उच्चारण के प्रमुख तत्व कितने हैं? - uchchaaran ke pramukh tatv kitane hain?

मानव द्वारा अपने विचारों, भावों को दूसरों पर प्रकट करने के लिए मुख से विभिन्न प्रकार की ध्वनियों का उच्चारण किया जाता है। ये ध्वनियाँ वर्ण, शब्द या वाक्यों के रूप में होती हैं। जब एक व्यक्ति विचार प्रकट करने के लिए अपने मुख से उच्चारण करता है तब अपने मन की बात (भाव) का स्पष्ट और उचित अर्थ प्रदान करने के लिए कुछ-कुछ किसी विशेष वर्ण (अक्षर/ध्वनि), शब्दों या वाक्य पर जोर (बल) दिया जाता है। इसी बल (जोर) देने की क्रिया को ही 'बलाघात' या 'स्वराघात' कहा जाता है।

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बलाघात तथा स्वराघात की आवश्यकता

जब एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को अपने विचारों, भावों अर्थात मन की बात को बताना चाहता है और वह चाहता है कि सामने वाला व्यक्ति उसकी बात को स्पष्टतया समझ सके अर्थात उसी बात को समझे जिसे वह बताना चाहता है, तब ऐसी स्थिति में व्यक्ति अपने मुख से निकलने वाली ध्वनि के कुछ वर्णो, शब्दों या वाक्यों पर कुछ विशेष जोर (बल) देता है। शब्द का उच्चारण करते समय अर्थ तथा उच्चारण की स्पष्टता के लिए किसी वर्ण (अक्षर) पर विशेष बल देते हैं। इस तरह हम कह सकते हैं कि भाव की स्पष्टता के लिए बलाघात या स्वराघात की आवश्यकता होती है।

बल या जोर कहाँ देते हैं

सामान्यतः बोलते समय व्यक्ति के द्वारा बल संयुक्ताक्षर के पहले वर्ण (अक्षर) पर लगता है।
उदाहरण - शिष्य, बन्धन। इनमें संयुक्त अक्षर के पहले 'शि' तथा 'ब' पर जोर दिया गया है।

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बलाघात भेद

बालाघाट के तीन भेद हैं-
(1) वर्ण (अक्षर) बलाघात - मुख से उच्चारण के समय जब किसी विशेष वर्ण या अक्षर पर बल (जोर) पड़ता है तब वहाँ वर्ण बलाघात होता है।
उदाहरण - यदि एक शब्द दिया जाए 'चला' और इसका वाक्य में प्रयोग करें।
जैसे- (i) श्याम घर से चला।
(ii) मोहन गाड़ी चला।
उक्त दोनों वाक्यों में से प्रथम वाक्य 'च' वर्ण पर बलाघात है। जबकि दूसरे वाक्य में 'ल' वर्ण पर बलाघात है। इस तरह स्वर बलाघात की प्रक्रिया होती है।

(2) शब्द बलाघात - बातों का मुख से प्रकटीकरण होने पर जब किसी वाक्य में प्रयुक्त किसी विशेष शब्द पर बल दिया जाता है तब वहाँ शब्द बलाघात होता है। इस प्रकार के बलाघात से अर्थ में भी अंतर आ जाता है।
उदाहरण- (i) तुम नहीं जाओगे।
(ii) तुम नहीं जाओगे?
उक्त दोनों वाक्यों में से प्रथम वाक्य में देखा जाए तो किसी भी शब्द पर विशेष बल नहीं पड़ता है। दूसरे वाक्य में 'नहीं' शब्द पर विशेष बलाघात पड़ रहा है। इस वाक्य में 'नहीं' शब्द पर जोर देने से प्रश्न करना स्पष्ट हो रहा है अर्थात व्यक्ति के द्वारा पूछा जा रहा है कि क्या वह जाएगा या नहीं।

(3) वाक्य बलाघात - इस तरह के बलाघात में पूरे वाक्य पर ही जोर दिया जाता है इसलिए यह सबसे अधिक अर्थपूर्ण भी होता है।
उदाहरण - आज प्रधान पाठक जी पढ़ाएँगे।
उक्त वाक्य से स्पष्ट है कि कल (बीता हुआ) अन्य शिक्षक के द्वारा पढ़ाया गया था और आज प्रधान पाठक जी के द्वारा पढ़ाया जाना है। इस तरह पूरे वाक्य पर बल दिया गया है। अतः यह 'वाक्य बलाघात' होगा।

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उच्चारण में संगम

ध्वनियों या शब्दों का उच्चारण करते समय विभिन्न शब्दों (पदों) की सीमाओं को जानना-समझना ही 'संगम' कहलाता है। संगम द्वारा यह निश्चित किया जाता है कि किन शब्दों को एक प्रवाह में एक साथ बोलना या पढ़ना है तथा किन शब्दों के मध्य सामान्य-सा (छोटा सा) विराम लगाना है। इसी प्रयुक्त विराम को 'संगम' कहा जाता है।
उदाहरण-
[अ] (i) चलिये, डॉक्टर से मिल आते हैं।
(ii) चलिये, आपको डॉक्टर से मिलवाते हैं।
उक्त दोनों वाक्य में से प्रथम वाक्य में डॉक्टर से दोनों व्यक्तियों के मिलने की बात स्पष्ट हो रही है। यह पता नहीं चलता है कि डॉक्टर से इलाज किसे करानी है। जबकि दूसरे वाक्य से स्पष्ट हो जाता है कि पहला व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को डॉक्टर के पास इलाज के लिए ले जाना चाह रहा है। अतः उस व्यक्ति को डॉक्टर से मिलवाने के लिए कहा जा रहा है।

[ब] (i) बगीचे में चारों ओर घास उग आई है।
(ii) किसान ने बगीचे में चारों ओर घास उगाई है।
उक्त दोनों वाक्य में से प्रथम वाक्य से स्पष्ट हो रहा है कि घास अपने आप उगी है। जबकि दूसरे वाक्य से स्पष्ट होता है कि किसान ने सुन्दरता बढ़ाने या अन्य कारणों से स्वयं ही घास को उगाया है।
इस तरह हल्का सा विराम देने से अर्थ परिवर्तन हो जाता है जिसे की उच्चारण में संगम कहते हैं।

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I Hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
rfhindi.com

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(संबंधित जानकारी के लिए नीचे दिये गए विडियो को देखें।)

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हिन्दी एवं संस्कृत भाषा में प्रयुक्त एक ऐसा चिन्ह जो वर्णमाला के व्यन्जन वर्णों के नीचे तिरछी रेखा (्) के रूप में लगाया जाता है उसे हलन्त कहते हैं।

उच्चारण स्थान कितने हैं उनके नाम लिखिए?

यानी कुछ ध्वनियों का उच्चारण कंठ, तालु, मूर्द्धा, दंत तथा ओष्ठ से किया जाता है तो कुछ का मुख के अंगों जैसे कंठ+तालु, कंठ+ओष्ठ, दंत+ओष्ठ, और मुख+नाक से संयुक्त रूप से भी किया जाता है।

उच्चारण कितने प्रकार के होते हैं?

उच्चारण के आधार पर व्यंजन कितने प्रकार के होते हैं (uchchaaran ke aadhaar par vyanjan kitane prakaar ke hote hain) :-.
1.कोमल तालव्य व्यंजन.
2.तालव्य व्यंजन.
मूर्धन्य व्यंजन.
दन्त्य व्यंजन.
ओष्ठ्य व्यंजन.
दन्त्योष्ठ्य व्यंजन.
वत्स्र्य व्यंजन.
स्वरयंत्रीय/काकल्य.

उच्चारण के कितने तत्व होते हैं?

उच्चारण की प्रक्रिया के आधार पर वर्गीकरण क, ख, ग, घ, ट, ठ, ड, ढ, त, थ, द, ध, प, फ, ब, भ और क़- सभी ध्वनियां स्पर्श हैं। च, छ, ज, झ को पहले 'स्पर्श-संघर्षी' नाम दिया जाता था लेकिन अब सरलता और संक्षिप्तता को ध्यान में रखते हुए इन्हें भी स्पर्श व्यंजनों के वर्ग में रखा जाता है।

उच्चारण स्थानों की संख्या कितनी है?

उच्चारण स्थानों की संख्या :- हमारे मुख में उच्चारण उपयोगी अवयवों की कुल संख्या आठ मानी जाती है।