Show अयोध्या का असल इतिहास जानते हैं आप?
14 नवंबर 2018 इमेज स्रोत, EPA इमेज कैप्शन, रामलीला का दृश्य अयोध्या और प्रतिष्ठानपुर (झूंसी) के इतिहास का उद्गम ब्रह्माजी के मानस पुत्र मनु से ही सम्बद्ध है. जैसे प्रतिष्ठानपुर और यहां के चंद्रवंशी शासकों की स्थापना मनु के पुत्र ऐल से जुड़ी है, जिसे शिव के श्राप ने इला बना दिया था, उसी प्रकार अयोध्या और उसका सूर्यवंश मनु के पुत्र इक्ष्वाकु से प्रारम्भ हुआ. बेंटली एवं पार्जिटर जैसे विद्वानों ने "ग्रह मंजरी"आदि प्राचीन भारतीय ग्रंथों के आधार पर इनकी स्थापना का काल ई.पू. 2200 के आसपास माना है. इस वंश में राजा रामचंद्रजी के पिता दशरथ 63वें शासक हैं. अयोध्या का महत्व इस बात में भी निहित है कि जब भी प्राचीन भारत के तीर्थों का उल्लेख होता है तब उसमें सर्वप्रथम अयोध्या का ही नाम आता है: "अयोध्या मथुरा माया काशि काँची ह्य्वान्तिका, पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिका." यहाँ यह भी ध्यान देने वाली बात है कि इन प्राचीन तीर्थों में 'प्रयाग'की गणना नहीं है! अयोध्या के महात्म्य के विषय में यह और स्पष्ट करना समीचीन होगा कि जैन परंपरा के अनुसार भी 24 तीर्थंकरों में से 22 इक्ष्वाकु वंश के थे. इमेज स्रोत, SAMEERATMAJ MISHRA/BBC इन 24 तीर्थंकरों में से भी सर्वप्रथम तीर्थंकर आदिनाथ (ऋषभदेव जी) के साथ चार अन्य तीर्थंकरों का जन्मस्थान भी अयोध्या ही है. बौद्ध मान्यताओं के अनुसार बुद्ध देव ने अयोध्या अथवा साकेत में 16 वर्षों तक निवास किया था. ये हिन्दू धर्म और उसके प्रतिरोधी सम्प्रदायों- जैन और बौद्धों का भी पवित्र धार्मिक स्थान था. मध्यकालीन भारत के प्रसिद्ध संत रामानंद जी का जन्म भले ही प्रयाग क्षेत्र में हुआ हो, रामानंदी संप्रदाय का मुख्य केंद्र अयोध्या ही हुआ. उत्तर भारत के तमाम हिस्सों में जैसे कोशल, कपिलवस्तु, वैशाली और मिथिला आदि में अयोध्या के इक्ष्वाकु वंश के शासकों ने ही राज्य कायम किए थे. जहाँ तक मनु द्वारा स्थापित अयोध्या का प्रश्न है, हमें वाल्मीकि कृत रामायण के बालकाण्ड में उल्लेख मिलता है कि वह 12 योजन-लम्बी और 3 योजन चौड़ी थी. गहरा है इतिहाससातवीं सदी के चीनी यात्री ह्वेन सांग ने इसे 'पिकोसिया' संबोधित किया है. उसके अनुसार इसकी परिधि 16ली (एक चीनी 'ली' बराबर है 1/6 मील के) थी. संभवतः उसने बौद्ध मतावलंबियों के हिस्से को ही इस आयाम में सम्मिलित किया हो. आईन-ए-अकबरी में इस नगर की लंबाई 148 कोस तथा चौड़ाई 32 कोस उल्लिखित है. सृष्टि के प्रारम्भ से त्रेतायुगीन रामचंद्र से लेकर द्वापरकालीन महाभारत और उसके बहुत बाद तक हमें अयोध्या के सूर्यवंशी इक्ष्वाकुओं के उल्लेख मिलते हैं. इस वंश का बृहद्रथ, अभिमन्यु के हाथों 'महाभारत' के युद्ध में मारा गया था. फिर लव ने श्रावस्ती बसाई और इसका स्वतंत्र उल्लेख अगले 800 वर्षों तक मिलता है. फिर यह नगर मगध के मौर्यों से लेकर गुप्तों और कन्नौज के शासकों के अधीन रहा. अंत में यहां महमूद गज़नी के भांजे सैयद सालार ने तुर्क शासन की स्थापना की. वो बहराइच में 1033 ई. में मारा गया था.
इमेज स्रोत, Getty Images इमेज कैप्शन, तैमूर इसके बाद तैमूर के पश्चात जब जौनपुर में शकों का राज्य स्थापित हुआ तो अयोध्या शर्कियों के अधीन हो गया. विशेषरूप से शक शासक महमूद शाह के शासन काल में 1440 ई. में. 1526 ई. में बाबर ने मुग़ल राज्य की स्थापना की और उसके सेनापति ने 1528 में यहाँ आक्रमण करके मस्जिद का निर्माण करवाया जो 1992 में मंदिर-मस्जिद विवाद के चलते रामजन्मभूमि आन्दोलन के दौरान ढहा दी गई. अकबर के शासनकाल में प्रशासनिक पुनर्गठन के फलस्वरूप आए राजनीतिक स्थायित्व के कारण अवध क्षेत्र का महत्व बहुत बढ़ गया था. इसके भू-राजनीतिक एवं व्यापारिक कारण भी थे. अकबर का अवध सूबागंगा के उत्तरी भाग को पूर्वी क्षेत्रों और दिल्ली-आगरा को सुदूर बंगाल से जोड़ने वाला मार्ग यहीं से गुज़रता था. अतः अकबर ने जब 1580 ई. में अपने साम्राज्य को 12 सूबों में विभक्त किया, तब उसने 'अवध'का सूबा बनाया था और अयोध्या ही उसकी राजधानी थी. यहाँ प्रसंगवश बताते चलें कि आधुनिक भारत में अयोध्या के प्रामाणिक इतिहासकार लाला सीताराम 'भूप' (जिनकी पुस्तक 'अयोध्या का इतिहास'राम जन्मभूमि प्रकरण में माननीय उच्च न्यायालय के निर्णय में भी सर्वाधिक उद्धृत है) अयोध्या के मूल निवासी होने के नाते गर्व के साथ अपने नाम से पहले सदैव "अवध वासी" लिखते थे. इमेज स्रोत, PENGUIN INDIA 1707 ई. में औरंगज़ेब की मृत्योपरांत जब मुग़ल साम्राज्य विघटित होने लगा, तब अनेक क्षेत्रीय स्वतंत्र राज्य उभरने लगे थे. उसी दौर में अवध के स्वतंत्र राज्य की स्थापना भी हुई. 1731 ई. में मुग़ल बादशाह मुहम्मद शाह ने इस क्षेत्र को नियंत्रित करने के लिए अवध का सूबा अपने शिया दीवान-वज़ीर सआदत खां को प्रदान किया था. इसका नाम मोहम्मद अमीन बुर्हानुल मुल्क था और उसने अपने सूबे के दीवान दयाशंकर के माध्यम से यहाँ का प्रबंधन संभाला. इसके बाद उसका दामाद मंसूर अली 'सफदरजंग' की उपाधि के साथ अवध का शासक बना. उसका प्रधानमंत्री या प्रांतीय दीवान इटावा का कायस्थ नवल राय था. इसी सफदरजंग के समय में अयोध्या के निवासियों को धार्मिक स्वतंत्रता मिली. इसके बाद उसका पुत्र शुजा-उद्दौलाह अवध का नवाब-वज़ीर हुआ (1754-1775 ई.) और उसने अयोध्या से 3 मील पश्चिम में फैज़ाबाद नगर बसाया. यह नगर अयोध्या से अलग और लखनऊ की पूर्व छाया बना. वस्तुतः इसी शुजा-उद्दौलाह के मरणोपरांत (1775 ई.) फैज़ाबाद उनकी विधवा बहू बेगम (इनकी मृत्यु 1816 ई में हुई) की जागीर के रूप में रही और उनके पुत्र आसफ़-उद्दौल्लाह ने नया नगर लखनऊ बसाकर अपनी राजधानी वहाँ स्थानांतरित कर ली. ये 1775 ई. की बात है. इमेज स्रोत, Getty Images इमेज कैप्शन, मुग़ल शासक बाबर अयोध्या, फैज़ाबाद और लखनऊ तीन पृथक नगर हैं जो अवध के नवाब-वज़ीरों की राजधानी रही. इस राज्य का संस्थापक चूंकि मुग़लों का दीवान-वज़ीर था, अतः अपने शासन की वैधता के लिए वे अपने-आप को "नवाब-वज़ीर" कहते रहे. वाजिद अली शाह अवध का अंतिम नवाब-वज़ीर था. उसके बाद उनकी बेगम हज़रत महल और उनका पुत्र बिलकिस बद्र सिर्फ़ आंग्ल सत्ताधीशों से साल 1857-58 के दौरान लड़ते रहे. लेकिन 1856 के आंग्ल प्रभुत्व से अवध को मुक्त कराने में असफल रहे. इसी वाजिद अली शाह के समय 'सांप्रदायिक विवाद'सर्वप्रथम हनुमानगढ़ी में उठा था और नवाब वाजिद अली शाह ने अंततः हिन्दुओं के हक़ में निर्णय देते हुए लिखा था: "हम इश्क़ के बन्दे हैं मज़हब से नहीं वाकिफ़/ गर काबा हुआ तो क्या, बुतखाना हुआ तो क्या?" इस निष्पक्ष निर्णय पर तत्कालीन आंग्ल गवर्नर-जनरल लॉर्ड डलहौज़ी ने मुबारकबाद भी प्रेषित की थी. इस प्रकार फैज़ाबाद के नाम परिवर्तन से इतिहास के विद्यार्थियों-शोधार्थियों के समक्ष यही समस्या आएगी कि अयोध्या का इतिहास क्या है? फैज़ाबाद का विकास-क्रम क्या है? क्या इसी फैज़ाबाद के नक़्शे पर ही पुराने लखनऊ की संरचना की कल्पना की गयी थी और कैसे?
समस्या इतिहास के छात्रों कीनामकरण वस्तुतः उसी का अधिकार होता है जो नए नगर, स्थान, इमारत की स्थापना-निर्माण कर रहा हो? और यदि किसी स्थान का नाम परिवर्तन करना भी हो तो उसके निर्णय में जनतंत्र में 'जन' की भूमिका अवश्य होनी चाहिए और इसका सीधा-सा तरीका'जनमत-संग्रह'का प्रावधान है. भारतीय संविधान की प्रस्तावना का भी मूल भाव यही था- "हम भारत के लोग", यहाँ लोग सिर्फ़ शासक-प्रशासक-पुरोहित वर्ग नहीं है. ये सवाल लाज़िमी है कि क्या किसी 'जनमत-संग्रह' के जरिए ये नाम परिवर्तन हो रहे हैं या शासन-प्रशासन की सनक और हनक से? 'न्याय'के विषय में यही मान्यता है कि वह सिर्फ़ निष्पक्ष रूप से प्रदान ही नहीं किया जाए, अपितु ऐसा होता हुआ प्रतीत भी हो? इन नाम-परिवर्तनों ('प्रयाग राज' और 'अयोध्या') में क्या ऐसा न्यायिक और तार्किक जनतांत्रिक सिद्धांत/अथवा पद्धति का पालन सुनिश्चित किया गया? इमेज स्रोत, SAMEERATMAJ MISHRA/BBC यदि हम मुस्लिम शासकों को ग़लत करता मान लें तो क्या जो वे 12वीं से 17वीं शताब्दियों तक करते रहे, वही हम 21वीं सदी में करते हुए विकसित, अधिक सभ्य दिख रहे हैं? भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि क्या बन रही है. क्या यह देश और उसकी राष्ट्रीय एकता-अखंडता के लिए उपयुक्त और सराहनीय कदम है? क्या एकांकी संस्कृति हमारी विरासत है? क्या हम जिस "हिन्दू संस्कृति" की बात करते नहीं थक रहे, वह "वसुधैव कुटुम्बकं" के सिद्धांत में आस्था की पक्षधर नहीं थी/है? 'सनातनी' इसीलिए सतत हैं क्योंकि वे रूढ़िवादी नहीं रहे! तभी ना इकबाल ने लिखा "कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी/ सदियों रहा है दुश्मन दौरे-जहाँ हमारा?" अयोध्या का सबसे पुराना नाम क्या है?अयोध्या मथुरा माया काशी काञ्ची अवन्तिका ।
अयोध्या का ऐतिहासिक नाम क्या है?अयोध्या जिसे अवध और साकेत भी कहते हैं अत्यन्त प्राचीन नगर है।
अयोध्या का नाम फैजाबाद कब हुआ?इस शहर को अवध के नवाब द्वारा बसाया गया था। यह 6 नवंबर 2018 तक फैजाबाद जिला और फैजाबाद मंडल का मुख्यालय था, जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में उत्तर प्रदेश सरकार ने अयोध्या के रूप में फैजाबाद जिले का नाम बदलने और जिले के प्रशासनिक मुख्यालय को अयोध्या शहर में स्थानांतरित करने की मंजूरी दी थी।
अयोध्या का वर्तमान नाम क्या है?राजस्व/प्रशासन. |