विधायक का टिकट कैसे मिलता है - vidhaayak ka tikat kaise milata hai

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इलेक्शन नॉलेज: क्या होता है चुनाव का टिकट, कैसे भरा जाता है इसमें नाम

जमशेदपुर. चुनाव हो तो टिकट की बात शुरू हो जाती है। टिकट की दावेदारी। टिकट की मारामारी जैसी बातें सुनने को मिलती हैं। ये टिकट होता क्या है? दरअसल, यह कोई टिकट नहीं होकर चुनाव आयोग का फॉर्म बी है। फॉर्म बी में कोई भी पार्टी चुनावों में जिसे उम्मीदवार बनाती है, उसका नाम और एक वैकल्पिक उम्मीदवार का नाम पता लिखा जाता है। उसके नीचे पार्टी के अध्यक्ष के हस्ताक्षर होते हैं, यही पार्टी का टिकट है। फॉर्म बी के साथ फॉर्म ए भी होता है, जिसमें पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रदेशाध्यक्ष को उम्मीदवार नामांकित करने के लिए अधिकृत करता है। आम बोलचाल में टिकट कहे जाने वाले फॉर्म बी के साथ फॉर्म ए को भी नामांकन भरते समय रिटर्निंग ऑफिसर को जमा करवाना होता है। दोनों फॉर्म एक साथ नामांकन भरने की अंतिम तारीख तक दोपहर बाद तीन बजे तक जमा करवाने होते हैं।

लगती है पार्टी की सील

फॉर्म बी पर पार्टी के चुनाव चिह्न का ठप्पा लगता है और प्रदेश अध्यक्ष के हस्ताक्षर के नीचे पार्टी की सील लगती है। पार्टियां चुनावों में उम्मीदवार तो घोषित कर देती हैं, लेकिन फॉर्म बी व ए ऑब्जर्वर के साथ नामांकन के एक-दो दिन पहले भिजवाती हैं।

एक जून तक नहीं पीयेंगे चाय

अखिल भारतीय सोनिया गांधी प्रचार दल की बैठक मंगलवार को मानगो रोड नंबर चार स्थित जवाहरनगर में हुई। दल के अध्यक्ष सूरजकांत नाग ने बैठक की अध्यक्षता की। उन्होंने कहा कि प्रचार दल के सभी सदस्य 12 मार्च से एक जून तक चाय नहीं पीयेंगे।

आगे की स्लाइड में पढ़िए प्रशासन अपडेट

चेतावनी: इस टेक्स्ट में गलतियाँ हो सकती हैं। सॉफ्टवेर के द्वारा ऑडियो को टेक्स्ट में बदला गया है। ऑडियो सुन्ना चाहिये।

लिखे विधायक जानकी एमएलए का जो टिकट देता है वह मेंबर ऑफ पार्लियामेंट जो भी एमपी होता है हर डिस्ट्रिक्ट का उसी ने डिसाइड करता है किसको देना है और जो भी सीएम होता है चीफ मिनिस्टर उनके थ्रू से ऑर्डर आता है एमपी के लिए तो एमबी और टिकट देता है

Romanized Version

चुनाव को लेकर आम व्यक्ति के जेहन में कुछ सवाल होते है कि आखिर पार्टी का टिकट क्या होता है और कैसे मिलता है टिकट? चुनाव आयोग ने पार्टी टिकट के लिए नियम बनाये है जिसका पालन करना उम्मीदवार के साथ पार्टी के लिए भी जरूरी होता है।

विधायक का टिकट कैसे मिलता है - vidhaayak ka tikat kaise milata hai

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की तारीख जल्द ही घोषित की जा सकती हैं.

चुनाव को लेकर आम व्यक्ति के जेहन में कुछ सवाल होते है कि आखिर पार्टी का टिकट क्या होता है और कैसे मिलता है टिकट?  चुनाव आयोग ने पार्टी टिकट के लिए नियम बनाये है जिसका पालन करना उम्मीदवार के साथ पार्टी के लिए भी जरूरी होता है. इसलिए आज हम बता रहे हैं कि किसी भी पॉलिटिकल पार्टी का टिकट क्या होता है.

क्या है पार्टी का टिकट पाने का तरीका

विधानसभा चुनाव अब नजदीक है. ऐसे में उत्तर प्रदेश में अब बड़े राजनीतिक दल अपने प्रत्याशियों के चयन के लिए तेजी से नाम पर मंथन कर रहे हैं. कोई भी पार्टी चुनाव में जिसे भी उम्मीदवार बनाती है. उसका नाम चुनाव आयोग के फार्म B पर दर्ज करती है. उसके साथ एक वैकल्पिक उम्मीदवार का नाम और पता भी लिखा होता है फिर इस फार्म B पर पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष का हस्ताक्षर होता है. उसके नीचे पार्टी के चुनाव चिन्ह की मुहर भी लगी होती है. इसके साथ एक फार्म A भी संलग्न होता है जिसमें पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष अपने प्रदेश अध्यक्ष को उम्मीदवार नामांकित करने के लिए अधिकृत करता है. यह दोनों फार्म नामांकन के दौरान रिटर्निंग ऑफिसर को जमा करने होते हैं।

क्या होता है पार्टी का टिकट मिलने का मतलब

किसी भी राजनीतिक पार्टी का टिकट मिलने का मतलब होता है एक अधिकार पत्र.  जिस तरीके से बस या ट्रेन में टिकट खरीद कर अधिकार के साथ कोई भी व्यक्ति यात्रा कर सकता हैं. उसी तरीके का इलेक्शन टिकट भी  होता है. अंतर सिर्फ  इतना होता है कि यहां एक टिकट नहीं बल्कि दो टिकट मिल कर एक पार्टी का टिकट बनता है. क्योंकि इलेक्शन टिकट के 2 हिस्से होते हैं, फार्म A और  फार्म B. फार्म एक पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की तरफ से होता है जिसमें यह बताया जाता है कि अमुक व्यक्ति हमारा प्रदेश अध्यक्ष है. पार्टी उसे राज्य में टिकट आवंटित करने के लिए अधिकृत करती है. वही फार्म B राज्य के अध्यक्ष की तरफ होता है जिसमें निर्वाचन आयोग को संबंधित विधानसभा क्षेत्र से पार्टी उम्मीदवार बनाती है. इस पर प्रदेश अध्यक्ष के हस्ताक्षर और पार्टी की मुहर लगी होती है.

पार्टी टिकट पर मंथन जारी  

भाजपा, सपा जैसी पार्टियों ने अभी तक अपने प्रत्याशियों के नाम की  घोषणा नहीं की है. जबकि कांग्रेस ने कुछ सीटों पर अपने बड़े चेहरों  को उम्मीदवार घोषित कर दिया है. वही बहुजन समाज पार्टी ने भी अपने ब्राह्मण सम्मेलन के दौरान कुछ उम्मीदवारों के नाम घोषित कर दिए हैं. वही कुछ छोटे दल अभी गठबंधन के इंतजार में हैं जिसके बाद वह अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर सकते हैं।  जाति आधारित छोटे दल की भूमिका चुनाव में महत्वपूर्ण होते  है. यह अकेले दम पर तो अपना कोई प्रत्याशी नहीं जीता पाते हैं लेकिन बड़े राजनीतिक दलों के साथ गठबंधन करके बड़ा फायदा पहुंचाते हैं. पिछले चुनाव में भाजपा के साथ छोटे दलों के गठबंधन से यह बात साबित हो चुकी है. हालांकि छोटे दलों में प्रत्याशियों के चयन का कोई मानक नहीं होता है.

कैसे लगेगी राजनीति में अपराधीकरण पर रोक

जिस तेजी से राजनीति में अपराधीकरण बढ़ता जा रहा है. उसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जाहिर की. 13 फरवरी 2020 को देश की शीर्ष अदालत सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला दिया कि सभी राजनीतिक दल दाग़ी  कैंडिडेट को टिकट दिए जाने की वजह अपनी वेबसाइट पर बताएं। जस्टिस जस्टिस आर एस नरीमन और एस रविंद्र भट्ट की बेंच ने सभी पार्टियों को अपने उम्मीदवारों का क्रिमिनल रिकॉर्ड आधिकारिक फेसबुक और ट्विटर हैंडल पर अपलोड करने के निर्देश भी दिए. इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर राजनीतिक दल किसी भी अपराधिक बैकग्राउंड वाले किसी भी व्यक्ति को टिकट देती हैं तो पार्टी इसकी वजह भी बताएं।

13 फरवरी 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों को यह आदेश भी दिया कि अगर कोई भी दल किसी दागी कैंडिडेट को टिकट देती है तो उसकी योग्यता ,उपलब्धियां और मेरिट की जानकारी 72 घंटे के भीतर चुनाव आयोग को देना होगा।

विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए क्या होनी चाहिए योग्यता

1- विधानसभा का सदस्य बनने के लिए व्यक्ति को भारत का नागरिक होना चाहिए।

2- वह 25 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो.

3 -चुनाव लड़ने वाले व्यक्ति को उस राज्य में किसी भी निर्वाचन क्षेत्र का मतदाता होना आवश्यक है.

4- चुनाव लड़ने वाला मानसिक रूप से स्वस्थ और दिवालिया ना हो. वही उसके ऊपर कोई भी अपराधिक मुकदमा ना हो.

5  –  चुनाव लड़ने वाले व्यक्ति को भारत सरकार में के अंतर्गत किसी भी लाभ वाले पद पर आसीन नहीं होना चाहिए।

6  – लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के अनुसार यदि विधायक दोषी पाया गया तो उसे उस पद से तत्काल हटाया जा सकता है।

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