These NCERT Solutions for Class 7 Hindi Vasant & Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers Summary in Hindi Chapter 31 भीष्म शर-शय्या पर are prepared by our highly skilled subject
experts. Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers in Hindi Chapter 31 पाठाधारित प्रश्न लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. Bal Mahabharat Katha Class 7 Summary in Hindi Chapter 31 दसवें दिन का युद्ध शुरू हुआ। अर्जुन ने शिखंडी को आगे किया। शिखंडी की आड़ में अर्जुन ने भीष्म पर बाण बरसाए। युद्ध में भीष्म पितामह का वक्षस्थल बिंध डाला लेकिन भीष्म पितामह ने शिखंडी के बाणों का जवाब नहीं दिया। उधर अर्जुन ने भीष्म पितामह के मर्म स्थानों पर तीक्ष्ण बाण मारे। भीष्म पितामह ने जो शक्ति अस्त्र अर्जुन पर चलाया उसे अर्जुन ने तीन बाणों से काट गिराया। बाणों ने भीष्म के शरीर को छलनी-छलनी कर दिया था। भीष्म रथ से सिर के बल ज़मीन पर गिर पड़े लेकिन उनका शरीर भूमि से न लगा। शरीर में लगे हुए बाण एक तरफ़ से घुसकर दूसरी तरफ़ निकल गए। भीष्म का शरीर ज़मीन पर नहीं गिरकर उन तीरों के सहारे ऊपर उठा रहा। भीष्म पितामह ने अर्जुन से कहा- बेटा मेरे सिर के नीचे कोई सहारा नहीं है। अतः मेरे सिर के नीचे कोई सहारा लगा दो। भीष्म के आदेश सुनकर अर्जुन ने अपने तरकश से तीन तेज़ बाण निकाले और पितामह का सिर उनकी नोक पर रखकर उनके लिए तकिया बना दिया। तब भीष्म ने कहा- मेरे शरीर त्याग करने का अभी उचित समय नहीं हुआ है। अतः सूर्य भगवान के उत्तरायण होने तक मैं ऐसे ही पड़ा रहूँगा। आप लोगों में से जो भी उस समय तक जीवित रहे, मुझे आकर देख जाएँ। इसके बाद पितामह ने अर्जुन से कहा- बेटा मेरा पूरा शरीर जल रहा है। प्यास भी लगी है। अतः मुझे पानी पिलाओ। अर्जुन ने तुरंत बाण धरती पर बड़े जोर से मारा जो सीधा पाताल में जा लगा। उसी समय जल का सोता फूट निकला। उस अमृत समान मधुर तथा शीतल जल को पीकर भीष्म ने अपनी प्यास बुझाई। जब कर्ण को पता चला कि भीष्म पितामह घायल होकर रण क्षेत्र में पड़े हैं तो वह उनके पास दर्शन के लिए आया। वहाँ भीष्म पितामह ने कर्ण से कहा- बेटा, तुम राधा के पुत्र नहीं कुंती के पुत्र हो। सूर्य पुत्र हो। तुम्हारी दानवीरता तथा शूरता से मैं भली-भाँति परिचित हूँ। तुम पांडवों के सबसे बड़े भाई हो। अतः तुम्हारा कर्तव्य हैं कि तुम पांडवों से मित्रता कर लो। मेरी इच्छा है कि युद्ध में मेरे सेनापति के साथ ही पांडवों के प्रति तुम्हारे वैरभाव का भी आज ही अंत हो जाए। यह सुनकर कर्ण बोला- मैं जानता हूँ कि मैं कुंती का पुत्र हूँ, पर मैं दुर्योधन का साथ नहीं छोड़ सकता। मेरा कर्तव्य है कि दुर्योधन के पक्ष में रहकर ही युद्ध करूँ। इसके लिए आप मुझे क्षमा करें। भीष्म ने कर्ण की बातों को ध्यान से सुना और कहा जैसी तुम्हारी इच्छा हो कर्ण। दुर्योधन कर्ण के युद्ध क्षेत्र में आने पर बहुत प्रसन्न हुआ। वह पितामह के जाने का दुख भूल गया। कर्ण से विचार-विमर्श के बाद द्रोणाचार्य को सेनापति बनाया गया। द्रोणाचार्य ने पाँच दिन तक सेनापति का प्रतिनिधित्व किया। युद्ध में द्रोणाचार्य सात्यकि, भीम, अर्जुन, धृष्टद्युम्न, अभिमन्यु, द्रुपद, काशिराज जैसे सुविख्यात वीरों से अकेले ही भिड़ जाते थे। दुर्योधन आचार्य द्रोण के पास जाकर बोला- युधिष्ठिर को आप जीवित पकड़कर हमारे हवाले कर दें तो अतिउत्तम होगा। दुर्योधन जानता था कि युधिष्ठिर की हत्या करने से कोई विशेष लाभ नहीं होगा अगर इसे जीवित पकड़ लिया जाए तो युद्ध स्वतः बंद हो जाएगा। युधिष्ठिर को थोड़ा सा हिस्सा देकर संधि कर लेंगे और फिर जुआ खेलकर उससे दिया हुआ हिस्सा वापस कर लेंगे, लेकिन जब द्रोणाचार्य को दुर्योधन के असली उद्देश्य का पता चला तो वे उदास हो गए। दुर्योधन का असली चेहरा उसके सामने आया। वे मन ही मन खुश हुए कि युधिष्ठिर का प्राण न लेने का बहाना मिल गया। इधर जब पांडवों को द्रोणाचार्य की प्रतिज्ञा के बारे में पता चला तो वे डर गए। पांडव-पक्ष युधिष्ठिर की रक्षा में लग गया। युधिष्ठिर पकड़े गए की आवाज़ से सारा कुरुक्षेत्र गूंज उठा। इतने में अर्जुन के बाणों से सारा मैदान में अंधकार छा गया और युधिष्ठिर को जीवित पकड़ने का प्रयत्न विफल हो गया। शाम होते-होते उस दिन का युद्ध बंद हो गया। पांडव-सेना के वीर शान से अपने शिविर को लौट चले। इस तरह ग्यारवें दिन का युद्ध समाप्त हो गया। शब्दार्थ: पृष्ठ संख्या-75- वक्षस्थल – सीना, छाती, शिकन न आना – लेश मात्र भी दुखी नहीं होना, प्रतिरोध – रोकना, मर्म स्थान – कोमल अंग। पृष्ठ संख्या-76- प्राणहारी – प्राण लेने वाला, आदेश – आज्ञा, सिरहना – तकिया, स्थल – जगह, शीतल – ठंडा, रणक्षेत्र – युद्धभूमि, द्वेष – नफ़रत, ईर्ष्या, अकारण – बिना कारण के, शूरता – वीरता, ज्येष्ठ – बड़ा, अनुमति – आदेश, कथन – वचन, आशीष – आशीर्वाद, फूल उठना – बहुत खुश होना, विछोह – अलगाव। पृष्ठ संख्या-77- अभिषेक – तिलक, खदेड़ना – भगाना, नाक में दम करना – परेशान करना। अनुरोध – प्रार्थना, गांडीव – अर्जुन के धनुष का नाम, विफल – असफल, विपरीत – उलटा, शीघ्र – जल्दी, परिचित – जानकार, अविरल – लगातार। पृष्ठ संख्या-78- शिविर – छावनी, समाप्त – खत्म। शरशय्या पर पड़े भीष्म ने कर्ण से क्या कहा?उत्तर: शर-शय्या पर पड़े भीष्म ने कर्ण से कहा- बेटा, तुम राधा के पुत्र नहीं, कुंती के पुत्र हो सूर्यपुत्र। वीरता में तुम कृष्ण और अर्जुन के बराबरी हो। तुम पांडवों के बड़े भाई हो।
भीष्म जब शर शैय्या पर पड़े थे तो उन्होंने अर्जुन से क्या माँगा?उनके शरीर में लगे बाण एक तरफ़ से घुसकर दूसरी तरफ निकल गए थे इसलिए वे बाणों के सहारे ज़मीन के ऊपर पड़े रहे। तब भीष्म ने अर्जुन से बाण से उनके सिर के नीचे सहारा लगाने को कहा तो अर्जुन ने तीन बाणों से उनका सिर उन बाणों की नोक पर रखकर तकिया बना दिया। इसके बाद पितामह ने अर्जुन से पानी पिलाने को कहा।
भीष्म शर शय्या पर कैसे आ गए?Answer: महाभारत का भीषण युद्ध समाप्त हो चुका था। विजेता पांडव शर शैय्या पर पड़े पितामह भीष्म का आशीर्वाद लेकर लौटने लगे तो पितामह ने श्रीकृष्ण को अपने पास बुलाया। कृष्ण पास आए तो भीष्म ने उनसे पूछा, 'मधुसूदन मैं अपने किस कर्म की वजह से नुकीले तीरों से बनी इस शय्या पर असह्य कष्ट भुगत रहा हूं?
भीष्म पितामह ने बाणों की शैया पर कितने दिन पड़े पड़े अनेक उपदेश दिए?बाणों की शय्या पर ५८ दिन तक पड़े पड़े इन्होंने अनेक उपदेश दिए। अपनी तपस्या और त्याग के ही कारण ये अब तक भीष्म पितामह कहलाते हैं।
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