बिजोलिया का प्राचीन नाम क्या है? - bijoliya ka praacheen naam kya hai?

बिजोलिया की स्थापना अशोक परमार ने की थी। राणा सांगा की ओर से खानवा के युद्ध में अशोक परमार ने अतुल्य बहादुरी का प्रदर्शन किया जिससे खुश होकर राणा सांगा ने इन्हें ऊपरमाल की जागीर भेंट की। बिजोलिया उस समय इसी ऊपरमाल जागीर का एक ठिकाना था। बिजोलिया का प्राचीन नाम विजयवल्ली था जिसे बाद में बिजोलिया कहा गया। बिजोलिया ठिकाना उदयपुर राज्य की ‘अ’ श्रेणी की जागीरो में आता था। वर्तमान में बिजोलिया राजस्थान के भीलवाड़ा ज़िले में स्थित है। यहां धाकड़ जाति की किसान बहुसंख्यक थे।

बिजोलिया किसान आंदोलन के प्रमुख कारण (Major causes of Bijoliya Kisan Andolan in Hindi) :

बिजोलिया किसान आंदोलन के प्रमुख कारण निन्न थे:

  • 1894 में राव कृष्ण सिंह को बिजोलिया का नया जागीरदार बनाया गया। इन्होंने जागीर प्रबंधन में कई बड़े बदलाव करवाए। इन बदलावों की वजह से असंतुलन पैदा हो गया और किसानों में असंतोष बढ़ने लगा।
  • भू राजस्व की राशि कई गुना बढ़ा दी गई जिस वजह से बिजोलिया के किसान तिलमिला गए।
  • भू राजस्व इकट्ठा करने के लिए ठिकाने के लोगों द्वारा किए गए अत्याचारों की वजह से किसानों का ठिकाने पर से विश्वास उठ गया।
  • ठिकानेदार अपनी सुख-सुविधा और अपने खजाने को बढ़ाने के लिए मनमर्जी से बेगार करवाने लगे। कुछ बेगार तो इतने अमानवीय थे कि जिनकी वजह से कई किसानों की मृत्यु हो गई।

बिजोलिया किसान आंदोलन को इसके विकास की दृष्टि से मुख्यतः तीन चरणों में बांटा जाता है :

बिजोलिया किसान आंदोलन का पहला चरण (The First Phase of the Bijoliya Kisan Andolan in Hindi) :

बिजोलिया किसान आंदोलन का पहला चरण 1897 से 1950 तक चला। पहले चरण में यह किसान आंदोलन स्थानीय नेतृत्व की वजह से आगे बढ़ता रहा। इस दौरान जातिगत आधार पर किसान आंदोलन शुरू होकर राजनैतिक, सामाजिक और राष्ट्रीय भावना के साथ लोगों को जोड़कर धीरे धीरे फैलता रहा। अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार करने के बाद बिजोलिया की जागीरदारों जनता के बीच में संबंधों में असंतुलन पैदा होने लगा था।

1897 में किसानों ने गंगाराम धाकड़ के पिता के मृत्यु भोज पर गिरधारीपुरा गांव में सामूहिक रूप से विचार विमर्श करने के बाद नानजी और ठाकर पटेल को उदयपुर भेज कर ठिकाने के जुल्मों के खिलाफ महाराणा से शिकायत करने के लिए उदयपुर भेजा लेकिन शिकायत करने के बावजूद भी सरकार ने कोई कार्यवाही नहीं की। किसानों के इस फैसले से राव कृष्ण सिंह गुस्सा हो गए और उन्होंने नानजी और ठाकर पटेल को गांव से निर्वासित कर दिया।

गांव वालों को सबक सिखाने के लिए कृष्ण सिंह ने एक नया ‘चँवरी कर’ लगा दिया। इस कर ने किसानों को आर्थिके रूप से और कमज़ोर कर दिया। कृष्ण सिंह सिंह की मौत के बाद पृथ्वी सिंह नया जागीरदार बना। उसने नया कर ‘तलवार बंधाई’ किसानों पर थोंप दिया। कृष्ण सिंह ने और भी ज्यादा निर्दयतापूर्वक अवैध करो की वसूली करना शुरू कर दिया। इस बार बिजोलिया की किसानों ने फतहकरण चारण, ब्रह्मदेव दाधीच, नाथूलाल कामदार, रामजीलाल सुनार और साधु सीताराम दास के नेतृत्व में अपना विरोध शुरू किया और किसी भी तरह की खेती करने से मना कर दिया। इस बार किसान पहले से भी ज्यादा संगठित थे और लगभग पन्द्रह हज़ार किसानों ने कोई खेती नहीं की।

पृथ्वी सिंह के मरने के बाद उसका छोटी आयु का बेटा केसरी सिंह बिजोलिया का नया जागीरदार बना। केसरी सिंह की आयु छोटी होने की वजह से बिजोलिया दरबार ने अमर सिंह राणावत और डूंगरसिंह भाटी को केसरीसिंह का प्रधान सलाहकार और उप प्रधान सलाहकार बनाया।

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बिजोलिया किसान आंदोलन दूसरा चरण (The Second Phase of the Bijoliya Kisan Andolan in Hindi) :

बिजोलिया किसान आंदोलन का दूसरा चरण 1916 से 1922 चलता रहा। दूसरे चरण में किसानों में नई चेतना जागृत हुई और दूसरे चरण का नेतृत्व राष्ट्रीय स्तर के प्रशिक्षित और अनुभवी नेताओं ने किया। इस चरण में बिजोलिया किसान आंदोलन जातिगत और क्षेत्रीय सीमाओं से बाहर निकल कर राष्ट्रीय आंदोलन के साथ जुड़ गया। इतना ही नहीं इस चरण में इस आंदोलन की चर्चा राष्ट्रीय स्तर के राजनैतिक मंचों पर भी होनी शुरू हो गयी थी। जनवरी 1915 में विजय सिंह पथिक जिनका असली नाम भूप सिंह था, रासबिहारी बोस के कहने पर राजस्थान आये थे

क्योंकि ब्रिटिश पुलिस उन्हें हर संभव पकड़ने की कोशिश में लगी हुई थी। यहीं पर पथिक बिजोलिया के कुछ किसानों के संपर्क में आए। इसके बाद पथिक अपने मित्र ईश्वरीदास के घर बिजोलिया आ गए। यहां आकर उन्होंने विद्या प्रचारिणी सभा की स्थापना की। इस काम में उन्हें उप सलाहकार डूंगरसिंह भाटी का काफी सहयोग मिला। सभा के माध्यम से उन्होंने बिजोलिया के विद्यार्थियों में राष्ट्रीय चेतना का संचार किया वहीं दूसरी ओर किसानों को संगठित करने का काम भी किया। 1916 में साधु सीताराम दास के कहने पर विजय सिंह पथिक बिजोलिया आंदोलन से जुड़ गए।

विजय सिंह पथिक ने ही बिजोलिया किसान आंदोलन को एक संगठित रूप प्रदान किया। पथिक ने ‘ऊपरमाल का डंका’ का नाम से मेवाड़ी भाषा के पत्र भी लोगों के बीच बंटवाये जिसमें किसानों के संघर्षों का विवरण होता था। 1917 में पथिक जी ने ऊपरमाल पंच बोर्ड का गठन किया।

पथिक जी के नेतृत्व में धीरे-धीरे यह किसान आंदोलन तीव्र होता गया जिसके जवाब में ठिकाना और राज्य दोनों ने मिलकर इस आंदोलन को दबाने के प्रयास भी तेज़ कर दिए। पथिक जी ने माणिक्य लाल वर्मा को कांग्रेस के दिल्ली अधिवेशन में भेजा और खुद 1918 में गांधी जी से मिलने बंबई गए। किसानों का हौसला तोड़ने के लिए ठिकाने ने कई किसानों को जेल में डालना शुरू कर दिया। 1919 में पथिक जी ने वर्धा में ,राजस्थान सेवा संघ’ की स्थापना की और साथ ही ‘राजस्थान केसरी’ से नाम से एक पत्र भी निकाला।

बिजोलिया किसान आंदोलन को उग्र होते देख ब्रिटिश सरकार ने राजस्थान के एजीजी रॉबर्ट हॉलैंड और कुछ लोगों की समिति बिजोलिया भेजी। यहां पर रॉबर्ट हॉलैंड ने 1922 को किसानों और ठिकाने के बीच एक समझौता करवाया जिसमें किसानों की सारी मांगे मान ली गई, किसानों के सारे मुकदमे हटा लिए गए, उनकी जमीन उन्हें सौंप दी गई और गिरफ्तार लोगों को रिहा कर दिया गया। लेकिन यह समझौता भी ज्यादा वक्त तक टिक नहीं पाया।

बिजोलिया किसान आंदोलन तीसरा चरण (The Third Phase of the Bijoliya Kisan Andolan in Hindi) :

इस किसान आंदोलन का तीसरा चरण 1923 से 1941 तक जारी रहा। बिजोलिया किसान आंदोलन जिस उत्साह और गति के साथ लोगों के बीच में फेल कर आम लोगों तक पहुंचा जा रहा था, इसका अंत वैसा नहीं हुआ जैसा इससे जुड़े लोगों ने सोचा था। इसी बीच बेंगू किसान आंदोलन की वजह से पथिकजी को पांच साल की जेल की सजा हो गई और बिजोलिया किसान आंदोलन की सारी जिम्मेदारी माणिक्य लाल वर्मा पर आ पड़ी।

इसी दौरान बिजोलिया में भारी बारिश की वजह से सारी फसलें नष्ट हो गई लेकिन फिर भी ठिकाने ने किसी भी तरह के कर में कोई रियायत नहीं दी जिस वजह से किसानों की हालत बहुत ज़्यादा बिगड़ गई। ठिकाने ने लगान हासिल करने के लिए लगान की दरें बढ़ा दी। जनवरी 1927 में मेवाड़ के बंदोबस्त अधिकारी ट्रेंच बिजोलिया आए। किसानों ने उन्हें अपनी शिकायतें बताई और ट्रेंच ने पंचायत और ठिकाने के बीच एक समझौता कराया। लेकिन थोड़े दिनों बाद ही माणिक्य लाल वर्मा जी को गिरफ्तार कर लिया गया।

पथिक की जेल की सजा काटकर उदयपुर आ गए लेकिन उन्हें मेवाड़ से निर्वासित कर दिया गया। किसानों ने ठिकाने की ज़्यादतियों से परेशान होकर अपने खेत खाली छोड़ दिए। वे यह सोच रहे थे कि खेत खाली छोड़ने की वजह से ठिकाना कोई कार्यवाही नहीं करेगा लेकिन उनकी आशाओं के उलट उनकी ज़मीने नीलाम होने लगीं। किसान फिर आग बबूला हो गए। इसी बीच पथिक जी और रामनारायणजी चौधरी इस आंदोलन से अलग हो गए। अब आंदोलन का नेतृत्व सेठ जमनालाल जी और हरीभाउ जी उपाध्याय के हाथों में आ गया।

उपाध्याय जी ने महात्मा गांधी को बिजोलिया में हो रहे आंदोलन के संदर्भ में एक पत्र लिखा। गांधीजी की सलाह पर मालवीय जी ने मेवाड़ के प्रधानमंत्री से इस संबंध में बात की और फिर एक समझौता हुआ जिसके अनुसार किसानों की सारी मांगे स्वीकार की गई परंतु इस समझौते का ईमानदारी से पालन नहीं किया गया। इस बात पर माणिक्य लाल वर्मा जी ने किसानों का एक प्रतिनिधि मंडल लेकर उदयपुर के महाराणा से मिलने गए लेकिन महाराणा के प्रधानमंत्री सुखदेव प्रसाद ने वर्मा जी को वहीं गिरफ्तार कर लिया और डेढ़ साल तक नजरबंद रखने के बाद उन्हें रिहा कर दिया। 1941 में मेवाड़ के नए प्रधानमंत्री के रूप में सर टी. विजय राघवाचार्य ने पदभार संभाला।

उन्होंने राजस्व विभाग के मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह मेहता को बिजोलिया समस्या का अंतिम समाधान करने के लिए भेजा। उन्होंने माणिक्य लाल वर्मा के नेतृत्व में किसानों की मांगें मानकर उनकी जमीनें उन्हें वापस दिलवा दी। यह माणिक्यलाल वर्मा जी के जीवन की पहली बड़ी सफलता थी। इस आंदोलन ने राजस्थान की अन्य रियासतों को भी एक नई चेतना प्रदान की। बिजोलिया का किसान आंदोलन भारत का पहला व्यापक, शक्तिशाली, संगठित और सफल किसान आंदोलन था।

बिजोलिया किसान आंदोलन की प्रमुख विशेषताएं (Salient Features of Bijoliya Kisan Andolan in Hindi) :

बिजोलिया का किसान आंदोलन अपने आप में एक अनूठा किसान आंदोलन था। इस आंदोलन की कुछ प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं :

बिजोलिया का राजा कौन था?

Ans. बिजौलिया ठिकाने के संस्थापक अशोक परमार थे। जो राणा सांगा की सेवा में अपने मूल निवास स्थान जगनेर (भरतपुर- वर्तमान में आगरा) से आये थे। 1527 में खानवा के युद्ध में अशोक परमार की वीरता से खुश होकर राणा सांगा ने उन्हे 260 वर्ग कि.

बिजोलिया शिलालेख कहाँ स्थित है?

बिजोलिया नगर भीलवाड़ा जिले में स्थित है|उपरमाल के पठार पर स्थित बिजोलिया की प्रसिद्धि वहा स्थित ब्राह्मण और जैन मंदिरों और चट्टानों पर उत्कीर्ण शिलालेखो से भी ज्यादा भारतीय स्वतंत्रता से पूर्व यहाँ हुवे किसान आन्दोलन के कारण है , जिसमे विभिन्न प्रकार के 84 करो के लगाए जाने के कारण जमींदार के विरुद्ध स्थानीय किसानो ने ...

बिजोलिया का अर्थ क्या होता है?

बिचौलिया संज्ञा पुं० [हिं० बीच + औलया (प्रत्य०)] १. मध्यस्थ । २. दलाल ।

बिजोलिया शिलालेख कब का है?

Notes: बिजोलिया शिलालेख की स्थापना जैन श्रावक लोलाक ने की थी| बिजोलिया में स्थित प्राचीन पार्श्वनाथ मन्दिर की उत्तरी दीवार के पास एक चट्टान पर विक्रम सम्वत् 1226 फाल्गुन कृष्णा तृतीया (5 फ़रवरी, 1170) का एक लेख उत्कीर्ण है। यह लेख बिजोलिया शिलालेख कहलाता है।