखी गयी है। सबसे पहले हम पढ़ेंगे उनका जीवन परिचय। लेखक का जीवन परिचयविधा – कहानी कहानीकार – प्रेमचंद जीवन परिचय – जन्म सन 1880 में वाराणसी जिले के लमही ग्राम में जन्म हुआ। मूल नाम धनपतराय था। प्रारंभिक शिक्षा वाराणसी में हुई थी। असहयोग आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्होंने सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया था। उर्दू में वह नवाबराय के नाम से लेखन कार्य किया करते थे। सन् 1915 में पहली कहानी सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित हुई। उन्होंने मुंबई टॉकीज में भी कहानी लेखन का कार्य किया था , किंतु वहां उन्हें वातावरण अनुकूल नहीं लगा। इसलिए वह कार्य छोड़ कर वापस अपने घर लौट आए थे। उनकी मृत्यु सन 1936 में हुई थी। मुख्य रचनाएं –
साहित्यिक विशेषताएं – प्रेमचंद ने अपनी रचनाओं में जनसाधारण की वेदना तथा सामाजिक कुरीतियों का मार्मिक चित्रण किया है। उनकी कहानियां भारत की संस्कृति एवं ग्रामीण जीवन के विविध रंगों से सराबोर है। भाषा शैली – इनकी भाषा शैली सजीव मुहावरेदार तथा बोलचाल के निकट तत्सम और उर्दू शब्दों का सुंदर प्रयोग किया गया है। शैली – भावपूर्ण , वर्णनात्मक तथा संवादात्मक शैली का प्रयोग इन्होंने किया है। ईदगाह पाठ परिचय – Idgah chapter introductionप्रेमचंद द्वारा लिखित कहानी ईदगाह भावनात्मक एवं बाल मनोविज्ञान पर आधारित है। कहानी का मुख्य पात्र हामिद है जो अपनी दादी अमीना के साथ रहता है। हामिद के चरित्र के माध्यम से अभावग्रस्त जीवन के कारण बच्चे का समय से पहले समझदार होना और इच्छाओं का दमन करना दर्शाया गया है। किस प्रकार हामिद परिस्थितियों से समझौता करना सीख जाता है। इस कहानी के माध्यम से उसको प्रकट किया गया है। पाठ का सार / स्मरणीय बिंदुईद के अवसर पर गांव में ईदगाह जाने की तैयारियां हो रही है। सभी लोग कामकाज निपटा कर ईद के मेले में जाने की जल्दी में है। बच्चे सबसे ज्यादा खुश हैं , उन्हें गृहस्थी की चिंताओं से कोई मतलब नहीं। उन्हें तो यह भी नहीं मालूम कि उनके अब्बाजान ईद के लिए पैसों का इंतजाम करने चौधरी कायमअली के घर दौड़े जा रहे हैं। और यदि चौधरी पैसे उधार देने से मना कर दे तो वह ईद का त्यौहार नहीं मना पाएंगे। उनका यह ईद की खुशी के अवसर पर मुहर्रम जैसे मातम में बदल जाएगा। बच्चों को तो बस ईदगाह जाने की जल्दी है। हामिद चार-पांच साल का दुबला पतला लड़का है। वह अपनी दादी अमीना के साथ रहता है। उसके माता-पिता गत वर्ष गुजर चुके हैं। परंतु उसे बताया गया है कि उसके अब्बाजान रुपए कमाने गए हैं। उसकी अम्मी जान अल्लाह मियां के घर से उसके लिए अच्छी-अच्छी चीजें लाने गई है। इसलिए हामिद आशावान है और प्रसन्न है। अमीना स्वयं सवैयों (मीठा पकवान) के इंतजाम के लिए घर पर रहकर हामिद को तीन पैसे देकर मेले में भेज देती है। हामिद के साथ उसके दोस्त मोहसीन , महमूद , नूरे और सम्मी भी है।गांव के बच्चे मेले की ओर चले हामिद भी साथ में था। रास्ते में बड़ी-बड़ी इमारतें , फलदार वृक्ष आए बच्चे कल्पनाशील होने के नाते तरह-तरह की कल्पनाएं तथा उन चीजों पर टीका-टिप्पणी करते आगे बढ़ते जा रहे थे। रास्ते में पुलिस लाइन आने पर एक ने कहा यहां सिपाही कवायद करते हैं। मोहसीन का कहना था कि यही पुलिस वाले चोरी भी करवाते हैं। हामिद को सुनकर आश्चर्य होता है। इस प्रकार बालकों में पुलिस के प्रति अलग अलग विचारधारा थी। उनके भीतर की भाईचारे की भावना उनको आपस में जोड़े रखती है। धर्म आपस में लोगों को जोड़ता है तोड़ता नहीं। धर्म के नाम पर तोड़ने वाले धर्म के रहस्य को समझते ही नहीं कोई भी धर्म मनुष्य मनुष्य के बीच भेद नहीं करता। ईदगाह में नमाज के पश्चात हामिद के दोस्त चरखी ऊपर झूलते हैं परंतु हमें दूर खड़ा रहता है। खिलौनों की दुकान से महमूद सिपाही , नूरे वकील , मोहसीन भिस्ती तथा सम्मी धोबिन खरीदता है। हामिद खिलौनों की निंदा करता है , परंतु साथ ही ललचाए निगाहों से उन्हें देखता भी है। सभी मित्र मिठाईयां खरीदते हैं और हामिद को चिढ़ा – चिढ़ा कर खाते हैं। मेले के अंत में लोहे की दुकान पर चिमटा देखकर हामिद को अपनी दादी अमीना का ख्याल आता है। दुकानदार से मोलभाव करके वह चिमटा खरीद लेता है। हामिद के तर्कों के कारण उसके सभी दोस्त उसके चिमटे से प्रभावित हो जाते हैं। घर पहुंचकर दोस्तों के खिलौने किसी न किसी प्रकार टूट जाते हैं मगर उसका चिमटा कभी नहीं टूटता। हामिद के घर पहुंचते ही दादी अमीना उसे गोद में बिठाकर प्यार करने लगती है।अचानक हाथ में चिमटा देखकर चौंक गई। पूछने पर वह बताता है कि उसने मेले से तीन पैसे का चिमटा खरीदा है। दादी उसकी नासमझी पर क्रोधित होते हुए पूछती है कि पूरे मेले में उसे कोई और चीज खरीदने को नहीं मिली। हामिद अपराधी भाव से बताता है कि दादी की उंगलियां तवे से जल जाती थी , इसलिए उसके लिए चिमटा खरीदा। यह सुनकर बुढ़िया का क्रोध तुरंत इसने में बदल गया। दादी अमीना , हामिद के त्याग उसका सुने उसके विवेक को देखकर हैरान रह गई। सुबह से बच्चा भूखा दूसरों को मिठाई खाते देख कैसे अपने मन को मनाया होगा। मेले में भी इसे अपनी बूढ़ी दादी की याद बनी रही , यह सब सोचकर अमीना का मन गदगद हो गया। दादी अमीना एक बालिका के समान रोने लगी , वह दामन फैलाकर हामिद को दुआएं देती जा रही थी , तथा आंसुओं की बड़ी-बड़ी बूंदे गिराती जा रही थी। परंतु हामिद इस रहस्य को समझने के लिए बहुत छोटा था कि दादी उसके त्याग का अनुभव कर भाव विभोर हो गई। हामिद यह नहीं समझ पा रहा था कि वह तो दादी के लिए चिमटा लाया है फिर दादी रो क्यों रही है ? ईदगाह सप्रसंग व्याख्या ( Idgah chapter saprasang vyakhya )व्याख्या हेतु अनुच्छेद हामिद खिलौनों की निंदा करता है – मिट्टी ही के तो हैं…………… विशेषकर जब अभी नया शौक है। पाठ का नाम – ईदगाह लेखक का नाम – प्रेमचंद प्रसंग – प्रस्तुत पाठ में लेखक ने ईद के अवसर पर सर्वत्र छाई खुशी का वर्णन किया है। इस गद्यांश में हामिद के माध्यम से बाल सुलभ इच्छाओं व चिताओं का सुंदर व सजीव वर्णन किया गया है। व्याख्या – हामिद के पास कुल तीन पैसे हैं , जिन्हें वह खिलौने और मिठाइयों पर खर्च नहीं कर पाता। जबकि उसके साथी रंग-बिरंगे व सुंदर खिलौने खरीदते हैं। ऐसे में हामिद अपने को समझाने के लिए खिलौनों की निंदा करता है कि , मिट्टी के हैं और वह जमीन पर गिरते ही टूट जाएंगे। खिलौनों को ललचाए नजरों से देखता रहा और कुछ देर के लिए उन्हें हाथ में लेकर देखना चाहता है। उसके हाथ अनायास ही खिलौनों की तरफ बढ़ते हैं , परंतु साथ ही भी उसकी तरह बच्चे ही हैं और उन्होंने खिलौने अभी-अभी लिए हैं। अतः वे अभी त्यागी नहीं हो सकते हैं , उनका खिलौनों से खेलने का शौक अभी नया-नया है। विशेष –
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प्रश्न 2 – हामिद ने चिमटे की उपयोगिता सिद्ध करने के लिए क्या-क्या तर्क दिए ?उत्तर – हामिद ने चिमटा की उपयोगिता सिद्ध करने के लिए निम्नलिखित तर्क दिए –
प्रश्न 3 – ईदगाह कहानी के शीर्षक की सार्थकता सिद्ध कीजिए। क्या इस कहानी का कोई अन्य शीर्षक हो सकता था ? उत्तर – ईदगाह कहानी का शीर्षक सर्वथा उचित है। इस कहानी की प्रमुख घटनाएं ईदगाह के इर्द-गिर्द घटित होती है। ईदगाह कहानी का केंद्र स्थल है , कहानी के प्रारंभ में वही जाने की तैयारी होती दर्शाई गई है। ईदगाह की नमाज पढ़ी जाती है एकता व भातृत्व का दृश्य वही दिखाई देता है। वही मेला लगता है , जहां की चहल-पहल है। यह शीर्षक कहानी के प्रमुख स्थल के आधार पर है। हामिद का लक्ष्य भी ईदगाह जाने का होता है। वहां कहानी का अधिक समय व्यतीत होता है। अतः यह शीर्षक कहानी के प्रमुख स्थल के आधार पर है यहां कहानी का शीर्षक सार्थक होता है। अन्य शीर्षक हो सकते थे हामिद का चिमटा व ईद का उपहार , बालिका बनी दादी। प्रश्न अभ्यास – Idgah Question answersसप्रसंग व्याख्या करने हेतु महत्वपूर्ण अनुच्छेद
ईदगाह प्रश्न अभ्यास
आशय स्पष्ट कीजिए
ईदगाह कहानी का सारांश क्या है?ईदगाह कहानी बाल मनोविज्ञान पर आधारित है , जिसमें एक बालक के इर्द-गिर्द पूरी घटना घूमती है। वह बालक अंत में बूढ़ी (दादी) स्त्री को भी अपने बालपन से बालक बना देता है। इस कहानी में मुंशी प्रेमचंद ने हामिद नाम के बालक के माध्यम से बाल मनोविज्ञान का सूक्ष्मता से लेख लिखा है। यह कहानी अंत तक रोचक और कौतूहल उत्पन्न करता है।
ईदगाह कहानी से हमें क्या संदेश मिलता है?ईदगाह कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि व्यक्ति को प्रत्येक कार्य सोच-समझकर करना चाहिए । सामर्थ्य के अनुसार काम करने पर व्यक्ति प्रशंसा का पात्र बनता है ।
बालमनोविज्ञान पर आधारित ईदगाह कहानी से आपको क्या शिक्षा मिलती है?ईदगाह हामिद नाम के एक चार साल के अनाथ की कहानी है जो अपनी दादी अमीना के साथ रहता है। कहानी के नायक हामिद ने हाल ही में अपने माता-पिता को खो दिया है; हालाँकि उसकी दादी उसे बताती है कि उसके पिता पैसे कमाने के लिए चले गए हैं, और उसकी माँ उसके लिए सुंदर उपहार लाने के लिए अल्लाह के पास गई है।
ईदगाह कहानी का शीर्षक क्या है?हामिद के गाँव में ईदगाह जाने का उल्लास बच्चे से लेकर बूढ़े तक के हृदय में है। सभी वहाँ जाने की तैयारी करते हैं। हामिद के गुणों पर प्रकाश ईदगाह में ही चलता है। अतः इस कहानी का नाम ईदगाह सही दिया गया है।
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