पूजा पाठ में देवी देवताओं को उनका पसंदीदा फूल अर्पित किया जाता है। माना जाता है कि उससे वो खुश होते है, लेकिन भगवान शिव को अपने पसंदीदा फूल से दूर रहना पड़ता है। भगवान शिव को उनका पसंदीदा फूल चंपा अर्पित नहीं किया जाता। क्या आप जानते है कि इस फूल को भगवान शिव की पूजा से दूर क्यों रखा जाता है। जानिए इसके पीछे का राज Show यह भी पढ़ें- लिंगराज मंदिर में पीएम मोदी ने की पूजा, यहां शिव ने खुद बुझाई थी देवी पार्वती की प्यास गलत नीतियों के चलते तोड़ा था फूल माना जाता है कि एक बार नारद मुनि को पता चला की एक ब्राह्मण ने अपनी बुरी इच्छाओं के लिए चंपा के फूल तोड़े और जब नारद मुनि के वृक्ष्र से पूछा कि क्या किसी ने उसके फूलों को तोड़ा है तो पेड़ ने इससे इनकार कर दिया। एनबीटी, लखनऊ : कल्याण गिरि मठ परिसर में महाशिवरात्रि पर्व के अवसर पर आयोजित शिव महापुराण कथा महायज्ञ में आचार्य विश्वम्भर शास्त्री ने शनिवार संदेश दिया कि शिव पूजन में केतकी और चम्पा का फूल नहीं अर्पित करना चाहिए। साथ ही उन्होंने हिन्दु भक्तों को सिर में चोटी धारण करने का भी संदेश दिया। आचार्य विश्वम्भर ने बताया कि अश्वत्थामा वास्तव में शिवांश थे। दरअसल, आचार्य द्रोणाचार्य ने शिव की तप कर शिव समान पुत्र की कामना की थी।
भगवान विष्णु को भगवान शिव से ही सुदर्शन चक्र की प्राप्ति हुई थी। ब्रह्मा जी ने निद्रा देवी की प्रार्थना की थी। उनकी प्रार्थना के परिणामस्वरूप ही मां काली का अवतरण हुआ था। मां काली ने ही भगवान विष्णु को जगाया था। देवियों के तेज से महालक्ष्मी का अवतरण हुआ था। उन्होंने महिषासुर राक्षस का अंत किया था। शिवरात्रि पर करें कालसर्प दोष निवारण अनुष्ठान शिवरात्रि पर कालसर्प दोष के निवारण का अनुष्ठान विशेष फलदायी होता है। ऐसे में गोमतीनगर स्थित अयप्पा मंदिर में प्राकृतिक नाग देव मंदिर में विशेष पूजा अनुष्ठान का इंतजाम किया गया है। मंदिर सोसायटी के अध्यक्ष केके नाम्बियार ने बताया कि 13 फरवरी की सुबह रुद्राभिशेक होगा, वहीं शाम 5:30 से 6:30 बजे तक प्रदोष पूजन होगा। सहस्त्रनाम अर्चन के बाद आरती होगी। वहीं, 14 फरवरी को मंदिर के कपाट सुबह 5:30 बजे खुल जाएंगे। 'हम शिव के शिव हमारे' प्रतियोगिता डालीगंज के प्राचीन महादेव मंदिर मनकामेश्वर मठ मंदिर में महंत देव्यागिरि ने बताया कि इस बार चार दिवसीय महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाएगा। पहले दिन 11 को दोपहर 12 बजे बच्चों के लिए 'हम शिव के शिव हमारे' विषय पर चित्रकला प्रतियोगिता होगी। दूसरे दिन मंदिर प्रांगण में महामृत्युंजय पाठ और सांध्यकालीन आरती के बाद प्रतियोगिताओं की विजेताओं को पुरस्कार बांटे जाएंगे। 13 को प्रदोष व्रत के अवसर पर रात 8 बजे सांध्यकालीन प्रदोष महाआरती के साथ महाशिवरात्रि पूजन शुरू होगा। शिवरात्रि पर 14 फरवरी को सुबह 3 बजे भस्म आरती की जाएगी और आदि गंगा गोमती के 151 लीटर जल से महाभिषेक किया जाएगा। खासतौर से भक्तों के लिए मां चन्द्रिका देवी से गोमती का शुद्ध जल मंगवाया गया है। Navbharat Times News App: देश-दुनिया की खबरें, आपके शहर का हाल, एजुकेशन और बिज़नेस अपडेट्स, फिल्म और खेल की दुनिया की हलचल, वायरल न्यूज़ और धर्म-कर्म... पाएँ हिंदी की ताज़ा खबरें डाउनलोड करें NBT ऐप लेटेस्ट न्यूज़ से अपडेट रहने के लिए NBT फेसबुकपेज लाइक करें क्या केतकी और चंपा एक ही फूल है?चंपा और केतकी के पेड़ दोनो ही पुष्प देने वाले श्रेणी में आते है इनमें कई अंतर है जो उन्हें एक दूसरे से अलग करते हैं लेकिन दोनों पुष्पों में एक खास बात ये है की इन्हें भगवान शिव की पूजा में प्रयोग नहीं किया जाता है और दोनों को झूठ बोलने के कारण यह शाप मिला हैं केतकी की कथा तो हमने ऊपर आपको बता दी है और चंपा पुष्प की कथा ...
केतकी के फूल की पहचान क्या है?Ketki Ka Phool Kaisa Hota Hai: केतकी का फूल एक सुगन्धित फूल है जिसके लम्बे, नुकीले, चपटे और मुलायम पत्ते होते हैं। केतकी का फूल सफेद एवं पीले रंग का होता है। इसमें से सफेद रंग वाले केतकी के फूल को केवड़ा भी कहा जाता है एवं जो पीले रंग का होता है उसे सुवर्ण केतकी के नाम से जाना जाता है।
केतकी के फूल को हिंदी में क्या कहते हैं?सफेद केतकी को लोग प्राय: 'केवड़ा' के नाम से जानते और पहचानते हैं और पीली अर्थात् सुवर्ण केतकी को ही केतकी कहते हैं।
चंपा फूल का दूसरा नाम क्या है?हिंदी में ही इसके कई नाम हैं - कनक चंपा, मुचकुंद तथा पद्म पुष्प।
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